नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण को पक्षकारों के बीच अनुबंध पर दोबारा काम करने और अनुबंध को दोबारा लिखने की अनुमति नहीं है।
अदालत ने कहा कि केवल इस नाते कि एक पक्ष के लिए अनुबंध के अनुरूप काम करना वाणिज्यिक रूप से बहुत कठिन है, मध्यस्थ न्यायाधिकरण अनुबंध को दोबारा नहीं लिख सकता।
न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने जिंदल रेल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (जेआरआईएल) के साथ विवाद के संबंध में रेल मंत्रालय के खिलाफ जारी एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण वाणिज्यिक विवेक की पड़ताल नहीं कर सकता है।
अदालत ने कहा कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण इस आधार पर अनुबंध को फिर से नहीं लिख सकता कि एक पक्ष को अपने दायित्वों को पूरा करने में व्यावसायिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
अदालत ने कहा कि यदि कोई एक पक्षकार पाता है कि अनुबंध उसके लिए वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य नहीं रह गया है, तो भी वाणिज्यिक अनुबंध का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
उच्च न्यायालय ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश को यह कहते हुए दरकिनार कर दिया कि उसने पक्षकारों के बीच दोबारा सौदेबाजी पर काम करते हुए अनुबंध को दोबारा लिखा, जिसकी अनुमति नहीं है। अदालत ने यह फैसला गत 23 मई को सुनाया।
जेआरआईएल ने वैगन की आपूर्ति और मूल्य निर्धारण के संबंध में अपने दावों का न्यायोचित ठहराने के लिए मध्यस्थता अनुबंध को लागू किया था। मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश में इसे 18 करोड़ रुपये से अधिक देने के लिए कहा गया।
लेकिन उच्च न्यायालय ने रेल मंत्रालय की याचिका को स्वीकार कर लिया जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक जैन ने किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण का यह निर्णय असंगत है कि निविदाकारों द्वारा उद्धृत मूल्य और जेआरआईएल द्वारा उद्धृत मूल्य के बीच अंतर के बराबर राशि दी जाये।
अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि यह जरूरी नहीं है कि हर अनुबंध से फायदा ही हो, कुछ अनुबंध से नुकसान भी हो सकता है।
भाषा संतोष सुभाष
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