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Saturday, 16 November, 2024
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शिवसेना MP सावंत बोले- बालासाहेब ने 2002 में मोदी का समर्थन किया, लेकिन PM ने अब उन्हें धोखा दिया

मोदी सरकार के पूर्व मंत्री अरविंद सावंत ने पीएम पर 'शिवसेना को खत्म करने की साजिश रचने' का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बाल ठाकरे ने बीजेपी को गुजरात दंगों के बाद मोदी को सीएम के रूप में बनाए रखने की सलाह दी थी.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के भीतर राजनीतिक संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है. इस बीच शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने 2002 के दंगों के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने के लिए मोदी का समर्थन किया था.

दिप्रिंट से बात करते हुए मोदी के कैबिनेट में एक पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे सावंत ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवसेना को खत्म करने की साजिश रचकर बालासाहेब (बाल ठाकरे) को धोखा दिया है. बागियों ने भी बालासाहेब को धोखा दिया है.’

पार्टी सुप्रीमो और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के खेमे के कुछ शिवसैनिकों के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना के भीतर विभाजन की साजिश रची है. वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने पिछले हफ्ते पार्टी के अधिकांश विधायकों के साथ नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया था.

सावंत पीएम मोदी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय भारी उद्योग एवं लोक उद्यम मंत्री थे. उन्होंने 2019 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में सावंत ने कई बार दिवंगत बाल ठाकरे के मोदी और भाजपा के पक्ष में ‘खड़ा’ होने की बात कही. सावंत बताते हैं, ‘बालासाहेब ने मोदी का भविष्य बचाया था. 2002 के गुजरात दंगों के बाद (तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी) वाजपेयी ने मोदी को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त करने का मन बना लिया था, लेकिन बालासाहेब ने वाजपेयी को ऐसा नहीं करने के लिए कहा. पीएम ने बालासाहेब को फोन किया और उनसे कहा था, ‘आडवाणी एक गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने के लिए आपसे मिलेंगे.’ बालासाहेब ने आडवाणी को सलाह दी थी कि अगर मोदी गया, तो पार्टी गई.’ लेकिन मोदी ने बालासाहेब के साथ अपनी दोस्ती का सम्मान नहीं किया, भले ही बालासाहेब ने अपनी आखिरी सांस तक मोदी के साथ दोस्ती का सम्मान किया’

महाराष्ट्र के कई हिस्सों में उद्धव ठाकरे के समर्थक सड़कों पर प्रदर्शन कर, बागी नेता के पोस्टरों को हटाकर और बागी विधायकों के कार्यालयों में तोड़फोड़ कर शिंदे के खिलाफ अपना आक्रोश जता रहे हैं.

सावंत ने कहा, ‘हम लोगों को अपना गुस्सा जाहिर करने से नहीं रोक सकते. इन सैनिकों ने इन विधायकों को निर्वाचित करने के लिए मेहनत की थी. ऐसे समय में जब उद्धव ठाकरे कोविड से अपने जीवन के लिए लड़ रहे थे, तब वे पार्टी को विभाजित करने की साजिश रच रहे थे. वे उन्हें कैसे माफ कर सकते हैं?’

सावंत ने कहा, ‘असली लड़ाई सदन के पटल पर होगी’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर वे अपनी सदस्यता बचाना चाहते हैं तो किसी पार्टी में शामिल हुए बिना विधानसभा में प्रवेश भी नहीं कर सकते. हमने इन विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए डिप्टी स्पीकर का रुख किया है.’

उन्हें और 15 अन्य बागी विधायकों को अयोग्यता नोटिस जारी किए जाने के खिलाफ शिंदे का खेमा उच्चतम न्यायालय पहुंच गया है. शीर्ष अदालत ने उन्हें अयोग्यता नोटिस का जवाब देने के लिए 12 जुलाई तक का समय देते हुए फोरी तौर पर राहत दी है.

