नई दिल्ली: कछुओं की नक्काशी वाली सोने की चूड़ियां, लाल रंग की नेल पॉलिश, उस दिन उसने जिस बैंगनी सूट को पहना था उसका एक टुकड़ा – ये कुछ ऐसी चीजें थीं जिनसे मुंडका आग में मारे गए आठ लोगों के परिवार वालों ने अपने प्रियजनों के शवों की पहचान की.
मुंडका मेट्रो स्टेशन के पास चार मंजिला इमारत में शुक्रवार को लगी भीषण आग में 27 लोगों की जलकर मौत हो गई. बिल्डिंग से बरामद शवों को पहचाना मुश्किल था. कई लोगों के तो शरीर के हिस्से यहां-वहां बिखरे पड़े थे.
दिल्ली फायर सर्विसेज के प्रमुख अतुल गर्ग ने दिप्रिंट को बताया, ‘दूसरी मंजिल पर उस छोटे से हॉल में 100 से ज्यादा लोग मौजूद थे. उनके शरीर बुरी तरह से जले हुए थे. कईयों के तो हाथ और पैर भी नजर नहीं आ रहे थे.’ उनके मुताबिक कुछ शव एक-दूसरे से चिपके हुए थे. इससे उनकी पहचान का काम और भी मुश्किल हो गया.
गर्ग ने बताया कि कमरे में धुंआ भर जाने से इमारत में मौजूद अधिकांश लोग बेहोश हो गए. और जैसे ही आग फैली उनकी जलकर मौत हो गई. इसके अलावा कमरे में मौजूद प्लास्टिक के समान ने स्थिति को और भयावह बना दिया.’
इमारत से बरामद शवों में से 19 की पहचान होनी अभी बाकी है. परिवार डीएनए जांच के परिणामों का इंतजार कर रहे हैं. आमतौर पर डीएनए सैंपल की रिपोर्ट आने में एक महीने या उससे ज्यादा का समय लगता है. इमारत से बरामद सभी 27 शवों के सैंपल दिल्ली के रोहिणी में फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) भेजे जा रहे हैं.
डीसीपी (आउटर) समीर शर्मा ने कहा, ‘अब तक 20 पीड़ितों के परिवार के सदस्यों से डीएनए सैंपल लिए जा चुके हैं और जो रह गए हैं उनका इंतजार किया जा रहा है. शवों की शिनाख्त के लिए बिहार जैसे अन्य दूर-दराज के राज्यों से रिश्तेदारों का आना बाकी है. हम इस प्रोसेस को तेज करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’
एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम एक सप्ताह से 10 दिनों के भीतर रिपोर्ट तैयार करने का प्रयास करेंगे’ हड्डियों के बीस और डीएनए के 40 सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं.
डीएनए जांच कैसे की जाती है, इस प्रक्रिया को समझाते हुए एफएसएल में क्राइम सीन मैनेजमेंट डिवीजन के प्रमुख संजीव गुप्ता ने बताया, ‘सबसे पहले फिनोल क्लोरोफॉर्म मेथड की मदद से डीएनए सैंपल लिया जाता है और इन्हें एक बफर में संरक्षित कर देते हैं. फिर पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (पीसीआर) मेथेड के जरिए इसकी कई प्रतियां तैयार की जाती हैं. इसके बाद सीक्वेंसर में लगाया जाता है जहां एक ग्राफ बनता है. और सबसे आखिर में इस ग्राफ का डीएनए सैंपल से मिलान किया जाता है.’
पीड़ितों के शवों से डीएनए सैंपल लेने और जिन शवों की शिनाख्त कर ली गई, उन्हें उनके परिवार वालों को सौंप दिया गया है. इन शवों की पहचान शरीर पर मौजूद सामान या निशान के आधार पर की गई थी.
यह भी पढ़ें : ‘गौ-तस्करी’ मामले में 3 मुस्लिम युवक गोली लगने से घायल, गाजियाबाद पुलिस से सवाल- ‘आखिर फायरिंग क्यों?’
परिवारों ने कैसे अपने प्रियजनों के शवों की पहचान की
23 साल के विजय पाल ने कुछ समय पहले ही अपनी पत्नी मोहिनी को कछुए की नक्काशी वाली एक सोने की चूड़ी उपहार में दी थी. उनके प्यार की ये निशानी ही एकमात्र ऐसी चीज थी जिसने उन्हें अपनी पत्नी के जले हुए शरीर को पहचानने में मदद की. वह मुंडका की इस इमारत के तीन मंजिलों पर चलने वाली कंपनी के प्रशासन विभाग में काम करती थी.
