एक सामंजस्यपूर्ण समाज की कल्पना करना कैसे संभव है अगर दो समुदायों के लोग आपस में प्यार-मोहब्बत नहीं करते या शादी नहीं करते?
पहलू खान, तालीम हुसैन, रकबर खान और अहमद खान जैसे लोगों की गौरक्षक दलों द्वारा हत्या कर दी गई है जिन्होंने हाल ही में गोमांस खाने और गौ तस्करी के आरोपों में निर्दोष मुस्लिम नागरिकों को सताए जाने का एक पूरा रिकार्ड बनाया है। गौरक्षकों के बीच इस्लामोफ़ोबिया बढ़ रहा है।
कुछ साल पहले भारत वैश्विक बाजार में गोमांस का सबसे बड़ा निर्यातक था। लेकिन अब तो भैंस निर्यातकों ने भी अपने हिस्से की परेशानियों का सामना किया है।
क्या भारत के अधिकांश राज्यों में गोमांस प्रतिबंध की कोई वजह थी? कई लोग मानते हैं कि असल वजह धर्म नहीं बल्कि राजनीति थी। एक उदारवादी लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति की भोजन और कपड़े की पसंद पूर्ण रूप से निजी और व्यक्तिपरक होती है। जो लोग गायों को पवित्र मानते हैं वह गोमांस नहीं खायेंगे और जो लोग नहीं मानते वह लगातार गोमांस खा सकते हैं। बस यही इसका सबसे तार्किक समाधान है।
शाकाहारियों की एक बड़ी संख्या का मतलब यह तो नहीं कि बाजार से मांस मछली को हटा दिया जाए या इसके विपरीत।
वे लोग जो गोमांस खाने की चाहत रखते हैं उनको इसे खाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है अगर उनकी संख्या कम हो? एक लोकतंत्र में केवल बहुसंख्यकों को ही नहीं बल्कि साथ में अल्पसंख्यकों को भी ध्यान में रखा जाता है।
गोमांस व्यापार को लगे करारे झटके के बाद गोमूत्र की माँग में अचानक बढ़ोतरी आ गई है और यह गाय के दूध से ज्यादा महंगा हो गया है। इसमें हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए, अंधविश्वासों की दुकान हमेशा बहुत अच्छी चली है। मवेशी वध पर लगे प्रतिबंध के बाद, वित्तीय संकट के समय किसान अपनी पुरानी गायों को बेचकर कुछ रकम पाने की उम्मीद नहीं रख सकते हैं। इसके बजाय बड़ी तादाद में गायों का परित्याग किया जा रहा है।
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रकबर की तरह, राजस्थान में ही एक दक्षिण पंथी कट्टरवादी हिन्दू ने पश्चिमी बंगाल के एक बंगाली मजदूर अफराजुल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे और फिर जलाकर मार डाला था। अफराजुल का गुनाह क्या था? उसके जैसे मुस्लिम लोग हिन्दू महिलाओं को लुभा रहे थे, मीठी-मीठी बातें करके शादी के लिए फुसला रहे थे और फिर जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर रहे थे। यह बात तो पूरी तरह से मुमकिन है कि मुस्लिम पुरूषों ने इसे जिहाद के एक नए रूप में चुना, लेकिन मैं निष्ठापूर्वक इस बात पर भरोसा नहीं कर सकती कि अधिकांश मुस्लिम पुरूष इसी इरादे से प्यार-मोहब्बत करते हैं।
हिन्दुओं और मुस्लिमों को एक साथ रहना चाहिए, पढ़ाई-लिखाई करनी चाहिए और सामाजिक रूप से मिलजुल कर रहना चाहिए। अगर वे एक दूसरे से आकर्षित नहीं होते हैं तो यह बहुत ही अस्वाभाविक होगा।
पिछले हफ्ते गाजियाबाद का एक मुस्लिम युवक अपनी हिन्दू प्रेमिका के साथ अदालत में शादी करने के लिए गया था। जब खबर फैली तो हिन्दुओं के एक समूह ने उस युवक के साथ अदालत परिसर में ही मारपीट की। ऐसा लगता है कि हिंदुओं और मुस्लिमों ने अंतर-विश्वास विवाह को नकारने का फैसला ही कर लिया है। शादी तो भूल जाओ, यहाँ तक कि एक साधारण प्रेम-प्रसंग में भी खून-खराबे और हिंसा की धमकी दी जाती है। कुछ समय पहले राजस्थान में खेतराम भीम नामक एक दलित युवा की एक मुस्लिम लड़की से प्यार करने के आरोप में मुस्लिमों द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी जैसे कि दिल्ली में अंकित सक्सेना की उसकी मुस्लिम प्रेमिका के रिश्तेदारों द्वारा हत्या कर दी गई थी।
