नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रजनन विकल्प के रूप में सरोगेसी के लाभ से ‘सिंगल’ पुरुष और एक बच्चे की विवाहित मां को वंचित रखने के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को केंद्र सरकार का रुख जानना चाहा।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘सिंगल’ अविवाहित पुरुष करण बलराज मेहता और डॉ. पंखुरी चंद्रा की याचिका पर नोटिस जारी किये। डॉ. चंद्रा विवाहित हैं और एक बच्चे की मां हैं।
अदालत ने केंद्र सरकार को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया और इसे आगे की सुनवाई के लिए 29 नवंबर को सूचीबद्ध किया।
अदालत ने कहा, ‘‘इस पर विचार करने की आवश्यकता है।’’ याचिका में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम और सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गयी है।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि वे प्रजनन विकल्प के रूप में सरोगेसी का लाभ उठाने से वंचित हैं, जो भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता संख्या 1(सिंगल पुरुष) संबंधित प्रावधानों के कारण किसी भी लाभ से वंचित हैं, वहीं याचिकाकर्ता संख्या 2 (विवाहित महिला एवं एक बच्चे की मां) प्रजनन विकल्प के तौर पर सरोगेसी का लाभ नहीं उठा सकती है।’’
वकील आदित्य समाद्दर के जरिये दायर याचिका में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धाराओं – 2(ई), 14(2), 21, 27(3) और 31(1) तथा सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 की धाराओं – 2(एच), 2(एस), 2(आर), 2(जेडडी), 2(जेडजी), 4(2)(ए), 4(2)(बी) और 4(3), 4(2)(सी), 8 और 38(1)(ए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वाणिज्यिक सरोगेसी ही अब उनके पास एक मात्र विकल्प है, लेकिन ‘‘वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध ने उनका यह भी विकल्प छीन लिया है।’’
भाषा
सुरेश मनीषा
मनीषा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.