बसपा प्रमुख मायावती ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी से किया गठजोड़ , मध्य प्रदेश और राजस्थान में अकेले लड़ने का भरा दम.
नई दिल्ली: बसपा अध्यक्ष मायावती ने गुरुवार को अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के साथ गठबंधन की घोषणा की और प्रस्तावित महागठबंधन या संयुक्त विपक्षी गठबंधन की आशाओं को गंभीर झटका लगाकर मध्य प्रदेश और राजस्थान में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
इस वर्ष के अंत तक तीन राज्यों में चुनाव होने हैं.
बसपा द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “हमारा ऐतिहासिक गठबंधन गरीबों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, किसानों, युवाओं, महिलाओं और छत्तीसगढ़ के छोटे व्यापारियों के लिए एक सशक्त विकल्प पेश करेगा.”
इस समझौते के तहत, जेसीसी 55 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि बसपा 35 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. जोगी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे.
छत्तीसगढ़ की असेंबली में 90 सदस्य हैं.
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मायावती ने यह भी घोषणा की कि उनकी पार्टी छत्तीसगढ़ के अलावा, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
पार्टी ने एमपी विधानसभा चुनावों के लिए 22 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की.
बातचीत जारी थी
यह घोषणा उस समय हुई है जब कांग्रेस और बसपा के बीच सभी तीन राज्यों के लिए सीटों पर समझौता करने को लेकर वार्ता चल रही थी.
10 अगस्त को, बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल से मुलाकात की और दोनों पक्षों के बीच एक संभावित राष्ट्रीय गठबंधन पर चर्चा की. सूत्रों ने कहा कि बीएसपी ने यूपी के अलावा छह राज्यों में 39 लोकसभा सीटों की मांग की थी.
केवल तीन दिन पहले ही मायावती ने कहा था कि वह गठबंधन का हिस्सा तभी बनेंगी अगर उन्हें सम्मानजनक संख्या में सीटें मिले. कांग्रेस और बसपा, दोनों के सूत्रों से दिप्रिंट को पता चला है कि आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर दोनों दलों के बीच एक बड़े समझौते की चर्चा हो रही है.
मध्यप्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “अभी जब चर्चा चल ही रही है, ऐसे समय में उन्हें ऐसी घोषणा नहीं करनी चाहिए थी.”
हालाँकि बसपा ने स्वयं को कांग्रेस द्वारा बुलाये गए भारत बंद से अलग रखा था. मायावती ने ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों को ज़िम्मेदार ठहराया था.
गुस्से में मायावती
दिप्रिंट को सूत्रों से मालूम हुआ है कि दो घटनाओं ने मायावती को अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा करने के लिए मजबूर किया.
बसपा ने मध्यप्रदेश में कुल 230 में से 50 विधानसभा सीटों की मांग की है. कांग्रेस केवल 30 सीटें साझा करने को तैयार है और चर्चा अब भी जारी है.
सूत्रों ने खुलासा किया कि मायावती 50 सीटों की अपनी मांग पर कायम हैं. 2013 के विधानसभा चुनावों में बसपा और अपने बीच मतों के विभाजन के कारण कांग्रेस ने 34 सीटें गंवा दी थीं.
दूसरा कारण उनके अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित है. मायावती का मानना है कि चंद्रशेखर आज़ाद और उनकी भीम सेना को कांग्रेस द्वारा दिया जा रहा समर्थन बसपा वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश है.
आज़ाद के पिछले हफ्ते जेल से रिहा होने के बाद कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने उनसे मुलाकात की जिससे इस सम्भावना को और बल मिला कि कांग्रेस बसपा को अस्थिर करने के लिए भीम सेना को आगे बढ़ा रही है.
कांग्रेस नेता बसपा के साथ गठबंधन की संभावना पर टिप्पणी करने के इच्छुक नहीं हैं लेकिन फिर भी उन्हें उम्मीद है कि कुछ न कुछ हो ही जाएगा.
गुरुवार की घोषणा के बाद कांग्रेस भी इस बात को लेकर संशय की स्थिति में पड़ गयी है कि क्या बसपा उत्तर प्रदेश में अन्य सभी विपक्षी पार्टियों के साथ गठबंधन करेगी? मायावती पहले ही अप्रैल में हरियाणा में भारतीय राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन की घोषणा कर चुकी हैं.
एक चिंतित विपक्ष
ताज़ा घटनाओं ने विपक्षी एकता सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे विभिन्न पार्टियों के नेताओं को चिंता में डाल दिया है.
विपक्षी एकता के मज़बूत समर्थक भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने कहा, “जो कुछ भी हुआ है वह विपक्षी एकता के लिए अच्छा नहीं है.” “यदि यह राज्य स्तर पर काम नहीं कर पा रहा है तो इसके राष्ट्रीय स्तर पर काम कर पाने की सम्भावना कम है. ”
बिहार में कांग्रेस के सहयोगी और राष्ट्रीय जनता दल नेता मनोज झा ने कहा: “राजद बसपा, कांग्रेस और अन्य सभी विपक्षी दलों के साथ आकर चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत करती. हालांकि, राज्य चुनावों को आम चुनावों से जोड़ा नहीं जाना चाहिए और भाजपा के खिलाफ़ महागठबंधन बनाने के सभी प्रयास किए जाने चाहिए.”
एक वरिष्ठ तृणमूल कांग्रेस नेता ने भी मायावती द्वारा उठाए गए कदम पर निराशा व्यक्त की.
उक्त नेता ने कहा, ” सभी पार्टियां भाजपा को हराने के लिए समझौता करने को इच्छुक हैं लेकिन बसपा ही सीटों की सम्मानजनक संख्या मांग रही है. सभी को सम्मानजनक सीटों की ज़रूरत है लेकिन भाजपा को हराना हमारी प्राथमिकता है. वे सोचती हैं कि चुनाव के बाद अपनी अहमियत बढ़ाने के लिए उन्हें किसी अन्य क्षेत्रीय पार्टी की तुलना में अधिक सांसदों की ज़रूरत है लेकिन आपको इसके लिए चुनाव जीतने की ज़रूरत है. ”
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दलित कार्यकर्ता और गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी ने भी इस कदम को विपक्ष के लिए झटका बताया.
“हर किसी को भाजपा को हराने के लिए अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर एकजुट होना चाहिए. अगर कांग्रेस और बसपा एक साथ आ जाते तो भाजपा को खत्म करना मुश्किल नहीं होता लेकिन दुख की बात है, अब इससे भाजपा को मदद मिलेगी.”
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