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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतइमरान खान फैन्स की नई धमकी- उन्हें पीएम के रूप में वापस लाएं या बाजवा विरोधी हैशटैग का सामना करें

इमरान खान फैन्स की नई धमकी- उन्हें पीएम के रूप में वापस लाएं या बाजवा विरोधी हैशटैग का सामना करें

अप्रैल में इमरान खान की विदाई के बाद से ही नफरत के शोले भडक़ रहे हैं. अब, प्तबाजवाहैजटुगो और प्तबाजवाट्रेटर वायरल है, ताकि फौज अपना ‘रवैया बदले’.

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अजीब दौर है. जब किसी पाकिस्तानी फौज प्रमुख के अपनी बूटों को खूंटी पर टांगने में कुछ महीने बाकी हों तो पोस्टर निकल आते कि ‘जाने की बातें जाने दो.’ कम से कम इस मामले में यह विरला मौका है कि किसी फौज प्रमुख को विस्तार नहीं मिला. आज, मौजूदा फौज प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का रिटायरमेंट करीब आ रहा है, आवाजें #BajwaHasToGo, #BajwaTraitor, or #BajwaSurrender. चीखने लगी हैं. हैशटैग का खेल पूरे शवाब पर है, खासकर उसी बिरादरी से जो पिछले साल तक यह चाहती थी कि फौज की नुक्ताचीनी करने वाले पाकिस्तानियों को पांच साल की जेल दी जाए. अजीब दौर है, वाकई.

बुगाती चाहिए, आलिमों के साथ आओ

नफरत हवा में अप्रैल ही घुली हुई है. इमरान खान की विदाई के बाद से ही पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के सदस्य और इमरान फैन क्लब उन्हें प्रधानमंत्री के दफ्तर में उनकी वापसी के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. हमने देखा कि फैन सुप्रीम कोर्ट के जजों की फोटो पर जॉगर शूज पीट रहे हैं, कुछ दूसरे विलख रहे हैं कि आला जनरलों के साथ समूचा प्रतिष्ठान ‘तूफान’ के लिए जिम्मेदार है. उनके पोस्टर चीखते हैं, ‘बाजवा खुलकर सामने आ.’

एक ने तो यह दलील दी कि पाकिस्तान में बदलाव आलिम ले आए: ‘बुगाती चाहते हो, आलिमों के साथ आओ. वे तुम्हें दौलत और औरत देंगे, तुम्हें तो सिर्फ मारना है.’ अब हम सब बुगाती को चाहते हैं, चाहे हमें इसकी परवाह नहीं कि उससे इमरान खान को पीएम की गद्दी कैसे मिल जाएगी.

अभी भी, कुछ ऐसे हैं कि अगर उनके लीडर को कुछ हुआ तो फीदायीन बम बनने को तैयार हैं. उनके नेता भी यही मानते रहे हैं कि सेलेक्टर उन्हें नहीं चुनते तो बेहतर है कि पाकिस्तान पर एटम बम गिरा दें. सबसे मजेदार तो पूर्व विदेश मंत्री की चिल्लाहट है, ‘हम लेके रहेंगे आजादी, तेरा बाप भी देगा आजादी.’ उन्हें यह एहसास नहीं कि हर चुनावी मौसम में उनके ‘सियासी बाप’ बदलते हैं, और मौजूदा से तो निराशा भारी है.


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हैशटैग है सियासी औजार

तो, क्यों ‘बाजवा को जाना है’ वायरल हो रहा है? इसलिए नहीं कि उन्होंने दोबारा वापसी का ऐलान कर दिया है. ‘बाजवा देशद्राही’ क्यों उन सबके लिए है जो एक ही तरफ हैं? क्यों ‘बाजवा समर्पण करो’ मदद की गहार है? यह सब उस मेलोड्रामा का हिस्स है जो हटाए गए इमरान खान के इर्दगिर्द बुना गया है. उनके मुताबिक, दुनिया ने उन्हें हटाने की साजिश की, और दुनिया के साथ साजिश में हिस्सेदारों को भुगतना पड़ेगा. इसलिए बाजवा विरोधी हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. हैशटैग अब इमरान खान के हताश शेरों का सियासी औजार है.

