नई दिल्ली: भारत और अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात ने गुरुवार को रुके हुए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने , राजनयिक संबंधों को सक्रिय करने और अफगान छात्रों व मरीजों के लिए वीजा को फिर से शुरू करने जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की. तालिबान की अंतरिम सरकार के साथ यह नई दिल्ली की पहली राजनयिक स्तर की बातचीत है.
15 अगस्त 2021 को तालिबान के कब्जा करने के बाद पहली बार भारत ने विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान डिवीजन के संयुक्त सचिव प्रभारी जेपी सिंह के नेतृत्व में एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान भेजा है.
कुछ दिनों तक चलने वाली इस यात्रा के दौरान दौरान प्रतिनिधिमंडल के काबुल से आगे के स्थानों का भी दौरा किए जाने की उम्मीद है.
गुरुवार को सिंह ने तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मोत्ताकी से मुलाकात की.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, ‘हमारी टीम अंतरराष्ट्रीय संगठनों से मुलाकात करेगी और उन सभी जगहों का दौरा करेगी जहां भारत के कार्यक्रमों और परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है.(तालिबान के) वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात करेंगे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह संबंधों को लेकर चल रहे मुश्किल दौर में की जा रही यात्रा है’
बागची ने कहा, ‘निश्चित रूप से भारत के अफगान लोगों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं और ये संबंध अफगानिस्तान के प्रति हमारे दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करते रहेंगे.’
उन्होंने कहा, भारत तालिबान के साथ संपर्क बनाए हुए था. पिछले साल सत्ता में आने के बाद से काबुल की यह पहली अधिकारिक यात्रा है.
काबुल में भारत के दूतावास को फिर से खोलने पर बागची ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमें पिछले अगस्त के घटनाक्रम को ध्यान में रखना चाहिए. पिछले साल 15 अगस्त के बाद अफगानिस्तान में सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए भारत के सभी कर्मियों और अधिकारियों को वापस लाने का फैसला किया गया था. हालांकि, हमारे स्थानीय कर्मचारियों ने काम करना जारी रखा हुआ है और वहां भवनों के रखरखाव और छोटे-मोटे काम किए जा रहे हैं. हम मानवीय सहायता देने में भी सहयोग कर रहे हैं.’
भारत ने मानवीय सहायता के लिए अब तक अफगान लोगों के लिए 20,000 मीट्रिक टन (एमटी) गेहूं, 13 टन दवाएं, कोविड टीकों की 500,000 खुराक और सर्दियों के कपड़े भेजे हैं.
यह सहायता संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूनिसेफ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के जरिए वितरित की गई है. क्योंकि भारत के पास इस सहायता को वितरित करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने के लिए लोग नहीं हैं.
तालिबान और नई दिल्ली में चल रहे दूतावास को मान्यता देने के मुद्दे पर बागची ने कहा, ‘यहां एक अफगान दूतावास है जो काम कर रहा है. हां, वहां कुछ मुद्दे हैं जिन्हें हल किया जाना है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय खुद इसे देख रहा है.’
वह बताते हैं, ‘तालिबान को मान्यता देने वाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षाओं के संबंध में हम उनके साथ बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे.’
विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत अफगानिस्तान को अधिक चिकित्सा सहायता और खाद्यान्न भेजने की प्रक्रिया में है.
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तालिबान ने कहा, भारत अफगानिस्तान के साथ सकारात्मक संबंध चाहता है
तालिबान सरकार द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, अफगानिस्तान और भारत के बीच राजनयिक संबंधों, उनके द्विपक्षीय व्यापार और मानवीय सहायता को लेकर सिंह और मोत्ताकी के बीच बैठक के दौरान चर्चा की गई.
बयान में कहा गया है, ‘विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्रालय और सरकार के पहले प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और इसे दोनों देशों के बीच एक अच्छी शुरुआत बताया. उन्होंने हाल ही में मानवीय और स्वास्थ्य सहायता के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया.’
अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खी ने बताया कि मोत्ताकी ने अफगानिस्तान में भारत की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने, वहां उसकी राजनयिक उपस्थिति और अफगानों, विशेष रूप से छात्रों व मरीजों को कांसुलर सेवाएं देने के बारे में भी बातचीत की.
उन्होंने बताया, ‘भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा है कि वे पहले की तरह अफगानिस्तान के साथ सकारात्मक संबंध चाहते हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘भारत ने अफगान निर्यात को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों के बीच दो तरफा व्यापार को और सुविधाजनक बनाने का भी वादा किया है. दोनों पक्ष दोनों देशों के बीच बातचीत को आगे तक ले जाने पर भी सहमत हुए हैं.’
पिछले महीने दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, तालिबान के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा था कि भारत को पिछली अशरफ गनी सरकार के साथ संपर्क बनाए नहीं रखना चाहिए और भारतीय दूतावास को काबुल में अपना संचालन फिर से शुरू करना चाहिए.
भारत ने तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद अगस्त 2021 में काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था. इससे पहले भारत ने सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर मजार-ए-शरीफ, कंधार, हेरात और जलालाबाद में अपने वाणिज्य दूतावासों को भी बंद कर दिया था.
‘तालिबान से संपर्क जरूरी’
भारत दोहा, कतर में अपने राजनीतिक कार्यालय में स्थित तालिबान नेताओं के साथ संवाद करता रहा है. लेकिन यह पहली बार है जब उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए एक रास्ता खोला है.
काबुल में पूर्व भारतीय दूत जयंत प्रसाद ने दिप्रिंट को बताया, ‘ थोड़ा बहुत संपर्क बनाए रखना जरूरी है. हम उनसे बिल्कुल संपर्क न रखे, ऐसा नहीं कर सकते हैं. इस तरह की बैठक जरूरी है. इसका मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें मान्यता दे रहे हैं बल्कि हमें उन अफगान लोगों के साथ संबंध बनाए रखना चाहते हैं जो विभिन्न मानवीय जरूरतों के लिए हम पर निर्भर हैं.’
काबुल में भारतीय दूतावास को फिर से खोलने के मुद्दे पर प्रसाद ने कहा, ‘काबुल में दूतावास को खोलने को लेकर अभी संशय है.क्योंकि हम इस तथ्य को नहीं भूल सकते कि तालिबान के एक हिस्से ने हम पर कई बार हमला किया है.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम दूतावास को फिर से खोलते हैं तो हम कितने सुरक्षित होंगे? क्या काबुल में नेतृत्व की गारंटी पर्याप्त होगी? जब से उन्होंने कब्जा किया है तब से कई मस्जिदों पर बमबारी की गई है, कई लोग मारे गए हैं, इसलिए हमें इन सभी पहलुओं को देखने की जरूरत है.’
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