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Saturday, 21 September, 2024
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‘रजनी की मदद करने को चला रहे मुहिम’ – भारत की डिजिटल क्रांति को चुपचाप आगे बढ़ाते iSPIRT के टेक गुरु

ग्रामीण भारत के एक काल्पनिक पात्र रजनी को मार्गदर्शक बनाकर iSPIRT जीवन की गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य के साथ देश की अर्थव्यवस्था की संरचना बदलने के लिए इंटरनेट और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा है.

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बेंगलुरु, दिल्ली: भारत के एक ग्रामीण इलाके में सब्जी बेचने वाली रजनी जमीन पर बैठकर ताजी सब्जियों में से कुछ को अलग-अलग करने में लगी हैं. उसने सुबह ही स्थानीय साहूकार से कुछ पैसे उधार लिए थे और बेचने के लिए ताज़ी सब्जियां खरीदी थीं.

जब सब्जियों को बेच वह घर वापस आती है तो उसे पता है कि आज उधार के कितने पैसे साहूकार को वापस करने है. इसमें मूल और ब्याज दोनों शामिल है. और फिर कल भी उसे ऐसा ही करना है.

रजनी देश भर के उन लाखों लोगों में से एक हो सकती है जिनके पास अपने कामकाज को आगे बढ़ाने के लिए पैसे नहीं होते हैं. वह उधार लेते हैं और जैसे-तैसे अपने छोटे-मोटे काम धंधे से अपनी आजीविका चलाते है. साहूकार उनसे इसके लिए ब्याज के रूप में एक मोटी रकम वसूलता है. जिसके चलते ये उधार उन्हें कर्ज, ऊंची ब्याज दरों और कमीशन की दुनिया में फंसा कर रख देता है.

तो एक लोन ऑफिसर का रजनी जैसे लोगों के पास जाना और फिर कागजी कार्रवाई करने में 1500 रुपये खर्च होते हैं जिसका कोई तुक बनता नजर नहीं आता है. क्योंकि उसे तो बस एक दिन के लिए पांच सौ रुपये उधार चाहिए होते हैं.

लेकिन अब एक और रजनी की कल्पना करें, जिसकी पहुंच भारत की डिजिटल क्रांति तक है. यह रजनी अपने स्मार्टफोन से औपचारिक फाइनेंशियल सेक्टर से कम ब्याज दर पर कर्ज ले सकती है. और यह लाइसेंस प्राप्त कर्जदाता उसकी पहचान को डिजिटल रूप से सत्यापित कर सकता है.

इतना ही नहीं, उसे अब अपना उधार चुकता करने के लिए कर्ज देने वाले के पास जाने की जरूरत नहीं है. इसके लिए उसे बस UPI ऐप पर कुछ बटन दबाने हैं.

थिंक टैंक iSPIRT की परिकल्पित परियोजना और इंडिया स्टैक के सक्षम डिजिटल बुनियादी ढांचे की बदौलत यह सुविधा रजनी की उंगलियों पर आ गई है.

रजनी – एक वास्तविक व्यक्ति को नजर में रखकर बनाई गई एक संस्था है, जो 2014 में आईएसपीआईआरटी के सदस्यों की ग्रामीण भारत की एक क्षेत्रीय यात्रा के दौरान उनसे मिली थी – बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक के लिए महत्वपूर्ण है.

जिस तरह से iSPIRT में सिविल सेवकों और राजनेताओं को भविष्य दिखाने और उस भविष्य को पारित करने के लिए नीति को प्रभावित करने की क्षमता है, उसका मुकाबला कोई भी गैर-सरकारी संगठन नहीं कर सकता है.

अगर दुनिया भारत को गरीबी और प्रदूषण के लिए जानती है तो आज वह उसकी डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए भी जान रही है. इसके लिए iSPIRT को शुक्रिया कहना होगा जो निजी कंपनियों और स्टार्ट-अप के बीच उतना ही प्रभावशाली है, जितना कि सरकार के साथ.

iSPIRT – यानी ‘इंडियन सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट इंडस्ट्री राउंडटेबल’ – आधिकारिक तौर पर 2013 में लॉन्च किया गया था, लेकिन इसके ‘इंडिया एज़ ए प्रोडक्ट नेशन’ आंदोलन के पीछे स्वयंसेवी आंदोलन 2009 से तकनीकी नीति दृश्य में एक मूक ऑपरेटर के रूप में रहा है.