फिजा में विवाद यह है कि क्यों सत्ता प्रतिष्ठान न्यूट्रल बन गया और सुल्तान की गद्दी बचाने में मदद नहीं की? फिर, अनेक जगह ‘न्यूट्रल’ ‘जानवर’ बन गया, और मीर जाफर कहा जाने लगा, जो खुद भी कमांडर-इन-चीफ था. लब्बोलुआव यह कि इमरान खान और उनके फैन क्लब की सिविलियन सुपरमेसी का निचोड़ यह है कि फौज उन्हें चुनाव जीताने में मदद करेगी और अविश्वास प्रस्ताव पर उन्हें हारने नहीं देगी, और ऐसा हुआ तो फौज अपना रवैया बदलेगी और उन्हें फिर गद्दी पर बिठाएगी. वरना हैशटैग चलने लगेंगे. अलबत्ता 2018 में प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठने के पहले इमरान खान सोचते थे कि जनरल बाजवा सबसे न्यूट्रल और लोकतंत्र पसंद फौजी हुक्मरान हैं, ‘बाजवा डॉक्टरीन’ के गीत गाते थे, जो उनके मुताबिक, पाकिस्तान के संविधान को तवज्जो देती है.

अमेरिकी शह पर साजिश की अंतहीन कहानी आज भी विवाद का विषय है. हालांकि डायरेक्अर जनरल ऑफ इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (डीजी आइएसपीआर) बार-बार खंडन कर चुका है कि किसी सर्विसेज चीफ ने नहीं कहा है कि पाकिस्तान के राजदूत की छुटपुट बातें सत्ता परिवर्तन की साजिश थी और इमरान खान ने बार-बार उस दावे का खंडन किया. सबसे ताजा यह है कि डीजी आइएसपीआर कैसे तय कर सकता है कि साजिश रची गई थी या नहीं. ‘उसने कहा, उसने कहा’ जारी है.

लक्ष्मण रेखाएं

इस हफ्ते शुरू में फौज विरोधी मुहिम का हिस्सा होने के लिए एक मेजर-जनरल सहित पांच रिटयर फौजी अधिकारियों के पेंशन और मुफ्त इलाज की सुविधा सहित सभी रिटायरमेंट के बाद की सहूलियतें वापस ले ली गईं. पिछले हफ्ते इमरान खान के रिटायर फौजी समर्थकों ने मांगों की फेहरिस्त के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई (जिसमें सवाल आमंत्रित नहीं थे). उनकी मांग नए चुनाव कराने, गृह मंत्री को गिरफ्तार करने वगैरह की थी. उनमें एक ने दावा किया कि जनरल बाजवा ने 90 दिन में चुनाव कराने का वादा किया था. जरा उनकी मासूमियत तो देखिए, पहले तो यही कैसे सोचा जा सकता है कि फौज प्रमुख ऐसे वादे करेंगे, और दूसरे, यह मान लेना कि चुनाव 90 दिन में होंगे, जबकि इतिहास में काफी समय बाद हुए-जनरल जिया-उल-हक के दौर में तो 10 साल में.

जो कभी ‘लक्षमण रेखा’ मानी जाती थी, जिसे नहीं लांघा जा सकता है, चाहे आपकी आलोचना कितनी ही जायज क्यों न हो, अब लगता है कि वह मिट गई है. यह सवाल बना हुआ है कि क्यों लोगों के साथ बाकियों से अलग बर्ताव हो रहा है. नेशनल असेंबली के पख्तून सदस्य अली वजीर काफी कुछ कम कहने के लिए दो साल से जेल में हैं. यहां तक कि कथित ‘लक्ष्मण रेखाएं’ भी दो-राष्ट्र सिद्धांत पर आधारित हैं-यानी हम बनाम वे.

कुर्सी से हटाई गई पार्टी की दुविधा यह है कि उसने अपना सफर सिविल वॉर की उम्मीद में किया था, जो वह शुरू ही नहीं कर सकी. फिर यह आइडिया कि पाकिस्तान में श्रीलंका जैसे हालात और अधिकारियों के घर जलाए जाएंगे, वह भी नहीं हुआ. गंभीर धमकियां आईं कि प्रतिष्ठान सही फैसले नहीं लेता है तो फौज बर्बाद हो जाएगी, पाकिस्तान खत्म हो जाएगा, उसे एटमी हथियारों से खाली कर दिया जाएगगा और वतन तीन टुकड़े में बंट जाएगा. गलत न समझिए. ‘सही फैसले’ का मतलब है कि इमरान खान को पीएम दफ्तर मिले. जब तक यह नहीं होता, हैशटैग या दूसरे विरोध में आप ट्रेटर बने रहोगे जिसने समर्पण कर दिया और अब जाना पड़ेगा.

 

(नायला इनायत पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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