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Friday, 22 November, 2024
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क्या हर मौसमी बदलाव के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है? वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ने जारी की गाइडलाइंस

हाल ही में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और संवेदनशीलता को लेकर आईपीसीसी की रिपोर्ट में भी चेताया गया है कि मामला अब सिर्फ जलवायु परिवर्तन तक ही सीमित नहीं है.

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नई दिल्ली: क्या मौसम में हो रहे हर बदलाव के पीछे जलवायु परिवर्तन ही कारण है? यह एक ऐसा बड़ा सवाल है जो लोगों के मन में लगातार उठता है. जलवायु परिवर्तन और तेजी से बदलती मौसमी घटनाओं जैसे कि हीटवेव, तूफान और बाढ़- के बीच के संबंधों को किस तरह रिपोर्ट किया जाए, इसे लेकर पत्रकारों के लिए जलवायु वैज्ञानिकों ने बुधवार को गाइडलाइंस जारी की है.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के बेन क्लार्क और इंपीरियल कॉलेज लंदन के फ्रेडरिक ओटो द्वारा तैयार की गई गाइडलाइंस को जलवायु वैज्ञानिकों के अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन (डब्ल्यूडबल्यूए) ने प्रकाशित किया है. इसमें बताया गया है कि एट्रीब्यूशन साइंस किस तरह से भीषण घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध स्थापित करने को संभव बनाता है.

वैज्ञानिकों ने ऐसे तरीके विकसित किए हैं जो उन्हें जलवायु परिवर्तन और तेजी से बदलती मौसम की घटना के बीच की कड़ी को समझने में मदद करती है. इसके अलावा उनसे यह भी गणना की जा सकती है कि ऐसी घटना कि आशंका कितनी ज्यादा या कम है.

एट्रीब्यूशन अध्ययन न होने के कारण पहले जलवायु परिवर्तन और किसी खास मौसमी बदलाव को लेकर पत्रकार अक्सर अनुमान लगाते थे लेकिन गाइडलाइंस के अनुसार अब हीटवेव, बाढ़, तूफान, सूखा, जंगल की आग जैसी स्थिति में पत्रकारों के पास एक निश्चित दिशानिर्देश होंगे.

गाइडलाइंस के अनुसार, ‘जलवायु परिवर्तन एक घटना का कारण नहीं बन सकता है क्योंकि सभी मौसम की घटनाओं के कई कारण होते हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन इस बात को प्रभावित कर सकता है कि घटना कितनी संभावित और कितनी तीव्र थी.’

गाइडलाइंस के निष्कर्ष के अनुसार किसी भी हीटवेव को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है. भारत में हीटवेव दिनों की संख्या 1981-1990 के दशक में 413 से बढ़कर 2001 और 2010 के बीच 575 और 2010-20 में बढ़कर 600 हो गई है.

वहीं हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के तहत काम करने वाली संस्था विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अनुमान लगाया है कि 2022 से 2026 के बीच के सालों में से कोई एक साल इतिहास में सबसे गर्म होने वाला है. वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से स्तर को पार कर सकता है.


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जलवायु परिवर्तन तक सीमित नहीं है सबकुछ

हाल ही में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और संवेदनशीलता को लेकर आईपीसीसी की रिपोर्ट में भी चेताया गया है कि मामला अब सिर्फ जलवायु परिवर्तन तक ही सीमित नहीं है. बल्कि इंसान की शारीरिक और मानसिक सेहत और रोजगार पर भी इसका असर पड़ रहा है.

गाइडलाइंस में कहा गया है, ‘समाचार संस्थान मौसमी स्थितियों की कवरेज करते समय अक्सर तीन गलतियां करते हैं. पहली, हादसे के लिए जलवायु परिवर्तन को एक कारण के तौर पर देखने से बचते हैं. दूसरी, घटना के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराते हैं और तीसरी, घटना के लिए सिर्फ जलवायु परिवर्तन को ही एकमात्र कारण बताते हैं.’

गाइडलाइंस के अनुसार, ‘इसका मकसद पत्रकारों को एक गर्म होते ग्रह के संदर्भ में मौसम की भीषण घटनाओं की सटीक रिपोर्टिंग में मदद करना है.’

गाइडलाइंस में बांग्लादेश में 2017 में आई बाढ़, 2017 में ही दक्षिण पश्चिमी यूरोप में प्रचंड ठंड, 2019 में पश्चिमी यूरोप में प्रचंड तपिश, 2015-17 के बीच केपटाउन में सूखे के एट्रीब्यूशन अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से इसके संबंध को विस्तार से बताया गया है.


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