नई दिल्ली: दो हाई प्रोफाइल सियासी इस्तीफे ऐसे थे- पिछले हफ्ते महाराष्ट्र मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कुर्सी छोड़ने का फैसला और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के इस ऐलान से पहले का घटनाक्रम कि वो टोरियों की लीडरशिप छोड़ रहे हैं- जिन्होंने पिछले हफ्ते उर्दू अख़बारों को व्यस्त रखा.
ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान, 29 जून को देर रात के एक घटनाक्रम में किया, जिससे कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के सदन में फ्लोर टेस्ट कराए जाने के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था. एक दिन बाद शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को, जिन्होंने ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था, मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उनके डिप्टी बना दिए गए.
यूके में अपनी खुद की पार्टी में बढ़ती बगावत का सामना करते हुए, जॉनसन ने गुरुवार को ऐलान किया कि वो टोरियों का नेतृत्व छोड़ रहे हैं लेकिन उन्होंने कहा कि वो उस समय तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे, जब तक उनके उत्तराधिकारी का फैसला नहीं हो जाता.
और दूसरा मुद्दा- महंगाई भी उर्दू अखबारों के लिए चिंता का विषय बना रहा.
बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा की सुप्रीम कोर्ट में दी गई याचिका के पर सुनवाई अखबारों की कवरेज में एक जीत की भावना थी. शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि मोहम्मद साहब पर उनकी टिप्पणियों के सिलसिले में, उनके खिलाफ दर्ज फर्स्ट इनफर्मेशन रिपोर्ट्स (एफआईआर्स) को क्लब कर दिया जाए.
दिप्रिंट अपने इस राउंडअप में बता रहा है कि इस हफ्ते कौन-सी खबरें उर्दू प्रेस में सुर्खियों में रहीं.
SC में नुपुर शर्मा का संकट
शर्मा की याचिका को ठुकराने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला और इस दौरन उसकी टिप्पणियों ने न सिर्फ उर्दू अखबारों के पहले पन्नों बल्कि उनके संपादकीयों में भी जगह बनाई.
एक स्पेशल कॉलम में, इंकलाब ने लिखा कि कोर्ट की टिप्पणियां उस दुख को दर्शाती हैं जिसके साथ भारतीय मुसलमान जी रहे हैं. अखबार ने लिखा कि मुसलमानों ने उदयपुर टेलर कन्हैया लाल के हत्यारों की ‘तिरस्कारी’ कहते हुए निंदा की, लेकिन भारतीय जनता पार्टी शर्मा की मुसीबतों को लेकर अभी भी परेशान है और इनके खिलाफ उसने विरोध प्रदर्शन किए और ज्ञापन तक दिए हैं.
2 जुलाई को सियासत ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि किस तरह सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए.
अपनी फ्लायर हेडलाइन में रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने कोर्ट का ये कहते हुए हवाला दिया, ‘नुपुर शर्मा की फिसलती जुबान ने पूरे मुल्क में आग लगा दी है’. वही वाक्य 2 जुलाई को सियासत के संपादकीय की शुरुआती लाइन था जिसका शीर्षक था, ‘कम से कम अब बीजेपी को शर्म आनी चाहिए’. लेख में कोर्ट की टिप्पणी का भी हवाला दिया गया कि दिल्ली पुलिस ने राजनेता के लिए जरूर रेड कारपेट बिछाया होगा. अखबार ने कहा कि शर्मा के खिलाफ देश के माहौल को बिगाड़ने का केस दर्ज होना चाहिए और उन्हें बचा रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.
2 जुलाई को उसी से जड़े एक लेख में सहारा ने खबर दी कि दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग ने इस पर चर्चा किए जाने की मांग उठाई है कि नफरत और तनाव फैलाने के लिए कौन जिम्मेदार है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी अपील की कि उसके अंतिम आदेश में शर्मा के खिलाफ टिप्पणियों को शामिल किया जाना चाहिए.
उसी दिन अपने संपादकीय में सहारा ने शर्मा को राष्ट्र की भलाई के लिए खतरा बताया- जिसका सुप्रीम कोर्ट ने भी अनुमोदन किया- और आगे कहा कि शासन के नाम पर ‘बुलडोजर्स चलाने’ में व्यस्त सरकार पर अब इस स्थिति से निपटने की भी जिम्मेदारी आ गई है. अखबार ने लिखा कि अगर उन्हें (नुपुर शर्मा) अभी भी गिरफ्तार नहीं किया जाता तो ये कानून, लोकतंत्र, धर्मनिर्पेक्षता, और अदालत सब की अवमानना होगी.
5 जुलाई को इंकलाब ने पहले पन्ने पर खबर दी कि राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्लू) ने उत्तर प्रदेश पुलिस को पत्र लिखकर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ शर्मा पर कि गए उनके आपत्तिजनक ट्वीट के लिए शिकायत दर्ज करने को कहा है. उसने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री से तीन दिन के भीतर जवाब देने के लिए कहा गया था.
