नयी दिल्ली, आठ जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने नीट-पीजी-21 में 1450 से अधिक सीटें खाली रहने पर बुधवार को मेडिकल काउंसिलिंग समिति (एमसीसी) को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसने न केवल उम्मीदवारों को मुश्किल में डाला है बल्कि इससे डॉक्टरों की भी कमी होगी।
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और एमसीसी को 24 घंटे में हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा है कितनी सीटें खाली हैं और उनपर उम्मीदवारों को प्रवेश नहीं देने का कारण बताने को कहा है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और एमसीसी की ओर से पेश अधिवक्ता को आज ही हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार तक के लिए टाल दी।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाश कालीन पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें अखिल भारतीय कोटे के तहत आयोजित ‘स्ट्रे काउंसलिंग’ के बाद भी खाली रह गई 1456 सीटों को भरने के लिए विशेष ‘स्ट्रे काउंसलिंग’ कराने का अनुरोध किया गया है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘‘अगर एक भी खाली सीट बचती है तो उसे खाली नहीं जाने दिया जाना चाहिए। यह मेडिकल काउंसिल का कर्तव्य है कि ये सीटें खाली नहीं जाए। काउंसिलिंग के हर चरण के बाद इसी तरह की समस्या आती है। प्रक्रिया को क्यों नहीं दुरुस्त किया जाता? सीटों को खाली छोड़कर हमें क्या हासिल होता है जबकि हमें डॉक्टरों की जरूरत है? यह न केवल उम्मीदवारों के लिए समस्या उत्पन्न करता है बल्कि यह भ्रष्टाचार को भी प्रोत्साहित करता है।’’
अदालत ने केंद्र और एमसीसी की ओर से पेश अधिवक्ता से कहा कि क्यों नहीं तनाव रहित शिक्षा प्रणाली बनाई जा सकती है जहां पर सबकुछ सुचारु हो।
पीठ ने कहा, ‘‘क्या आप विद्यार्थियों और उनके माता-पिता के तनाव के स्तर को जानते भी हैं? आप काउंसलिंग के बीच में क्यों और सीटें जोड रहे हैं। इस संबंध में पहले ही इस अदालत का फैसला है। सीटों की संख्या और कितने विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाएगा इसको लेकर कट ऑफ तारीख होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि अगर विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं दिया गया तो वह मामले में आदेश पारित कर सकता है और उन उम्मीदवारों के लिए मुआवजा देने का निर्देश दे सकता है जिन्हें प्रवेश से इंकार किया गया।
इसके बाद अदालत ने अधिवक्ता से पूछा कि प्रवेश का प्रभार किसके पास है, इसपर वकील ने कहा कि महानिदेशक, स्वास्थ्य सेवा (डीजीएसएस) के पास।
शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता से सूचना मिलने के बाद मौखिक टिप्पणी की, ‘‘डीजीएचएस से कहें कि वह बृहस्पतिवार को अदालत में मौजूद रहें।’’ पीठ ने कहा कि कुछ जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है।
अदालत ने कहा, ‘‘विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगा है। पहले उन्हें कठिन पढ़ाई करनी होती और फिर परीक्षा देनी होती है। अगर आपको 99 प्रतिशत अंक भी परीक्षा में आते हैं तो प्रवेश की समस्या आती हैं उसके बाद विशेषज्ञता की समस्या आती है। आप विद्यार्थियों की स्थिति को समझते भी हैं।’’
जब अधिवक्ता ने कहा कि वह अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल बलबीर सिंह की अध्यक्षता में काम कर रहे हैं और उन्हें कुछ निजी समस्या है, इसलिए सुनवाई स्थगित की जाए। इसपर पीठ ने कहा कि यह चिकित्सा छात्रों के अधिकारों से जुड़ा गंभीर मामला है और भारत सरकार का प्रतिनिधित्व केवल एक अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।
पीठ ने आज ही हलफनामा दाखिल कर याचिकाकर्ताओं को प्रति देने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार तक के लिए स्थगित कर दी।
भाषा धीरज उमा
उमा
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