फोनेटिकली इसका उच्चारण ‘आई-स्पर्ट’ है लेकिन यह ‘आई-स्पिरिट’ के तौर पर ज्यादा लोकप्रिय है. iSPIRT अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग चीजों का प्रतिनिधित्व करता है.

कुछ लोग इसे ऐसे संगठन के रूप में देखते हैं जो आधार के इस्तेमाल के साथ आया और लाभ के लिए लोगों की गोपनीयता को बर्बाद कर दिया. अन्य इसे सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग से भी अधिक शक्तिशाली मानते हैं.

नाम नहीं बताने की शर्त पर एक iSPIRT सदस्य ने कहा, iSPIRT एक गैर-लाभकारी थिंक टैंक के रूप में पंजीकृत है जो उन समस्याओं पर अपना ध्यान देता है जिन्हें वह हल कर सकता है. खासकर लंबे समय तक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए. इन समस्याओं को सुलझाने में 30 साल से भी ज्यादा का समय लग सकता है जो किसी भी सरकार के कार्यकाल से अधिक है. इसलिए संगठन ‘अराजनीतिक’ बना हुआ है.

सदस्य ने कहा, ‘हम 2009 से लो प्रोफाइल रखकर यहां तक पहुंचे हैं. हमारे स्वयंसेवक फायदे या लोकप्रियता के लिए काम नहीं करते हैं. दरअसल हमारे जैसे स्वयंसेवी संगठन आज दुनिया में नाजुक पौधों की तरह हैं.’

लेकिन अगर किसी को iSPIRT के जटिल काम के एक दशक में समेटना है, तो इसे दो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है – इंडिया स्टैक.

इंडिया स्टैक एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) का एक सेट है जिसे सॉफ्टवेयर डेवलपर मुफ्त में एक्सेस कर सकते हैं. इसकी पहचान सत्यापन एपीआई से जुड़ी है, जैसे ईएथ, ई केवाईसी, क्यूआर कोड स्कैनिंग. इसका इस्तेमाल आधार डेटाबेस से किसी व्यक्ति की पहचान को सत्यापित करने के लिए किया जा सकता है. इसमें एक एपीआई के रूप में ई-साइन भी है, ताकि आधार धारक किसी दस्तावेज़ जैसे लोन एग्रीमेंट पर कानूनी रूप से स्वीकृत डिजिटल हस्ताक्षर कर सके.

इंडिया स्टैक वेबसाइट का कहना है कि उसने 6360 करोड़ ई-प्रमाणीकरण और 140 करोड़ ई केवाईसी की सुविधा प्रदान की है. सॉफ्टवेयर समाधान के बिना इनमें से कोई भी मानवीय रूप से संभव नहीं होता.

iSPIRT के ग्लोबल एंबेसडर संजय आनंदराम ने कहा, ‘वे चौंका देने वाले नंबर हैं जिन्हें समझना मुश्किल है. हम वास्तव में उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले काम और परिवर्तन की सराहना नहीं करते हैं’

यह एक ‘डिजिलॉकर’ भी उपलब्ध कराता है. यह भारत सरकार द्वारा आधार धारकों को प्रदान की जाने वाली एक सार्वजनिक सेवा है, जहां कोई भी अपने सभी लोन दस्तावेजों को इकट्ठा कर सकता है और वहां से बैंक सीधे दस्तावेज भेज सकते हैं.


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रजनी की मदद के लिए तकनीक का इस्तेमाल

इंडिया स्टैक में पेमेंट करने के लिए मेगा-हिट यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस), और अन्य जैसे आधार पेमेंट ब्रिज और आधार इनेबल्ड सर्विस जैसे विकल्प हैं.

2013 से पहले, अगर रजनी औपचारिक क्षेत्र से कर्ज लेती थी, तब भी उसे वापस पेमेंट करने के लिए डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करना पड़ता था और कार्ड कंपनी इसके लिए 1 प्रतिशत कमीशन चार्ज करती है.

आई-स्पर्ट के सह-संस्थापक शरद शर्मा ने कहा, ‘कार्ड कंपनियों ने शुरू में कहा था कि कमीशन को आधा किया जा सकता है, लेकिन एक साहूकार से कमीशन लेकर बहुराष्ट्रीय कार्ड कंपनी को देने का क्या फायदा? इसीलिए UPI की कल्पना की गई, ताकि रजनी को पैसे जल्दी और सस्ते में मिल सकें और वह तेजी से वह उसे भेज सकें.’

