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Wednesday, 20 November, 2024
होमशासनपति परमेश्वर नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को असंवैधानिक करार दिया

पति परमेश्वर नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को असंवैधानिक करार दिया

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सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि व्यभिचार तलाक का कारण हो सकता है पर अपराध नहीं

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायलय ने भारतीय दंड संहिता के अनुच्छेद 497 को निरस्त कर दिया है. ये देड़ सौ साल पुराना कानून व्यभिचार को दंडित करता है और उसे ‘असंवैधानिक’ और ‘मनमाना’ करार देता है.

ये फैसला मुख्य न्यायाधीष दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन मिस्त्री, खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा की बेंच ने दिया. इसने कहां कि व्यभिचार तलाक का कारण हो सकता है पर एक अपराध नहीं. दीपक मिश्रा ने चीन और जापान का उदाहरण दिया जहां व्यभिचार अपराध नहीं है.

बेंच ने चार अलग अलग फैसले लिखे. मुख्य न्यायाधीष ने अपने और जस्टिस खानविलकर का फैसला लिखा. न्यायमूर्ति, नरिमन, चंद्रचूड़ और मल्हेत्रा ने एक एक फैसला लिखा.

मुख्य न्यायाधीष दीपक मिश्रा ने कहा, “कोई भी कानूम या व्यवस्था जो सभ्य समाज में किसी औरत की गरिमा को ठेस पहुंचाते हों वो संविधान की कोप का भाजन बनता है.”

“एक लिंग की दूसरे पर कानूनी संप्रभुता सरासर गलत है,” उन्होंने कहा.
“हमारे सिस्टम का आधार बराबरी का नियम है. पति पत्नी का मालिक नहीं होता है.”

भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 497 के तहत एक शादीशुदा आदमी को किसी और की पत्नी के साथ सेक्स करने पर सज़ा हो सकती है पर अगर उस औरत के पति की रज़ामंदी हो तो इसमें सज़ा नहीं होती.

न्यायमूर्ति डीवाय चंद्रचूड़ ने कहा “497 महिला को पुरूष से एक शादी के रिश्तें में अधिनस्त होने के विचार को बढ़ावा देता है.”

रोहिंटन नरिमन ने कहा कि पुराने ज़माने की सोच, कि आदमी जुर्म ढ़ाता है और औरत शिकार होती रहे, इसको अब सही नहीं माना जा सकता

व्यभिचार किसी असफल शादी का कारण न भी हो पर एक असफल शादी का नतीजा ज़रूर हो सकता है, मुख्य न्यायाधीष दीपक मिश्रा ने कहा.

रोहिंटन नरिमन ने कहा अनुच्छेद 497 संविधान की धारा 14 और 15 का उल्लंधन करती है. ये एक पुरातन कानून है और मनमाना कानून है.

ये फैसला जोसफ शाइन, जोकि विदेश में कार्यरत एक भारतीय नागरिक है कि याचिका पर आया. उन्होंने 497 की कानूनी वैधता पर सवाल उठाया था जो व्यभिचार के लिए केवल पुरूष को दंडित करता था.

इस साल जनवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कानून पर फिर विचार होना चाहिए और उसने मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया था.


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दीपक मिश्रा ने कहा था, “प्रावधान काफी पुरातन लगता है, खासकर तब जब समाज इस दिशा में प्रगति कर चुका है. इस प्रकार से विश्लेषण किये जाने पर हमारी समझ से यह उचित है कि सामाजिक प्रगति, धारणाओं में बदलाव, लिंग समानता और लिंग संवेदनशीलता के मद्देनज़र पहले के निर्णयों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है. ”

सीजेआई मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, ए एम खानविलकर , डी वाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा वाली इस खंडपीठ ने 1 अगस्त को इस मामले की सुनवाई शुरू की थी जो एक हफ्ते तक चली थी.

केंद्र ने “शादी की पवित्रता” को मुद्दा बनाकर कानून को बनाये रखने की कोशिश की, लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा : “विवाह की पवित्रता तब कहां रह जाती है जब पति अपनी पत्नी को किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने की सहमति दे सकता है? … हम कानून बनाने के लिए विधायिका की योग्यता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं लेकिन आईपीसी के अनुच्छेद 497 में “कलेक्टिव गुड” कहाँ है? ”

आखिर मामला क्या है

इटली में काम कर रही भारतीय नागरिक शाइन ने इस आधार पर एक याचिका दायर की कि अनुच्छेद 497 पुरुषों के खिलाफ भेदभाव करता है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. याचिका में लिखा गया है, “जब दोनों पक्षों की सहमति से यौन संभोग होता है, तो एक पक्ष को ज़िम्मेदारी से मुक्त करने का कोई मतलब नहीं बनता.”


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शाइन ने व्यभिचार की आरोपी महिलाओं को दी गयी प्रतिरक्षा पर सवाल उठाये थे. उनका प्रतिनिधित्व कर रहे वकील कालीश्वरम राज ने अपने मामले को साबित करने के लिए शीर्ष न्यायालय केविभिन्न फैसलों का इस्तेमाल किया. राज ने दलील दी कि डब्ल्यू कल्याणी बनाम राज्य में 2012 के अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया था कि अनुच्छेद 497 की लिंग पूर्वाग्रह को लेकर आलोचना जायज़ थी क्योंकि केवल पुरुषों को व्यभिचार के लिए दण्डित किये जाने का प्रावधान था और महिलाएं इससे सुरक्षित थीं.

केंद्र ने क्या कहा

केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि भारत में विवाह “एक्सक्लूसिव” सम्बन्ध नहीं होते और इसमें दोनों पक्षों के परिवारों और समाज की बड़ी भूमिका होती है, जिसके फलस्वरूप सरकार भी इस मुद्दे में शामिल है.

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि मौजूदा विवाद में जिस क़ानून को चुनौती दी जा रही है उसे विधायिका द्वारा भारत की संरचना और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए विवाह की पवित्रता की रक्षा के लिए बनाया गया था.

हालांकि अनुच्छेद 497 का उद्देश्य विवाह की पवित्रता की रक्षा करना है, इसपर संदेह प्रकट करते हुए, चंद्रचूड़ ने कहा था: “अगर कोई विवाहित व्यक्ति किसी अविवाहित महिला के साथ सम्बन्ध बनाता है तो क्या यह क़ानून उसपर लागू नहीं होता? आप एक महिला से निष्ठा की उम्मीद रखते हैं पर पुरुष से नहीं? ”

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