मुल्लैतिवु (श्रीलंका): सुबह के 10 बजकर 35 मिनट पर ब्लैक हेडबैंड (सर पर बंधी काली पट्टी) बांधीं हुई महिलाओं ने एक स्वर में रोना शुरू कर दिया. श्रीलंकाई गृहयुद्ध में खोए हुए अपने प्रियजनों को श्रद्धांजलि के रूप में एक दीप जलाने के बाद, उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया, रोईं और सांत्वना दी.
उनमे से कुछ ने आसमान की ओर देखते हुए अपने मृत प्रियजनों को ऊंचे स्वर से पुकारा. यह एक ऊंचें स्वर में कानों को भेदने वाली रुलाई थी, ठीक वैसे ही जैसे कि किसी ऐसे व्यक्ति के अंतिम संस्कार पर होता है जो कुछ ही घंटे पहले मरा हो.
लेकिन श्रीलंका के मुलिविक्कल गांव में खड़े इन तमिलों ने श्रीलंकाई सेना और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम – लिट्टे, (जो देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में एक स्वतंत्र तमिल राज्य की मांग कर रह था) के बीच हुए युद्ध में अपने प्रियजनों – पति, पत्नी, बेटों, बेटियों, भाइयों या बहनों – को इस बुधवार से 13 साल पहले ही खो दिया था.
मई 2009 में हुईं मुलिविक्कल की ये खूनी घटनायें, जिसमें दसियों हज़ार तमिल नागरिक यहां फंस गए थे और बाद में मारे गए थे, लिट्टे के खिलाफ श्रीलंकाई सेना द्वारा किए जा रहे हमले के अंतिम चरण का हिस्सा थे, जिसके बाद लगभग-तीन-दशक – 1983 से 2099 – तक चले एक लंबे गृह युद्ध का अंत हुआ था.
इसके बाद से, हर साल 18 मई को, तमिल लोग इस युद्ध के दौरान गायब हो गए या मारे गए अपने – अपने परिवार के सदस्यों के लिए एक सामूहिक स्मरण समारोह (मेमोरियल), या स्मरण दिवस (रेमब्रेन्स डे), में भाग लेने के लिए यहां के वट्टुवागल ब्रिज के पास स्थित एक बड़ी सी खुली जगह में इकट्ठा होते हैं.
इस साल हुआ एक हजार से अधिक लोगों का यह जमावड़ा दो साल के अंतराल के बाद हुआ था.
साल 2019 में, ईस्टर के दिन हुए बम विस्फोटों के बाद एक तनावपूर्ण स्मरण दिवस मनाया गया था, और उसके बाद के दो वर्ष कोविड -19 प्रोटोकॉल की छांव में गुजर गए जो ऐसे किसी भी सार्वजनिक स्मरण समारोह के आयोजन को रोकते थे.
स्थानीय निवासियों ने कहा कि इस अंतराल ने बदमाशों को जमीन पर बने छोटे- छोटे स्मारकों को नष्ट करने का मौका दे दिया. ये स्मारक रेत से बाहर निकल रहे हाथों को दिखातें हैं जो मुलिविक्कल में हुई मौतों को दर्शाता है.
61 वर्षीय अंबालाम कनगय्या ने अपने दोस्तों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मैंने यहां अपना बेटा खो दिया, उसने अपना भाई खो दिया, उसने अपना बेटा खो दिया…’. इस स्मरण समारोह में भाग लेने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के इस समूह ने द्वीप के सबसे उत्तरी सिरे पर स्थित केट्स से ढाई घंटे की दूरी तय की थी.
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इस साल का यह स्मरण समारोह उस भयंकर आर्थिक संकट की पृष्ठभूमि में आयोजित किया गया था, जिसने इस द्वीपीय राष्ट्र को घेर रखा है, जिसकी वजह से देश की सरकार के प्रमुख ‘राजपक्षे परिवार’ के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुए हैं और पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा भी देना पड़ा है. ऐसा लगता है कि ये विरोध-प्रदर्शन श्रीलंका के विभिन्न जातीय समूहों के बीच एकजुटता का संकेत लेकर आए हैं.
कायट्स जिले के 67 वर्षीय कंदासामी थवाबलन ने कहा, ‘तमिल लोग तो सालों से झेले जा रहे कठिनाइयों की वहज से निचुड़ से गए हैं, और अब जाकर सिंहली लोग समझ पर रहे हैं कि यह कैसा लगता है.’
