केंद्र सरकार, लंबे समय से चली आ रही प्रशासनिक, शैक्षणिक आदि व्यवस्थाओं में लगातार परिवर्तन कर रही है. इसी क्रम में सैन्य सेवा क्षेत्र में ‘अग्निपथ योजना‘ को लागू करने की 14 जून को घोषणा की गई है. इस घोषणा के साथ ही एक बड़ा प्रश्न यह भी सामने उभर कर आया कि मोदी सरकार अपनी योजनाएं लागू करने के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रही है?
उदाहरण के लिए शिक्षा के क्षेत्र में, पूरे देश में एकीकृत प्रवेश परीक्षा का आयोजन का फैसला भी आनन-फानन में मात्र 2 महीने के नोटिस में लिया गया था, अब कुछ इसी तरह से अग्निपथ योजना भी जल्दबाजी में सामने लाई गई प्रतीत होती है.
इस विचार के पीछे का कारण यह है कि सरकार योजना की नियमावली में लगातार परिवर्तन कर रही है और साथ ही अभी इस योजना से जुड़े बहुत से प्रश्नों का उत्तर आना भी बाकी है. चूंकि यह योजना देश की सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी है इसलिए इस पर व्यापक विमर्श होना भी जरूरी है.
इस योजना से संबंधित कुछ प्रश्न जो कि सरकार के सामने चुनौतियों के रूप में उभरे हैं, फिलहाल उन पर यहां विचार किया जाना जरूरी है.
अग्निपथ योजना से उभरी चिंताएं
अग्निपथ योजना को लेकर बुद्धिजीवियों के एक बड़े तबके की अपनी चिंता है. उनका मानना है कि अग्निपथ योजना एक गलत परंपरा के आरंभ का माध्यम बन सकती है. इस योजना को आधार बनाकर आने वाले समय में सभी सरकारी संस्थानों में कुछ ऐसी ही व्यवस्था को लागू करने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
कहने का अर्थ यह है कि पूरे देश की शासन व्यवस्था संविदा आधारित हो सकती है. सरकार पहले ही अपनी जबरन सेवानिवृत्ति और लेटरल एंट्री विधानों के कारण विवाद में पड़ चुकी है. अब अग्निपथ योजना दरअसल उसी परंपरा की तीसरी कड़ी प्रतीत होता है. सरकारी कर्मचारियों के एक बड़े तबके का यह भी मानना है कि भविष्य में ऐसी व्यवस्था उनके विभागों में लागू होने की संभावनाओं से उन पर दबाव बढ़ेगा.
अग्निपथ योजना के कारण देश के सामने एक प्रश्न यह भी पैदा हो गया है कि क्या सरकार के पास बेरोजगारी दूर करने की कोई स्थाई योजना नहीं है? क्योंकि अग्निपथ योजना बेरोजगारी दूर करने का एक अस्थाई माध्यम प्रतीत होता है. इसकी रोटेशन प्रक्रिया एक प्रकार से सांकेतिक रोजगार ही प्रदान करेगी क्योंकि 4 सालों के बाद इस अग्निपथ योजना के माध्यम से चुने गए सैनिकों (जिन्हें अग्निवीर कहा जाएगा) में से 75 फीसदी लोग बेरोजगार हो जाएंगे. ऐसे में बेरोजगारी जड़ से समाप्त नहीं हो पाएगी बल्कि एक अलग कलेवर धारण कर समाज व व्यवस्था के सामने प्रकट होगी.
इस योजना को लेकर एक तबका यह भी सवाल उठा रहा है कि 4 वर्ष के बाद रकम मात्र मिलने से क्या सेवानिवृत्त युवा अपना रोजगार पैदा कर सकते हैं? क्या देश की आर्थिक संरचना इस तरह की है? क्या सरकार देश को स्वरोजगार की ओर मोड़ रही है और यदि हां तो इसके लिए सरकार ने किस तरह के कदम उठाए हैं?
यह प्रश्न तब और अधिक विचारणीय प्रतीत होता है जब मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाएं व विचार अभी तक अपनी सफलता सिद्ध नहीं कर सके हैं.
अग्निपथ योजना से जुड़ा अगला प्रश्न यह है कि क्या यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा? दरअसल भारत की सामाजिक व्यवस्था कुछ इस तरह के ताने-बाने से बुनी हुई है कि इस योजना के तहत जब 75 फीसदी सैनिक 4 वर्ष बाद सेवा मुक्त किए जाएंगे तो इन अग्निवीरों को तकनीकी रूप से निष्कासित या अयोग्य माना जाएगा. ऐसे में क्या इन अग्निवीरों को सामाजिक रूप से सम्मान मिल सकता है?
यह बात तब और भी अधिक सही प्रतीत होती है जब सरकार की तरफ से साफ संदेश दिया गया है कि योग्यता के आधार पर 4 वर्षों के ऑब्जर्वेशन के बाद ‘अयोग्य’ सैनिकों को बाहर कर दिया जाएगा. तो ऐसी स्थिति में इस ‘अयोग्यता’ का ठप्पा लेकर क्या अग्निवीर मानसिक व सामाजिक रूप से अपने उत्तरदायित्वों को निभाने में सक्षम सिद्ध होंगे?
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क्या निजी संस्थानों को इससे फायदा मिलेगा?
