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Wednesday, 20 November, 2024
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जानवरों की जान ले सकती है ज्यादा गर्मी, कम गर्मी भी उनके लिए घातक

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जस्टिन ईस्टवुड और ऐनी पीटर्स, मोनाश यूनिवर्सिटी

मेलबर्न, 14 जून (द कन्वरसेशन) अत्यधिक गर्मी पक्षियों और स्तनधारियों के सामूहिक रूप से मरने का कारण बन सकती हैं। लेकिन जानवरों को कम गर्मी की परेशानी भी अकसर झेलना पड़ती है, जो उनकी मौत का कारण तो नहीं बनती, लेकिन हमारे नए निष्कर्ष बताते हैं कि दुर्भाग्य से, कम गर्मी का अनुभव करने वाले जानवरों को दीर्घकालिक स्वास्थ्य क्षति हो सकती है।

आज प्रकाशित हमारा अध्ययन बताता है कि कैसे गर्म और शुष्क परिस्थितियों के संपर्क में रहने से पक्षियों के जीवन के पहले कुछ दिनों में उनके डीएनए पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि वे समय से पहले बूढ़े हो जाते हैं, कम उम्र में मर जाते हैं और कम संतान पैदा करते हैं।

हमने इस दौरान बैंगनी-कलगी वाली फेयरी रैन पर ध्यान केंद्रित किया, जो उत्तरी ऑस्ट्रेलिया की एक गीत गाने वाली छोटी लुप्तप्राय चिड़िया है।

निष्कर्ष बताते हैं कि जब तक रैन तेजी से जलवायु परिवर्तन के अनुकूल नहीं हो जाते, तब तक वैश्विक तापमान बढ़ने पर उनकी आबादी जीवित रहने के लिए संघर्ष कर सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि जब यह अनुमान लगाया जाए कि एक गर्म दुनिया में जैव विविधता कैसे होगी, हम इस तरह के सूक्ष्म और अकसर नजर में न आने वाले प्रभावों पर विचार करें।

गर्मी में रहने की कीमत

गर्म तापमान में पक्षियों के नन्हें शिशुओं को पालना खास तौर से मुश्किल होता है। उनके नन्हे शरीर तीव्र विकास और अपरिपक्व शरीर क्रिया विज्ञान के कारण गर्म तापमान के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। और गर्मी के कारण उन छोटे पक्षियों को जो तनाव होता है, उसका असर और क्षति वयस्कता तक बनी रह सकती है।

हमने अपने दीर्घकालिक पारिस्थितिक अध्ययन के हिस्से के रूप में, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के किम्बरली क्षेत्र में ऑस्ट्रेलियाई वन्यजीव संरक्षण के मॉर्निंगटन वन्यजीव अभयारण्य में चिह्नित पर्पल क्राउन्ड फेयरी रैन्स की आबादी की गहन निगरानी की।

ये कीट खाने वाले पक्षी एक प्रजनन जोड़े के आसपास केंद्रित छोटे सामाजिक समूह बनाते हैं। जिन पक्षियों की हमने निगरानी की, वे नदी के किनारे अपने विशेष स्थान के पास घनी वनस्पतियों में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

प्रजनन पूरे वर्ष हो सकता है लेकिन मानसून के गीले मौसम में चरम पर होता है। घोंसलों में एक से चार चूजे होते हैं। हमारे अध्ययन के दौरान उन्होंने अधिकतम हवा का तापमान 31-45 डिग्री सेल्सियस के बीच अनुभव किया।

हमारी जांच में एक सप्ताह के बच्चों और तापमान तथा पक्षियों के डीएनए के एक हिस्से, जिसे ‘‘टेलोमेरेस’’ के रूप में जाना जाता है के बीच संबंध पर ध्यान केंद्रित किया गया।

टेलोमेरेस गुणसूत्रों के अंत में डीएनए कैप होते हैं, जो अन्य कार्यों के साथ, कोशिकाओं को ऊर्जा उत्पादन और तनाव के उपोत्पादों से बचाने के लिए एक बफर के रूप में कार्य करते हैं। एक बार जब यह बफर खत्म हो जाता है, तो सेल बंद हो जाता है। जैसे-जैसे इन निष्क्रिय कोशिकाओं की संख्या समय के साथ बढ़ती जाती है, उम्र बढ़ने की प्रक्रिया तेज होती जाती है।

अपने जीवन के पहले दिनों के दौरान गर्म, शुष्क परिस्थितियों के संपर्क में आने वाले पक्षी शिशुओं के टेलोमेरेस छोटे थे। इससे पता चलता है कि गर्मी के प्रभाव से उनके सुरक्षात्मक डीएनए बफर कम हो सकते हैं और पक्षियों की उम्र अधिक तेजी से बढ़ सकती है। दरअसल, हमारे पिछले शोध में दिखाया गया है कि छोटे टेलोमेरेस वाले बच्चे कम उम्र में मर जाते हैं, और यदि जीवित भी रहते हैं, तो बाद में उनकी संतान कम होती है।

दिलचस्प बात यह है कि बारिश के साथ पड़ने वाली गर्मी को चूजों ने बेहतर तरीके से सहन किया, हालांकि हम यकीन के साथ नहीं कह सकते कि ऐसा क्यों हुआ।

क्लाइमेट वार्मिंग के तहत इसका क्या मतलब है

जलवायु परिवर्तन के तहत ऑस्ट्रेलिया में गर्म, शुष्क परिस्थितियों के अधिक बार होने की भविष्यवाणी की गई है। इसलिए हमने यह पता लगाने के लिए एक गणितीय मॉडल का निर्माण किया कि क्या टेलोमेयर की लंबाई पर उनके प्रभाव प्रजनन को पर्याप्त रूप से प्रभावित करके जनसंख्या में गिरावट का कारण बन सकते हैं।

हमने पाया कि वार्मिंग की अपेक्षाकृत हल्की दरों के तहत भी, पक्षियों की संख्या केवल टेलोमेर के छोटा होने के परिणामस्वरूप घट सकती है। इस गणित से हमें दो ऐसे उपाय भी मिले जो पक्षियों की संख्या में आने वाली गिरावट को रोक सकते हैं।

पहला तो यह कि पक्षी लंबे टेलोमेरेस विकसित कर सकते हैं, और इस प्रकार एक बड़ा बफर विकसित कर सकते हैं, जो उम्र बढ़ने की रफ्तार को कम सकता है। हालाँकि, यह पूरी तरह से निश्चित नहीं है क्योंकि हम यह नहीं समझते हैं कि टेलोमेरेस कैसे विकसित होते हैं या क्या उनका विकास जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल रख सकता है।

द कन्वरसेशन एकता नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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