नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय ने अपने जिला आधारित स्कूल परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई-डी) के तहत भारत के सात जिलों को ‘सबसे खराब प्रदर्शन’ वाली श्रेणी में रखा है. स्कूली शिक्षा प्रणाली का आकलन करने वाली 2018-19 और 2019-20 के लिए इस संयुक्त पीजीआई-डी रिपोर्ट को मंत्रालय ने सोमवार को जारी किया था.
सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले सात जिलों में से छह पूर्वोत्तर राज्यों मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में स्थित हैं, जबकि एक पश्चिम बंगाल से है.
2019-20 में अरुणाचल प्रदेश के शि योमी, क्रा दाई और मिजोरम का ममित जिला सबसे नीचे रहे. जबकि 2018-19 में अरुणाचल प्रदेश के नामसाई और मिजोरम में ममित, सेरछिप और लवंगतलाई जिले इस कैटेगरी में शामिल थे.
शिक्षा मंत्रालय ने पहली बार राज्य की बजाय जिला स्तर पर स्कूल शिक्षा प्रणाली के प्रदर्शन की ग्रेडिंग की है. यह ग्रेडिंग स्कूलों के लर्निंग आउटकम लेवल, बुनियादी ढांचे और अन्य मापदंडों के आधार पर की गई है.
राज्य के शिक्षाविदों और शिक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि पीजीआई-डी एक सटीक तस्वीर पेश नहीं करता है. लेकिन उन्होंने इस बात को माना है कि राज्यों में ‘बुनियादी ढांचे की समस्याएं’ हैं.
मिजोरम विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ लल्लियांचुंगा ने कहा कि मिजोरम में विभिन्न स्कूलों के प्रशासन के साथ अपनी बातचीत के आधार पर कह सकता हूं कि डेटा राज्य के लिए एक सच्ची तस्वीर प्रदान नहीं करता है. उन्होंने कहा, ‘मिजोरम में शिक्षा की स्थिति उतनी खराब नहीं है, जितनी पीजीआई-डी में दिखाई देती है.’ डॉ लल्लियांचुंगा विभिन्न राज्य सरकारों के बोर्ड के साथ काम कर चुके हैं.
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आर गोविंदा का भी कुछ ऐसा ही मानना हैं. उनके मुताबिक इस तरह के आंकड़ों को एक चुटकी नमक की तरह लेना चाहिए.
गोविंदा ने कहा, ‘कई अन्य राज्यों की तुलना में पूर्वोत्तर में आबादी काफी कम है.’
वह कहते हैं, ‘इस तरह के सैंपल सर्वे में, निष्पक्ष निष्कर्षों के लिए आपको सिर्फ दो राज्यों से डेटा लेना पर्याप्त नहीं होता है. आप यह कहकर कि पूर्वोत्तर को ऐतिहासिक रूप से अपने विविध इलाकों के कारण बुनियादी ढांचे के साथ समस्याएं हैं और राष्ट्रीय स्तर पर काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता रहा है, आप इस आधार पर छूट नहीं ले सकते हैं.’
पीजीआई-डी इंडेक्स में सभी 83 संकेतकों के कुल 600 अंक शामिल हैं, जिन्हें छह श्रेणियों में समूहीकृत किया गया है – लर्निंग आउटकम, इफेक्टिव क्लासरूम ट्रांजेक्शन, बुनियादी ढांचा सुविधाएं, छात्र के अधिकार, स्कूल सुरक्षा और बाल संरक्षण, डिजिटल शिक्षा और गवर्नेंस प्रोसेस.
शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में शी योमी का न्यूनतम स्कोर 109 था. ‘लर्निंग आउटकम्स’ में जिले ने कुल 290 में से 84 स्कोर किया. वहीं ‘इफेक्टिव क्लासरूम ट्रांजेक्शन’ में 90 में से 4, ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटीज एंड स्टूडेंट्स’ एंटाइटेलमेंट’ में 51 में से 18, ‘डिजिटल लर्निंग’ में 50 में से 3 और ‘गवर्नेंस प्रोसेस’ में 83 में से 1 स्कोर किया था.
