नयी दिल्ली, सात जुलाई (भाषा) अभिनेता दिलीप कुमार के पिता को सिनेमा बिल्कुल पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने जब अपने बेटे की पहली फिल्म का पोस्टर देखा तो उसे थप्पड़ मार दिया और वे इस बात से इतने नाराज हो गए थे कि दिलीप कुमार को लगभग घर से निकाल ही दिया था।
दिलीप कुमार के जीवन पर हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘दिलीप कुमार : इन द शैडो ऑफ ए लीजेंड’ में इस बात का खुलासा हुआ है। फिल्मों की समीक्षा करने वाली वेबसाइट माउथशट डॉट कॉम के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी फैसल फारूकी ने अभिनेता के साथ अपनी अनौपचारिक बातचीत के हवाले से पुस्तक में इस वाकये का उल्लेख किया है।
इस पुस्तक में हिंदी सिनेमा जगत पर कई वर्षों तक राज करने वाले दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार के निजी जीवन से जुड़े उन पहलुओं के बारे में बताया गया है जो अब तक पूरी तरह से अनछुए थे।
दिलीप कुमार को करीब 30 वर्षों से अधिक समय से जानने वाले लेखक फैसल फारूकी ने कहा, ‘‘मैंने दूसरों के लिए उनके प्यार, उनके बचपन, उनके जिद्दी स्वभाव और वंचितों के लिए कुछ बेहतर करने की उनकी इच्छा को चित्रित करने की कोशिश की है।’’
पुस्तक में एक किस्से का उल्लेख करते हुए फैसल फारूकी ने 1944 में प्रदर्शित हुई दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से जुड़ी एक दिलचस्प घटना के बारे में बताया। दिलीप कुमार को तब उनके मूल नाम युसुफ खान से ही जाना जाता था।
दरअसल, दिलीप कुमार के पिता लाला गुलाम सरवर खान एक दिन अपने अच्छे दोस्त और राज कपूर के दादा दीवान बशेश्वरनाथ कपूर के साथ घर लौट रहे थे, तभी उन्होंने ‘ज्वार भाटा’ फिल्म का एक पोस्टर देखा, जिसमें दिलीप कुमार नजर आ रहे थे।
लाला गुलाम सरवर खान पोस्टर देखकर बिल्कुल हैरान रह गए थे और फिल्म के बारे में अपने बेटे से ही जानना चाहते थे।
दिलीप कुमार घर पहुंचकर जब अपने पिता से मिलने गए तो उनके पिता ने उनसे कहा, ‘आज कुछ अजीब हुआ। मैं थोड़ा चिंतित हूं।’
दिलीप कुमार इस बात से पूरी तरह अनजान थे कि उनके पिता इतने गंभीर क्यों हैं और उन्होंने अपने पिता से नजरें मिलाने की कोशिश की।
कुछ देर की शांति के बाद लाला गुलाम सरवर खान ने कहा, ‘‘मैं तांगे पर लाला के साथ था और रास्ते में मैंने एक फ़िल्म का पोस्टर देखा।’’
दिलीप कुमार ने महसूस किया कि उनके कंधे सिकुड़ रहे हैं और उनके हाथ उनकी पीठ के पीछे जकड़े हुए हैं। वह इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे कि पिता उनके इस रहस्य के बारे में नहीं जान पाएंगे।
लाला गुलाम सरवर खान ने कहा, ‘‘पोस्टर पर दिलीप कुमार नाम का कोई लड़का था। मैं अल्लाह की कसम खाता हूं, वह बिल्कुल तुम्हारी तरह दिखता था।’’
यह सुनकर दिलीप कुमार डर गए और इसके कारण बिल्कुल भी हिल नहीं पा रहे थे, अपने पिता की ओर नहीं देख पा रहे थे और उनके पास पिता के इस सवाल का जवाब देने के लिए शब्द नहीं थे।
उनके पिता ने फिर से पूछते हुए कहा,‘‘मुझे जवाब दो। क्या तुम उस पोस्टर पर नहीं हो’’
दिलीप कुमार ने अंत में अपने पिता की ओर देखा और शांत स्वर में ‘हां’ में इसका जवाब दिया।
अपने सवाल का जवाब सुनते ही लाला गुलाम सरवर खान ने अपने बेटे को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। दिलीप कुमार जमीन पर गिर पड़े।
लाला गुलाम सरवर खान ने कहा,‘ इस घर से निकल जाओ।’
पुस्तक के मुताबिक दिलीप कुमार ने इस पूरे वाकये को लेकर कहा, ‘‘यह पहली बार था जब आगाजी ने मुझ पर हाथ उठाया था। मैंने कभी उन्हें इतने गुस्से में नहीं देखा था। यदि उस दिन अम्मा और सकीना आपा न होतीं तो वह मुझे घर से निकाल देते।’’
इस पुस्तक का प्रकाशन ओम बुक्स इंटरनेशनल ने किया है।
भाषा रवि कांत नरेश
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