अजय भूषण पांडे का कहना है कि आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है क्योंकि यह बताता है कि बॉयोमीट्रिक आईडी सुशासन के मानकों को पूरा करती है और निगरानी के लिए नहीं है.
नई दिल्ली: यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई), जो आधार के लिए नोडल एजेंसी है, का मानना है कि बुधवार के सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल इसलिए ऐतिहासिक नहीं हैं क्योंकि यह आधार की संवैधानिकता को कायम रखता है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह कहता है कि बॉयोमीट्रिक आईडी “सुशासन और संवैधानिक विश्वास” के मानकों को पूरा करती है.
यूआईडीएआई के प्रमुख अजय भूषण पांडे ने एक विशेष साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया है . कोर्ट ने न केवल आधार की वैधता को बरकरार रखा है, बल्कि यह भी माना है कि आधार अधिनियम “सीमित सरकार, सुशासन और संवैधानिक भरोसे ” की अवधारणा को पूरा करता है.
शीर्ष अदालत ने बुधवार को आधार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान का उल्लंघन नहीं करता.
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यूआईडीएआई और सरकार दोनों को ही निजता के मुद्दे पर आलोचना झेलनी पड़ी है. कुछ वर्गों ने आधार के असुरक्षित होने का दावा किया है और आरोप लगाया है कि सरकार निगरानी के उद्देश्य से आधार डाटा का उपयोग करने की योजना बना रही है.
“अदालत ने माना है कि (आधार) अधिनियम निगरानी का ढांचा तैयार नहीं करता. यही नहीं, इस फैसले के अनुसार “आधार व्यक्तियों की गरिमा सुनिश्चित करता है और समाज के वंचित तबकों को शक्ति देता है.”
यूआईडीएआई के सूत्रों के मुताबिक, फैसले का जोर इन मुद्दों पर होने के फलस्वरूप आधार को लेकर आम जनता की अवधारणा बदलेगी.
यूपीए की पहल
हालाँकि आधार की संकल्पना कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा की गई थी लेकिन यह नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार है जिसने इसे एक निर्णायक गति दिया है और एक अधिनियम लायी है. सरकार आधार को अपनी सभी कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ वित्तीय पहलुओं से भी जोड़ रही है – जैसे पैन और आयकर रिटर्न.
आधार को इन योजनाओं से जोड़े जाने की कुछ वर्गों द्वारा कड़ी आलोचना की गयी है जिनका मानना है कि यह निजता पर हमला है और आगे चलकर खतरनाक साबित हो सकता है.
यूआईडीएआई के सीईओ ने आगे कहा, “एक अच्छी बात यह है कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार की अनिवार्यता को बरकरार रखा गया है …वे सारी योजनाएं जिनमें घोटाले और गड़बड़ियां होती थीं, अब सुचारु रूप से चलेंगी.”
पांडेय दावा करते हैं , “इसके अलावा कोर्ट ने पैन कार्ड और आयकर रिटर्न के साथ आधार को जोड़ने की प्रक्रिया को जारी रखा है . इससे कर चोरी, बेनामी लेनदेन इत्यादि की जांच में मदद मिलेगी, ”
निजी संस्थान आधार पर ज़ोर नहीं दे सकते
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने आधार को बरकरार रखा, फिर भी इस अधिनियम के कुछ हिस्सों को बदला गया है. उदहारण के तौर पर धारा 33(2 ) जो “राष्ट्रीय सुरक्षा” को मद्देनज़र इस ऑथेंटिकेशन डेटा को सरकार के साथ साझा करने की इजाज़त देती थी , या फिर धारा 33 (1) जिसके अनुसार ज़िला न्यायाधीश को किसी भी व्यक्ति का आधार डाटा उपलब्ध कराया जा सकता था.
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने अधिनियम की धारा 57 को भी निरस्त कर दिया जिसने निजी संस्थाओं और कॉर्पोरेट निकायों को आधार अनिवार्य बनाने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने कहा कि टेलीफोन सेवा प्रदाता और बैंक आधार पर ज़ोर नहीं दे सकते हैं.
निजी सेवाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने की भी लम्बे समय से आलोचना हो रही है , खासकर मोदी सरकार के खिलाफ जिसने इसे जमकर बढ़ावा दिया है.
पांडेय कहते हैं ,”मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सुरक्षा उपाय और प्रतिबंध लगाए हैं जो आधार को मज़बूत बनाने की राह में एक सशक्त कदम साबित होगा. अदालत ने अधिनियम की धारा 57 को निरस्त कर दिया है, जो गैर-कानूनी ढंग से निजी निगमों को अनुबंध के अनुसार आधार का इस्तेमाल करने की अनुमति देती थी.
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वे आगे कहते हैं ” अतः सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अर्थ है कि आधार के किसी भी तरह के अनिवार्य उपयोग को एक कानून द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए.”
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा इस फैसले को लेकर ज़ाहिर की गयी असहमति (उन्होंने इसे संविधान के साथ धोखा बताया है) के बारे में पूछे जाने पर पांडे ने कहा कि “बहुमत से लिया गया निर्णय ही मान्य होता है. ”
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