नई दिल्ली: अपनी व्हाट्सएप प्रोफाइल तस्वीर में उसने जो टी-शर्ट पहन रखी थी, उसके सहारे ही दिल्ली में हत्या के एक संदिग्ध का पता लगाने में मदद मिली. वहीं, एक अन्य मामले में विवाहित महिलाओं को उनकी कुछ तस्वीरों का इस्तेमाल कर कथित तौर पर ब्लैकमेल करने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया, जबकि उसने अपनी तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से सबूत मिटा दिए थे.
ये कुछ ऐसे ‘ब्लाइंड केस’ हैं जिन्हें इस साल दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से जुड़ी नेशनल साइबर फॉरेंसिक लैब (एनसीएफएल) के प्रशिक्षित कर्मियों की मदद से सुलझाया जा सका. ऐसे मामलों में, जिसमें किसी बंदूक या खून के धब्बों का कोई काम नहीं होता है, तमाम अदृश्य सुरागों के निशान इंटरनेट ईथर या हार्डवेयर में छिपे रहते हैं.
दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि यह देश की पहली फॉरेंसिक जांच लैब है जो साइबर अपराध या सुराग तलाशने में माहिर है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास हत्या, जबरन वसूली के लिए ब्लैकमेल करने और साइबर क्राइम आदि से जुड़े ऐसे ‘ब्लाइंड केस’ आते हैं जिसमें डेटा पहले ही हटा दिया गया होता है. इन मामलों में त्वरित कार्रवाई और ठोस सुराग तलाशने के उद्देश्य से विभिन्न डिवाइस एनसीएफएल को भेजी जाती हैं.’
स्पेशल सेल की इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस (आईएफएसओ) विंग, जिसके तहत एनसीएफएल संचालित होती है, में सेवारत पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के.पी.एस. मल्होत्रा ने कहा कि अब जबकि साइबर अपराधों में खासी वृद्धि देखी जा रही है, तोड़ी गई या फिर ऐसी डिवाइसों से डेटा फिर हासिल करना काफी महत्वपूर्ण हो गया है, जिसमें डेटा जानबूझकर डिलीट कर दिया गया हो.
डीसीपी मल्होत्रा ने कहा, ‘लैब में डेटा फिर हासिल किए जाने के बाद उसका विश्लेषण किया जाता है, जो किसी मामले को पुख्ता बनाने में मदद करता है. इससे पहले, वीडियो एन्हांसमेंट, ऑडियो डिटेक्शन और तोड़ दी गई डिवाइसों से डेटा फिर हासिल करने के संसाधन सीमित थे.’
साइबर-फॉरेंसिक लैब में हुई जांच को पुलिस ने हाल के महीनों में दो मामलों को सुलझाने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण बताया— इसमें एक मई में दरियागंज में एक हत्या का था और एक मामला कथित तौर पर हनीट्रैप-एंड-ब्लैकमेल से जुड़ा था जिसमें इस वर्ष की शुरू में एक व्यक्ति को विवाहित महिलाओं को निशाना बनाते पाया गया.
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एक ‘प्रेम प्रसंग’, हत्या और टी-शर्ट
17 मई की पसीने से तरबतर 47 वर्षीय एक व्यक्ति खुद को थोड़ी राहत देने के लिए दरियागंज के एक स्कूल के बाहर आकर रुका. कुछ सेकंड बाद ही सफेद मोटरसाइकिल पर सवार दो लोगों में से एक ने उसे करीब से गोली मार दी और अंधेरे में गायब हो गए.
बाद में जांच में पता चला है कि पीड़ित की पत्नी उससे नाखुश थी क्योंकि वह कथित तौर पर काफी ज्यादा समय शराब पीने और पतंग उड़ाने में बिताता था.
ऐसा माना जाता है कि उसे फेसबुक पर एक नया प्यार मिल गया था और वह उससे शादी करने की इच्छुक थी लेकिन इससे पहले वह चाहती थी कि उसके पति को ठिकाने लगा दिया जाए. उसने और उसके प्रेमी ने कथित तौर पर कुछ लाख रुपये देकर यह काम कराने के लिए एक और आदमी को सुपारी दी थी.
मामला जब साइबर-फॉरेंसिक लैब के पास आया तो उसने पीड़ित, शूटर और अन्य दो आरोपियों के बीच एक स्पष्ट संबंध का पता लगाया.
फॉरेंसिक लैब के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘एनसीएफएल ने जब पति-पत्नी के फोन खंगाले तो उन्हें पता चला कि उनका डेटा डिलीट कर दिया गया है. मृत व्यक्ति के फोन से कॉल लॉग और अन्य डेटा हटा दिए गए थे. लेकिन हमने फोन का डेटा फिर हासिल कर लिया और यह सब दो दिनों में किया गया.’
पति के फोन से बरामद डेटा में एक व्हाट्सएप प्रोफाइल का स्क्रीनशॉट भी था. इस फोटो में नजर आ रहे व्यक्ति ने दोनों बाइक सवारों में से एक की तरह की टी-शर्ट पहन रखी थी.
यह तो स्पष्ट नहीं है कि पीड़ित के फोन में हमलावर के व्हाट्सएप प्रोफाइल का स्क्रीनशॉट क्यों था लेकिन रिकवर की गई फोटो ने पुलिस को अपना मामला मजबूत बनाने में मदद की. पत्नी, उसके प्रेमी और भाड़े के संदिग्ध हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया गया है.
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एक हजार महिलाओं की फोटो, ब्लैकमेल कर 50 लाख वसूले
2020 में एक विवाहित महिला एक पुरुष के साथ दिल्ली आई, जिसका कहना था कि वह उससे प्यार करता है और उसके साथ नए सिरे से घर बसाना चाहता है. लेकिन इसके बजाये, जैसा महिला ने दावा किया, उसने उसे बंद कर दिया, उसके साथ मारपीट की और उसका यौन उत्पीड़न किया.
