सबसे महत्वपूर्ण बात है कि रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के रोस्टर, न्यायिक नियुक्तियों और कोर्ट के लंबित मामलों को कैसे सँभालते हैं.
नई दिल्ली: न्यायमूर्ति रंजन गोगोई बुधवार को भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के लिए तैयार हैं, बहुत उम्मीद है कि वे सुप्रीम कोर्ट में आंतरिक सुधार करने में सफल होंगे.
अपने पूर्ववर्ती दीपक मिश्रा के न्यायधीश के रूप में शक्तियों के प्रयोग की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के बाद, न्यायमूर्ति गोगोई ने खुद को चुनौती दे दी है. दिप्रिंट कुछ मुद्दों पर नज़र डालता है जिन्हें उनके कार्यकाल के दौरान बारीकी से देखा जायेगा.
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मास्टर ऑफ रोस्टर
न्यायमूर्ति गोगोई समेत सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा आयोजित 12 जनवरी की ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मुख्य मुद्दा यह उठाया गया था भारत के मुख्य न्यायमूर्ति मिश्रा एक विशेष खंडपीठ को “संवेदनशील मामलों को चुनिंदा रूप से आवंटित” कर रहे हैं.
आलोचना का मुकाबला करने के लिए, मिश्रा ने बाद में एक रोस्टर तैयार किया जो परिभाषित करता है कि प्रत्येक बेंच द्वारा किस तरह के मामलों को सुना जाएगा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इसे सार्वजनिक अधिकार क्षेत्र में रखा जाएगा. हालांकि, मिश्रा ने यह सुनिश्चित किया कि सभी महत्वपूर्ण मामले उनकी ही अदालत में बने रहेंगे.
गोगोई ने अभी तक इस प्रक्रिया में किसी भी सुधार के संकेत नहीं दिए हैं, लेकिन यह देखा जाना चाहिए कि वे अपनी प्रशासनिक शक्तियों को ‘रोस्टर के मास्टर’ के रूप में कैसे सँभालते हैं.
न्यायिक नियुक्तियां
न्यायिक नियुक्तियां, जिस मुद्दे पर मिश्रा की बहुत आलोचना की गई थी, वह न्यायमूर्ति गोगोई के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. जिस दिन वह सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे, उस वक़्त अदालत में सात रिक्तियां होंगी और दो न्यायाधीश 2018 के अंत तक रिटायर हो जायेंगे.
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सरकार को सिफारिशें भेजने के अलावा, यह देखना होगा कि न्यायिक नियुक्तियों के मुद्दे पर न्यायमूर्ति गोगोई मोदी सरकार के सामने खड़े होंगे या नहीं. सीजेआई मिश्रा की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की इसलिए आलोचना की गई थी कि उसने सरकार के सामने आसानी से आत्मसमर्पण कर दिया.
चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को ख़त्म कर दिया था, सरकार और न्यायपालिका के बीच अभी तक न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है. प्रक्रिया के ज्ञापन (एमओपी) को अभी तक अंतिम रूप दिया जाना बाकी है, हालांकि सरकार का दावा है कि न्यायपालिका ने मसले को सरकार के पाले में डालते हुए उसकी मांग को मान लिया है.
न्यायाधीशों के बीच सहशासन
सीजेआई मिश्रा के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बीच संबंध खराब हो गए थे. मिश्रा का आलोचक होने के नाते, न्यायमूर्ति गोगोई को न्यायाधीशों के बीच सामंजस्य स्थापित करना एक चुनौती भरा कार्य होगा.
न्यायमूर्ति गोगोई और तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों ने सीजेआई मिश्रा को लिखा था कि वे सुप्रीम कोर्ट के भविष्य पर चर्चा करने के लिए संपूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाएं. वह बैठक कभी नहीं हुई. अब देखना है कि क्या न्यायमूर्ति गोगोई सभी न्यायाधीशों की पूर्ण अदालत बैठक बुलाकर संशोधन कर पाएंगे.
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सीजेआई मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के बाद न्यायपालिका में सार्वजनिक रूप से विश्वास में कमी आयी. हालांकि उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले देकर अपने खिलाफ आलोचना को कम कर लिया, लेकिन अब यह न्यायमूर्ति गोगोई के ऊपर है कि उनको न्यायपालिका की सार्वजनिक गरिमा को बहाल करना होगा.
लंबित मामले
प्रत्येक सीजेआई अपने एजेंडे के शीर्ष पर लंबित मामलों की समस्या को रखता है. हालांकि, न्यायमूर्ति गोगोई ने सीजेआई के रूप में शपथ लेने से पहले कहा कि “उनके पास एक योजना है.”
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गोगोई ने 30 सितंबर को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, “लंबित मामलों में व्यवस्था को अप्रासंगिक बनाने की क्षमता होती है.” उनके पूर्ववर्ती, मिश्रा का न्यायपालिका पर काफी प्रभाव पड़ा क्योंकि कई बड़े मामलों के लिए उनके कार्यकाल में संविधान पीठ की स्थापना की गई.
गोगोई की योजना जब सामने आएगी तो यह दिखाएगी कि क्या उनकी भी योजना वैसी ही है जैसी हर मुख्य न्यायाधीश के पास होती है या फिर इसका कोई वास्तविक असर होगा.
Read in English : Now that he is Chief Justice of India, Ranjan Gogoi will have to walk the talk