कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस से बाहर निकलने के करीबन तीन साल बाद बैरकपुर के सांसद अर्जुन सिंह ने रविवार को अपनी ‘घर वापसी’ करते हुए और भाजपा की संगठनात्मक विफलताओं के ऊपर आरोप लगाते हुए यह पार्टी छोड़ दी और वापस तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में लौट आए.
सिंह, जो 2019 के आम चुनावो से ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे, कोलकाता स्थित टीएमसी मुख्यालय में अपनी पुरानी पार्टी शामिल हो गए और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे और पार्टी के दूसरे नंबर के नेता पार्टी अभिषेक बनर्जी के हाथों से पार्टी का झंडा वापस थाम लिया.
भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के टीएमसी में शामिल होने के लिए भाजपा छोड़ने के आठ महीने बाद सिंह की ‘घर वापसी’ हुई है. हालांकि, सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आसनसोल के तत्कालीन सांसद सुप्रियो, जिन्होंने टीएमसी में शामिल होने के बाद अपनी सीट खाली कर दी थी, इनके विपरीत वह अपनी लोकसभा सीट बरकरार रखेंगे.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, सिंह ने बताया कि उनके बेटे और भाजपा विधायक पवन सिंह भी जल्द ही तृणमूल कांग्रेस में शामिल होंगें
सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा ,’भाजपा आंतरिक रूप से बहुत कमजोर हो गई है… अगर आप इसकी तुलना ममता के संगठनात्मक कौशल से करें, तो भाजपा जमीन पर कहीं नहीं टिकती. वे आपस में ही लड़ने में लगे हैं. कुछ तो पार्टी के सेंट्रल फंड (केंद्रीय स्तर से मिले पैसे) की चोरी करने में भी लगे हैं.’
उन्होंने बताया कि टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी 30 मई को उनके साथ और पार्टी के अन्य नेताओं के साथ एक सार्वजनिक सभा की सम्बोधित करने के लिए बैरकपुर जा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल भाजपा के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक माने जाने वाले सिंह उन नेताओं की बढ़ती हुई कतार में नवीनतम चेहरा हैं, जिन्होंने 2021 के विधानसभा चुनावों – जिसके बाद ममता बनर्जी सत्ता में वापस लौट आई थीं – में हुई हार के बाद से पार्टी छोड़ दी है, भाजपा की बंगाल इकाई तभी से अस्त-व्यस्त पड़ी है.
‘पश्चिम बंगाल में कमजोर पड़ गई है भाजपा‘
एक साल से भी कम समय में, बंगाल में भाजपा ने कई हाई-प्रोफाइल नेताओं की पार्टी से निकलते देखा है और अब अर्जुन सिंह भी पूर्व सांसद बाबुल सुप्रियो और विधायक मुकुल रॉय और तन्मय घोष की तरह इस कतार में शामिल हो गए हैं.
भाजपा के एक पूर्व नेता, जो अब तृणमूल में हैं, ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि भाजपा के संगठनात्मक ढांचे को काफी नुकसान पहुंचा है.
इस नेता ने कहा, ‘भाजपा के वे पुराने नेता – जैसे सायंतन बसु, प्रताप बनर्जी और जॉय प्रकाश मजूमदार- जो बंगाल में पार्टी के विकास के लिए जिम्मेदार थे, को विधानसभा चुनाव के बाद दरकिनार कर दिया गया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अनुभवी राजनेताओं को अहम फैसले लेने के लिए पार्टी का प्रभार दिया गया था. उन्होंने मंडल, बूथ और जिला स्तरीय नेतृत्व को बर्बाद कर दिया. उन नेताओं की ओर देखने वाले भाजपा के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं ने खुद को परित्यक्त और हारा हुआ महसूस किया.’
हालांकि, उत्तर 24 परगना के एक टीएमसी विधायक, जो अर्जुन सिंह के टीएमसी में लौटने से कुछ ही लम्हों पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के साथ हुई बंद कमरे वाली बैठक का हिस्सा थे, ने सिंह के खिलाफ चल रहे अपराधिक मामलों को उनके इस ‘पाला-बदल’ के पीछे का असल कारण बताया.
इस नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘आलाकमान का फैसला अंतिम है और हम उसका पालन करते हैं. उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले हैं. उन्होंने सोचा कि उनके लिए यही सही मौका है.’
वहीँ, स्वयं अर्जुन सिंह ने रविवार को दिप्रिंट को बताया कि 2019 के बाद से उन पर 165 आपराधिक मामले दर्ज किये गए हैं. साल 2021 में, पश्चिम बंगाल पुलिस ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी, जो उसे समय से सम्बंधित है जब वे भाटपारा नैहाटी सहकारी बैंक के अध्यक्ष थे.