शर्मा ने कहा, ‘ अगर तुलना की जाए तो भारत में सभी कार्ड कंपनियां एक साथ मिलकर भी यूपीआई से ज्यादा लेनदेन नहीं करती हैं.’

जबकि रजनी के इस्तेमाल के मामले का अभी भी आकलन किया जाना बाकी है. वैसे इसने खासी तरक्की की है, ताकि छोटे जीएसटी-भुगतान वाले व्यवसायों को शॉर्ट-टेनर कैश-फ्लो लोन ऑनलाइन मिल सके.

iSPIRT के पीछे की भावना

आई-स्पर्ट की सह-स्थापना नैसकॉम प्रोडक्ट फोरम के पूर्व अध्यक्ष शरद शर्मा, न्यूक्लियस सॉफ्टवेयर के प्रबंध निदेशक (एमडी) विष्णु दुसाद, टैली सोल्यूशंस के सह-संस्थापक और एमडी भरत गोयनका और एक्सेल के पूर्व कार्यकारी अविनाश राघव ने की थी.

इसे भारतीय सॉफ्टवेयर डेवलपर्स को साधारण इंजीनियरिंग कार्य से परे सोचने के लिए प्रोत्साहित करने और बुनियादी आउटसोर्स परियोजनाओं का प्रदर्शन करने और भारत से बाहर बेहतरीन चीजों के निर्माण के लिए अपना कौशल दिखाने के लिए लॉन्च किया गया था.

बिल गेट्स जैसे तकनीकी जन हितैषी लोगों के लिए, iSPIRT के काम ने भारत को वहां तक पहुंचने में मदद की है जहां देश अपने आप में एक डिजिटल और फाइनेंशियल- इन्क्लूसिव संस्करण में छलांग लगाने के कगार पर है.

2017 में, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की संस्थापक और आधार की आलोचक किरण जोन्नालगड्डा ने iSPIRT के बारे में लिखा और शरद शर्मा के बारे में यह कहा, ‘उनके कार्यों के लिए उनका उत्साह और ऊर्जा अद्वितीय है … शरद एक शक्तिशाली व्यक्ति हैं, शायद छोटे, बिना फंड वाले स्टार्ट-अप से लेकर सरकार की ऊपरी नौकरशाही तक की पहुंच वाले एकमात्र व्यक्ति हैं. आप शरद के अच्छे पक्ष की तरफ रहना चाहते हैं.’

शर्मा राष्ट्रीय स्टार्ट-अप सलाहकार परिषद (एनएसएसी) और सेबी की वित्तीय और नियामक प्रौद्योगिकी समिति (सीएफआरटी) के सदस्य हैं. उन्होंने एमएसएमई के सामने आने वाली समस्याओं का अध्ययन करने के लिए आरबीआई की यूके सिन्हा की अगुवाई वाली समिति और डिजिटल भुगतान प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति में भी काम किया है.

(From left) iSPIRT Co-founder Sharad Sharma, then RBI Governor Dr Raghuram Rajan and Mohandas Pai of the Akshaya Patra Foundation at an iSPIRT event in 2015 | Pictures from iSPIRT
(बांए से) साल 2015 के iSPIRT के एक इवेंट में आई-स्पर्ट के कोफाउंडर शरद शर्मा, तत्कालीन आरबीआई गवर्नर डॉ. रघुराम राजन और अक्षय पात्र फाउंडेशन के मोहनदास पाई । iSPIRT

दिप्रिंट ने शर्मा से उनके पसंदीदा स्थानों में से एक पर मुलाकात की, जो बेंगलुरु में एक सह-कार्यस्थल है और दूसरा कर्नाटक गोल्फ एसोसिएशन है. iSPIRT के बारे में उन्होंने कहा कि उनके लिए संगठन जेनी उगलो की 2002 की पुस्तक ‘द लूनर मेन’ के नाम जैसा है.

‘द लूनर मेन’ 18वीं शताब्दी के अंत में रहने वाले पांच जिज्ञासु मित्रों की दुनिया को बदलने की कहानी है. उन्होंने सोमवार को मुलाकात की और विचारों पर चर्चा की ‘वह पूर्णिमा के आस-पास मिले थे और अपने शहर के लिए औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की थी.

