(अपर्णा बोस)
नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) तेजाब हमले की पीड़िताएं मुख्यधारा की दुनिया में लगातार प्रगति कर रही हैं और इसी के तहत अब एक तीसरा कैफे खोल रही हैं और इन्होंने इसका नाम ‘शीरोज’ रखा है।
‘शीरो’ का अर्थ एक ऐसी महिला है जिसे नायिका माना जाता है।
किचन से लेकर बिक्री काउंटर तक पूरी तरह से शीरोज का प्रबंधन तेजाब हमले की पीड़िताओं द्वारा किया जाता है और इसका उद्देश्य तेजाब हमले और इसी तरह के अपराधों के बारे में जागरूकता फैलाना है।
नोएडा के सेक्टर 21 स्थित इंटरनेशनल स्टेडियम परिसर में नवीनतम कैफे बनाया गया है, जिसमें नोएडा प्राधिकरण ने सहयोग किया है।
तेजाब हमले की मुजफ्फरनगर की एक पीड़िता और कैफे के प्रबंधकों में शामिल रूपा ने कहा कि 2014 के बाद, जब लक्ष्मी नगर में इस तरह का पहला कैफे खोला गया, तो कई और पीड़िताओं ने अपने दर्द का बोझ हल्का करने का फैसला किया और वे आगे आईं।
रूपा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘इस तरह की सभी पीड़िताओं के लिए एक मंच बनाने का विचार था, क्योंकि उनमें से ज्यादातर पीड़िता अधिक शिक्षित नहीं हैं। ऐसी घटनाओं के बाद ज्यादातर लोग अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं।’
उन्होंने कहा कि 2008 में उनकी सौतेली मां द्वारा हमला किए जाने के बाद उनका अपना जीवन थम सा गया।
रूपा ने कहा, ‘हमले के बाद, मेरे पिता ने मुझे अस्वीकार कर दिया। मैं और मेरा भाई फरीदाबाद में अपने चाचा और चाची के साथ पले-बढ़े थे। उन्होंने हमारा बहुत समर्थन किया। वे हमारे लिए माता-पिता की तरह रहे हैं।’
बिजनौर की 24 वर्षीय अंशु राजपूत ने भी उम्मीद नहीं खोई, क्योंकि 2015 में तेजाब हमले का शिकार होने के बाद उन्हें लोगों की उदासीनता का सामना करना पड़ा था।
अंशु ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘तेजाब हमले की पीड़िताओं को एक अलग स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लोगों का सामना करना मुश्किल हो जाता है। वे हम पर टिप्पणी करते हैं, हमारे बारे में निर्णय करते हैं, लेकिन हमें नौकरी नहीं देते।’
उन्होंने कहा कि एक 55 वर्षीय व्यक्ति ने उन पर तेजाब से हमला किया था, जिसने उनसे प्यार हो जाने का दावा किया था। उन्होंने कहा कि उस व्यक्ति को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल भेज दिया गया।
अंशु ने कहा कि कैफे की पहल से उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ा है।
उन्होंने कहा, ‘पहले, मैं हमेशा यह सुनिश्चित करती थी कि अपने घर से बाहर निकलते समय अपना चेहरा ढंक लूं। तेजाब हमले की अन्य पीड़िताओं के साथ जुड़ने के बाद अब यह सोच बदल गयी है। मुझे अब किसी को अपना चेहरा दिखाने में शर्म नहीं आती है।’
पहला ‘शीरोज’ कैफे 10 दिसंबर 2014 को आगरा में खोला गया था और इसका प्रबंधन तेजाब हमले की पांच पीड़िताओं द्वारा किया गया था। दूसरा कैफे लखनऊ में है।
एक अन्य पीड़िता और ‘शीरोज’ कैफे की सहयोगी नगमा सूफिया ने कहा, ‘कैफे के साथ, हम एक संदेश देना चाहते हैं कि हम किसी और की तरह ही कुशल हैं।’
भाषा सुरेश सुभाष
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