हालांकि, टीएमसी में बहुत सारे लोग उनकी वापसी से खुश हैं. सांसद काकोली घोष दस्तीदार ने कहा, ‘जब उन्होंने टीएमसी छोड़ी तो वह उत्तर 24 परगना में एक प्रभावी नेता थे.’ वे कहती हैं, ‘उन्हें भाजपा में शामिल होकर अपनी गलती का एहसास हुआ और इसलिए उन्होंने वापस लौटने का फैसला किया है.’
इस बीच, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि टीएमसी छोड़ने वाले नेता इस वजह से वापस लौट रहे हैं क्योंकि उन्होंने पहले इस बात का गलत अनुमान लगाया था कि ममता की पार्टी को हराना कितना मुश्किल होगा.
कोलकाता के बंगबासी कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंद्योपाध्याय अर्जुन सिंह और अन्य नेताओं के इस दलबदल को विशुद्ध रूप से चुनावी लाभ की इच्छा से प्रेरित मानते हैं.
बंद्योपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया, ‘अर्जुन सिंह 2024 में फिर से चुने जाना चाहते हैं, और वह जानते हैं कि यह तभी संभव हो सकता है जब वह टीएमसी में शामिल हों.’ वे कहते हैं, ‘भाजपा कई सारे कारणों से इस राज्य में कमजोर हुई है और अब इसके लिए टीएमसी को हराना मुश्किल है. इसी वजह से हम मौजूदा विधायकों और सांसदों को पाला बदलते देख रहे हैं.’
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2019 में काफी अच्छा प्रदर्शन, लेकिन 2021 के चुनावों के बाद से लगातार पलायन
पश्चिम बंगाल भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद अपने चरम पर थी, जब पार्टी ने राज्य की 42 में से 18 लोकसभा की सीटें जीतने के साथ ही कुल 40 प्रतिशत का वोट शेयर (मत प्रतिशत) प्राप्त किया था.
इसी प्रदर्शन से उत्साहित होकर, भाजपा नए जोश के साथ 2021 के राज्य चुनावों में उतरी. हालांकि, भाजपा के तमाम बुलंद इरादों के बावजूद, वह टीएमसी को हरा नहीं सकी, और इसने 47.9 प्रतिशत वोट शेयर के साथ राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 213 पर जीत हासिल की.
इस बीच, भाजपा – एक ऐसी पार्टी जो इसके पूर्ववर्ती संस्करण भारतीय जनसंघ के संस्थापाक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के इस राज्य से संबंधित होने के बावजूद कभी भी पश्चिम बंगाल में एक महतवपूर्ण ताकत नहीं रही थी – ने 38.1 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतीं. इस चुनाव ने भाजपा को राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बना दिया.
लेकिन उन 77 सीटों को बनाये रखना पार्टी के लिए नामुमकिन हो रहा है. चुनाव हारने के बाद से भाजपा ने कई विधायकों का दलबदल देखा है – यह सिलसिला जून 2021 में कृष्णानगर उत्तर के विधायक मुकुल रॉय, एक पुराने तृणमूल कार्यकर्त्ता जो 2017 में भाजपा में शामिल हो गए थे, और उनके पूर्व विधायक पुत्र शुभ्रांशु रॉय के दलबदल के साथ शुरू हुआ.
इसके बाद से, विधायक तन्मय घोष (अगस्त 2021), बिस्वजीत दास, सौमेन रॉय (सितंबर 2021), कृष्णा कल्याणी (अक्टूबर 2021) और पूर्व मंत्री राजीव बनर्जी (अक्टूबर 2021) ने भी यही राह अपनाई . टीएमसी के लिए एक और महत्वपूर्ण जुड़ाव पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के रूप में हुआ, जिन्होंने पिछले साल सितंबर में पार्टी में शामिल होने के लिए भाजपा छोड़ दी थी.
इन सारे दलबदल के अलावा, दो भाजपा विधायकों, जगन्नाथ सरकार और निसिथ प्रमाणिक ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया ताकि वे अपनी-अपनी संसदीय सीटों को बरकरार रख सकें.
इन्हीं सब वजहों से पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा की सदस्य संख्या 77 से गिरकर 70 रह गई है.
केवल दो ही हफ्ते पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जो आधिकारिक काम से पश्चिम बंगाल गए थे, ने पार्टी की समस्याओं को हल करने में सहायता करने के उद्देश्य से भाजपा के राज्य स्तरीय नेताओं से मुलाकात की थी. ध्यान देने की बात है कि अर्जुन सिंह भी इस बैठक में शामिल हुए थे. .
साल 2020 में भाजपा उपाध्यक्ष पद से हटाए गए चंद्र कुमार बोस ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी राज्य को समझती ही नहीं है.
