नई दिल्ली: दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू और दूसरे भारतीय शहरों में ट्रैफिक को देखकर आपको ऐसा लगेगा कि भारत की सड़कों पर गाड़ियों की बाढ़ सी आ गई है. लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 से पता चलता है कि केवल 8 प्रतिशत भारतीय परिवारों यानी कि 12 में से 1 परिवार के पास ही अपनी कारें हैं.
भारत की एक बहुत बड़ी आबादी के पास अभी भी दुपहिया वाहन हैं. सर्वे के अनुसार 55 प्रतिशत भारतीय परिवारों के पास साइकिलें हैं जबकि स्कूटर तथा मोटर साइकिल रखने वाले 54 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर हैं.
6,64,972 परिवारों या घरों में कराए गए एनएफएचएस-5 के निष्कर्ष इसी महीने जारी किए गए. ये सर्वेक्षण स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कराया गया था.
देश के करीब 3.7 प्रतिशत परिवार पशु-चालित गाड़ियां चलाते पाए गए जबकि करीब 20 प्रतिशत के पास यातायात का कोई साधन नहीं था.
एनएफएचएस-5 में कारें रखने वाले घरों की संख्या में भी एक क्षेत्रीय असमानता देखने में आई.
हालांकि कम आय को अक्सर कार न होने से जोड़कर देखा जाता है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कार रखने को समृद्धि के संकेत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि सड़क इनफ्रास्ट्रक्चर के अंदर साइकिल चालकों की जरूरतों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए, जो उत्सर्जन घटाकर पर्यावरण में सहायता करते हैं.
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1998-99 में 1.6% से लेकर आज 8% भारतीय परिवारों के पास हैं गाड़ियां
1990 के दशक से पहले कार रखना एक अत्यंत कठिन काम था. कर्ज़ कम मिलते थे और ऑटोमोबाइल ब्रांड भी सीमित थे.
1990 के दशक में लाए गए आर्थिक सुधारों के चलते कार हासिल करने की तुलनात्मक आसानी के बावजूद देश के भीतर कार रखने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी धीमी ही रही है.
1992-93 में किए गए पहले एनएफएचएस में पता चला कि मुश्किल से 1 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कारें थीं. इस बीच मोटर साइकिलें तथा स्कूटर रखने वाले परिवारों की संख्या 8 प्रतिशत थी, जबकि सर्वे किए गए 42 प्रतिशत परिवारों के पास साइकिलें थीं.
1998-99 तक, जब दूसरे चरण का एनएफएचएस कराया गया, तो करीब 1.6 प्रतिशत परिवारों के पास गाड़ियां थीं. लगभग 47.8 प्रतिशत परिवारों के पास साइकिलें थीं.
2005-06 तक, साइकिलें रखने वालों की संख्या बढ़कर 56.5 प्रतिशत हो गई और कार मालिक 2.8 प्रतिशत हो गए. उसके बाद से साइकिल रखने वाले परिवारों की संख्या करीब 55 प्रतिशत बनी हुई है लेकिन कार रखने वाले परिवारों की संख्या उछलकर 8 प्रतिशत हो गई है.
कार रखने वाले परिवारों की संख्या शहरों में ज़्यादा है- शहरी भारत में सर्वे किए (एनएफएचएस-5 के लिए) करीब 14 प्रतिशत परिवारों के पास कारें हैं, जबकि ग्रामीण भारत में ये आंकड़ा 4 प्रतिशत है.
भारत में कार रखने वालों की संख्या बहुत से विकसित देशों के मुकाबले कम है, इसे नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने भी स्वीकारा है. 2018 में कांत ने कहा कि भारत में हर एक हज़ार की आबादी पर 22 लोगों के पास कारें हैं, जबकि जापान, कनाडा और यूके में ये संख्या 500 से ऊपर है.
भारतीय लोगों की कम प्रति व्यक्ति आय को इसका एक कारण बताया गया है.
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार एक भारतीय की औसत सालाना आय 2,000 डॉलर से कम है, जबकि कार की सबसे कम कीमत– मसलन मारुति ऑल्टो जैसी हैचबैक की- करीब 5,000-6,000 डॉलर है.
फिर आते हैं रख-रखाव और ईंधन के दाम- जो किसी दुपहिया के मुकाबले चार पहिया वाहन में ज्यादा होते हैं.
एनएफएचएस आंकड़ों के अनुसार, 1998-99 में करीब 11 प्रतिशत भारतीय परिवारों के पास मोटर साइकिल या स्कूटर था, जो 2005-06 तक बढ़कर 19 प्रतिशत और 2015-16 तक आते-आते 40.6 प्रतिशत पहुंच गया.
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क्षेत्रीय असमानता
एनएफएचएस-5 आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि भारत में कार स्वामित्व के मामले में भारी क्षेत्रीय असमानता देखने को मिलती है
गोवा और केरल में कार रखने वाले परिवारों का प्रतिशत सबसे अधिक है. गोवा में तकरीबन हर दो में से एक परिवार (46 प्रतिशत) के पास गाड़ियां हैं, जबकि केरल में ये संख्या चार में एक (या 26 प्रतिशत) है.
पर्वतीय राज्यों तथा केंद्र-शासित क्षेत्रों में भी कार रखने वाले परिवारों की संख्या ज्यादा है. इन स्थानों पर कार स्वामित्व में ग्रामीण-शहरी अंतराल भी सबसे अधिक है.
