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Monday, 4 November, 2024
होमडिफेंसपैगोंग त्सो पर ‘ज़्यादा बड़ा और चौड़ा’ पुल बना रहा चीन, बख्तरबंद टुकड़ियां ले जाने में होगा सक्षम

पैगोंग त्सो पर ‘ज़्यादा बड़ा और चौड़ा’ पुल बना रहा चीन, बख्तरबंद टुकड़ियां ले जाने में होगा सक्षम

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का उद्देश्य भविष्य में पैगोंग त्सो के दक्षिणी किनारों पर भारतीय बलों की संभावित कार्रवाईयों का मुकाबला करने के लिए कई मार्ग तैयार करना है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि चीन पैगोंग त्सो पर अपने कब्ज़े वाले इलाके में एक दूसरे पुल का निर्माण कर रहा है. ये घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब भारत और चीन के बीच लद्दाख में चल रहा गतिरोध अपने तीसरे वर्ष में दाखिल हो रहा है.

रक्षा व सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि पहला पुल- जिसका निर्माण 2021 के अंत में शुरू हुआ था और जो पिछले महीने पूरा हुआ- दूसरे पुल के निर्माण के लिए एक सेवा पुल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

एक सूत्र ने कहा, ‘पहले पुल का इस्तेमाल चीनी लोग अपनी क्रेन्स को रखने और दूसरे निर्माण उपकरण लाने में कर रहे हैं. इससे बिल्कुल सटा हुआ दूसरा पुल उस पुल से बड़ा और चौड़ा है, जिसका निर्माण उन्होंने इस साल अप्रैल में पूरा किया था’.

सूत्र ने आगे कहा कि तीन हफ्ते पहले जब नए पुल का निर्माण दिखाई पड़ा था, ‘तो चीनियों का सारा खेल समझ में आ गया था’.

नया पुल एक साथ दोनों ओर से बनाया जा रहा है.

3 जनवरी को दिप्रिंट ने खबर दी थी कि चीनी लोग पैगोंग त्सो पर उस इलाके में पुल बना रहे थे जो उनके कब्ज़े में था.

उस समय सूत्रों ने कहा था कि पुल पूर्व-निर्मित स्ट्रक्चर्स की मदद से बनाया जा रहा था, ताकि भारतीय सेना की ओर से अगस्त 2020 जैसी किसी कार्रवाई का मुकाबला किया जा सके, जिसके नतीजे में भारत ने पैगोंग त्सो के दक्षिण किनारों की प्रमुख ऊंचाइयों पर कब्ज़ा कर लिया था.

सूत्रों ने बताया था कि पुल का उद्देश्य खुरनाक से रुडोक होते हुए 180 किलोमीटर दूर नीचे 180 किमी. के लूप को कम करना था. इसका मतलब है कि खुरनाक से रुडोक का रास्ता घटकर 40-50 किमी. रह जाएगा.


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‘भारत की संभावित कार्रवाइयों को रोकने के कई रास्ते’

135 किमी. लंबी पैगोंग त्सो का, जो चारों ओर से जमीन से घिरी झील है, कुछ हिस्सा लद्दाख इलाक़े में और कुछ तिब्बत में पड़ता है. मई 2020 के बाद से यहां पर भारत और चीन के बीच तनाव बना रहा है.

ये समझाते हुए कि नया निर्माण इतना महत्वपूर्ण क्यों है, ऊपर हवाला दिए गए सूत्र ने कहा, ‘पिछले पुल से केवल सैनिकों तथा हल्के वाहनों को लाया जा सकता था. नया पुल वास्तव में साइज़ और चौड़ाई में उससे बड़ा है. इसका मतलब है कि वो न सिर्फ सैनिकों तथा वाहनों, बल्कि बख़्तरबंद सैनिक टुकड़ियों को भी तेज़ी के साथ लाना चाहते हैं’.

जैसा कि पिछले महीने खबर दी गई थी, सेटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि चीनियों ने पहले पुल का निर्माण पूरा कर लिया है और अब सड़कें बना रहा है ताकि उसे क्षेत्र में अपने सबसे बड़े गैरिसन से जोड़ सके.

ये पुल सैन्य इनफ्रास्ट्रक्टर के उस सिलसिले का हिस्सा है, जो चीनी लोग पूर्वी लद्दाख में तैयार कर रहे हैं.

इधर पैगोंग त्सो के दक्षिणी किनारों पर भारत-चीन गतिरोध बरकरार है, उधर सितंबर 2020 और मध्य-2021 के बीच चीन ने मोल्डो गैरिसन के लिए एक नई सड़क बना ली, ताकि उपयोगी ऊंचाइयों पर मौजूद भारतीय सैनिकों और उपकरणों की निगाह के दायरे से बचा जा सके.

सूत्रों ने कहा कि नए निर्माण के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का मकसद पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारों पर भारतीय बलों की संभावित कार्रवाईयों का मुकाबला करने के लिए कई मार्ग तैयार करना है.

सरकारी सूत्रों का कहना है कि चीनी निर्माण के जारी रहने के बावजूद, भारत अपेक्षा नहीं करता कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ फिर से लड़ाई की स्थिति आएगी. लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर बीजिंग फिर से तनाव को हवा देने की कोशिश करता है, तो नई दिल्ली की ओर से नतीजों की परवाह किए बिना ‘मुंहतोड़ जवाब’ दिया जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) 


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