मैरिटल रेप यानी पति द्वारा अपनी ही पत्नी से बलात्कार किसी आम भारतीय नारी के लिए अनजाना और अनसुना हो सकता है. मगर सच यह है कि हमारे समाज में भी ऐसा होता रहा है और हो रहा है. दुनिया के अधिकांश देशों में यह एक कानूनी अपराध है और भारत में भी इस पर कानून बनाए जाने की जद्दोजहद जारी है.
मिताली को क्या पता था कि जिस करन के साथ सात फेरे लेकर वह अपना सर्वस्व उसे सौंपने जा रही है वही बेडरूम के अंदर एक वहशी बन जाएगा और उसके साथ वह सब करेगा जिसे कानून की भाषा में बलात्कार कहा जाता है. वह भी दूसरी औरतों की तरह इसे अपनी नियति ही मान बैठी थी लेकिन फिर उसने फैसला किया कि वह लड़ेगी और कानून के रास्ते से करन को समझाएगी.
चलिए यह तो 2010 में रिलीज हुई फिल्म ‘मित्तल वर्सेस मित्तल’ का कथानक था लेकिन हमारे आसपास के समाज का एक दबा-छुपा सच यह भी है कि यहां ऐसी बहुत सारी स्त्रियां हैं जो आए दिन इस अत्याचार को सहती हैं और उनकी मदद के लिए फिलहाल हमारे पास कोई कानून नहीं है. ऐसी औरतों को उम्मीद की किरण धारा 376(1) के उस नए कानून में दिख रही है जिसे लागू कराने के लिए इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. यदि यह कानून लागू हुआ तो एक पति द्वारा अपनी ब्याहता पत्नी से बिना सहमति शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार माना जाएगा और यदि उसकी पत्नी चाहेगी तो इसके लिए उस पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकेगी. इस प्रस्तावित कानून के समर्थन और मुखालफत पर इन दिनों समाज के विभिन्न हलकों में बहस जारी है.
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‘शादी करके पति को पत्नी से बलात्कार का लाइसेंस मिल जाता है’
कुछ साल पहले तक दुनिया के ज्यादातर देशों में पति द्वारा अपनी पत्नी से उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार नहीं माना जाता था. मगर 20-25 साल में कई देशों में इस पर कानून बने. इस कानून के पक्ष में खड़े लोगों का कहना है कि बलात्कार आखिर बलात्कार होता है भले ही वह शादी के बिना हो या शादी के बाद. लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 375 जिस ब्रिटिश कानून पर आधारित है उसी देश के मुख्य न्यायाधीश सर मैथ्यू हेल ने करीब चार सौ साल पहले कहा था कि एक पति को उसकी पत्नी पर बलात्कार करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उनकी आपसी रजामंदी से हुई शादी में ही यह अर्थ निहित है कि पत्नी उसे खुद से शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति दे रही है. यानी एक अर्थ में शादी करके पति को अपनी पत्नी से बलात्कार का लाइसेंस मिल जाता है. इसी अवधारणा का अब विरोध हो रहा है.
फिलहाल, भारतीय कानून की नजर में अगर कोई पति जिसकी पत्नी की उम्र 18 साल से ज्यादा है, अगर अपनी पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप की श्रेणी में नहीं आता. हालांकि 2017 से पहले यह उम्र 15 वर्ष थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 18 कर दिया.
महिलाओं से जुड़े कई संगठन इसी परिभाषा का विरोध करते रहे हैं. दिल्ली के एक वकील योगेश चांदना बताते हैं कि ‘हमारे पास सीधे-सीधे मैरिटल रेप के मामले तो नहीं आते मगर पति द्वारा अपनी पत्नी को शारीरिक रूप से उत्पीड़ित करने के काफी केस आते हैं जिनमें जबरन संसर्ग की बात भी होती है.’
उनके मुताबिक ऐसे केस फिलहाल घरेलू हिंसा कानून के तहत निबटाए जाते हैं. मैरिटल रेप पर प्रस्तावित कानून के विरोधियों का यही कहना है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के आने के बाद मैरिटल रेप कानून की जरूरत ही नहीं है.
