कच्छ: मणिलाल नारन पटेल को जब भी महाराष्ट्र में कारोबार करने वाला उनका बेटा फोन करता है, उन्हें अजीब तरह का एहसास सताने लगता है. मणिलाल का बेटा अक्सर ही पिता से खेती छोड़ देने और उसके पास आकर रहने का आग्रह करता है.
भूजल स्तर घटने के साथ पटेल के लिए कच्छ के मांडवी तालुका स्थित छोटे से एक गांव रायन मोती में अपने 10 एकड़ से अधिक के खेतों की सिंचाई करना मुश्किल हो गया है, जिसमें वह वह कपास, अरंडी, बाजरा और गेहूं उगाते हैं. उन्हें पानी के लिए 600 फीट गहरे पंप का इस्तेमाल तो करना ही पड़ता है, साथ ही इसमें कुल घुलित ठोस (टीडीएस) का उच्च स्तर फसल पर प्रतिकूल असर भी डालता है.
हालांकि, पटेल को अब उम्मीद है कि उन्हें अपने खेतों को छोड़कर कभी शहर नहीं जाना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे आसार दिख रहे हैं कि नर्मदा नहर का पानी अंततः उनके खेतों तक भी पहुंचेगा.
नर्मदा नहर की 357 किलोमीटर लंबी कच्छ शाखा का अंतिम खंड- जो कि सरदार सरोवर परियोजना का हिस्सा है- भूमि अधिग्रहण में देरी सहित विभिन्न कारणों से वर्षों अधर में लटके रहने के बाद अब पूरा होता दिख रहा है. आखिरकार, यह खंड इसी माह पूरा हो सकता है.
रविवार 1 मई तक की स्थिति की बात करें तो मुंद्रा और मांडवी में एक दर्जन से अधिक मजदूर बाकी बचे 370 मीटर के निर्माण कार्य को पूरी तेजी से अंजाम देने में जुटे थे.
नर्मदा बांध परियोजना के क्रियान्वयन और संचालन की जिम्मेदारी संभाल रही गुजरात सरकार की एजेंसी सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (एसएसएनएनएल) के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि एक बार काम पूरा हो जाए तो इस महीने या जून की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस परियोजना के अंतिम चरण का उद्घाटन कर सकते हैं.
एसएसएनएनएल के निदेशक विवेक कपाड़िया ने कहा, ‘गुजरात भारत में पानी की सबसे अधिक कमी झेलने वाले राज्यों में से एक है और कच्छ इसका सबसे ज्यादा सूखा प्रभावित क्षेत्र है. आज, कच्छ शाखा नहर पूरी होने के नजदीक पहुंच गई है और क्षेत्र को आराम से पानी मिलने वाला है. हम सभी इस पर गर्व और संतोष महसूस कर रहे हैं.’
नहर के पहले हिस्से की सफलता के बारे में जानकार क्षेत्र के किसानों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं.
किसान पटेल ने अपने खेतों की तरफ एक नजर डालने हुए कहा, ‘यह तो हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा होगा. हम सुनते आ रहे हैं कि कच्छ के अन्य हिस्सों जैसे भचाऊ और रापर जैसे गांवों में जबसे नहर का पानी उनके खेतों में पहुंचा है, तबसे हालात कैसे बदल गए हैं. मुझे तो यही लगता था कि मुझे अपने जीवनकाल में नहर का पानी अपने खेत तक पहुंचता नहीं दिखेगा.’
हालांकि, हर जगह स्थिति एकदम संतोषजनक नहीं है. दिप्रिंट ने कच्छ शाखा नहर जलग्रहण क्षेत्र और उसके आसपास मुंद्रा, मांडवी, भचाऊ और दुधई आदि तालुका का दौरा किया और पाया कि कई गांव इस परियोजना से लाभान्वित हुए हैं, वहीं अन्य अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
कच्छ शाखा नहर क्या है?
कच्छा शाखा नहर चार राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान को सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति करने वाली नर्मदा नहर पर बनी सरदार सरोवर परियोजना का ही एक हिस्सा है.