6 जुलाई को सहारा ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि 15 पूर्व जजों और 77 पूर्व नौकरशाहों ने एक बयान जारी करके सुप्रीम कोर्ट से शर्मा के खिलाफ की गईं अपनी टिप्पणियां वापस लेने का अनुरोध किया है. इस ग्रुप ने कहा था कि याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एक रेखा (लक्षमण रेखा) को पार किया है. सियासत ने भी इस खबर को अपने पहले पन्ने पर जगह दी.
महाराष्ट्र राजनीति
महाराष्ट्र के राजनीतिक थ्रिलर का आखिरी ‘एक्ट’ उर्दू प्रेस के पहले पन्नों और संपादकीयों में नजर आया. 2 जून को इंकलाब के पहले पन्ने की लीड खबर में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का ये कहते हुए हवाला दिया गया कि उनके उत्तराधिकारी एकनाथ शिंदे शिवसेना के मुख्यमंत्री नहीं हैं और अगर उसके वरिष्ठ नेता अमित शाह ने अपना चुनाव-पूर्व वादा निभाया होता तो आज राज्य में बीजेपी का मुख्यमंत्री होता.
अखबार ने राष्ट्रीय जनता दल के उस बयान को भी प्रमुखता से छापा जिसमें उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को देश का पहला ‘अग्निवीर’ कहते हुए उपहास किया गया था. संदर्भ के लिए, ये बीजेपी नेता पर चोट थी जिन्हें अपने बॉस के तौर पर एकनाथ शिंदे के लिए जगह छोड़नी पड़ी थी.
2 जुलाई को सहारा ने महाराष्ट्र विधान सभा के विशेष सत्र के बारे में खबर दी जो अगले दिन 3 जुलाई को बुलाया गया और जिसमें शिंदे की विश्वास मत हासिल करने की योजना थी.
सियासत के पहले पन्ने पर नई सरकार की खबर को बिल्कुल ही छोड़ दिया गया और इसकी बजाए उसने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 10 घंटे तक शिवसेना नेता संजय राउत से पूछताछ की खबर को जगह दी.
2 जुलाई को दो-हिस्सों के एक दुर्लभ संपादकीय में जिसका शीर्षक था ‘उद्धव के मुख्यमंत्री काल के 2.5 साल’, इंकलाब ने बतौर मुख्यमंत्री ठाकरे के कार्यकाल और उनके नेतृत्व की निजी शैली को एक शानदार श्रद्धांजलि दी और साथ ही कोविड महामारी के प्रबंधन के लिए पूर्व की महा विकास अघाड़ी सरकार की भी प्रशंसा की.
अखबार के संपादकीय में दावा किया गया कि किसी ने ठाकरे को कभी घबराया हुआ नहीं देखा और अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने अपना नरम आचरण बनाए रखा था. अगले दिन संपादकीय के दूसरे हिस्से में कहा गया कि जिन लोगों ने ठाकरे के साथ काम किया था उन्हें लगता था कि वो एक अलग तरह के नेता थे और शायद यही वजह थी कि उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने में झिझक नहीं हुई. संपादकीय में ये भी दावा किया गया कि ये ठाकरे की दूरदर्शिता ही थी जिसकी वजह से वो मानते थे कि अगर भारतीय जनता पार्टी के साथ उनका गठबंधन जारी रहता तो शिवसेना एक जूनियर पार्टनर बनकर रह जाती.
6 जुलाई को अपने संपादकीय में सहारा ने लिखा कि महाराष्ट्र में आया सियासी तूफान नई सरकार के शपथ लेने के बाद भी शांत नहीं हुआ और उसने दावा किया कि ऐसा लगता है कि नई व्यवस्था ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट को समाप्त करने का मन बना लिया है. अखबार ने कहा कि नई सरकार के पास कोई नैतिक वैधता नहीं है.
5 जुलाई को एक संपादकीय में सियासत ने बतौर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण किया और लिखा कि बीजेपी चुनावों से पहले शिवसेना के साथ किए गए अपने समझौते से पीछे हट गई. चूंकि वो अपनी खुद की सरकार बनाना चाहती थी. पेपर ने लिखा कि शिंदे को मुख्यमंत्री पद देना इसी रणनीति का हिस्सा था. उसने कहा कि इसका मतलब है कि पार्टी (बीजेपी) अब सरकार के कामकाज के लिए जवाबदेह नहीं होगी.
अखबार ने लिखा कि अकेले दम पर सरकार चलाने की बीजेपी की इच्छा, शिंदे के लिए दिक्कतें पैदा कर सकती है. पेपर ने आगे लिखा कि उद्धव सरकार ने महामारी संकट के दौरान लोगों को सहायता उपलब्ध कराई थी और अब ये शिंदे पर है कि वो राज्य में सामान्य स्थिति को वापस लाएं.
