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Friday, 22 November, 2024
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‘मुश्किल’ मानी जाने वाली मूंग की फसल ने कमाया पंजाब की मंडियों में अच्छा मुनाफ़ा

पंजाब में 7,275 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी दर पर मूंग की खरीद शुरू हो गई है, जिससे सरकार को 4.75 लाख क्विंटल उपज की उम्मीद है. किसानों की भी उम्मीदें जगीं है लेकिन इस फसल को उगाना और काटना मुश्किल है.

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लुधियाना: लुधियाना के जगराओं में गुरुवार को दाल के थोक बाजार में उम्मीदों का माहौल बना हुआ है. सुबह 9 बजे तक लगभग 40 ट्रैक्टर-ट्रॉलियां मंडी में एकत्रित हो गई थीं. इन सभी में मूंग की बोरियां भरी थीं, जिनकी इस साल पंजाब में रिकॉर्ड पैदावार हुई है.

दोपहर तक मोगा जिले के कुसा गांव में रहने वाले किसान जगरार सिंह ने अपनी करीब 10 क्विंटल मूंग को रुक-रुक कर होने वाली बारिश से बचाने के लिए एक शेड में उतार दिया था. फिर, वे और मोगा और लुधियाना जिलों के कई अन्य किसान राज्य सरकार की गुणवत्ता जांच टीमों के आने का इंतजार करने लगे.

इस दल द्वारा किए गये परीक्षण को पास करने का मतलब होगा कि वे अपनी उपज को पहली बार पंजाब सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 7,275 रुपये प्रति क्विंटल, जिसके बारे में पिछले महीने ही राज्य द्वारा अनुमति दी गई थी, की दर पर बेच सकते हैं.

अन्यथा उन्हें किसी कमीशन एजेंट की तलाश करनी होगी और गर्मियों में उपजाई जाने वाली मूंग को उसके बाजार भाव पर बेचना होगा – जो गुरुवार को जगराओं मंडी में लगभग 6,000 रुपये प्रति क्विंटल थी. हालांकि, यह चाहे किसी भी तरह से बिके, किसानों के पास अच्छा-ख़ासा पैसा कमाने का मौका है.

जगराओं मंडी, लुधियाना में मूंग की बोरियों से लदे ट्रैक्टर | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

इस साल जरूरत से ज्यादा और पहले पड़ी गर्मी के कारण गेहूं की फसल पर ख़ासा असर पड़ा और फसल जल्दी पक गई. इसके बाद पंजाब में बड़ी संख्या में किसानों ने मूंग के ऊपर अपना दांव लगाया. दरअसल यह पहली बार हो रहा है जब जगरार सिंह और कई अन्य लोगों ने गर्मी में अपनी गेहूं और धान की फसलों के बीच मूंग उगाई है.

जागरार सिंह ने कहा, ‘मूंग से हमें जो कुछ भी अतिरिक्त पैसा मिलेगा, उससे हमें गेहूं और धान की लागत की भरपाई करने में काफ़ी हद तक मदद मिलेगी, जो ऐसे संकट के समय में हमारे लिए एक बड़ी राहत हो सकती है.’

राज्य सरकार द्वारा 10 जून को खरीदी के सीजन की शुरुआत की अधिसूचना जारी किए जाने के साथ ही पंजाब की मंडियों में मूंग की आवक 13 जून को शुरू हुई थी. राज्य सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, 17 जून तक, राज्य में इसकी खरीद के लिए अधिसूचित की गई 40 मंडियों में लगभग 11,000 क्विंटल मूंग पहुंच चुकी थी.

वैसे तो इस साल का नज़ारा (आउटलुक) काफी सकारात्मक है, मगर फिर भी पंजाब में मूंग उगाना – फसल लगाने के समय से लेकर उसकी कटाई तक- एक बहुत ही दुश्वारी का काम है.


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मूंग की खेती पर दिया जा रहा है ज़ोर, लेकिन चुनौतियां हैं बरकरार

6 मई को, पंजाब सरकार ने फसलों के विविधीकरण (डाइवर्सिफिकेशन) को प्रोत्साहित करने और मिट्टी की सेहत में सुधार लाने के उपाय के रूप में, धान की फसल बोने से पहले किसानों द्वारा उगाए गए मूंग के लिए 7,275 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी की घोषणा की.

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस पूर्व शर्त के साथ अपनी यह घोषणा की थी कि मूंग की फसल उगाने वाले किसान इसकी कटाई के बाद धान की पीआर-126 या बासमती किस्मों में से किसी एक की अपने खेतों में बुवाई करेंगे, क्योंकि ये जल्दी परिपक्व हो जाती हैं और कम पानी की खपत करती हैं.

दिप्रिंट ने जो सरकारी रिकॉर्ड देखे हैं, उसके मुताबिक इस साल पंजाब में मूंग की खेती 1.25 लाख एकड़ के रकबे तक पहुंच गई, जबकि पिछले साल सिर्फ़ 50,000 एकड़ में इसकी खेती हुई थी. पंजाब सरकार इस साल कुल 4.75 लाख क्विंटल उपज की उम्मीद कर रही है, जबकि पिछले साल यह मात्रा 2.98 लाख क्विंटल थी.

पंजाब में खेतों से लाए गए ताजे मूंग की सफाई और छंटाई करता एक कर्मचारी | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

थोक कृषि बाजारों के प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने उनका नाम गुप्त रखे जाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘जल्द हुई फसल से प्रोत्साहित होकर, इस साल बड़ी संख्या में गेहूं की खेती करने वाले लोगों ने मूंग की भी खेती की उनमें से कई ने पहली बार या फिर कई वर्षों के बाद मूंग की खेती की.’