सरदार सरोवर बांध (जिसे नर्मदा बांध भी कहा जाता है)-जो दुनिया में सबसे बड़ा है- नर्मदा से 28 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी जमा कर सकता है, जिसमें से गुजरात को हर साल 9 एमएएफ मिलने वाला है.
सीमेंट-लाइन वाली नर्मदा मुख्य नहर गुजरात-राजस्थान सीमा तक 458 किलोमीटर से अधिक लंबी है, लेकिन इसके कमांड क्षेत्र में जल वितरण के लिए शाखा नहरों का एक व्यापक नेटवर्क भी बनाया गया है.
कुल मिलाकर, सरदार सरोवर परियोजना गुजरात के 15 जिलों के 73 तालुकों के 3,112 गांवों को कवर करते हुए 18.45 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी. परियोजना के तहत गुजरात में कमांड क्षेत्र के भीतर और बाहर 173 शहरी केंद्रों और 9,490 गांवों में पेयजल की आपूर्ति भी होती है.
कच्छ शाखा नहर से विशेष तौर पर जिले के सात तालुकों के 182 गांवों में 1,12,778 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा मिलने की उम्मीद है.
2015 में पूरे हुए पहले खंड से चार तालुकों भचाऊ, रापर, अंजार और भुज में खेतों की सिंचाई की सुविधा मिली थी और अंतिम चरण पूरा होने के बाद मुंद्रा, मांडवी और गांधीगाम के कुछ हिस्से लाभान्वित होंगे.
एसएसएनएनएल के कार्यकारी अभियंता व्रज पंड्या ने दिप्रिंट को बताया, ‘कच्छ शाखा नहर का नेटवर्क 357 किलोमीटर है…इसमें अंतिम चरण का निर्माण कार्य प्रगति पर है. हम इसे 15 मई तक पूरा करने की योजना बना रहे हैं.’
गुजरात में परियोजना के समक्ष चुनौतियों को रेखांकित करते हुए, कपाड़िया ने दिप्रिंट को बताया कि जल बंटवारे को लेकर अंतरराज्यीय विवाद में बांध की ऊंचाई या सरदार सरोवर परियोजना का पूर्ण जलाशय स्तर ‘सबसे महत्वपूर्ण’ मुद्दा था.
उन्होंने कहा, ‘गुजरात ने बांध की ऊंचाई के संबंध में नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के समक्ष पूरी मजबूती के साथ यह तर्क रखा कि कच्छ में पानी की कमी के मद्देनजर सबसे ज्यादा कमी वाले दूरदराज के क्षेत्रों तक जलापूर्ति के लिए न्यूनतम 455 फीट आरएल वाले बांध की जरूरत है.’
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पैदावार ज्यादा और आय में भी खासी वृद्धि
मुंद्रा और मांडवी के ग्रामीण कच्छ शाखा नहर का अंतिम चरण पूरा होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे है, इसकी एक वजह यह भी है कि जिन क्षेत्रों में नर्मदा का पानी पहुंच चुका है, वहां पैदावर अच्छी होने और किसानों की समृद्धि को लेकर उन्होंने तमाम किस्से सुन रखे हैं.
दिप्रिंट ने जब कच्छ के भचाऊ तालुका, जहां 2017 में कच्छ शाखा नहर का एक हिस्सा शुरू हो गया था, का दौरा किया तो कई किसानों ने कहा कि उनका जीवन बेहतर हो गया है.
उदाहरण के तौर पर, 23 वर्षीय किसान भरत वैद ने कहा कि दशकों तक संघर्ष झेलने के बाद अब उनके परिवार, जिसके पास करीब 200 एकड़ जमीन है, की स्थिति सुधर रही है और वह सामान्य कपास, अरंडी और गेहूं के अलावा ड्रैगन फ्रूट, खजूर और केसर आम जैसी नई फसलें उगाने का प्रयोग भी कर रहा है.
