नये राफेल विवाद में सवाल यह उठता है की क्या रिलायंस को चुनने के लिए दबाव बनाया गया था या सिर्फ रिलायंस ऑफसेट पार्टनर था.
नई दिल्ली: भारत के राफेल सौदे के विवाद में नया ट्विस्ट आया है, जो बातचीत के दौरान गुम हो गया था.
फ्रांसीसी ऑनलाइन पत्रिका मीडियापार्ट, जिसने पहली बार बताया था कि पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा था कि यह भारत का सुझाव था कि राफेल निर्माता डसॉल्ट एविएशन ने ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस डिफेंस का चयन किया. पत्रिका ने बुधवार की शाम को लिखा कि कंपनी प्रबंधन ने अपने कर्मचारियों को उतना ही बताया था.
हालांकि, बुधवार को डसॉल्ट एविएशन ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि कंपनी भारत में ऑफसेट्स पुनर्निवेश के लिए प्रतिबद्ध है. राफेल सौदे (59,000 करोड़ रुपये) के मूल्य के 50 प्रतिशत और रिलायंस के रूप में अपना समकक्ष “स्वतंत्र रूप से चुनने” के लिये स्वतंत्र है.
बयान में कहा गया है, “इनमें से कुछ ऑफ़सेट देने के लिए, डसॉल्ट एविएशन ने संयुक्त उद्यम बनाने का फैसला किया है.”
इसमें कहा गया कि “डसॉल्ट एविएशन ने भारत के रिलायंस समूह के साथ साझेदारी करने के लिए स्वतंत्र रूप से चुनाव किया है. यह संयुक्त उद्यम डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड 10 फरवरी, 2017 को बनाया गया था.
मीडियापार्ट ने बुधवार को बताया कि डसॉल्ट प्रबंधन ने अपने ट्रेड यूनियनों को बताया था कि कंपनी के लिए रिलायंस को ऑफ़सेट पार्टनर के रूप में चुनना “जरूरी और अनिवार्य” था.
कंपनी नागपुर में बनाई गई डीआरएएल पर फाल्कन बिजनेस जेट्स का उत्पादन करने के लिए अपनी असेंबली लाइन को स्थानांतरित कर रही थी और अपने कर्मचारियों को बताना पड़ा था कि वह फ्रेंच मजदूरों के लिए नौकरियां क्यों नहीं सृजित कर रही है. कंपनी ने रिलायंस को “समकक्ष” के रूप में चयनित किया.
मीडियापार्ट रिपोर्ट में कहा गया है: “मीडियापार्ट द्वारा प्राप्त एक दस्तावेज के अनुसार, डसॉल्ट एविएशन पर, अंबानी के साथ गठबंधन वास्तव में राफेल बिक्री अनुबंध के लिए ‘समकक्ष’ के रूप में प्रस्तुत किया गया था.
निर्वाचित कर्मचारी ने कहा कि “डसॉल्ट एविएशन के डिप्टी चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर (2 नंबर की हैसियत रखने वाले), लोइक सेगलन ने 11 मई 2017 को नागपुर डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस के संयुक्त प्रतिनिधियों के प्रस्ताव के दौरान यह स्पष्ट किया कि भारत से निर्यात अनुबंध प्राप्त करने के लिए रिलायंस को समकक्ष के रूप में स्वीकार करना डसॉल्ट एविएशन के लिए जरूरी और अनिवार्य था.
फ्रांसीसी समाचार पत्र ले मोंड के दक्षिण एशिया संवाददाता जूलियन बोसियो ने बयान को समझा और कहा कि डसॉल्ट को फ्रांस श्रम कानूनों को ध्यान में रखते हुए यूनियन संगठनों को महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णयों पर संवाद करने की आवश्यकता थी.
कांग्रेस ने संज्ञान लिया
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ्रांसीसी मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर ‘भ्रष्ट’ बताया जिसमें कहा गया है कि राफेल सौदे के लिए रिलायंस डिफेंस का होना ‘अनिवार्य व बाध्यकारी’ शर्त थी.
समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, राहुल ने कहा, “भारत के प्रधानमंत्री भ्रष्ट हैं, मैं इस देश के युवा से कहना चाहता हूं कि वह भ्रष्ट हैं.” उन्होंने फ्रांसीसी वेबसाइट मीडियापार्ट की रिपोर्ट के कुछ अंश भी पढ़े, जिसमें बुधवार को इंटरनल डसॉल्ट दस्तावेज का हवाला दिया गया था.
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव पर रक्षा उपकरणों को बनाने में सक्षम होने में संदेहजनक स्थिति होने के बावजूद डसॉल्ट को रिलायंस का भागीदार बनाने के लिए बाध्य किया गया था.
ये हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री नहीं है बल्कि ये अनिल अंबानी के प्रधानमंत्री हैं।
पहले फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति और अब राफेल के Senior Executive ने साफ कह दिया है कि राफेल सौदे के बदले डसॉल्ट को रिलायंस से डील करने को कहा गया: श्री @RahulGandhi #RafaleScamGrandExpose pic.twitter.com/hmPVFOZwgV
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) October 11, 2018
रिलायंस ने पिछले साल पीपावाव शिपयार्ड को अधिगृहित किया था, भारतीय नौसेना के चार अपतटीय गश्ती जहाजों को समय पर देने से काफी पीछे है. रक्षा निर्माण के क्षेत्र में रिलायंस की कोई उपलब्धि नहीं है.
2015 में उसने रूसी कंपनी अल्माज-एंटी के साथ साझेदारी करने का दावा किया, जो भारत को एस-400 वायु रक्षा मिसाइल सिस्टम प्रदान करेगा. पिछले हफ्ते जो अनुबंध हुआ है उसमें रिलायंस का उल्लेख नहीं है.
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से रफाल लड़ाकू विमान को चुनने की प्रक्रिया पर निर्णय लेने के लिए जवाब मांगा है.
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