उगलो लिखते हैं, ये वे लोग थे जिन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया. ‘लूनर मेन’ कारखानों का निर्माण करते हैं, नहरों की योजना बनाते हैं, भाप के इंजन चलाते हैं. वे नई गैसों, नए खनिजों और नई दवाओं की खोज करते हैं…,’

शर्मा को लगता है कि iSPIRT में भारत के ‘लूनर मेन’ का भी एक क्रेजी लक्ष्य है – देश की अर्थव्यवस्था की संरचना को बदलने और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए इंटरनेट और सॉफ्टवेयर का उपयोग करना.

iSPIRT के संजय आनंदाराम ने कहा कि उस क्रेजी लक्ष्य का दूरगामी प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह ‘डिजिटल पब्लिक गुड्स के जरिए भारत को सॉफ्टवेयर पावर बनाने का एक तरीका बन जाता है’

यह पहले से ही इसे हासिल करने की राह पर है. भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मिलने से पहले ही, iSPIRT ने ओपन सोर्स सोफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए ‘द डिजिटल पब्लिक गुड्स अलायंस’ की सह-स्थापना की और ‘गरीबी को समाप्त करने, ग्रह की रक्षा करने, और हर जगह, हर किसी के जीवन और संभावनाओं को बेहतर बनाने’ के लिए स्थापित संगठन में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ एक बोर्ड सदस्य बनकर भारत की प्रोफ़ाइल को ऊपर उठाया है.

इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी और आधार के साथ इसका नाम जुड़ने के बाद iSPIRT लोकप्रिय हो गया. इस पर लोगों का विश्वास बढ़ा क्योंकि इसने नीलेकणी की समर्थित राष्ट्रीय महत्व की एक परियोजना, आधार के आसपास प्रमाणीकरण सेवाओं के निर्माण पर काम किया.

शर्मा के अनुसार, नीलेकणी iSPIRT के मेंटर बने हुए हैं और इसके काम के प्रचारक हैं.

जब 2009 में आधार बनाने के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) की स्थापना की गई थी, तो नीलेकणी के साथ काम करने वाले कुछ प्रमुख तकनीकी टीम में संजय जैन और प्रमोद वर्मा भी शामिल थे, दोनों अब स्वयंसेवकों के रूप में iSPIRT के साथ हैं.

अब आधार से प्ररित होकर एमओएसआईपी या मॉड्यूलर ओपन सोर्स आइडेंटिटी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अन्य देशों द्वारा नागरिकों के लिए डिजिटल आईडी बनाने के लिए किया जा सकता है. इसे इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, बैंगलोर (आईआईआईटी-बी) ने विकसित किया है.

एक ओपन-सोर्स प्लेटफार्म जिस पर राष्ट्रीय मूलभूत डिजिटल आईडी बनाए गए हैं, MOSIP को गिनी, श्रीलंका और टोगोलिस गणराज्य में संचालित किया गया है. आनंदरमन और शर्मा दोनों MOSIP की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं.

मोरक्को, फिलीपींस और इथियोपिया ने एमओएसआईपी का इस्तेमाल किए जाने की योजना की पुष्टि की है. नवंबर 2021 तक एमओएसआईपी पर फिलीपींस में 4 करोड़ से ज्यादा लोगों को देश के आईडी कार्यक्रम में नामांकित किया गया था.


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कैसे काम करता है iSPIRT

किसी समस्या की पहचान हो जाने के बाद, iSPIRT समस्या को हल करने के लिए विशेषज्ञता वाले सदस्यों को एक साथ लेकर आता है और फिर उस समाधान की एक ‘दृष्टिकोण’ को सार्वजनिक कार्यक्रमों और मीडिया लेखों में रेखांकित और साझा किया जाता है.

उसके बाद iSPIRT को बैंक, स्टार्ट-अप, तकनीकी उत्पाद और सेवा कंपनियों जैसे ‘बाजार भागीदार’ मिलते हैं, जो उनके इस नजरिए को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करना चाहते हैं और ‘मिनिमल विएबल प्रोडेक्ट (एमवीपी)’ बनाने के लिए अपने स्वयं के संसाधनों, जैसे समय, धन और कर्मचारियों को भी प्रतिबद्ध करना चाहते हैं.

iSPIRT वेबसाइट के मुताबिक, इसके साथ ही, iSPIRT नीति समर्थन के लिए सरकारी एजेंसियों के सामने अपना दृष्टिकोण रखता है और उन लोगों के साथ काम करता है जो ‘विचार के प्रति दृढ़ विश्वास दिखाते हैं’,

अतीत में, iSPIRT ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeiTY), और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के साथ भागीदारी की है.