वैद, जिनके खेत में 45 खेतिहर मजदूर काम करते हैं, ने दावा किया कि पिछले साल उन्होंने 1.35 करोड़ रुपये का लाभ कमाया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी इनपुट लागत, जिसमें बीज, उर्वरक, कृषि श्रमिकों का वेतन आदि शामिल हैं, प्रति वर्ष 40-45 लाख रुपये के बीच है.’
यह एक बहुत बड़ा बदलाव है. एक दशक पहले वैद के पिता के पास केवल 20 एकड़ खेती योग्य भूमि थी और वह आराम से जीवनयापन के लिए भी उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ता था.
वैद ने बताया, ‘मेरे पिता कपास, अरंडी और गेहूं उगाते थे. लेकिन पानी कम मिलता था. सिंचाई बोरवेल और मानसून पर निर्भर थी. उन्हें 550 फीट नीचे से पानी निकालना पड़ता. पानी की गुणवत्ता खराब भी थी, जिससे खेती और उपज प्रभावित होती थी.’ साथ ही यह भी बताया कि बड़ा भाई मुंबई चला गया ताकि परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त कमाई कर सके. अतिरिक्त पैसों से वैद के परिवार ने समय-समय पर और अधिक जमीनें खरीदीं.
यह निवेश 2017 के बाद फायदेमंद साबित हुआ, जब कच्छ शाखा नहर की एक उप-नहर चालू हो गई और यहां के खेतों में सिंचाई की सूरत ही बदल गई.
वैद ने बताया, ‘इसके बाद से पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा.’ 2019 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, पंजाब से कृषि में डिप्लोमा करने के बाद वह भी खेतों में अपने पिता का हाथ बंटाने लगा.
उसने बताया, ‘मैंने प्रयोग करने शुरू किए. आधुनिक कृषि तकनीक का इस्तेमाल किया और पारंपरिक अरंडी और कपास के अलावा विदेशी फल उगाने शुरू किए.’ अब तक यह कोशिश काययाब साबित हुई है और वह साल में तीन या चार बार फसल उगाते हैं.
वैद ने बताया, ‘नहर से पर्याप्त पानी मिलता है. भूजल का स्तर भी बढ़ गया है क्योंकि हम अब हर समय बोरवेल का उपयोग नहीं करते.’
भचाऊ, रापर और अंजार के गांवों में बदलाव की कुछ ऐसी ही सूरत नजर आती है.
गुजरात के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, कपास की औसत उपज 2006-07 में 624 किलोग्राम/हेक्टेयर से बढ़कर 2020-21 में 1080 किलोग्राम/हेक्टेयर हो गई है.
इसी तरह, गेहूं की पैदावार 2010-11 में 2,100 किग्रा/हेक्टेयर से बढ़कर 2020-2021 में 3,204.77 किग्रा/हेक्टेयर हो गई.
एसएसएनएनएल के निदेशक कपाड़िया ने कहा, ‘लगभग सभी फसलों के उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है. 2010-11 में कृषि उत्पादन 25.3 मिलियन टन था, और 2020-21 में यह बढ़कर 46.573 मिलियन टन हो गया.’
कुछ हिस्से अभी भी सूखाग्रस्त
कच्छ शाखा नहर ने भले ही इन क्षेत्रों में तमाम ग्रामीणों का जीवन बदल दिया होगा, लेकिन इसका लाभ सभी को समान रूप से नहीं मिला है.
पिछले महीने पीएम मोदी ने खानाबदोश पशुपालक मालधारी समुदाय से कच्छ में बसने की अपील की थी, क्योंकि अब साल भर पानी और चारा उपलब्ध है. हालांकि, सूखाग्रस्त रहे जिले के हर कोने के लिए यह बात सच नहीं है.
सभी गांव कच्छ शाखा नहर के कमांड क्षेत्र में नहीं आते हैं, और कई किसानों को अभी भी भूजल का ही इस्तेमाल करना पड़ता है, जो न केवल दुर्लभ है, बल्कि लवणता के कारण खेती के लिए पूरी तरह उपयुक्त भी नहीं है.