दरअसल ज्यादातर महिलाओं का यही मानना है कि शादी का अर्थ ही है खुद को और अपने शरीर को पति को सौंपना और अगर इसके लिए कभी-कभार कोई जबर्दस्ती की भी जाती है तो वह जायज है. चंडीगढ़ स्थित बिजनेस वुमैन नीतू गोयल मानती हैं कि बलात्कार वह शख्स करता है जो ऐसा एक बार करके चला जाता है और औरत को उसके खिलाफ कानून के पास जाना ही चाहिए लेकिन अपने पति के विरुद्ध कानून का सहारा लेकर पत्नी अपने पति के साथ भविष्य में एक छत के नीचे रहने का रास्ता ही बंद कर देगी.
लेकिन सभी लोग ऐसा नहीं सोचते. मैरिटल रेप को भी कानून के दायरे में लाने की वकालत कर रहे लोगों, खासकर महिला संगठनों का कहना है कि स्त्री को उसका हक मिलना ही चाहिए. उसे यह तय करने का अधिकार होना ही चाहिए कि वह कब, क्या चाहती है.
‘मित्तल वर्सेस मित्तल’ की नायिका ऋतुपर्णा सेनगुप्ता कहती हैं कि स्वतंत्रता चाहे किसी भी रूप में हो, स्त्री का जो हक बनता है उससे इंकार नहीं किया जा सकता. गोआ में बतौर अध्यापिका कार्यरत नीला भास्कर कहती हैं कि पति को परमेश्वर और उसकी हर सही-गलत बात को ईश्वर का आदेश मानने की सोच अब नहीं है और अगर कोई पत्नी अपने पति की जबर्दस्ती का विरोध करने की सोचती है तो यही अपने-आप में एक दुस्साहसिक फैसला है पर अगर सामने से कोई कानून ही नहीं होगा तो वह कभी उठ ही नहीं पाएगी.
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क्या हमें ऐसे कानून की जरूरत है
इसलिए कानून तो कम से कम होना ही चाहिए ताकि अगर कोई आवाज उठाना चाहे तो अदालत उसे निराश तो न लौटाए. इस प्रस्तावित कानून का विरोध करने वाले लोग यह तर्क भी दे रहे हैं कि कहीं दहेज विरोधी कानून की तरह इसका भी दुरुपयोग न होने लगे. इस कानून के समर्थकों का कहना है कि दुरुपयोग तो किसी भी कानून का हो सकता है लेकिन यह तय करना अदालत का काम होना चाहिए.
यदि शारीरिक और मानसिक पीड़ा की बात करें तो यह भी सच है कि किसी अनजान शख्स द्वारा किए जाने वाले बलात्कार जितना ही दर्द स्त्री मैरिटल रेप में भी सहती है. स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजू जैन बताती हैं कि हमारे पास अक्सर ऐसे मामले आते हैं जिनमें औरत शारीरिक पीड़ा की बात करती है लेकिन उसे होता कुछ नहीं है. तब पता चलता है कि उसके पति ने उसकी मर्जी के खिलाफ उससे संबंध बनाए और उसने उसे अपने दिल पर ले लिया. ऐसे में हमें अवसाद दूर करने वाली दवाइयां देनी पड़ती हैं.
मुमकिन है कि आने वाले समय में भारत में यह कानून अस्तित्व में आ ही जाए जहां एक पति को उसकी पत्नी से जबर्दस्ती शारीरिक संसर्ग करने पर अदालत में घसीटा जा सके. पर ये सवाल तो मौजूद रहेंगे ही कि क्या ऐसे किसी कानून के आ जाने भर से पत्नियां अपने पतियों को कचहरियों में ले जाने लगेंगी?
क्या ऐसा करने से उनके, उनसे जुड़े परिवारों के, उनकी संतानों के भविष्य प्रभावित नहीं होंगे?
क्या इससे हमारा समाज और ज्यादा मजबूत होगा या फिर टूटने की ओर बढ़ने लगेगा? क्या यह कानून स्त्री को बैडरूम के अंदर निर्णय लेने की आजादी दे पाएगा?