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महंगाई
5 जुलाई को अपने संपादकीय में इंकलाब ने कहा कि भले कितने भी दावे किए जाएं कि देश की अर्थव्यवस्था ‘सही पटरी पर है’, सच्चाई ये है कि उसने अपनी चमक खो दी है, जो उसकी गिरती सेहत का संकेत है. संपादकीय ने कहा कि हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि महामारी में धीमा पड़ने के बाद, आर्थिक गतिविधि ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है लेकिन ये तो वैसे भी लाजिमी था. उसका कहना था कि इसकी वजह ये थी, कि बेरोजगारी की संभावना को देखते हुए लोग- चाहे वो व्यवसायी हों, कारोबारी हों, उद्योगपति हों, या कामगार हों- कोविड पाबंदियों के हटते ही अपनी जीविकाओं पर वापस चले गए, भले ही सरकार ने हालात को सुधारने के लिए कुछ भी कदम उठाए हों.
7 जुलाई को सहारा ने 48 दिन के अंतराल के बाद घरेलू गैस सिलेंडरों के दामों में इजाफे की खबर को पहले पन्ने पर जगह दी. ख़बर में कहा गया कि इंडियन ऑयल के ताजा अपडेट के मुताबिक, एक औसत उपभोक्ता को बिना छूट के 14.2 किलो के सिलेंडर के लिए 50 रुपए ज्यादा देने होंगे. उसने कहा कि दिल्ली में 14 किलो ग्राम के एक सिलेंडर के दाम 1,003 रुपए से बढ़कर 1,053 हो गए हैं.
उसी दिन, सहारा ने महंगाई को लेकर कांग्रेस द्वारा मोदी सरकार की आलोचना की खबर को अपने पहले पन्ने पर जगह दी. अखबार ने कांग्रेस का ये कहते हुए हवाला दिया कि केंद्र सरकार लोगों पर ‘महंगाई का बुडोजर चला रही है’.
उसी दिन अपने संपादकीय में सहारा ने कहा कि महंगाई कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक हर तीन महीने पर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव कर रहा है लेकिन उसका कोई असर नहीं हो रहा है और उसने ये भी कहा कि बढ़ती महंगाई के सामने आर्थिक स्थिरता के सरकार के दावे खोखले दिखाई पड़ते हैं.
8 जुलाई को सियासत ने एक संपादकीय में कहा कि गैस की लगातार बढ़ती कीमतें लोगों पर एक ऐसा आर्थिक बोझ डाल रही हैं जिससे बचा नहीं जा सकता.
पत्रकारों पर निशाना
ऑल्ट-न्यूज़ सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान को कथित रूप से अप्रासंगिक तरह से प्रसारित करने पर जी न्यूज एंकर रोहित रंजन के खिलाफ दर्ज मुकदमों को उर्दू अखबारों के पहले पन्नों पर जगह दी गई.
8 जुलाई को सियासत और इंकलाब ने खबर दी कि जुबैर ने जिन्हें 2018 की एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया गया था सुप्रीम कोर्ट के सामने जमानत याचिका दायर की है.
6 जुलाई को इंकलाब ने पहले पन्ने पर एक खबर छापी कि नोएडा पुलिस ने रंजन को हिरासत में ले लिया जब वो किसी तरह छत्तीसगढ़ पुलिस की एक टीम से बच निकले थे जो उन्हें गिरफ्तार करने आई थी.
उससे एक दिन पहले ही अखबार ने खबर दी थी कि उस वीडियो को सर्कुलेट करने के लिए जिससे रंजन मुसीबत में फंसे थे, कांग्रेस ने सात राज्यों में बीजेपी नेताओं के खिलाफ पुलिस शिकायतें दर्ज कराईं थीं.
5 जुलाई को सियासत ने पहले पन्ने पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में खबर छापी, जो कुछ पत्रकारों ने दिल्ली के प्रेस क्लब में जुबैर के समर्थन में की थी. अखबार में पत्रकारों का ये कहते हुए हवाला दिया गया कि ये गिरफ्तारी प्रेस की आजादी पर हमला थी. पत्रकारों ने ये भी कहा कि भारत में पत्रकार होने में इतना खतरा कभी नहीं रहा जितना आज है.
बोरिस जॉनसन का इस्तीफा
परेशानियों से घिरे यूके प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के ऐलान को कि अपनी खुद की सरकार के अंदर बगावत और 10 डाउनिंग स्ट्रीट से हटाए जाने की आशंका को देखते हुए उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है. 8 जुलाई को इंकलाब और सहारा दोनों ने अपने पहले पन्नों पर जगह दी.
6 जुलाई को, सियासत ने जॉनसन कैबिनेट के दो सदस्यों- ऋषि सुनक और साजिद जावीद- के इस्तीफों को एक झटका करार दिया.
जॉनसन की तेजी से अस्थिर होती स्थिति पर, 7 जुलाई को अपने एक संपादकीय में सियासत ने लिखा कि महंगाई और बिजली दरों जैसे मुद्दों के अलावा जॉनसन के अपने व्यवहार को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे थे. इस बीच, पेपर ने खबर दी कि पार्टी के भीतर उनके उत्तराधिकारी की होड तेज हो रही है और पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी सक्रिय हो गए हैं.
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