नई दिल्ली: ‘ऊर्जा की पहुंच सिर्फ अमीरों का विशेषाधिकार नहीं है बल्कि गरीबों का भी उस पर उतना ही हक है.‘ जी7 बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात के साथ कहा कि भू-राजनैतिक कारणों से जब आज के समय ऊर्जा की कीमत आसमान छू रही है, उस वक्त इस बात को याद रखना और भी जरूरी है.
हाल ही में संपन्न हुई तीन दिवसीय जी7 बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए जिसमें जलवायु को लेकर उठाए गए कुछ कदमों को लेकर काफी चर्चा हो रही है और विशेषज्ञ उनपर सवाल भी उठा रहे हैं.
जी7 देशों ने बैठक के बाद जलवायु परिवर्तन की दिशा में इस साल के अंत तक ‘क्लाइमेट क्लब’ बनाने का फैसला किया है. साथ ही स्वच्छ ऊर्जा और 2035 तक कोयले पर आधारित सेक्टर को डीकार्बोनाइजेशन करने का भी लक्ष्य रखा है.
जी7 देशों ने भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और वियतनाम जैसे विकासशील देशों के साथ जस्ट एनर्जी ट्रांजीशन पार्टनरशिप (जीईटीपी) को लेकर प्रतिबद्धता भी जताई. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु के क्षेत्र में जी7 की हालिया बैठक निराश करने वाली है.
काउंसिल फॉर एनर्जी एनवायरमेंट एंड वॉटर के फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को कम करना और अनुकूलन पर सहयोग जी7 चर्चाओं के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक था.
उन्होंने कहा, ‘भारत के महत्वाकांक्षी मिटिगेशन लक्ष्यों के लिए जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप के माध्यम से, भारत के लिए फाइनेंस के स्तर पर जी7 देशों से एक ठोस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है. लेकिन इस दिशा में बैठक से निकले निष्कर्ष निराश करने वाले हैं.’
चतुर्वेदी ने कहा कि भारत की महत्वाकांक्षा का समर्थन करने के लिए तेजी से कार्य करने के बजाय अमीर देश फिर से अपने पैर खींच रहे हैं. भारत को विभिन्न चैनलों के माध्यम से जलवायु फाइनेंस के लिए विकसित देशों पर दबाव बढ़ाना जारी रखना होगा.
बता दें कि जी7 देश सालाना करीब 1 बिलियन टन थर्मल कोयले की खपत करते हैं. ये वैश्विक थर्मल कोयले की खपत का लगभग 16% है और भारत, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका संयुक्त रूप से कोयले की इतनी ही खपत करते हैं.
वहीं जी7 और ईयू के देशों द्वारा कोयले के इस्तेमाल को कम करने से सालाना 1.9 बिलियन टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. ये आंकड़ा दक्षिण-एशियाई देशों से निकल रहे कार्बन डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन से ज्यादा है.
बता दें कि जी7 दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं से मिलकर बना एक समूह हैजिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, जापान, इटली और जर्मनी शामिल हैं.
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क्या है ‘क्लाइमेट क्लब’
जी7 बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य और क्लाइमेट न्यूट्रैलिटी को 2050 तक हासिल करने के लिए वैश्विक तौर पर जलवायु महत्वाकांक्षाएं और पेरिस समझौते के तहत तय किए गए लक्ष्य ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने के लिए नाकाफी है.
बयान में कहा गया कि पेरिस समझौते को तेजी से लागू करने की दिशा में क्लाइमेट क्लब महत्वपूर्ण होगा.
गौरतलब है कि 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत दुनियाभर के 200 देशों ने वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक रोकने और आदर्श तौर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रखने की प्रतिबद्धता जताई थी.
साथ ही कहा गया कि क्लाइमेट क्लब तीन पिलर्स पर आधारित होगा. पहला, उत्सर्जन को कम करने के लिए महत्वाकांक्षी और पारदर्शी जलवायु मिटिगेशन नीतियों को आगे बढ़ाना. दूसरा, डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के लिए उद्योगों को संयुक्त रूप से बदलना और तीसरा, पार्टनरशिप और सहयोग के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देना.
क्लाइमेट क्लब एक अंतर सरकारी मंच होगा जिसमें पेरिस समझौते को लागू करने की प्रतिबद्धता रखने वाले देश शामिल हो सकते हैं.
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जी7 बैठक में जलवायु के प्रति रुख को लेकर नाराजगी
जर्मनी में 3 दिनों तक चली जी7 बैठक में जलवायु की दिशा में उठाए गए कदमों को लेकर विशेषज्ञों ने नाराजगी जताई है.
ग्लोबल सिटिजन के वाइस-प्रेसिडेंट फ्रेडरिक रोडर ने कहा कि जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्काल्ज़ ने अंतर्राष्ट्रीय तौर पर जलवायु एक्शन को लेकर वादा किया था लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए.
उन्होंने कहा, ‘जी7 ने अपनी पिछली प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने से परहेज किया है लेकिन शक्तिशाली नेताओं के लिए यथास्थिति कोई बेंचमार्क नहीं हो सकती है. खासकर जलवायु आपातकाल के मामले में. अब जी7 नेताओं के पास दुनिया को दिखाने के लिए कुछ ही महीने हैं कि वे इसे लेकर गंभीर हैं. शब्दों से ज्यादा एक्शन जरूरी होते हैं.’
वहीं जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार, गरीबी को लेकर काम करने वाली अमेरिका स्थित गैर-सरकारी संगठन अवाज़ के कैंपेनर डेनियल बोइस ने कहा कि दुनिया भर के लोगों ने बवेरियन आल्प्स में जलवायु के लिए सफलता की उम्मीद की लेकिन अफसोस की बात है कि ओलाफ स्कोल्ज़ 2030 तक कोयला के इस्तेमाल को कम करने में सफल नहीं हो पाए.
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भारत के लिए जी7 बैठक के मायने
जी7 बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में देश के प्रयासों के बारे में बताया.
उन्होंने कहा, ‘भारत में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए एक बड़ा बाजार उभर रहा है. भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है. लेकिन वैश्विक तौर पर हमारा कार्बन उत्सर्जन सिर्फ 5 प्रतिशत है. इसके पीछे का कारण हमारी लाइफस्टाइल है जो कि प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है.’
It is believed there is a fundamental collision between the developmental goals of the world and environmental protection. There is also another misconception that poor countries and poor people cause more damage to the environment.
– PM Shri @narendramodi ji at the G-7 Summit pic.twitter.com/ee1KyuDMI4
— Bhupender Yadav (@byadavbjp) June 28, 2022
लेकिन भारत के लिए इस बैठक के मायने को लेकर विशेषज्ञ कुछ गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं.
डब्ल्यूआरआई इंडिया के एनर्जी प्रोग्राम के दीपक श्रीराम कृष्णन ने बताया, ‘जस्ट एनर्जी ट्रांजीशन पार्टनरशिप (जीईटीपी) के लिए जी7 ने भारत और अन्य देशों के साथ काम करने की इच्छा तो जताई है लेकिन जी7 के दबाव में आने से इतर हमें ये पूछे जाने की जरूरत है कि हमें क्या जरूरत है.’
वहीं जी7 के साथ इंडस्ट्रियल डीकार्बोनाइजेशन के अवसर को लेकर उन्होंने कहा, ‘औद्योगिक क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन के लिए वित्तीय प्रवाह और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए प्रयास करना और बातचीत करना भी महत्वपूर्ण होगा.’
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