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सुरक्षा, शांति, सद्भाव और खुशी के आधार पर समाज की कल्पना करना कैसे संभव है यदि दो समुदायों के लोग प्रेम प्रसंग नहीं रखते या विवाह नहीं करते हैं? नफरत किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। आखिरकार, एकमात्र चीज जो समाधान करती है वह है प्यार। लेकिन धार्मिक कट्टरपंथी लोग आदमी को मानव जाति के रूप में नहीं मानते हैं, वे उन्हें केवल हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई या यहूदी मानते हैं। बेशक, ये सभी मुख्य रूप से निम्न और मध्यम वर्गों को परेशान करने वाले मुद्दे हैं। शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, सलीम खान, सुनील दत्त, ऋतिक रोशन, किशोर कुमार जैसे समृद्ध और मशहूर लोगों पर अत्याचार नहीं किया गया जब उन्होंने अन्तर्जातीय/अन्य धर्मों की महिलाओं से शादी की। लेकिन यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि मध्यम वर्ग और अल्प सुविधा प्राप्त वर्ग अशिक्षित तथा कट्टरवादी हैं जबकि उच्च वर्ग शिक्षित तथा धर्मनिरपेक्ष हैं।
भारत में, अंतर्जातीय विवाह आम नहीं हैं। अन्य शिक्षित/सभ्य देशों में, हाल के दिनों में इस तरह के विवाह का प्रतिशत काफी बढ़ गया है। कैथोलिक यहूदी से शादी करते हैं, यहूदी प्रोटेस्टैंट से शादी करते हैं, मॉर्मन एपिस्कोपैलियन से शादी करते हैं और नास्तिक लोग यहोवा के साक्षियों से शादी करते हैं। आमतौर पर उनमें से कोई भी किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करता है जब वह किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से शादी करता है- समस्या केवल तब उत्पन्न होती है जब एक हिंदू और एक मुस्लिम आपस में शादी करते हैं। या तो दोनों समुदाय या उनमें से एक गुस्से में उबल उठतते हैं। यदि एक हिंदू एक समृद्ध मुस्लिम परिवार में विवाह करता है तो विपक्ष की शक्ति कमजोर पड़ जाती है, जैसे कि एक प्रभावशाली दलित और एक असहाय ब्राह्मण के बीच सफलतापूर्वक विवाह पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है।
इस्लाम में समस्या यह है कि ज्यादातर मुस्लिम अपने मूल धर्म का पालन जारी रखने के लिए किसी अन्य धर्म का जीवनसाथी नहीं चाहते हैं – वे धर्म-परिवर्तन पर जोर देते हैं। नतीजतन, लोग मुस्लिम से शादी करने से पहले दो बार सोचते हैं। मुस्लिम पुरुष जो अपने जीवनसाथी के इस्लाम में धर्मपरिवर्तन पर जोर नहीं देते हैं, वे लंबे और स्वस्थ संबंधों को बनाए रखने का प्रबंधन करते हैं। मुस्लिमों को और अधिक ग्रहणशील बनने की भावना सीखनी चाहिए, हिंदुओं को भी। न तो ‘लव जिहाद’ का टैग और न ही बढ़ती आबादी का मिशनरी मोड एक मुस्लिम के लिए भारत में अच्छा टैग हो सकता है। जितने अधिक हिंदू और मुस्लिम प्यार में पड़कर शादी करेंगे, उनकी धार्मिक पहचान उतनी अधिक अप्रामाणिक, अनैतिक तथा परिवर्तनीय बनेगी, और समाज उतना ही अधिक शांतिपूर्ण बन जाएगा।
कठोर सच्चाई यह है कि हिंदुओं और मुस्लिमों को भारत में मिल-जुलकर रहना चाहिए और इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व आपसी सम्मान की मांग करता है। भारतीय मुसलमान बाहरी नहीं हैं; यह केवल उनका धर्म है जो बाहरी लोगों से इसकी उत्पत्ति का ऋणी है। लेकिन दक्षिणपंथी हिंदू अभी भी मुसलमानों को अनाधिकार से रहने वाले व्यक्ति मानते हैं। रूढ़िवादी मुसलमान भी मानते हैं कि मुसलमान जो कहीं और से आए हैं वे हिंदुओं की तुलना में उनके नजदीकी हैं। अफसोस की बात है कि दोनों पक्षों के कट्टरपंथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में अब एक नया और अदृश्य विभाजन आकार ले रहा है।
तसलीमा नसरीन एक प्रसिद्ध लेखिका और टिप्पणीकार हैं।
Read in English : A new, invisible Partition is happening in India between Hindus and Muslims