नयी दिल्ली, 14 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि आत्मरक्षा का अधिकार अनिवार्य रूप से एक रक्षात्मक अधिकार है जो कि इसे उचित ठहराए जाने के लिए परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
अदालत ने बीएसएफ के एक पूर्व जवान को भारत-बांग्लादेश सीमा पर एक कथित तस्कर की हत्या के आरोप से बरी करते हुए यह टिप्पणी की।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतर्निहित कारक यह होना चाहिए कि आत्मरक्षा का कार्य द्वेष की भावना से मुक्त होकर किया गया हो।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि जिन परिस्थितियों में आत्मरक्षा का अधिकार उपलब्ध है, उनका भारतीय दंड संहिता में विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘संक्षेप में, आत्मरक्षा का अधिकार अनिवार्य रूप से एक रक्षात्मक अधिकार है और ये तभी उपलब्ध होता है, जब परिस्थितियां इसे उचित ठहराती हैं। ऐसी परिस्थितियां वे हैं, जिन्हें आईपीसी में विस्तार से बताया गया है। इस तरह का अधिकार अभियुक्त को तब मिलेगा, जब उसे या उसकी संपत्ति को खतरा हो और उसकी सहायता के लिए राज्य तंत्र के आने की बहुत कम गुंजाइश हो।’’
सीमा सुरक्षा बल के पूर्व जवान महादेव को हत्या का दोषी ठहराया गया था और उन्हें उच्च न्यायालय और सामान्य सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। महादेव ने अपनी सजा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
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