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Monday, 25 November, 2024
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कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से सरकार को 80,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के अप्रत्याशित लाभ की संभावना

कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से 84 हजार करोड़ से 86 हजार करोड़ रुपये का अप्रत्याशित लाभ सरकार को 2022-23 के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में होने वाली कमी को पूरा करने में मदद कर सकता है.

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नई दिल्ली: अगर पिछले महीने के अंत में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती के कारण नरेंद्र मोदी सरकार को सालाना एक लाख करोड़ रुपये का राजस्व गंवाना पड़ा है, तो इस नुकसान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अप्रत्याशित लाभ से पूरा होने की संभावना है. चालू वित्त वर्ष में सरकार को अपस्ट्रीम तेल कंपनियों से उच्चतम लाभांश (हाइअर डिविडेंड)के जरिए कमाई की उम्मीद है.

सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को एक नोट भेजा है जिसमें उसने दो मॉडल की सिफारिश की है. इसके जरिये सरकार को 2022-23 में ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ONGC) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) जैसी तेल कंपनियों से कम से कम 84,400 करोड़ रुपये का फायदा मिल सकता है.

सरकार के पास दो विकल्प हैं – या तो दुनिया में बढ़ती कच्चे तेल की कीमतों के चलते तेल कंपनियों के असाधारण मुनाफे पर विंडफॉल टैक्स लगाना, या फिर उच्च लाभांश मॉडल (हाइअर डिविडेंड मॉडल) को चुनना. दोनों ही सूरतों में सरकार को फायदा मिलने की उम्मीद है.

वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम नोट पर विचार कर रहे हैं और जल्द ही इस पर फैसला ले लिया जाएगा. लेकिन तेल कंपनियों से इस पैसे को वसूलने के लिए पसंदीदा तरीका हाइअर डिविडेंड मॉडल ही है.’

विंडफॉल टैक्स कंपनी पर सरकार द्वारा लगाया जाने वाला एकमुश्त कर है, जिसे भारत सरकार सरकारी तेल और गैस कंपनियों के साथ-साथ निजी कंपनियों पर लगाने का विचार कर रही है. ऊर्जा क्षेत्र पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि इसकी संभावना नहीं है कि निजी तेल कंपनियां विंडफॉल टैक्स के विचार को स्वीकार करेंगी.

भारत में ऊर्जा कंपनियों को पिछले साल दिसंबर से दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से काफी फायदा हुआ था, क्योंकि उनके विक्रय के औसत मूल्य प्राप्ति में वृद्धि हुई थी. पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के आंकड़ों के अनुसार, 9 जून को भारत के कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 13 सप्ताह के उच्चतम स्तर 121.28 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी.

उपर्युक्त नोट में किया गया आकलन दर्शाता है कि सरकार सरकारी तेल कंपनियों से कुल 1.4 लाख करोड़ रुपये के भुगतान की उम्मीद कर सकती है, जिसमें 84,400 करोड़ रुपये का वृद्धिशील नकदी प्रवाह शामिल है.

इस भुगतान में रॉयल्टी, उपकर, आयकर, डिविडेंड, स्पेशल डिविडेंड और डिविडेंड पर टैक्स शामिल होगा. अधिकारी ने कहा कि इनमें से अधिकतर शुल्क 80 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की कीमत वसूली पर लगाए जाएंगे.

2021-22 में, सरकार ने ONGC और OIL से इस तरह के बड़े भुगतान में 57,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की वसूली की थी. उस समय कच्चे तेल की औसत कीमत 77 डॉलर प्रति बैरल थी.

सरकार की ओएनजीसी में 60.41 फीसदी और ओआईएल में 56.66 फीसदी हिस्सेदारी है. दोनों कंपनियों को मिला दें तो भारतीय तेल उत्पादक बाजार में इनकी एक बड़ी हिस्सेदारी पर नियंत्रण है.


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विंडफॉल टैक्स पर विचार

वित्त और पेट्रोलियम विभागों के बीच चर्चा से पता चलता है कि विंडफॉल टैक्स पर विचार किया जा रहा है. यह टैक्स तेल और गैस उत्पादकों पर तब लगाया जाएगा, जब तेल की कीमतें एक निश्चित स्तर से ऊपर उठने लगेंगी.

इस तरह की चर्चा से संबंधित दस्तावेज़ों की एक प्रति दिप्रिंट के पास है. ये डाक्यूमेंट बताते हैं कि 75 प्रतिशत की दर से 80 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर तेल की कीमतों पर राज्य द्वारा संचालित तेल और गैस कंपनियों के लाभ पर विंडफॉल टैक्स लगाया जाएगा. इस तरह के कर से 33,700 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा.

