आज सर्वसम्मति से लिये गए एक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन पीनल कोड की धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिकता को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी।
नई दिल्ली: गुरुवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन पीनल कोड की विवादास्पद धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिकता को वैध करार दिया और इस कानून को “ तर्कहीन, अनिश्चित और सर्वथा मनमाना” बताया।
157 साल पुराने इस औपनिवेशिक युग के कानून को निरस्त करने वाला यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली एक पांच सदस्यीय संविधान खंडपीठ ने सुनाया। चारों फैसले एक दूसरे से सहमत थे।
सीजेआई ने कहा, “संविधान एलजीबीटी समुदाय को समान अधिकार प्रदान करता है।
मिश्रा ने आगे कहा, “ हमें पूर्वाग्रह खत्म करने, समावेशी बनने और सबके लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।”
यह फैसला संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता नवतेज सिंह जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ ऋतु डालमिया एवं आएशा कपूर, नीमराना होटल चेन के संस्थापक अमन नाथ और होटेलियर केशव सूरी समेत अन्य जानी मानी हस्तियों द्वारा दायर की गई अपीलों पर आया था।
2016 में दायर की गई मूल याचिका को जनवरी में सूरी द्वारा दायर एक और याचिका के साथ जोड़ा गया था। इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट के अगस्त 2017 के ‘निजता का अधिकार’ के फैसले के आलोक में सुना गया था जिसमें कोर्ट ने नागरिकों के निजता के मौलिक अधिकार को बरकरार रखा था।
अदालत ने 2017 में कहा था, “सेक्शुअल ओरिएन्टेशन के आधार पर किसी व्यक्ति से भेदभाव करना उसकी गरिमा और आत्म मूल्यों के लिए घातक है। समानता के अधिकार का तकाजा है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति के यौन अभिविन्यास को समान संरक्षण प्राप्त हो।
सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली इस पांच सदस्यीय संविधान खंडपीठ में उनके अलावा न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ एवं इंदु मल्होत्रा थे। 10 जुलाई को शुरू हुई यह सुनवाई एक हफ्ते चली थी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने नोट किया था कि आईपीसी की धारा 377 के साथ लगे आपराधिक टैग के हटते ही एलजीबीटीक्यू समुदाय पर लगा कलंक भी मिटा जायेगा।
बेंच ने जुलाई में सुनवाई के दौरान कहा था, “पिछले कुछ सालों में हमने देश में ऐसा माहौल बना दिया है जिसके फलस्वरूप आपसी रज़ामन्दी से सेम सेक्स सम्बन्ध बनाने वालों के खिलाफ भेदभाव हुआ है। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है।”
इस संयुक्त याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने निजता के अधिकार को आधार बनाकर अपना सेक्सुअल ओरिएन्टेशन या यौन अभिविन्यास चुन पाने के अधिकार पर ज़ोर दिया। उन्होंने धारा 377 के खात्मे की मांग की जो समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी में डालती है और समलैंगिकों को अपना पार्टनर चुन पाने के अधिकर से वंचित करती है।