वह कोलंबो में ‘गोटा गो गामा (गोटाबाया गो विलेज)’ का जिक्र कर रहे थे, जहां प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता से बेदखल करने के लिए गाले फेस पर कब्ज़ा जमा लिया था. उन्होंने कहा ‘हमने बस बचे रहने के लिए अपनी जान दे दी, और दक्षिण में लोग अपने जीवन को यथावत (पहले जैसा ही) बनाए रखने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.’
84 वर्षीय ए. येसुदासन, जो 15 साल तक लंदन में रहे हैं लेकिन जिन्होंने चार महीने पहले ही श्रीलंका वापस आने का फैसला किया थे, ने कहा कि ‘गोटा गो गामा’ विरोध-प्रदर्शनों के बारे में तो ऐसा लगता है कि जैसे ‘यह किसी और देश में हो रहा है’. उन्होंने बताया कि वे तमिल संघर्ष का हिस्सा थे और उनका बेटा लिट्टे का एक सैनिक रहा था. उन्होंने कहा ‘मैं एक गर्वित तमिल हूं, सभी तमिल मेरे अपने लोग हैं.’
श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे मुलिविक्कल में हुई घटनाओं के दौरान देश के राष्ट्रपति थे, जबकि (वर्तमान राष्ट्रपति) गोटाबाया ने रक्षा सचिव के रूप में युद्ध की निगरानी की थी.
पर्यवेक्षकों का मानना है कि देश के दक्षिण भाग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने उत्तर के लोगों को, जो वर्षों से भारी सैन्यीकरण के दौर से गुजर रहे हैं, खुद को अभिव्यक्त करने के लिए एक लोकतांत्रिक स्थान प्रदान किया है. जहां तमिल आबादी श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों में केंद्रित हैं, वहीँ देश के दक्षिण में यहां की बहुसंख्यक सिंहली आबादी का दबदबा है.
बुधवार को, बट्टिकलोआ के संसद सदस्य, शनकियान रसमनिकम, ने श्रीलंकाई संसद में जिले के गांधी पार्क में पुलिस ज्यादती का मुद्दा उठाया, जिसमें कथित तौर पर तमिलों को 18 मई के लिए लगाए गए बैनर हटाने के लिए कहा गया था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘युद्ध का सामना करने वाले देश में याद रखना और स्मरण करना उपचारात्मक प्रक्रिया (हीलिंग प्रोसेस) के बहुत महत्वपूर्ण अंग हैं.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि ऐसी किसी भी कार्यवाही को बाधित करने की प्रवृत्ति जारी नहीं रहनी चाहिए और सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार होने चाहिए.
Peaceful memorials for those killed in the last stages of the war and in #Mullivaikkal are happening around the country, including at #GGG. However, Police in Batticaloa have tried to disrupt the event by asking for the banners to be removed. pic.twitter.com/DwGHmxUtmv
— Shanakiyan Rajaputhiran Rasamanickam (@ShanakiyanR) May 18, 2022
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‘दीप जलाने के बाद हर साल बारिश होती है’
बुधवार को स्मरण समारोह में सभी परिवार रेत में गाड़े गए लोहे के पतले खंभों के पीछे खड़े हो गए. एक छोटा गुलाबी प्लास्टिक का थैला, जिसमें कपूर भरा था, डंडे से लटका दिया गया.
जमीन पर एक थेनै मरम – एक नारियल का बीज जिसे परिवार अपने बगीचों में रोपने के लिए घर वापस ले जाते हैं – रखा था. श्रीलंका के उत्तरी प्रांतों के विभिन्न चर्चों के पादरी भी अपनी एकजुटता दिखाने के लिए वहां मौजूद थे.
सुबह 10.25 बजे तक, ‘मई 18’ लिखा हेडबैंड पहने युवकों के एक समूह, जिन्होंने किलोनोच्ची शहर से 100 बाइक की एक रैली निकाली थी, ने स्मारक की लौ को जलाने के लिए अपने- अपने स्थानों को ढूंढ लिया था. इन्हीं में के. कार्तिपन, वाई. निमालन और टी. निवास शामिल थे, जो समारोह के बाद अपनी सेल्फी खिंचवा रहे थे.
बढ़ई का काम करने वाले 27 वर्षीय कार्तिपन ने कहा, ‘जब जंग ख़त्म हुई तब हम 13 या 14 साल के थे, आज भी मैं उन तस्वीरों को अपने दिमाग में साफ साफ देख सकता हूं.’
पेड़ों के नीचे महिलाएं चावल, पानी और नमक से बनी कांजी परोस रहीं थीं.