अधिकारी ने बताया ‘लेकिन यह राशि जब रॉयल्टी, उपकर, आयकर, डिविडेंड, स्पेशल डिविडेंड और डिविडेंड पर टैक्स के साथ मिलेगी, तो लगभग 1.432 लाख करोड़ रुपये प्राप्त होंगे. इससे 86,000 करोड़ रुपये का नकदी प्रवाह बढ़ेगा.’

पिछले महीने यूके ने तेल और गैस कंपनियों के अप्रत्याशित लाभ पर 25 प्रतिशत टैक्स की घोषणा की.

विंडफॉल टैक्स लगाने का विचार नया नहीं है. सरकार ने पहले भी 2018 में इसे लागू करने की योजना बनाई थी. उस साल मई में वैश्विक तेल की कीमतें लगभग 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं. लेकिन तेल और गैस क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों के कड़े विरोध के बाद इस योजना को रद्द कर दिया गया था.

2021-22 में, भारत के शीर्ष तेल और गैस उत्पादक ओएनजीसी को वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल के कारण पिछले वर्ष में 11,246.44 करोड़ रुपये से 40,305.74 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड शुद्ध लाभ हुआ था.

ओआईएल का अब तक का सबसे ज्यादा शुद्ध लाभ 3,887.31 करोड़ रुपये दर्ज किया गया है, जो पिछले साल के 1,741.59 करोड़ रुपये से 123 फीसदी ज्यादा है.

कंपनी ने 2021-22 में 43.98 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 2021-22 में कच्चे तेल की औसत कीमत प्राप्ति में 80 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 78.96 डॉलर प्रति बैरल में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया था

हाइअर डिविडेंड मॉडल सुरक्षित विकल्प

हालांकि सरकार विंडफॉल टैक्स पर विचार कर रही है. लेकिन ऐसा लगता है कि इन कंपनियों से 80 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर तेल बेचकर कमाए जाने वाले मुनाफे से हाइर डिविडेंड की मांग करना ज्यादा तर्कसंगत रास्ता है.

सरकारी गणना के अनुसार, एक उच्च लाभांश मॉडल को लागू करने से कुल भुगतान (पेआउट) 1.415 लाख करोड़ रुपये होगा, जिसमें 84,400 करोड़ रुपये की वृद्धिशील नकदी प्रवाह होगा. यह विंडफॉल टैक्स लगाने से सरकार को मिलने वाले लाभ की तुलना में केवल 1,700 करोड़ रुपये कम है.

इस मॉडल में रॉयल्टी और उपकर समान रहेंगे जबकि आयकर, डिविडेंड और डिविडेंड पर कर कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल से अधिक होने पर उच्च दर पर लगाया जाएंगे.

एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि विंडफॉल लाभ का फायदा उठाने के लिए डिविडेंड एक पसंदीदा विकल्प है क्योंकि सरकार इन अपस्ट्रीम कंपनियों के अच्छे स्टॉक परफॉर्मेंस का फायदा उठा सकती है और उनमें से कुछ स्टॉक में हाई वैल्यूएशन पर विनिवेश कर सकती है. अधिकारी ने समझाया कि अगर सरकार इन कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स लगाती है तो स्टॉक प्राइस पर इसका असर पड़ सकता है.

एक प्रमुख ब्रोकरेज फर्म के एक विश्लेषक ने कहा कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों और कमजोर रुपये से अपस्ट्रीम सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को फायदा हो रहा है और इन कंपनियों के चालू वर्ष में रिकॉर्ड मुनाफा होने की संभावना है.

सरकारी वित्त को बढ़ावा

उच्च कच्चे तेल की कीमतों से 84,400 करोड़ -86,000 करोड़ रुपये का अप्रत्याशित लाभ सरकार को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए अपने वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में होने वाली कमी को पूरा करने में मदद कर सकता है.

फरवरी में 2022-23 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 प्रतिशत या 16.61 लाख करोड़ रुपये आंका था. इस राजकोषीय घाटे का 85 प्रतिशत से अधिक बाजार से कर्ज के जरिए वित्तपोषित किया जाएगा, जो चालू वित्त वर्ष के लिए 14.31 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है.

इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में ही 3 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च की घोषणा के रूप में सरकारी फाइनेंस गंभीर रूप से प्रभावित है. इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले वर्ष के 99,126 करोड़ रुपये से कम, 30,307 करोड़ रुपये के लाभांश का भुगतान किया, जो जो आमतौर पर राजकोषीय बफर के रूप में कार्य करता है. यह 10 वर्षों में केंद्रीय बैंक द्वारा भुगतान किया गया सबसे कम डिविडेंड था.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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