जहां जम्मू और कश्मीर में हर चार में से एक परिवार (24 प्रतिशत) के पास कार है, वहीं हिमाचल प्रदेश में 23.5 प्रतिशत परिवारों के पास गाड़ियां हैं.
पंजाब में करीब 23 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कार है. नागालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और दिल्ली उन राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में हैं, जहां पांच में से कम से कम एक परिवार 20 प्रतिशत से अधिक- के पास अपनी कार है.
बिहार, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कार रखने वाले परिवारों की संख्या कम है. बिहार में केवल 2 प्रतिशत परिवारों के पास गाड़ियां हैं, जबकि आंध्र प्रदेश में ये संख्या 2.7 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 2.8 प्रतिशत है.
पश्चिम बंगाल में साइकिल रखने वाले परिवारों की संख्या सबसे अधिक 83 प्रतिशत है, जबकि बिहार में ये 69 प्रतिशत है.
आंध्र प्रदेश में साइकिलें रखने वाले परिवारों की संख्या कम (करीब 34 प्रतिशत) है लेकिन यहां पर 52 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास एक स्कूटर या मोटर साइकिल है.
दि इनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (टेरी) की ‘भारत में साइकिल चलाने के फायदे’ नाम से की गई एक स्टडी के अनुसार, 2015-16 तक शहरी इलाकों में करीब 23 प्रतिशत कामकाजी भारतीय अपनी रोज़मर्रा की यात्रा पैदल करते हैं और 13 प्रतिशत लोग साइकिलों पर निर्भर हैं. इसका मतलब है कि उस समय शहरी इलाकों में करीब 36 प्रतिशत कामकाजी आबादी, आने-जाने के लिए गैर-मोटर चालित सिस्टम का इस्तेमाल करती थी.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि केवल 4 प्रतिशत भारतीय काम पर जाने के लिए कारों का इस्तेमाल करते थे, जबकि 17 प्रतिशत मोटर-चालित दुपहिया वाहन और 11 प्रतिशत सार्वजनिक परिवहन (बसों) के सहारे थे.
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साइकिल चालकों के साथ उचित न्याय
हालांकि शहरी भारत में केवल 14 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कारें हैं लेकिन यहां के शहर अपनी बेहद खराब ट्रैफिक स्थिति के लिए अक्सर खबरों में रहते हैं.
चार भारतीय शहर 2020 में टॉम टॉम ट्रैफिक इंडेक्स की दुनिया के 21 सबसे घने शहरों की सूची में शामिल थे. ये इंडेक्स 58 देशों के 404 शहरों के आकलन पर आधारित है.
टेरी में ट्रांसपोर्ट व अर्बन गवर्नेंस के एरिया कनवीनर शरीफ कमर के अनुसार, भारत की सड़क विस्तार नीति का कार मालिकों के प्रति झुकाव रहा है और देश को साइकिल चालकों को उचित सम्मान देने की ज़रूरत है, जो उनके अनुसार सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की सहायता में सबसे आगे रहेंगे.
2015 में जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते में भारत ने संकल्प लिया था कि अन्य लक्ष्यों के अलावा उत्सर्जन में 32-35 प्रतिशत की कमी लाकर उसे 2005 के स्तरों से नीचे लाया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘सड़कों के विस्तार, फ्लाईओवर निर्माण और ज्यादा से ज्यादा लेन्स तथा अंडरपास बनाने का काम मुख्य रूप से कार मालिकों के लिए किया जाता है, जो किसी भी शहर के आवास की एक बड़ी संख्या नहीं होते. इसकी वजह से परिवहन पर खर्च किए जाने वाले खर्च का झुकाव मोटर चालकों की ओर ज़्यादा होता है. मैं समझता हूं कि अब समय आ गया है कि भारत खामोश बहुमत- साइकिल चालकों और पैदल यात्रियों की जरूरतों को भी देखना शुरू करे, जो हमें बहुत तरह से फायदा पहुंचाते हैं’.
उन्होंने आगे कहा कि कार रखने को खुशहाली का संकेत मानने की बजाय, भारत को साइकिल चालकों तथा पैदल यात्रियों के लिए इनफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर धन खर्च करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, ‘कार रखने वाले 8 प्रतिशत लोगों से ज्यादा हमें 55 प्रतिशत साइकिल चालकों को देखना चाहिए, उनके लिए समर्पित लेन्स उपलब्ध करानी चाहिए, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ट्रैफिक नियम लागू करने चाहिए, और लोगों को साइकिल रखने के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए- इस सबका मतलब है कि उन्हें नीची निगाह से न देखें,और जागरूकता बढ़ाएं’.
उन्होंने कहा कि साइकिल ‘स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है और पर्यावरण के लिए भी अच्छी है’.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम कुछ मोटर चालकों को साइकिलों (के इस्तेमाल) या सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल पर ले आते हैं, तो हम भीड़-भाड़ और पार्किंग की समस्या को काफी हद तक सुलझाने में कामयाब हो सकते हैं. हमारे शहरों में जो बहुत कुशलता से डिज़ान नहीं किए गए हैं, ज्यादा से ज्यादा गाड़ियां लाना आगे चलकर एक टिकाऊ नीति साबित नहीं होगी’.
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