शि योमी में स्कूल सुरक्षा और बाल संरक्षण पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है.
2018-19 में मिजोरम का लवंगतलाई, 600 में से 106 के समग्र स्कोर के साथ सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला जिला था.
इसने ‘लर्निंग आउटकम्स’ में 62/290, ‘इफेक्टिव क्लासरूम ट्रांजैक्शन’ में 10/90, ‘डिजिटल लर्निंग’ में 3/50, ‘इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटीज एंड स्टूडेंट्स एंटाइटेलमेंट’ में 28/51 और ‘गवर्नेंस प्रोसेस’ में 3/83 अंक हासिल किए.’ लवंगतलाई जिले का भी स्कूल सुरक्षा और बाल संरक्षण पर डेटा उपलब्ध नहीं था.
दिप्रिंट ने, अरुणाचल प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा निदेशक श्री मार्केन कडू से फोन पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की थी. लेकिन अधिकारी ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
मिजोरम के शिक्षा सचिव लालजिरमाविया छंगटे ने कहा कि उन्हें सर्वे की कोई जानकारी नहीं है और उन्होंने रिपोर्टर को सर्व शिक्षा अभियान के संयुक्त निदेशक और राज्य परियोजना निदेशक लल्हमछुआना से इस बारे में बात करने के लिए कहा. दिप्रिंट ने फोन और ई-मेल के जरिए उन तक पहुंचने की कोशिश की थी लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
शी योमी और लवंगतलाई दोनों जिलों का 2018-19 और 2019-20 में समेकित स्कोर 30 प्रतिशत से कम था. जबकि इसकी तुलना में राजस्थान के जयपुर, सीकर और झुंझुनू जैसे जिलों ने कुल मिलाकर 80 प्रतिशत अंक हासिल किए है.
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खराब प्रदर्शन के लिए राजनीति और बुनियादी ढांचे की कमी जिम्मेदार
पीजीआई-डी रिपोर्ट के राज्य-विशिष्ट ब्रेक-अप के अनुसार (According to the state-specific break-up of the PGI-D report), अरुणाचल सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य पंजाब से 2019-20 में 231 अंक पीछे था.
पूर्वोत्तर राज्य में ‘मुख्यधारा में स्कूल न जाने वाले बच्चों की पहचान का प्रतिशत’, ‘माध्यमिक स्तर की शिक्षा में नामांकन अनुपात’, ‘कंप्यूटर लैब की गुणवत्ता’ और राज्य के बजट हिस्से का कुल राज्य के बजट में शिक्षा पर खर्च का प्रतिशत’ जैसे मानकों में गिरावट देखी गई.
मिजोरम की रिपोर्ट कहती है कि राज्य 2019-20 में पंजाब से 206 अंक पीछे था. इसने कथित तौर पर ‘शिक्षा तक पहुंच’, ‘कार्यात्मक पेयजल सुविधा वाले स्कूलों के प्रतिशत’, ‘स्कूल नेतृत्व प्रशिक्षण पूरा करने वाले सरकारी प्रधान शिक्षकों / प्रधानाचार्यों के प्रतिशत’, ‘मुख्यधारा में स्कूल न जाने वाले बच्चों का प्रतिशत’, ‘माध्यमिक स्तर की शिक्षा में नामांकन अनुपात’, ‘ साइंस लैब की गुणवत्ता’ और ‘राज्य के कुल बजट की तुलना में शिक्षा पर खर्च किए गए राज्य के बजट हिस्से का प्रतिशत’ जैसे मापदंडों में गिरावट देखी.
2018-19 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ने 600 में से 165 अंको के साथ समग्र रूप से खराब प्रदर्शन दर्ज किया था. हालांकि इसने 2019-20 में अपना स्कोर बढ़ाकर 254 कर लिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला अपने ‘लर्निंग आउटकम’ में महत्वपूर्ण सुधार करने में कामयाब रहा.
