विपक्ष को क्यों ज़िम्मेवार ठहराया जाये अगर उसका कार्य करने का मन न करे?
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता नई दिल्ली में तीन दिवसीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम का “बहिष्कार” कर रहे है.
आरएसएस के कार्यक्रम ‘भविष्य का भारत:राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृष्टिकोण’ में शामिल होने से इंकार करने पर कई टीवी चैनलों के साथ-साथ राइट विंग के लोग उनकी आलोचना कर रहे है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मौके को हाथ से गवा दिया.
लेकिन क्या राहुल को भी आरएसएस ने आमंत्रित किया था? और, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आरएसएस को राहुल, या सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और अन्य लोगों को स्पष्ट रूप से राजनीतिक कार्यक्रम में भाग लेने की उम्मीद क्यों करनी चाहिए?
आरएसएस का कार्यक्रम उतना ही राजनीतिक है जितना सोमवार को भोपाल में राहुल गाँधी का रोड शो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रैलियां और भाषण.
घटना का समय भी काफ़ी महत्वपूर्ण है – तीनों हिन्दीभाषी राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकारें तीन महीने से भी कम समय में चुनाव लड़ने जा रही हैं, और अगले लोकसभा चुनाव होने वाले है.
यह भी पढ़ें : RSS’ vision of Hindutva is not meant to oppose anyone, says chief Mohan Bhagwat
यदि विपक्ष इस कार्यक्रम को आरएसएस के लिए अवसर देखता है और संभवतः खुद और बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण चुनावों से पहले एक नया एजेंडा निर्धारित करने का मौका मानता है, तो क्या इसके लिए इसे ही दोषी ठहराया जा सकता है?
आज का आरएसएस सामाजिक संगठन होने के अपने दावों के बावजूद, भाजपा को यथासंभव लंबे समय तक सत्ता में बनाए रखने में मदद करने का स्पष्ट एजेंडा लिए है, ताकि “अखण्ड भारत” का उसका अपना एजेंडा भी किसी तरह से पूरा हो सके.
विपक्ष को क्यों ज़िम्मेवार ठहराया जाये अगर उसका कार्य करने का मन न करे?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जिन्हें संगठन को एक स्मार्ट और यूनिट को चुस्त दुरुस्त करने के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए. सोमवार को कहा गया कि हिंदुत्व का संगठन किसी का विरोध करने के लिए नहीं है और उनकी भूमिका समाज निर्माण तक ही सीमित थी.
आरएसएस के लिए दुर्भाग्यवश विपक्षी पार्टियों को उनका तर्क हज़म नहीं हो रहा. जब भागवत ने “स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने ” और “भारत को कई महान व्यक्तित्व” देने के लिए कांग्रेस की प्रशंसा की, तो वह मोदी-शाह की सोच के विरुद्घ नहीं जा रहे थे।
अगर वह ऐसा करना चाहते थे, तो उन्हें “महान व्यक्तित्वों” के नाम ले लेना चाहिए था. जिनकी अक्सर भाजपा नेताओं द्वारा आलोचना की जाती है. या, उनको बीजेपी के बड़बोले नेताओ को सबसे पहले चुप रहने को बोलना चाहिए.
यह भी पढ़ें : Should opposition skip RSS meet or try to understand Mohan Bhagwat’s vision for India?
वह जो कर रहे थे वह स्मार्ट राजनीति थी: चित भी मेरी, पट भी मेरी. कांग्रेस की प्रशंसा कर आरएसएस प्रमुख नैतिक आधार पर जीत रहे है. वह संभवतः सुझाव दे रहे थे कि देखो हमने कांग्रेस को आमंत्रित किया लेकिन उन्होंने इसका बहिष्कार किया, लेकिन हम अभी भी बड़े दिल वाले है और उनकी प्रशंसा कर सकते हैं. कोई भी प्रतिशोध के साथ आरएसएस और बीजेपी के द्वारा विक्टिम कार्ड खेलने के लिए भरोसा कर सकता है.
यदि समाप्त होने से दो दिन पहले भी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस कार्यक्रम में भाग लेते है तो स्पष्ट तरीके से कांग्रेस और अन्य विपक्षी नेता आरएसएस पर हमला करेंगे और महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस जैसी विचारधारा को ज़िम्मेदार ठहराना.
विपक्ष जानता है कि 2019 की लड़ाई जितनी भाजपा के ख़िलाफ़ है उतनी ही आरएसएस के भी. जबकि बीजेपी कार्यकर्ताओं की संख्या चुनाव के चलते अस्पष्ट बनी हुई है, जैसाकि मेरे सहयोगी डी.के.सिंह द्वारा इस रिपोर्ट में पता चलता है. कोई भी आरएसएस स्वयंसेवक पर भरोसा कर सकता है और अंतर को कम करके विपक्ष को हरा सकता है.
विपक्षी चुनौती के बारे में अच्छी तरह से जनता है और आरएसएस के कार्यक्रम में भाग न लेके सही फैसला किया है.
यह भी पढ़ें : Rahul Gandhi is right: India’s RSS is a lot like the Muslim Brotherhood
Read in English : Rahul Gandhi has finally taken the right decision by staying away from RSS event