शिंदे कम से कम 40 बागी विधायकों के साथ बुधवार से भाजपा शासित असम में डेरा डाले हुए हैं.

उन्होंने कहा, ‘2017 में वेंकैया नायडू (भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति) ने जनता दल (यूनाइटेड) के दो सांसदों को यह कहते हुए निष्कासित कर दिया था कि पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए एक सांसद या विधायक की अयोग्यता और पार्टी व्हिप के खिलाफ विद्रोह न केवल सदन के पटल पर, बल्कि बाहर भी लागू होगी. शिवसेना के बागी विधायक अब बालासाहेब और पार्टी व्हिप की विचारधारा को धता बता रहे हैं, इसलिए यह उनकी अयोग्यता का एक ठोस कारण है.

‘विधायकों को बंधक बनाया गया’

सावंत के मुताबिक, ‘शिंदे के खेमे के सभी विधायक अपनी इच्छा से वहां नहीं हैं. उन्हें बंधक बनाया गया है.’

सावंत ने दिप्रिंट को बताया, ‘शुरुआत में उन्हें लगा थी कि यह सब 48 घंटों के भीतर खत्म हो जाएगा, लेकिन उनकी हताशा दिन-ब-दिन बढ़ती जा है. वे महाराष्ट्र लौटना चाहते हैं, लेकिन शिंदे और राज्य की भाजपा पुलिस उन्हें ऐसा नहीं करने दे रही है. दो विधायक पहले ही फरार हो गए और लौट आए. कई अन्य लोगों ने भी हमसे वापस आने की अपनी इच्छा के बारे में बात की है’.

सावंत ने कहा कि ज्यादातर विधायकों को कानून की जानकारी नहीं है. उन्होंने बताया, ‘वे शिवसेना के सदस्यों का एक अलग समूह नहीं बना सकते’ वह आगे कहते हैं, ‘दो तिहाई से अधिक विधायक होने के बावजूद , अयोग्यता से बचने के लिए वह कह रहे हैं कि उन्होंने शिवसेना को नहीं छोड़ा है. लेकिन उन्हें या तो भाजपा या किसी अन्य पार्टी में विलय करने की जरूरत है, या फिर शिवसेना में वापस आने की जरूरत है. उनमें से कई ऐसे हैं जो भाजपा के साथ नहीं जाना चाहते.’

‘मोदी ने बालासाहेब से दोस्ती का सम्मान नहीं किया’

सावंत ने कहा कि न केवल गुजरात दंगों के बाद, बल्कि 2006 के नर्मदा आंदोलन के दौरान भी बाल ठाकरे ने मोदी का समर्थन किया था.

उन्होंने कहा, ‘उस समय बालासाहेब ने उद्धव ठाकरे को मोदी के साथ खड़े होने के लिए भेजा था.

सावंत ने बताया कि ये अलग-अलग घटनाएं नहीं थीं.

वह कहते हैं, ‘बालासाहेब ने 2008 में भाजपा को महाराष्ट्र में अपने सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक गोपीनाथ मुंडे को खोने से बचाया था. मुंडे ने पार्टी में अलग-थलग महसूस करने के बाद शिवसेना के लिए भाजपा छोड़ने का मन बना लिया था. बालासाहेब ने मुंडे को फोन करके कहा था कि वह अपनी मूल पार्टी न छोड़ें. उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी से मुंडे के साथ अपने मतभेदों को दूर करने के लिए कहा था.’

सावंत ने दावा किया कि इसी तरह गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने 2001 में मोदी के गुजरात सीएम बनने के बाद भाजपा से अलग होने और शिवसेना में शामिल होने में रुचि जताई थी. उन्होंने कहा, ‘तब भी बालासाहेब ने केशुभाई पटेल को भाजपा में बने रहने की सलाह दी थी. बालासाहेब ने बीजेपी के लिए इस तरह के बलिदान दिए, लेकिन मोदी ने इस दोस्ती का सम्मान नहीं किया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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