वी. सुलोचना ने कहा, ‘युद्ध के दौरान, कांजी ही एकमात्र ऐसी चीज थी जिसने हमें जीवित रखा.’ उनका कहना था कि उनका बेटा इस लड़ाई के दौरान गायब हो गया था. उस समय वह 14 साथ का था. काली साड़ी पहने, सुलोचना ने आग जलाने की प्रक्रिया में भाग नहीं लिया, वह पीछे रह कर ही सारा कार्यक्रम देखना पसंद करती हैं.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘अगर मैं आज यहां गिरकर मर भी जाऊं, तो भी ठीक है,’ लगभग 12.30 बजे, बारिश – जो पहले छिटपुट तौर पर हो रही थी – जोरों के साथ होने लगीं.
कुछ अन्य पुरुषों और महिलाओं के साथ स्मारक स्थान को साफ करने के लिए एक दिन पहले आई निर्मला अरुलराज ने बताया, ‘हर साल, हमारे द्वारा दीया जलाने के बाद बारिश होती है.’
इस बारिश की व्याख्या इस बात पर निर्भर करती है कि आपने सवाल किससे किया है. कोई इसे दिवंगत आत्मा के लिए बहे ‘आंसू’ बताता है तो कोई आततायी को दिया एक ‘शाप’, कुछ लोग इसे परिवारों के लिए ‘सौभाग्य’ भी बताते हैं.
स्मरण दिवस की पूर्व संध्या पर, इस समुदाय ने स्मारक पर पेंट का एक नया कोट चढ़े, और रेक (फावड़े) का इस्तेमाल करते हुए जमीन से खर-पतवार निकाले.
लोगों ने 13 मई को द हिंदू में प्रकाशित एक खबर पर भी चर्चा की, जिसमें भारतीय खुफिया सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि लिट्टे के पूर्व सदस्य ‘इस द्वीप पर हमले शुरू करने के लिए फिर से संगठित हो रहे हैं’.
एक युवक, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, ने कहा, ‘क्या आपने वह समाचार देखा? मुझे पक्का यकीन है कि यह हमें 18 मई के कार्यक्रम आयोजित करने से रोकने के लिए जानबूझकर इस समय पर आया था.’ उसने कहा, ‘अंत में तो हमीं लोगों को यहां रहना है. ये राजनेता लोगो तो कहानियां गढ़ते रहेंगें और इससे कमर हमारी टूट जाएगी.’
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मुल्लातीवु में बुधवार को इकठ्ठा हुए लोगों में 35 वर्षीय करिकालन भी शामिल थे, जो चुपचाप सफेद रंग से एक हथेलीनुमा कंक्रीट के सांचे (जो स्मारक का हिस्सा है) को रंग रहे थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने युद्ध के अंत में तीन साल तक लिट्टे में अपनी सेवा दी थी और अब उत्तरी प्रान्त (नॉर्थेर्न प्रॉविन्सेस) में एक गैर-सरकारी संगठन चलाते हैं.
कई अन्य तमिलों की तरह, करिकालन ने भी, प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे, जिन्हें महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद शपथ दिलाई गई है, का जिक्र ‘नारी (लोमड़ी)’ के रूप में किया. उन्होंने कहा, ‘वह एक राजनीतिक चाणक्य की तरह हैं, वह हमें एक बात बताएंगे और फिर कभी उसका पालन नहीं करेंगे. तमिलों ने सालों तक संघर्ष किया है, और दक्षिण में किसी ने भी हमारा समर्थन नहीं किया है.’
कोलंबो में गाले फेस में एक स्मरण दिवस कार्यक्रम की खबर आने के साथ ही जाफना निवासी और शोधकर्ता अनुशानी अलगराजाह, जो मुलिविक्कल में बुधवार के कार्यक्रम का हिस्सा थे, ने ट्वीट किया: ‘मुझे नहीं पता कि किसे इसे सुनने की ज़रूरत है, लेकिन अगर आप आज कांजी पड़ोस रहे हैं, लेकिन मुलिविक्कल या तमिल या युद्ध अपराध या नरसंहार जैसे शब्द कहने से डरते हैं, तो शायद ऐसा न करें? …’
उन्होंने लोगों से श्रीलंका के उत्तर और पूर्व की घटनाओं और आवाजों की विस्तार से बताने का आह्वान किया.
