नई दिल्ली: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने इस मंगलवार को अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के केंद्रीय सिख संग्रहालय में एक आत्मघाती हमलावर दिलावर सिंह का चित्र लगाया, जिसने साल 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी थी.
एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी और स्वर्ण मंदिर के अतिरिक्त मुख्य पुजारी ज्ञानी जगतार सिंह ने मंगलवार को अकाल तख्त के पूर्व प्रधान पुजारी ज्ञानी भगवान सिंह की तस्वीर का अनावरण किया.
इसी कार्यक्रम के दौरान दिलावर सिंह और ज्ञानी भगवान सिंह के परिवार के सदस्यों को ‘सिरोपा’ (सम्मान में दिए गये वस्त्र) भेंट कर सम्मानित भी किया गया.
अनावरण के दौरान, एसजीपीसी के अध्यक्ष धामी ने कहा कि इन दोनों शख्स की तस्वीरों को ‘उनकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए’ इस संग्रहालय में स्थापित किया गया है.
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने आगे कहा, ‘शहीद भाई दिलावर सिंह ने तत्कालीन सरकार द्वारा सिखों के खिलाफ किए जा रहे अत्याचारों और मानवाधिकार के घोर उल्लंघनों को खत्म कर दिया था. गुरु के आशीर्वाद के बिना खुद को बलिदान करने का फैसला मुमकिन नहीं है और जब भी कौम पर अत्याचार होते हैं, तो सिखों ने हमेशा अपना बलिदान देकर इतिहास रचा है.’
ज्ञानी जगतार सिंह ने कहा कि कौम हमेशा उन लोगों को याद रखती है जिन्होंने उसके लिए बलिदान दिया और सिख धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसलिए ऐसे व्यक्तित्वों का सम्मान संग्रहालय में उनकी तस्वीर प्रदर्शित करके की जाती है.
सेंट्रल सिख म्यूजियम में पहले से ही कई अन्य सिख उग्रवादियों की तस्वीरें लगी हैं, जिनमें जरनैल सिंह भिंडरावाले और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे भी शामिल हैं.
मारे गए खालिस्तान आतंकवादी भिंडरावाले की तस्वीर साल 2007 में शिरोमणि अकाली दल के दबदबे वाली एसजीपीसी, जो सिखों का सर्वोच्च धार्मिक निकाय है, द्वारा इस संग्रहालय में लगायी गयी थी.
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‘कोई भी पंजाबी खालिस्तान के बारे में बात नहीं करना चाहता’
बता दें कि 31 अगस्त, 1995 को पंजाब पुलिस के एक पूर्व कांस्टेबल दिलावर सिंह ने चंडीगढ़ में सचिवालय के बाहर एक बम विस्फोट किया था जिसमें पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की मौत हो गई थी.
उसने कथित तौर पर प्रतिबंधित सिख आतंकवादी संगठन ‘बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई)’ के निर्देश पर पंजाब पुलिस के एक अन्य पूर्व कांस्टेबल बलवंत सिंह राजोआना और लखविंदर सिंह के साथ मिलकर इस हत्या को अंजाम दिया था.
अकाल तख्त ने साल 2012 में दिलावर सिंह को ‘कौमी शहीद’ और राजोआना को ‘जिंदा शहीद’ घोषित किया था.
उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए, एसजीपीसी के एक पूर्व पदाधिकारी ने कहा कि बेअंत सिंह और इंदिरा गांधी की हत्याएं उचित नहीं थीं.
पदाधिकारी ने कहा, ‘मारना मादा काम है (किसी की हत्या करना निंदनीय है).’ साथ ही, उन्होंने कहा, ‘लेकिन ऐसा क्यों हुआ, यह भी गौर करने योग्य है.’
इस पदाधिकारी ने आगे कहा कि ‘अगर किसी चीज से भावनाएं जुड़ी हैं, अगर अत्याचार हो रहे हैं, तो लोग भावनात्मक रूप से प्रेरित होकर ऐसे कदम उठा सकते हैं.’
पदाधिकारी ने कहा, ‘किसी चीज से भावनात्मक रूप से जुड़े होने की वजह से किए गए ये कृत्य किन्ही स्वार्थी उद्देश्यों या किसी आपराधिक मानसिकता के कारण नहीं, बल्कि कौम और धर्म के साथ लगाव के कारण किए जाते हैं. इस तरह के कृत्यों को समुदाय द्वारा उसी रौशनी में देखा जाता है.’
उन्होने कहा, ‘इतने सारे पंजाबी, हिंदू युवक, युवतियों को बिना किसी गलती के मार दिया गया… ऐसा हुआ ही क्यों? सरकारों को सोचना चाहिए था कि किन हालात की वजह से इतने भयंकर परिणाम हुए. इतना जुल्म न करो कि लोग भावनाओं से अंधे हो जाएं और राह भटक जाएं.’
पदाधिकारी ने आगे कहा कि कोई भी पंजाबी खालिस्तान के बारे में बात नहीं करना चाहता.
पदाधिकारी ने कहा, ‘लेकिन युवा लोग आजादी और खालिस्तान के नारे क्यों लगाते हैं? क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें दबाया जा रहा है. सिखों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज हैं. अगर कोई सिख कौम या धर्म की बात करता है तो उसे गलत नजरिए से देखा जाता है.’
एसजीपीसी के एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया: ‘हमने वही किया है जो हम करना चाहते थे… यह इस तरह की पहली तस्वीर नहीं है. उन लोगों की ऐसी कई तस्वीरें यहां लगायी गयी है जिन्होंने सिख कौम के लिए कुछ किया है.’
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