एकबारगी यह योजना निजी संस्थानों को अधिक लाभ देती हुई प्रतीत होती है. कारण कि सरकारी व्यवस्था के माध्यम से पूरी तरह प्रशिक्षित हुए अग्निवीरों में से 75 फीसदी जब जबरन सेवानिवृत्त कर दिए जाएंगे तो फिर यह अग्निवीर निजी संस्थानों के लिए बिना कुछ निवेश किए, एक संसाधन के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे.
ऐसे में अग्निवीरों का लाभ सरकार से अधिक निजी संस्थानों को मिलेगा क्योंकि उन्होंने उनको प्रशिक्षित करने के लिए एक पैसा भी निवेश नहीं किया होगा.
इस योजना के संदर्भ में गृह मंत्रालय की तरफ से यह कहा गया है कि 75 फीसदी जबरन सेवानिवृत्त किए गए अग्निवीरों को सीएपीएफ और असम राइफल्स में 10% आरक्षण मिलेगा.
अब यहां एक बड़ा सवाल यह उठता है कि जब यह अर्धसैनिक बल भी अपने क्षेत्र विशेष में भारतीय सेना जितनी ही कठिन व जिम्मेदारी पूर्ण कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे होते हैं तो इनमें दोयम दर्जे (भारतीय सेना के लिए अयोग्य) के सैनिकों की भर्ती क्यों की जाए?
क्या यह विचार देश की सुरक्षा के लिहाज से सही प्रतीत होता है अथवा क्या भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों की गुणवत्ता में अंतर किया जाना जरूरी है, वह भी तब जब उन्हें चीन, पाकिस्तान, नक्सलियों आदि से दिन-रात जूझना पड़ता है.
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रिटायर्ड ‘अग्निवीरों’ के गलत दिशा में जाने की भी संभावना
इस योजना को लेकर देश के भविष्य के संदर्भ में एक बड़ा प्रश्न यह भी पैदा होता है कि जबरन सेवानिवृत्त 75 फीसदी प्रशिक्षित अग्निवीर युवा सैनिक, जो पूरी तरह से अत्याधुनिक हथियारों को संचालित करना जानते होंगे, क्या वे बेरोजगारी की स्थिति में गलत दिशा में भी मुड़ सकते हैं और यदि ऐसा होता है तो इससे निपटने के लिए सरकार ने किस तरीके के उपाय किए हैं?
यह प्रश्न भी अपने आप में महत्व रखता है और सरकार को इसका उत्तर भी देना चाहिए.
भारत एक ऐसा देश है जहां सरकारें भी 5 वर्ष के लिए चुनी जाती है. ऐसे में अग्निवीरों का सिर्फ 4 वर्ष के लिए चयन अपने आप में समय सीमा को लेकर भी सवाल खड़े करता है. सरकार द्वारा इस विषय को भी स्पष्ट करना चाहिए कि अग्निपथ योजना के लिए 4 वर्ष का ही समय क्यों निर्धारित किया गया? क्या 4 वर्ष के बाद सैनिकों की योग्यता तय करने का सही समय आ जाएगा तथा इस समय सीमा के निर्धारण का आधार क्या है?
कुछ लोग अग्निपथ योजना की तुलना इजरायल, बरमूडा या सिंगापुर आदि देशों की अनिवार्य सैन्य सेवा योजना से कर रहे हैं. यहां यह बात समझने की है कि इजराइल बरमूडा और सिंगापुर जैसे देश भौगोलिक व जनसंख्या की दृष्टि से बहुत ही छोटे हैं. ऐसी स्थिति में जनसंख्या कम होने के कारण सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दे को व्यक्तिगत इच्छा का विषय नहीं बनाया जा सकता. इसलिए वहां पर अनिवार्य सैन्य सेवा जैसी योजनाएं लागू हैं.
लेकिन भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी अपने चरम पर है, महज 4 वर्षों की सेवा और इसके बाद अयोग्यता का ठप्पा लगाकर एक बेरोजगार के रूप में समाज के बीच खड़े होना वास्तव में देश के युवाओं के बीच चिंता पैदा करने वाली चीज है.
इस योजना को लेकर एक और बड़ा प्रश्न यह उठता है कि क्या इससे सैन्य गुणवत्ता पर असर पड़ेगा? इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि सैनिक को पहले से ही पता होगा कि उसे 4 वर्षों तक देश की सेवा करनी है इसके बाद उसे एकमुश्त रकम मिलेगी जिसके आधार पर वह अपना जीवन जी सकेगा. ऐसी स्थिति में क्या वह इस सेवा की मांग को समझते हुए, राष्ट्रहित की गंभीरता को समझ कर अपना योगदान देगा अथवा उसके लिए यह एक पार्ट टाइम जॉब की तरह हो जाएगा.
सीमा सुरक्षा करने के लिए अपने कर्तव्यों के प्रति स्थायी भावना होना आवश्यक है, जो कि पार्ट टाइम जॉब में बना रहे यह सोचना थोड़ा कठिन लगता है.
कुल मिलाकर कहा जाए तो अग्निपथ योजना को लेकर बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर मिलना देश के लिए तथा देश के नागरिकों के लिए बहुत ही जरूरी है.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के कार्यकारिणी सदस्य और राजधानी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(कृष्ण मुरारी द्वारा संपादित)
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