एक दिन, वह दूध खरीदने के बहाने घर से निकलने में कामयाब रही और पुलिस अधिकारियों के पास पहुंची.
उसने अदालत में एक याचिका भी दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उस व्यक्ति ने न केवल उसके साथ दुर्व्यवहार किया है, बल्कि कई वयस्क वेबसाइटों पर उसकी निर्वस्त्र तस्वीरें भी डाल दी है. कोर्ट के निर्देश पर आईएफएसओ यूनिट ने शिकायत दर्ज कराई.
जांच टीम ने सबसे पहले तो वेबसाइटों को ये कंटेंट हटाने के लिए पत्र भेजे और फिर उस आईपी एड्रेस को ट्रैक करना शुरू किया जिससे ये फोटो अपलोड किए गए थे. लेकिन पुख्ता सबूत आसानी से उपलब्ध नहीं थे.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘पुलिस टीम ने लोकेशन (आरोपी की) पर पहुंचकर चार लैपटॉप और 17 मोबाइल फोन बरामद जब्त किए जिनमें से डेटा पहले ही हटाया जा चुका था. इसलिए उन्हें एनसीएफएल भेज दिया गया.’
जब लैब ने इन डिवाइस से डेटा फिर हासिल किया तो पता चला कि वह इसी तरह के कई अन्य मामलों में संलिप्त था.
फॉरेंसिक लैब के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इन डिवाइसों में 1,000 से अधिक महिलाओं की अश्लील तस्वीरें मिलीं.’
अधिकारी ने आगे कहा, ‘आरोपी विवाहित महिलाओं को हनी ट्रैप करता और फिर उन्हें ब्लैकमेल करता था. उसने कई महिलाओं से 50 लाख रुपये से अधिक की उगाही भी की थी. फॉरेंसिक टीम के डेटा रिकवर करने और फिर उसे विश्लेषण से आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने में मदद मिली. मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई है.’
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टूटे फोन, मैलवेयर, व्हाट्सएप चैट से सबूत खंगालना
तमाम तरह के हाई-टेक उपकरणों से लैस एनसीएफएल जरा देर में ही मोबाइल, नेटवर्क और कंप्यूटरों को खंगालकर फॉरेंसिक साक्ष्य निकाल लेती है. जरूरत पड़ने पर यह ऑडियो और वीडियो एन्हांसमेंट टूल का भी उपयोग करती है.
एनसीएफएल ने हाई-प्रोफाइल सुल्ली डील और बुल्ली बाई मामलों में कोड स्क्रिप्ट और संदिग्धों की पहचान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जहां मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें और निजी जानकारियां ‘नीलामी’ के लिए अपलोड की गई थीं.
लैब अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास फायरआई और सैंडबॉक्स जैसे सबसे अच्छे मैलवेयर डिटेक्शन टूल हैं. हम खास उपकरणों के जरिये डिवाइस के बारे में सब पता लगा सकते हैं— मैलवेयर कैसे स्प्रेड हो रहा, यह क्या ट्रैक कर रहा है.’
लैब के अधिकारियों का कहना है कि अगर कोई फोन तोड़ दिया गया होता है तो वे आमतौर पर टूटे हिस्से को बदल देते हैं, उसे ठीक कर देते हैं या विभिन्न उपकरणों का उपयोग करके डेटा फिर हासिल करने का कोई अन्य तरीका अपनाते हैं.
यदि डेटा हटा दिया गया है और फोन टूटा नहीं है तो व्हाट्सएप चैट सहित सभी डेटा फिर हासिल करने में सात से आठ घंटे लगते हैं.
अधिकारियों ने कहा कि जहां तक लैपटॉप का सवाल है, मैकबुक के मामले में अभी हटाया गया डेटा पाने में अधिक समय लगता है, हार्ड डिस्क और अन्य लैपटॉप से आमतौर पर 48-72 घंटे में डाटा निकाल लिया जाता है. हालांकि, अगर डेटा ओवरराइट किया गया होता है तो यह जरूर एक बड़ी चुनौती बन जाती है.
यद्यपि साइबर-फॉरेंसिक लैब 2008 से काम कर रही है लेकिन इसे 2018 में नेशनल साइबर फॉरेंसिक लैब का नाम दिया गया और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली.
पिछले साल नवंबर में दिल्ली पुलिस की साइबर प्रिवेंशन अवेयरनेस यूनिट (साइपैड) का नाम बदलकर इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस यूनिट कर दिया गया था. यह कदम साइबर अपराध के बढ़ते मामलों को देखते हुए उठाया गया. एनसीएफएल को 2019 में स्पेशल सेल की आईएफएसओ यूनिट से जोड़ा गया था.
मौजूदा समय में एनसीएफएल में 25 कर्मचारी हैं. अधिकांश के पास कम से कम कंप्यूटर एप्लीकेशन में बीटेक या मास्टर डिग्री है और कुछ को रूस और अमेरिका में ट्रेनिंग मिली है. लैब कर्मचारियों का कौशल बढ़ाने के लिए नियमित रूप से वर्कशॉप आयोजित की जाती हैं.
पूर्व में उद्धृत वरिष्ठ लैब अधिकारी ने कहा, ‘पुलिस कर्मियों के अलावा हमारे पास कांट्रैक्ट पर काम करने वाले कुछ एक्सपर्ट भी हैं.’
एनसीएफएल पुलिस के अलावा साइबर अपराध से जुड़े कई मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की भी मदद करती है.
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