अरुणाचल यूनिवर्सिटी के सिनियर लेक्चरर प्रोफेसर नानी बाथ ने दिप्रिंट को बताया, ‘माध्यमिक शिक्षा में खराब श्रेणी में नामांकन का कारण राज्य में उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है. निजी संस्थान महंगे हैं, जहां गरीब छात्रों के लिए प्रवेश पाना मुश्किल हैं.इसके अलावा, राज्य में अभी भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संपर्क की कमी है और ग्रामीण छात्रों के लिए कम विकल्प हैं.’
बाथ ने कहा कि राज्य में राजनीतिक नेतृत्व लोगों के भोलेपन का फायदा उठा रहा है.
वह आगे कहते हैं, ‘जहां तक लर्निंग आउटकम में खराब नतीजों की बात है, अक्सर शिक्षकों का चयन योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक कारणों से किया जाता है. नतीजतन छात्र भी सीखने के लिए नहीं बल्कि सर्टिफिकेट पाने के लिए स्कूलों में जाते हैं.’
‘रुझानों को समझने के लिए गहराई तक जाने की जरूरत’
पीजीआई-डी ग्रेडिंग सिस्टम में 10 ग्रेड शामिल हैं – 90 प्रतिशत से अधिक स्कोर करने वाले जिलों के लिए उच्चतम श्रेणी दक्ष है. इसके अलावा उत्कर्ष (81-90 प्रतिशत), अति उत्तम (71-80 प्रतिशत), उत्तम (61 से 70 प्रतिशत) सेंट), प्रचेस्ता-1 (51 से 60 फीसदी), प्रचेस्ता-2 (41 से 50 फीसदी), प्रचेस्ता-3 (31 से 40 फीसदी), आकांक्षा-1 (21 से 30 फीसदी), आकांक्षा-2 (11 से 20 फीसदी), और आकांक्षा-3 (10 फीसदी तक) जैसी श्रेणी हैं.
2019-20 में अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों ने प्रचेस्ता -1, 13 प्रचेस्ता -2, सात प्रचेस्ता -3 और तीन आकांशी -1 ग्रेड पाए थे. इसकी तुलना में 2018-19 में, दो जिलों को प्रचेस्ता-1, 10 जिलों को प्रचेस्ता-2 और अन्य 10 जिलों को प्रचेस्ता-3 और एक जिले को आकांक्षा-2 ग्रेड दिया गया था.
दोनों वर्षों की रिपोर्ट में मिजोरम में कोई खास बदलाव नहीं आया – दोनों सालों में राज्य के तीन जिलों को प्रचेस्ता -1 का दर्जा मिला है. 2019-20 में चार जिलों और 2018-19 में एक जिले को प्रचेस्ता-2 श्रेणी में रखा गया. जबकि दोनों सालों में चार जिलों को आकांशी-1 और अन्य चार आकांशी-2 ग्रेड दिया गया.
दोनों राज्यों के किसी भी जिले ने 2018-19 या 2019-20 में 60 प्रतिशत से अधिक स्कोर नहीं किया और औसतन अधिकांश को प्रचेस्ता 2 ग्रेड दिया गया.
प्रोफेसर गोविंदा ने पीजीआई-डी डेटा की सटीकता पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि वह सामान्य रूप से सरकारी डेटा को पूरी तरह से खारिज नहीं कर रहे हैं. इसका इस्तेमाल राज्य स्कूली शिक्षा प्रणाली में हस्तक्षेप करने के लिए किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य बदलाव लाने के लिए इस तरह के आंकड़ों पर ध्यान नहीं देता है. भले ही जिला-स्तर के आकड़े दिए गए हैं, लेकिन शिक्षा की स्थिति में सुधार के लिए बदलाव लाने और इन रुझानों को समझने के लिए गहराई में जाने की जरूरत है.’
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