ये सरकारी साझेदार मंत्रालयों और विभागों के अन्य महत्वपूर्ण अधिकारियों को यह समझाने में मदद करते हैं कि नीति में बदलाव की जरूरत है और फिर कागजी कार्रवाई और अनुमोदन सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करते हैं ताकि नीति बदलाव प्रभावी हो सके.

उसके बाद बाजार भागीदारों के सहयोग से बनाए गए सॉफ्टवेयर को सरकारी अधिकारियों और जनता के फीडबैक के साथ पायलट और ट्वीक किया जाता है, ताकि यह डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर बन सके और जिसे सरकार को सौंपा जा सके.

ब्रिटिश मानवविज्ञानी रॉबिन डनबर द्वारा विकसित सिद्धांत का हवाला देते हुए शर्मा ने कहा कि iSPIRT में मौजूदा समय में लगभग 180 सदस्य हैं, लेकिन वह ‘डनबर की सीमा 150’ के आसपास रहना चाहेंगे, क्योंकि डनबर के सिद्धांत के अनुसार एक व्यक्ति केवल एक बार में 150 सार्थक कनेक्शन बनाए रख सकता है.

iSPIRT का स्वयंसेवकों का नेटवर्क

उत्कृष्ट- यह एक शब्द आईस्पिरट के स्वयंसेवकों का सही मायने में उनकी व्याख्या कर सकता है.

इसके स्वयंसेवकों की सेना में पहले Google भारत प्रमुख ललितेश कटरागड्डा, नीलेकणी के तहत यूआईडीएआई के पूर्व मुख्य आर्किटेक्ट प्रमोद वर्मा, भारत के बाहर Google मैप मेकर के निर्माण पर काम करने वाले और यूआईडीएआई का पहले चीफ प्रोडेक्ट हेड संजय जैन और फ्लिपकार्ट में पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ मेघना रेड्डीरेड्डी शामिल हैं.

वेबसाइट के अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न बताते हैं कि अधिकांश स्वयंसेवक पार्ट-टाइम काम करते हैं. लगभग 10 ‘ वोलियंटर्स -इन-रेजिडेंस’ हैं और उन्हें मामूली भुगतान किया जाता है जो उनके पिछले वेतन या 36 लाख रुपये से कम है.

iSPIRT’s army of volunteers and mentors include men and women who have achieved remarkable things in their respective fields | Credit: Pictures from iSPIRT.
iSPIRT सेना के वॉलंटियर्स और सलाहकारों में वे पुरुष और महिला शामिल हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में कुछ बेहतर किया है. बीजेपी के लोकसभा सांसद रविशंकर प्रसाद ने iSPIRT के एक इवेंट में हिस्सा लिया । iSPIRT

iSPIRT के स्वयंसेवकों और सलाहकारों की सेना में ऐसे पुरुष और महिलाएं शामिल हैं जिन्होंने अपने संबंधित क्षेत्रों में उल्लेखनीय चीजें हासिल की हैं.

इसमें आगे लिखा है, ‘अनुभवी लोगों के लिए जीवन यापन करने के लिए किया गया भुगतान अक्सर उनके बाजार वेतन का 20-30 प्रतिशत होता है’, यह इस बात को बताता है कि जो लोग iSPIRT के साथ काम करना चाहते हैं, उन्हें उच्च भत्तों और वेतन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. इसलिए iSPIRT अपने सदस्यों को ‘स्वयंसेवक’ के रूप में संदर्भित करता है.

iSPIRT सरकारों, विदेशी गैर सरकारी संगठनों, उद्यम पूंजीपतियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और आईटी सेवा कंपनियों से धन नहीं लेता है. इसे व्यक्तिगत दाताओं और कंपनियों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, आमतौर पर तकनीकी उद्योग से इसे खासी मदद मिलती है. इसका खर्च करीब 30-40 लाख रुपये महीने तक आता है.

iSPIRT सरकारी पैसा को क्यों स्वीकार नहीं करता है, इस पर शर्मा ने कहा, ‘हम सरकार के भागीदार के रूप में काम करना चाहते हैं. और अगर आपने सरकार से पैसा लिया हो तो अक्सर, ऐसा करना मुश्किल हो जाता है.’

iSPIRT यह भी सुनिश्चित करता है कि इसके स्वयंसेवक जो सरकार के साथ नीति के पक्षधर हैं, वे निवेश नहीं कर सकते हैं और ऐसे स्टार्ट-अप को सलाह नहीं दे सकते हैं जो इसके प्रयासों के परिणामस्वरूप सीधे लाभान्वित हो सकते हैं. शर्मा ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, संजय जैन, वीसी निवेशक बनने के बाद, वित्तीय समावेशन के क्षेत्रों में सरकारी पक्ष का समर्थन नहीं करते हैं’

आधार के साथ अपनी भागीदारी की वजह से आई-स्पर्ट के साथ कई बार विवाद खड़ा हुआ है.

