नई दिल्ली: गौ कल्याण के लिए गठित एक सरकारी आयोग राष्ट्रीय कामधेनु आयोग में अध्यक्ष का पद पिछले एक साल से अधिक समय से खाली पड़ा है, यह ‘एकदम निष्क्रिय’ हो गया है.
ये संकेत देते हुए कि यह आयोग अब मोदी सरकार की प्राथमिकता नहीं रहा है, इस मामले के जानकार एक सूत्र ने कहा कि सरकार कोई नया अध्यक्ष नियुक्त करने की इच्छुक नहीं है. गौरतलब है कि इस आयोग का गठन मोदी सरकार ने ही किया था.
सूत्र ने कहा, ‘एक साल से अधिक समय से कोई भी आयोग का नेतृत्व नहीं कर रहा. इस वजह से यह एकदम निष्क्रिय हो गया है और इसकी सभी योजनाएं अब धूल फांक रही हैं. गौ कल्याण आरएसएस के एजेंडे में काफी खास है, लेकिन आयोग अब सरकार की प्राथमिकता नहीं है.’
फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘गाय और बछड़ों के संरक्षण, सुरक्षा और विकास’ के लिए आयोग की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के दायरे में आने वाले इस आयोग को मवेशियों से संबंधित योजनाओं पर अमल के लिए दिशानिर्देश तय करने का जिम्मा सौंपा गया था.
पूर्व सांसद वल्लभभाई कथीरिया को आयोग का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. दो गैर-सरकारी सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था. फरवरी 2021 में अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो गया.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अध्यक्ष का कार्यकाल फरवरी 2021 में पूरा हो गया था. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आयोग को सलाहकार की भूमिका निभानी थी और उस पर अमल नहीं करना था. राष्ट्रीय गोकुल मिशन (योजना) और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एक स्वायत्त निकाय) पहले से ही अस्तित्व में हैं, इसलिए आयोग उनसे जुड़ा था.’
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हम आयोग के पुनर्गठन की प्रक्रिया में हैं. इसमें कुछ समय लगेगा क्योंकि हम इसमें कुछ बदलाव कर रहे हैं.’
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विवादों से नाता
ऊपर उद्धृत पहले सूत्र के मुताबिक, सरकार ने ‘महसूस किया कि आयोग अक्सर बेवजह शर्मिंदगी का सबब बन गया’, और अध्यक्ष कथीरिया ने ‘कई मौकों पर छोटी-सी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बोल दिया.’
जनवरी 2021 में कथीरिया ने एक राष्ट्रीय ‘कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा’ की घोषणा कर दी, जिसकी बहुत आलोचना हुई और इसके बाद पशुपालन विभाग ने कहा कि आयोग के पास इसके आयोजन के लिए ‘कोई जनमत नहीं’ होने की वजह से इसे रद्द कर दिया गया है.
परीक्षा के लिए आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर 54 पेज का ‘रेफरेंस मैटीरियल’ अपलोड किया गया था जिसमें भारतीय गायों के विदेशी नस्लों की तुलना में ‘श्रेष्ठ’ होने, जैसे अपनी ‘भावनाएं’ जाहिर करने, और गाय के गोबर के फायदों आदि के बारे में बताया गया था. आयोग की वेबसाइट भी अब काम नहीं कर रही है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘पहले तो आयोग ने अपनी ‘स्वदेशी गाय विज्ञान’ परीक्षा की घोषणा की, और फिर इसकी तरफ से प्रचार के तौर पर निराधार दावों को बढ़ावा दिए जाने के बाद व्यापक आलोचना होने पर पशुपालन विभाग को इसे रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा. उसने यह भी कहा कि आयोग के पास परीक्षा के आयोजन का ‘कोई अधिकार’ नहीं था. इस तरह के मुद्दे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि प्रभावित करते हैं.’
कथीरिया ने अपने कार्यकाल के दौरान कई विवादित बयान भी दिए. एक में उन्होंने कहा, ‘गाय विज्ञान से भरी है…अगर हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के बारे में बात करें तो हमारे देश में मौजूद 19.42 करोड़ गोवंश इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. गाय दूध न भी दे तो भी उसका मूत्र और गोबर अनमोल है. अगर हम इनका इस्तेमाल करें तो न सिर्फ गायें बच जाएंगी बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी.’
अक्टूबर 2020 में आयोग के अध्यक्ष ‘गाय के गोबर की चिप’ के अनावरण के लिए सुर्खियों में रहे क्योंकि उनका दावा था कि यह मोबाइल फोन द्वारा उत्सर्जित ‘हानिकारक विकिरण को काफी कम कर देता है.’
पशुपालन मंत्रालय—जिसके तहत यह आयोग आता है—के एक अधिकारी ने यह भी कहा कि आयोग का काम राष्ट्रीय गोकुल मिशन की तरफ से ही किया जा रहा था.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘पशुपालन मंत्रालय के तहत हमारे पास पहले से ही एक गोकुल मिशन चल रहा है, जिसे मवेशियों की स्वदेशी नस्लों के विकास और संरक्षण का काम सौंपा गया है और यह उनके जेनेटिक मेकअप को सुधारने की दिशा में काम करता है. राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने वही काम करने की कोशिश की, जिसकी कोई जरूरत ही नहीं थी. ऐसे में निर्णय लिया गया कि इसकी जिम्मेदारियों को गोकुल मिशन और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के साथ मिला दिया जाएगा.’
फोन पर कथिरिया से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
हालांकि, कथीरिया के एक करीबी सूत्र ने कहा, ‘नौकरशाहों ने आयोग को अपना काम नहीं करने दिया और सभी योजनाएं और सुझाव जस के तस रह गए.’
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