और क्या सचमुच आज हमें ऐसे किसी कानून की जरूरत भी है?
जागरुक हों स्त्रियां- करण राजदान
‘जब मैंने अपनी फिल्म (‘मित्तल वर्सेस मित्तल’) की कहानी पर काम शुरु किया तो मुझे यह जानकर धक्का लगा कि हमारे देश में मैरिटल रेप को रोकने के लिए कोई कानून ही नहीं है और एक पति द्वारा अपनी पत्नी पर शारीरिक जबर्दस्ती करने को कानून जायज मानता है.
2005 में जब घरेलू हिंसा अधिनियम आया तो स्त्रियों को कुछ ताकत मिली लेकिन इसमें भी मैरिटल रेप का जिक्र नहीं है. जबकि यह एक हकीकत है कि हमारे यहां भी औरतों के साथ उनके पति जबर्दस्ती करते हैं.
मैं चाहता हूं कि स्त्रियों में जागरूकता आए और वे आगे बढ़ कर अपने ऊपर होने वाली जबर्दस्ती के खिलाफ आवाज उठाएं.’
करन राजदान ने मैरिटल रेप पर आधारित फिल्म ‘मित्तल वर्सेस मित्तल’ के निर्देशक हैं.
हास्यास्पद है यह कानून- चित्रा मुद्गल
‘स्त्रियों के उत्पीड़न और शोषण को लेकर हमारा जो ज्ञान है या जो जागरुकता आई है या आ भी रही है वह पश्चिम के स्त्री विमर्श आंदोलन से प्रेरित है. कल को यह भी होगा और वह बड़ा ही शर्मनाक होगा कि आप अपने बच्चे को पीटेंगे और बच्चा अगर 100 नंबर डायल कर देगा तो पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी जैसाकि पश्चिमी देशों में होता है और जिसके लिए अब वे लोग पछता रहे हैं. हम लोग उनके अनुकरण में अब ऐसी चीजें लेकर कोर्ट में जा रहे हैं जो बिल्कुल व्यक्तिगत चीजें हैं. मैं कहती हूं कि आप के साथ अगर पति जबर्दस्ती करता है तो फिर आप तलाक ले लीजिए क्योंकि सैक्स एक ऐसी प्राकृतिक चीज है जो उद्दीपन के बिना संभव नहीं है.
अब मान लीजिए कि कल को पत्नी की इच्छा हो और वह पति से इसका आग्रह करे, छेड़छाड़ करे या जबर्दस्ती करे तो क्या पति भी कोर्ट-कचहरी पहुंच जाएगा? ठीक है कि पत्नियों के साथ इस तरह की जबर्दस्तियां होती रही हैं और पत्नियां इन्हें सहती भी रही हैं पर यह बात अब सामने आई है कि सेक्स एकांगी मन से नहीं हो सकता और अगर पति अपनी इच्छाओं को पत्नी की इच्छा के बिना पूरी करना चाहता है तो उन्हें चाहिए कि वे दोनों बैठ कर इस मसले पर बात करें, एक-दूसरे की इच्छाओं को समझें और उन्हें सम्मान दें.
अगर नहीं कर सकते तो फिर वे पति-पत्नी किस बात के हुए? अगर बेडरूम के मुद्दे भी अदालतों में पहुंचने लगेंगे तो फिर निजता कहां रह जाएगी? इस तरह के कानून लाने की बातें फालतू हैं और स्त्री से जुड़ी जो असली समस्याएं हैं उन पर से ध्यान हटाने के लिए ही यह सब हो रहा है. यह हास्यास्पद है कि गरीबी और भुखमरी से जूझता यह देश एक ऐसे कानून के लिए मरा जा रहा है. यह सब पश्चिम के फितूर हैं. एक स्त्री होने के बावजूद मैं इस कानून का विरोध करती हूं क्योंकि यह सब भरे पेट के खेल हैं न कि स्त्री को उसका सही हक देने के.’
(दीपक दुआ 1993 से फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं. विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं.)
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