I don't know who needs to hear this, but if you are serving kanji today but afraid to say the words Mullivaaikkaal or Tamil or war crimes or genocide, might as well not do it no? Performative activism for relevancy doesn't get anyone any far (1/2)
— Anushani Alagarajah (@Nachchellai) May 18, 2022
मानवाधिकार कार्यकर्ता रुकी फर्नांडो, जो स्वयं बुधवार को मुलिविक्कल में मौजूद थे ने कहा, ‘तमिलों के बीच एक बड़ा ध्रुवीकरण है और निराशा की भावना काफी गहरी है. कोलंबो में लोग गैस, पेट्रोल और बिजली की तलाश में हैं और यहां वे अपने बच्चों और पति की तलाश करे रहे हैं. एक बहुत बड़ा अंतर है.’
देश में गहरी राजनीतिक उथल-पुथल के साथ ही मुलिविक्कल में तमिलों ने मंगलवार को उन सुरक्षा बलों का सामना करने के अवसर का लाभ उठाया जिनके बारे उन्हें लगा कि वे वाहनों को बिलावजह रोक रहे हैं और स्मारक स्थल पर आने वालों के लाइसेंस की जांच कर रहे हैं. अगले दिन, दिप्रिंट ने देखा कि सुरक्षा बल पीछे काफी खड़े हैं और एक बड़े से पेड़ के पीछे से सारी कार्यवाही देख रहे हैं, मगर स्थानीय निवासियों ने किसी तरह के हस्तक्षेप की शिकायत नहीं की.
जाफना विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ व्याख्याता (लेक्चरर) अहिलन कादिरगामार ने 2015 में रवैये में आये इस बदलाव को दक्षिण की सत्ता में आये उस परिवर्तन से जोड़ कर देखा जब मैत्रीपाला सिरिसेना को श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था. उस समय के विश्लेषकों ने सोचा था कि यह तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के बीच हुआ तगड़ा मतदान था, जिससे सिरिसेना की जीत हुई. ये समुदाय राजपक्षे से नाराज थे और सिरिसेना को लंबे समय तक के नेता के विकल्प के रूप में देखते थे.
उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2014 और 2015 के बीच का अंतर रात और दिन जैसा था, किसी तरह से डर का माहौल एकदम चला गया था. युद्ध के बाद, राजपक्षे ने उत्तर में भारी सैन्यीकरण किया था, स्वतंत्र रूप से किये गए विरोध के लिए जगह ही खत्म हो गई थी. उन्होंने असहमति का सफ़ाया कर दिया और तमिल समुदाय को जबरिया चुप रखा.‘
लेकिन 2015 के बाद चीजें वाकई बदल गईं. कादिरगामार ने कहा, ‘यदि आप एक लोकतांत्रिक स्थान के बारे में बात कर रहे हैं, जो इसके लिए अगर दक्षिण में जगह खुलती है, तो यह उत्तर में भी खुलेगी.’
वे पूछते हैं, ‘यहां बड़ा सवाल यह है कि वैचारिक रूप से क्या हो रहा है? क्या हमारा ध्यान अभी भी यही कहने पर केंद्रित हैं कि ‘हम तमिल हैं, वे सिंहली हैं?’ या क्या हमें इस स्थान का उपयोग तमिल राजनीति और तमिल समुदाय के भीतर आत्म-चिंतन पर पुनर्विचार करने के लिए करना चाहिए?’
वहीँ कोलंबो स्थित राजनीतिक विश्लेषक दीनिडु डी अल्विस का सोचना हैं कि ‘एकजुटता के कार्य ‘मौसमी’ और ‘छिट पुट से’ हैं’.
वे कहते हैं, ‘एक पूरी पीढ़ी है जो ‘मेरा पक्ष ही सही है’ सोचकर बड़ी हुई है. श्रीलंका में सिंहली बच्चों को यह नहीं पता होगा कि उनकी सेना को तमिल नागरिकों के समूहों को अंधाधुंध तरीके से मारने की आदत थी, और विदेशों में बड़े हो रहे तमिल बच्चों को भी इस बात का कतई कोई अंदाजा नहीं है कि लिट्टे के लोग सिंहल गांवों में जाकर बच्चों का अंधाधुंध नरसंहार करते थे.‘
उन्होंने कहा, ‘हम इसी तरह से कई बार एकजुटता के कृत्यों को उजागर करते रहते हैं क्योंकि यह हमें अच्छा महसूस कराता है, लेकिन हम वास्तव में सच्ची एकजुटता हासिल नहीं कर पाएंगे, जैसे जैसे ये पीढ़ी मरती जाएगी , वैसे वैसे हम आगे बढ़ते जाएंगे’.
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