2017 में, जोन्नालगड्डा ने आरोप लगाया कि शर्मा उन्हें परेशान करने के लिए एक गुमनाम ट्विटर अकाउंट का इस्तेमाल कर रहे थे क्योंकि उन्होंने आधार के ‘गोपनीयता जोखिमों’ के बारे में बात की थी.

इसके तुरंत बाद, शर्मा ने माफी मांगी और आलोचकों को जवाब देते समय ‘संभावित सिद्धांतों’ पर चर्चा करते हुए एक बयान जारी किया, जिसमें ‘नागरिक को अपना नॉर्थ स्टार बनाना’, और ‘कोई ट्रोलिंग नहीं, कोई गुमनामी नहीं’ नीति अपनाना शामिल था.


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इसका भविष्य

इंडिया स्टैक के नये फेज पर फिलहाल काम चल रहे है. OCEN – ओपन क्रेडिट इनेबलमेंट नेटवर्क – एक नए प्रकार का लेंडिंग इकोसिस्टम है जहां उपभोक्ताओं और एमएसएमई से निपटने वाली कोई भी कंपनी ‘लोन सर्विस प्रोवाइडर बन’ बन सकती है.

सरकारी प्लेटफॉर्म जैसे ‘गवर्नमेंट ईमार्केटप्लेस (जीईएम) सहाय’, और प्राइवेट लोन प्रोवाइडर जो ओसीईएन का हिस्सा बन जाते हैं, वे ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ सिस्टम, वित्तीय डेटा के लिए एक नई डेटा-साझाकरण प्रणाली का भी इस्तेमाल करेंगे.

इंडिया स्टैक का डेटा एंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर, या डीईपीए, अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क को चलाने के लिए नियमों का एक सेट उपलब्ध कराता है.

जब रजनी जैसे लोग जब यह पता लगाने के लिए कि क्रेडिट-योग्य हैं और कर्ज चाहते हैं, डीईपीए के जरिए अपने फायनेंसियल डेटा को अकाउंट एग्रीगेटर संस्थाओं के साथ साझा करते हैं, तो वे अकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम, डीईपीए प्रोटोकॉल द्वारा शासित एक तकनीकी प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे होते है. यह प्लेटफार्म ये सुनिश्चित करता है कि उनका डेटा चोरी, कॉपी नहीं किया गया है या अनधिकृत संस्थाओं के साथ साझा नहीं किया गया है. यह गारंटी देता है कि उनका डेटा केवल उनकी सहमति से साझा किया जाएगा.

ई-कॉमर्स स्पेस में नई रोमांचक तकनीक डिजिटल कॉमर्स प्लेटफॉर्म (ओएनडीसी) के लिए ओपन नेटवर्क है, जो भारत में बने बेकन प्रोटोकॉल पर चल रहा है. बेकन प्रोटोकॉल नियमों का एक समूह है जो यह नियंत्रित करता है कि इंटरनेट पर कमर्शियल और नॉन- कमर्शियल लेनदेन और सूचनाओं का आदान-प्रदान कैसे किया जा सकता है.

बेकन को बेकन फाउंडेशन द्वारा बनाया गया था, जिसकी स्थापना iSPIRT के स्वयंसेवक प्रमोद वर्मा ने की थी। आईस्पिरट बेकन प्रोटोकॉल का भागीदार है और इसने विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में इसका प्रचार किया है.

बेकन प्रोटोकॉल को इसके संस्थापकों ने अमेरिका में विकसित मौजूदा प्रोटोकॉल के साथ एक विकल्प और अनुकूल दोनों के रूप में वर्णित किया है जो अभी भी इंटरनेट पर एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर पर जानकारी भेजने और लेनदेन करने के लिए सार्वभौमिक रूप से उपयोग किए जाते हैं.

