नई दिल्ली: वेस्टर्न थिएटन कमान में चीनी सेना के बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ‘नजर रखने की जरूरत’ बताते हुए अमेरिकी सेना के एक शीर्ष अधिकारी ने बुधवार को कहा कि अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इंटरऑप्टेबिलिटी बढ़ाने वाले युद्धाभ्यास के लिए भारतीय और अमेरिकी सेनाएं इस साल 9,000-10,000 फीट ऊंचाई पर एक साथ सैन्य अभ्यास करेंगी.
यूएस आर्मी पैसिफिक कमांडिंग जनरल चार्ल्स फ्लिन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केवल नौसैनिक इंटरऑपरेबिलिटी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए दोनों सेनाओं के बीच एक मजबूत ऑपरेशनल बॉन्ड पर जोर देते हुए कहा कि लद्दाख के पास चीन का सैन्य जमावड़ा और इसका बुनियादी सैन्य ढांचा मजबूत करना बीजिंग के ‘अस्थिर और विघटनकारी व्यवहार’ का हिस्सा है.
यह बताते हुए कि वो 2014 से विभिन्न रैंकों के तहत प्रशांत कमान का हिस्सा रहे हैं, जनरल फ्लिन ने कहा, ‘जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं कि सीपीसी (चीन की कम्युनिस्ट पार्टी) और पीआरसी (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) क्या कर रहे थे, और आज वे जो कर रहे हैं, उसकी तुलना करें तो उन्होंने एक विस्तारवादी और कपट करने का रास्ता अपनाया है. वो इस क्षेत्र में जो अस्थिर और विनाशकारी व्यवहार दिखा रहे हैं वो किसी भी तरह से उपयुक्त नहीं है.’
अमेरिकी सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने पत्रकारों के एक चुनिंदा समूह के साथ बातचीत के दौरान लद्दाख की स्थिति पर भी चर्चा की. वो गुरुवार को महत्वपूर्ण पूर्वी कमान का दौरा करेंगे.
नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के सैन्य जमावड़े और भूटान में गांवों के निर्माण के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि इन गतिविधियों पर लगातार नजर रखने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘वेस्टर्न थिएटर कमान (डब्ल्यूटीसी) में बनाए जा रहे कुछ बुनियादी ढांचे चिंताजनक हैं और उसके पूरे सैन्य शस्त्रागार की तरह इस पर भी सवाल पूछना होगा कि क्यों. मेरे पास यह बताने का कोई आधार नहीं है कि यह सब कैसे खत्म होगा या कहां जाकर खत्म होगा लेकिन मैं यही कहूंगा, यह सवाल पूछना और इसका जवाब पता लगाना सही होगा कि उसके इरादे क्या हैं.’
अपने तीसरे साल में पहुंच चुके लद्दाख संकट को हल करने के लिए भारत और चीन के बीच जारी सैन्य और राजनयिक वार्ता के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि यह मददगार तो है लेकिन चीनी की कथनी और करनी में काफी अंतर है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि जो बातचीत जारी है वह मददगार है लेकिन यहां पर रवैया भी मायने रखता है. मुझे निजी तौर पर यही लगता है कि वे जो कह रहे हैं वो एक बात है लेकिन जिस तरह से काम कर रहे हैं और सैन्य जमावड़े को लेकर जो रवैया अपना रहे हैं वो चिंताजनक और यह सभी के लिए चिंताजनक है. जाहिर है, यहां पर तनाव बना रहा है और हमें उस पर ध्यान देना होगा.’
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भारत-अमेरिका संयुक्त अभ्यास ‘प्रतिबद्धता की निशानी’
बातचीत के दौरान जनरल फ्लिन ने भारत-अमेरिका के संयुक्त ‘युद्धाभ्यास’ पर भी बात की, इसे इंटरऑपरेबिलिटी, ज्वाइंटनेस और सैन्य तत्परता बढ़ाने का एक उदाहरण बताया.
अपने 15वें वर्ष में प्रवेश कर चुके साझा सैन्य अभ्यासों के बारे में उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह सैन्य क्षेत्र में एक-दूसरे को समझने की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है.’ यह अभ्यास अक्टूबर में आयोजित होने वाला है.
उन्होंने कहा, ‘मैं कह सकता हूं कि अभ्यास ने भारतीय सेना और अमेरिकी सेना के बीच पेशेवर रुख और संयुक्त हथियारों के युद्धाभ्यास से जुड़े विभिन्न तत्वों की परस्पर समझ को बढ़ाया है.’
उन्होंने कहा कि इतनी ऊंचाई वाले वातावरण में अमेरिकी सेना अपने भारतीय समकक्षों से कई चीजें सीख सकती है.
उन्होंने कहा, ‘इसी तरह हम कई थिएटरों में युद्ध के वर्षों के अपने अनुभव को भी साझा कर सकते हैं.’
वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि वह इस साल संयुक्त सैन्य अभ्यास के बारे में ‘वास्तव में उत्साहित’ थे, जो 9,000-10,000 फीट की ऊंचाई पर होने जा रहा है. पिछले साल संयुक्त अभ्यास अलास्का में आयोजित किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह के प्रशिक्षण और अभ्यास से हमारी ज्वाइंटनेस बढ़ती है, हमारी इंटरऑप्टेबिलिटी बढ़ती है, हमारी साझी इंटरऑप्टेबिलिटी बढ़ती है. आखिरकार, सैनिक, सामरिक और ऑपरेशनल प्रैक्टिस के इस साझे अभियानों से हमारे किसी भी संकट के लिए पूरी तरह तैयार रहने की क्षमता बढ़ जाती है.’
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह संयुक्त रूप से प्रशिक्षण और पूर्वाभ्यास एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करने का एक अनमोल तरीका है.
इस तरह के अभ्यासों को आगे और जटिल बनाने के उद्देश्य को रेखांकित करते हुए जनरल फ्लिन ने भविष्य में इसकी दिशा के बारे में भी विस्तार से बताया.
उन्होंने कहा, ‘दोनों देश आने वाले सालों में ऑपरेशनल कॉन्सेप्ट पर काम करेंगे, रियल मैटीरिल सोल्यूशन लाएंगे, नई तकनीक आजमाएंगे और एयर-ग्राउंड इंटीग्रेशन के नए तरीकों को लागू करेंगे.’
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