विजय पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘ उसका चेहरा और आधा शरीर बुरी तरह से जला हुआ था. शायद ही कोई देख कर पहचाना पाता. सब कंकाल हो रखा था. जैसे ही मैंने उसकी चूड़ी देखी, तो सारी उम्मीद खो दी. उसका हाथ पूरी तरह से जल चुका था, लेकिन सोने की चूड़ी और कछुए की नक्काशी उस जले हुए हाथ में अभी भी चमक रही थी.’
दंपति के परिवार में 22 साल का एक बेटा है.
ऐसी ही कहानी कैलाश ज्ञानी और उनके बेटे अमित की है. ये दोनों उन आठ शवों में शामिल हैं जिनकी पहचान उनके परिवारों ने की है.
आग लगने के दिन नेफेड के पूर्व कर्मचारी कैलाश ज्ञानी के एक प्रेरक भाषण को सुनने के लिए चार मंजिला इमारत की दूसरी मंजिल पर लगभग 150 लोग जमा हुए थे. अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया में रहने वाला उनका बेटा अमित अभी कुछ दिनों के लिए भारत आया हुआ था. वह भी वहां मौजूद था.
कैलाश के भतीजे भूपेंद्र ने कहा, ‘अमित ऑस्ट्रेलियाई नागरिक हैं. उन्हें कुछ दिनों में वापस लौटना था. लेकिन इस हादसे के बाद कुछ नहीं बचा. उनकी पत्नी और बच्चे ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं. वे अभी तक नहीं आए हैं.’
भूपेंद्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने उनके पहने हुए गहनों से उनकी पहचान की. कैलाश अंकल के हाथ में सोने की अंगूठी थी तो अमित ने सोने की चेन पहनी हुई थी.’
एक अन्य पीड़िता तानिया भूषण (26) के परिवार ने उस दिन पहने हुए बैंगनी रंग के सूट की मदद से उसके शव की पहचान की. उनके पिता चंद्र भूषण ने कहा, ‘उसने बैंगनी रंग का सूट पहना हुआ था. उसका एक टुकड़ा उसके शरीर पर चिपका हुआ था’ तानिया पिछले दो सालों से कंपनी के लिए काम कर रही थी.
चंद्र भूषण ने दिप्रिंट को बताया, ‘शुक्रवार को शाम लगभग 4:30 बजे, उसने (तानिया) मेरी पत्नी को फोन किया और तुरंत फायर डिपार्टमेंट को फोन करने के लिए कहा. जब हमने उसे वापस कॉल किया तो फोन स्विच ऑफ था. फोन पर लोगों के चिल्लाने की आवाजों को शायद ही हम कभी भूल पाएंगे.’
पीड़िता रंजू देवी के पति संतोष कुमार ने भी कुछ ऐसा ही आपबीती सुनाई. कुमार ने कहा कि उसने सुबह लाल रंग की नेल पॉलिश लगाई थी. लाल नेल पॉलिश और कलाई पर चूड़ी से ही वह अपनी पत्नी के शव की पहचान कर पाए.
‘उनसे क्या कहेंगे’
लेकिन इस त्रासदी में अपनों को खोने वाले ज्यादातर परिवार शवों की पहचान के लिए अब डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.
इनमें 21 वर्षीय मोनिका तिवारी का परिवार भी शामिल है.
उनके भाई पवन कुमार ने कहा, ‘शरीर जलकर राख हो चुके थे. कुछ के हाथ नहीं थे तो किसी के पैर. सब काला नजर आ रहा था. अगर कुछ बचा था तो सिर्फ हड्डियां’, पुलिस ने उनके भाई सूरज का डीएनए सैंपल मांगा है ताकि इमारत से बरामद शवों से लिए गए नमूनों से इसका मिलान किया जा सके.
पिछले 8-9 साल से कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम करने वाले प्रवीण गुप्ता भी लापता हैं. प्रवीण के भाई पवन ने बताया कि उसके डीएनए नमूनों का इस्तेमाल उसके भाई के अवशेषों की पहचान करने के लिए किया जाएगा.
लापता लोगों में मधु का परिवार भी है. उनका भतीजा विक्रम कुमार शुक्रवार से दिल्ली के संजय गांधी अस्पताल में जवाब का इंतजार कर रहा है. उसने कहा, ‘नाना (दादा) और मामा (चाचा) बिहार से आ रहे हैं वे दो घंटे में पहुंच जाएंगे. डीएनए सैंपलिंग देने के लिए कल कोई नहीं था.’
विक्रम ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम नहीं जानते कि उसके बच्चों को क्या कहेंगे. उनकी चार साल की बेटी का तो रोना ही बंद नहीं हो रहा है. वह दरवाजे पर खड़े होकर उसका इंतजार करती रहती है. हम उन्हें क्या बताएंगे? हम तय नहीं कर पाए हैं कि उनसे क्या कहेंगे.’
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : न आपातकालीन निकास न ही आग बुझाने के उपकरण – कैसे मौत का फंदा बन गई मुंडका की ‘अवैध’ इमारत?