हालांकि, मूंग की फसल बारिश से बुरी तरह प्रभावित हो जाती है और इसलिए मानसून के आने से पहले­-पहले इसकी कटाई करनी पड़ती है. यह देखते हुए कि गर्मियों में मूंग को अपनी खेती-से-कटाई तक के चक्र को पूरा करने के लिए कम-से -कम 60 दिनों की आवश्यकता होती है, गेहूं की फसल और धान की खेती के बीच इसे उगाना एक कठिन काम है.

राज्य सरकार के कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पंजाब में मूंग की खेती आमतौर पर गेहूं की खेती करने वालों के द्वारा आलू की जगह पर जाती है, क्योंकि उन्हें धान की बुवाई से पहले अधिक समय मिल जाता है. आलू की कटाई आम तौर पर मार्च के अंत तक की जाती है, और सामान्य तौर पर गेहूं की कटाई का समय अप्रैल के अंत में होता है.

इस अधिकारी ने कहा, ‘गेहूं के जो किसान इसके बावजूद यह जोखिम उठाते हैं, वे अक्सर पूरी फसल उपजाने में विफल रहते हैं और उन्हे अपनी उपज को चारे या हरी खाद के रूप में बेचना पड़ता है.’

आलू की खेती करने वाले लोग – जो ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल को लगभग 90 दिन देने में सक्षम होते हैं – एक एकड़ में छह से सात क्विंटल मूंग की पैदावार कर पाते है. हालांकि, कई किसानों और मंडी अधिकारियों ने दावा किया कि जिन लोगों ने गेहूं की कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग उगाई और फसल को 60-70 दिन देने में कामयाब रहे, उन्हें भी प्रति एकड़ चार क्विंटल तक की पैदावार मिल रही है.

बाजार दरों पर भी बिक्री के बावजूद यह अभी भी एक फ़ायदे का सौदा है.

केंद्र सरकार के एगमार्कनेट पोर्टल द्वारा संकलित देश भर के थोक बाजारों के आंकड़े बताते हैं कि मूंग की कीमत बाजार में फिलहाल 6,000-6,200 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है.

लुधियाना के एक किसान हरेंद्र सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर कोई 6,000 रुपये प्रति एकड़ के बाजार भाव पर भी इसे बेचता है, तो भी चार क्विंटल मूंग 24,000 रुपये में बिक जाएगी. लगभग 8,000-10,000 रुपये प्रति एकड़ की लागत को ध्यान में रखते हुए, किसान 14,000-16,000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी की उम्मीद कर सकते हैं. अगर कोई इस सरकार को एमएसपी पर बेचने में कामयाब होता है, तो यह मुनाफ़ा 19,000-21,000 रुपये प्रति एकड़ तक जा सकता है.’

हालांकि, कई किसानों के मामले में मूंग की खेती सीखने के चक्र के साथ आती है, जिसमें फसल उगाने की तकनीक भी शामिल है.


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मूंग की फसल के बारे में जानकारी का अभाव

मोगा जिले के लोहारा गांव के एक किसान 48 वर्षीय अमनदीप सिंह के अनुसार, राज्य भर के कई किसान तीन दशक पहले मूंग की खेती किया करते थे, लेकिन गेहूं-धान की मोनोकल्चर (एक ही तरह की खेती की संस्कृति) की शुरुआत – एक परिवर्तन जो हरित क्रांति से जुड़ा हुआ था – के रूप में उन्होने इसे छोड़ना शुरू कर दिया.

अब, मूंग की कटाई के बारे में कम जानकारी है और ऐसा खासकर किसानों की युवा पीढ़ी के बीच है.

लुधियाना के लखवाल गांव के किसान अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘कम अनुभवी लोगों के लिए मूंग की कटाई काफी तकनीकी वाला पेंचीदा मामला हो सकता है.’

उनके अनुसार, इसकी कटाई के तीन तरीके हैं.

किसान मूंग के खेत में कटाई करता हुआ/मनीषा मंडल/ दिप्रिंट

सबसे अधिक श्रम की मांग वाली और समय लेने वाली विधि में पूरी तरह से विकसित फली को तोड़ना और फिर अपने हाथों से बीज निकालना शामिल है. दूसरी विधि में फसल को दरांती से काटना और फिर बीज को अलग करने के लिए थ्रेशर का उपयोग किया जाना शामिल है. तीसरी विधि में पत्तियों से छुटकारा पाने के लिए एक विशेष प्रकार के खरपतवारनाशी (वीडीसाइड) स्प्रे का उपयोग करना और फिर बची हुई फसल को एक कंबाइन – एक ऐसा कृषि उपकरण जो अनाज या बीज की फसल को थ्रेसिंग मशीन में काटता और वितरित करता है – से काटना शामिल है.

सिंह और कई अन्य किसानों ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि पहली प्रक्रिया से सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली फसल का उत्पादन होता है, फिर भी पूरे राज्य में तीसरी प्रक्रिया ही सबसे अधिक लोकप्रिय है.

लुधियाना के एक 30 वर्षीय किसान हरप्रीत सिंह ने कहा, ‘मैं पहली बार मूंग उगाने वाला किसान हूं और मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे गांव में मेरा मार्गदर्शन करने वाले लोग हैं. वीडी साइड और कम्बाइन हार्वेस्टिंग प्रक्रिया सबसे लोकप्रिय न केवल इसलिए है कि इससे समय की बचत होती है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मूंग की कटाई में महारत वाले खेत मजदूरों को ढूंढना मुश्किल काम है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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