बोस, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस के चचेरे पोते हैं, ने कहा, ‘भाजपा न तो बंगाल में लोगों की नब्ज महसूस कर सकती है और न ही उस इतिहास, विरासत अथवा संस्कृति को समझ सकती है जो राज्य के लोगों को आपस में बांधती है. राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के अलावा पार्टी के पास बंगाल के लोगों को देने के लिए कुछ भी नहीं है.’
दिलीप घोष को भी उनका कार्यकाल समाप्त होने के डेढ़ साल पहले ही बंगाल भाजपा अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था, और पहली बार बालुरघाट के सांसद बने सुकांत मजूमदार ने पिछले साल सितंबर में यह पदभार संभाला था.
एक पूर्व भाजपा नेता, जो अब टीएमसी में हैं, ने कहा, ‘इस बदलाव ने संगठन को कमजोर बना दिया.’
टीएमसी नेता जॉय प्रकाश मजूमदार, जिन्होंने पिछले साल के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़ दी थी, ने दिप्रिंट को बताया कि अर्जुन सिंह के जाने के बाद, टीएमसी के पूर्व नेता और विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी, जो 2020 में भाजपा में शामिल हुए, बंगाल में पार्टी का प्रमुख चेहरा होंगे.
मजूमदार ने कहा, ‘चूंकि वह भी तृणमूल कांग्रेस से ही गए हैं, इसलिए न तो भाजपा और न ही आरएसएस उन पर पूरा भरोसा कर सकती है. पिछले साल मुकुल रॉय के जाने के साथ ही विश्वास की कमी पैदा हो गई थी. भाजपा के भीतर हुए नुकसान की अब कभी भरपाई नहीं हो सकती है.’
और भी होगा दलबदल?
पश्चिम बंगाल भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई खुद को और अधिक दलबदल के लिए तैयार कर रही है.
भाजपा के राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने इस दलबदल के लिए सत्तारूढ़ टीएमसी द्वारा किये जा रहे राजनीतिक उत्पीड़न को जिम्मेदार ठहराया. भाजपा के राज्यसभा सांसद स्वप्न दास गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी का भी पार्टी छोड़ना बहुत अच्छी बात नहीं है, भले ही उन्हें कितना भी समर्थन प्राप्त हो.’ उनका कहना था, ‘[लेकिन] यह एक वास्तविकता है जिसका हमें सामना करना चाहिए. पश्चिम बंगाल में ऐसा माहौल बना दिया गया है जहां विपक्षी नेताओं को कोई जगह नहीं दी जा रही है. इसके विपरीत, उत्पीड़न बहुत अधिक ऊंचाई पर पहुंच गया है. हो सकता है कि कुछ लोग इसका सामना नहीं करना चाहते हों और उनके लिए झुकना ही आसान हो.’
जैसे-जैसे तृणमूल कांग्रेस राज्य में भाजपा के गढ़ को ढहाती जा रही है, उसके नेता उत्साहित दिख रहे हैं.
तृणमूल सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने दिप्रिंट को बताया, ‘राजनीति में ताकतों की लामबंदी (एलाइनमेंट) और फिर से लामबंदी (रि-एलाइनमेंट) हर समय होती रहती है, लेकिन वे भाजपा को छोड़कर तृणमूल में ही क्यों शामिल हो रहे हैं – यह तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ही [आपको] बेहतर बता सकते हैं.’
वहीँ, विशेषज्ञों का मानना है कि दल-बदल के तब तक जारी रहने की संभावना है जब तक यह राजनीतिक रूप से उपयुक्त लगता है.
राजनीतिक विश्लेषक और ‘गैंगस्टर स्टेट: द राइज़ एंड द फॉल ऑफ़ द सीपीआई (एम) इन वेस्ट बंगाल’ के लेखक, सौर्य भौमिक ने कहा कि जो नेता भाजपा में शामिल हुए थे, वे इस वजह से लौट रहे हैं क्योंकि उन्होंने पहले की अपने कार्रवाई के बारे में गलत अनुमान लगाया था.
उन्होंने कहा, ‘बंगाल में कोई राजनीतिक नैतिकता नहीं बची है, विचारधारा के लिए स्थान दिन-प्रतिदिन सिकुड़ता जा रहा है, इसलिए ये दलबदल कोई आश्चर्य की बात नहीं है. ये नेता यही सोचकर भाजपा में शामिल होते थे कि वही सत्ता में आएगी. अब सत्ता के लालच में वे टीएमसी में वापस लौट रहे हैं. उनके खिलाफ दर्ज बहुत सारे पुलिसया मामले भी इसकी एक और वजह है.’
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