इसके काम को समझने के लिए आपको कल्पना करनी होगी. मानों आप खरीदारी कर रहे हैं और Amazon, Flipkart, Meesho, Myntra, Ajio, Shein और Zara पर उपलब्ध विकल्पों को एक ही ऐप पर एक्सेस कर सकते हैं और इसके लिए आपको प्रत्येक ऐप पर व्यक्तिगत रूप से जाने की जरूरत नहीं है- यही बेकन प्रोटोकॉल पर चलने वाला ONDC करता है.

ओएनडीसी अभी भी अपने पायलट फेज में

कोच्चि मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की एक पहल कोच्चि ओपन मोबिलिटी नेटवर्क (KOMN), बेकन पर आधारित है. बेकन का इस्तेमाल करते हुए, KOMN ने ‘यात्री’ नामक एक ऐप विकसित किया है, जो यूजर को सभी उपलब्ध कैब, बसों, घाटों और पार्किंग स्थलों की जानकारी देता है.

iSPIRT स्वयं इस डिजिटल पब्लिक इंफ्रस्ट्रकचर में से किसी को भी नहीं चलाता है.

सरकार या गैर-लाभकारी संस्थाएं इनका संचालन करती हैं. उदाहरण के लिए, UPI को NPCI और OCEN को Credall द्वारा चलाया जाता है. अकाउंट एग्रीगेटर्स को आरबीआई लाइसेंस देती है और यहां तक कि उनका अपना स्वयं-विनियमित संगठन भी है जिसे सहमति कहा जाता है.

ओएनडीसी उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के अधीन काम करता है. एमओएसआईपी आईआईआईटी-बी के पास है और बेकन बेकन फाउंडेशन के अधीन है.

थिंक टैंक के पास अभी और अधिक परियोजनाएं, जिन पर काम चल रहा है- एक UPI- आधारित वाउचर E-RUPI, एक डिजिटल डॉक्टर परामर्श सेवा, ड्रोन से जुड़ी एक अवधारणा जिसे ‘डिजिटल स्काई 2.0’ कहा जाता है, ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए PM-WANI 2.0, एमएसएमई के वाणिज्यिक अनुबंधों पर अधिक विश्वास बनाने के लिए बादल और भारत में व्यवसायों की साइबर सुरक्षा में सुधार करने के लिए SAKRAM.

इतना प्रभावशाली होने के बावजूद, iSPIRT कुछ चीजों में विफल भी रहा है.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि यह एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य की एक निजी मुंबई कंपनी बिलडेस्क को एनपीसीआई के स्वामित्व वाले एनपीसीआई के स्वामित्व वाले प्लेटफॉर्म, जिसमें बैंक, ई-कॉमर्स पोर्टल और ऑनलाइन भुगतान प्लेटफॉर्म हैं, में लाने में विफल रहा.

iSPIRT के एक सदस्य ने कहा, ‘हम एआई-आधारित सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्माण करने के लिए और अधिक भारतीय कंपनियों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं और 5 जी पर हम अभी तक कुछ ज्यादा वहीं कर पाए हैं.’

शर्मा ने कहा, ‘OCEN विफल भी हो सकता है’

वे जिन परियोजनाओं का अनुसरण करते हैं उन्हें निष्पादित करने में सालों लग जाते हैं. उदाहरण के लिए, कर्ज के लिए सरकार द्वारा संचालित मंच, सहाय कुछ ऐसा है जिस पर iSPIRT ने 2015 में काम करना शुरू किया था.

बेकन प्रोटोकॉल की पहली बार 2018 में अवधारणा रखी गई थी और यह अभी भी एक पायलट प्रोजेक्ट ही है. ई-कॉमर्स उद्योग के कार्यकारी के अनुसार, इस क्षेत्र में अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट सहित इसे कोई भी पूरी तरह से नहीं समझता है. जियो के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि वह भी अभी भी सीख रहा है कि बेकन द्वारा संचालित ओएनडीसी कैसे काम करता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, मेघना रेड्डीरेड्डी ने इस बारे में बात की कि iSPIRT में आलोचना को कैसे देखा जाता है. ‘अगर किसी की ओर से आलोचना होती है कि हम रजनी की सर्विस सुधारने के लिए हम काम कर सकते हैं. इसको लेकर की गई हर बात चर्चा करने लायक है’ उन्होंने कहा, ‘यह कोई बड़ी बात नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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