कुछ गांवों में भूजल 600 फीट से नीचे से पंप करना पड़ता है. इन किसानों का कहना है कि उनकी दलीलों को हर बार अनसुना कर दिया गया है और ऐसे में उनके पास कच्छ से पलायन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.
कुछ गांव तो ऐसे भी हैं जो कच्छ शाखा नहर के कमांड क्षेत्र में आते हैं, लेकिन सप्लाई नेटवर्क के अभाव में वहां तक अभी पानी नहीं पहुंच पा रहा है.
भचाऊ तालुका के सिकरा गांव निवासी 75 वर्षीय आर.आर. पटेल ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पास 300 एकड़ जमीन है लेकिन पानी की कमी के कारण आधे से भी कम में खेती कर पाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं ज्वार और कपास उगाता हूं. मेरे परिवार की तीन पीढ़ियां खेती में लगी थीं. लेकिन अब, मैं यहां अकेला बचा हूं. मेरे बच्चे मुंबई में जाकर बस गए हैं क्योंकि खेती से कोई आमदनी नहीं होती थी. पानी के अभाव में मेरे खेतों की उपज बहुत घट गई है.’
उनके मुताबिक उनके गांव के लोग कच्छ शाखा नहर के पानी से वंचित हो रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई सप्लाई नेटवर्क नहीं है. पटेल ने कहा, ‘नहर से हमारे खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए कोई पाइपलाइन नहीं बिछाई गई है.’
अंजार तालुका के पास देवीसर गांव में भी यही समस्या है—पर्याप्त पानी का अभाव. हालांकि, यहां स्थिति और भी विकट नजर आती है क्योंकि यह गांव कच्छ शाखा नहर के कमांड क्षेत्र में नहीं आता है.
देवीसर के निवासी पेयजल के साथ-साथ सिंचाई के पानी के लिए भी आसपास के गांवों पर निर्भर हैं. 80 एकड़ जमीन के मालिक एक मालधारी शामजीभाई अहीर, जो अपनी जमीन पर चारा घास, ज्वार और अरंडी उगाते हैं, ने तो यहां किसी तरह के बदलाव की उम्मीद ही छोड़ दी है.
उन्होंने कहा, ‘आसपास के गांवों को कच्छ शाखा नहर से पानी मिल रहा है, लेकिन हमें मना किया जा रहा है क्योंकि हमारा गांव परियोजना के कमांड क्षेत्र में नहीं आता है. जब पानी ही नहीं है तो हम अपना जीवन यापन कैसे करेंगे?’
अहीर को हर दो दिन में पानी लाने के लिए निजी टैंकर से सीकरा जाना पड़ता है. उन्होंने बताया, ‘टैंकर में 4,000 लीटर पानी आता है और इसकी कीमत 500 रुपये होती है. यह पानी दो दिन तक ही चलता है.’
उन्होंने बताया कि पहले तो वह 500 फीट की गहराई से भी पानी पंप कर पाते थे, लेकिन अब जलस्तर 800 फीट से नीचे चला गया है. उन्होंने कहा, ‘ऐसे में पंप से पानी निकालना संभव नहीं है.’
किसानों के विरोध और साल के अंत में गुजरात में प्रस्तावित चुनाव के मद्देनजर राज्य सरकार ने लिंक नहरों के माध्यम से कच्छ शाखा नहर से पानी लेने और उन गांवों में लगभग 100 जलाशयों को भरने का प्रस्ताव रखा है जो नहर से नहीं जुड़े हैं.
सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि प्रस्तावित प्रोजेक्ट, जिसे अभी गुजरात सरकार की अंतिम मंजूरी नहीं मिली है, पर 3,500 करोड़ रुपये की लागत आएगी. अधिकारी ने कहा, ‘शाखा नहर से 1 मिलियन एकड़ फीट पानी उन क्षेत्रों में ले जाने का प्रस्ताव है जो इसमें कवर नहीं होते हैं.’
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