दिप्रिंट ने अपनी जाँच में पाया कि स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य को संयंत्र से जोड़ने का कोई आधिकारिक साक्ष्य नहीं है, कैंसर की दर राज्य के अन्य भागों के ही समान है।
तूतूकुड़ी (तूतीकोरिन): दो महीने पहले, तमिलनाडु सरकार ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों और पुलिस की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत के बाद पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर चिंता जताते हुए बंदरगाह शहर में स्थित स्टरलाइट कॉपर स्मेलटर को बंद करने का आदेश दिया था।
बहुत कम चीजें हैं जो इस निर्णय को औचित्यपूर्ण ठहराती हैं, हालांकि इस संयंत्र का इतिहास खराब ही रहा है, दिप्रिंट को एक जाँच द्वारा पता चला।
स्थानीय और कुछ बाहरी प्रदर्शनकारी यह आरोप लगाते हुए इकाई के प्रस्तावित विस्तार का विरोध कर रहे थे कि मौजूदा इकाई तो खुद ही जानलेवा प्रदूषण का कारण है। उन्होंने दावा किया कि दो दशकों से अस्तित्व में आने के दौरान से इस संयंत्र ने कैंसर के मामलों और सांस संबंधी रोगों की बढ़ोतरी की है और हवा तथा भूजल को प्रदूषित किया है।
लेकिन जिला अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य को संयंत्र से जोड़ने का कोई आधिकारिक साक्ष्य नहीं है – कुछ स्थानीय डॉक्टरों द्वारा इस तरह की बातों को समर्थन प्राप्त है – हालांकि पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए संयंत्र कटघरे में रह चुका था और इसे बंद करने के आदेशों और अदालती मामलों का एक विवादास्पद रिकॉर्ड है।
सरकार का इसे बंद करने का आदेश उत्सर्जन मानदंडों का उल्लंघन करने वाले संयंत्र के किसी साक्ष्य का उल्लेख नहीं करता है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने पर्यावरण प्रदूषण के लिए इकाई पर 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था, लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक लंबी अदालती लड़ाई के बावजूद, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) यह साबित करने में अक्षम रहा कि संयंत्र का उत्सर्जन और प्रदूषण स्तर अनुमानित सीमा से अधिक है।
नाम छापने की शर्त पर टीएनपीसीबी के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि “विरोध प्रदर्शन के नियंत्रण से बाहर होने के बाद सरकार के पास संयंत्र को बंद करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। लेकिन कमजोर आधार हमें काटने के लिए धीरे-धीरे फिर से वापस आ रहा है।”
अधिकारी ने आगे बताया कि “परियोजना का विरोध करने वाले लोग और कार्यकर्ता कंपनी को बंद करने के लिए दुर्बल कारणों का हवाला देते हुए हम पर ही कंपनी के प्रति नरम रूख अपनाने का आरोप लगा रहे हैं। जबकि स्टरलाइट अपील-प्राधिकारी के समक्ष आदेश ख़िलाफ़ लड़ रही है।”
टीएनपीसीबी के एक और अधिकारी ने भी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि “सरकारी आदेश में जिन कारणों का हवाला दिया गया है वह बहुत मजबूत नहीं हैं। जहाँ तक मुझे पता है, उत्सर्जन या प्रदूषण मानदंडों को लांघने वाली कंपनी की कोई हालिया रिपोर्ट नहीं है।”
कंपनी की वायु गुणवत्ता का डाटा टीएनपीसीबी की वेबसाइट के पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध है। जानकारी में केवल मौजूदा समय का डाटा उपलब्ध है कोई पुराना (ऐतिहासिक) डाटा उपलब्ध नहीं है। इकाई को बंद हुए करीब चार महीने हो गए हैं और जाँच करने के लिए कोई वर्तमान डाटा उपलब्ध नहीं है।
तूतूकुड़ी के जिला कलेक्टर संदीप नंदुरि ने प्रदूषण नियंत्रण निकाय की बात का समर्थन किया।
“अभी तक कुछ भी साबित करने के लिए कोई भी प्रत्यक्ष रिपोर्ट नहीं है। लेकिन अब हम दावों को लेकर असमंजस में हैं। हम एक स्वास्थ्य सर्वेक्षण करने के बारे में विचार कर रहे हैं यह देखने के लिए कि क्या कैंसर, श्वसन संबंधी और अन्य रोगों के मामलों में वृद्धि हुई है या नहीं।”
ईमेल और फोन पर बार-बार रिमांइडर भेजने के बावजूद स्टरलाइट कॉपर ने दिप्रिंट की विस्तृत प्रश्नावली का जवाब देने से इंकार कर दिया है।
कैंसर में वृद्धि?
कॉपर स्मेल्टर का नजदीकी गांव कुमारेड्डियपुरम, जहां विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, वहां की 58 वर्षीय पार्वती ने दिप्रिंट को बताया कि हाल ही में कैंसर के कारण चार लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
“कंपनी, हमारे गांव के पास एक कालिख का ढेर लगा देती है। उसने आगे कहा कि जब हवा चलती है, तो धूल के साथ हवा इतनी दूषित हो जाती है कि यहाँ के लोग हमेशा खांसी-जुकाम से पीड़ित ही रहते हैं”।
टीएनपीसीबी के अधिकारियों ने बताया कॉपर स्लैग के कचरे को गांव के समीप एकत्रित किया गया है, लेकिन यह भी बताया कि यह जहरीला या हानिकारक नहीं था।
तूतूकुड़ी सरकारी अस्पताल के एक वरिष्ठ ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ ने कहा कि स्मेल्टर और कैंसर की घटनाओं के बीच किसी भी समबद्धता को समर्थन देने के लिए कोई मजबूत आँकड़ा नहीं था।
डॉक्टर के अनुसार, जो इस मुद्दे की संवेदनशीलता के कारण इसमें पड़ना नहीं चाहता था, थूथुकुडी में कैंसर के मामलों की संख्या में वृद्धि पूरे राज्य की प्रवृत्ति के अनुरूप थी, खतरनाक नहीं।
डाक्टर ने कहा “हमारे हिसाब से हमने कोई प्रबल वृद्धि नहीं देखी है। ऑन्कोलॉजी के अधिकांश मामले गेस्ट्रोइन्टिस्टनल (पाचन तंत्र के संक्रमण) होते हैं, जो खाने की वजह से होता है, वायु प्रदूषण के कारण नहीं”।
उन्होंने कहा, “सरकार को आदर्श रूप से रक्त के नमूने लेने, विषैले पदार्थों के लिए विश्लेषण करने, इन क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता का विश्लेषण करने और रक्त नमूनों में पाए जाने वाले समान विषाक्त पदार्थों की जांच करने की आवश्यकता है, ऐसा परीक्षण सटीक होगा, लेकिन यह महंगा है और इसमें समय ज्यादा ।
2014 में तमिलनाडु कैंसर रजिस्ट्री परियोजना द्वारा उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार (जनगणना 2011), थूथुकुडी की 17.5 लाख की जनसंख्या के बीच नए कैंसर के मामलों की संख्या 1,282 थी। इसी अवधि में, पूरे तमिलनाडु में 7.21 करोड़ जनसंख्या के बीच नए कैंसर के मामलों की संख्या 61,402 थी।
आँकड़ों के अनुसार, उस समय तूतूकुड़ी में 13 पुरुषों में से एक और 14 महिलाओं में से एक कैंसर के बढ़ते जोखिम से जूझ रहे थे, जबकि पूरे राज्य के लिए इसी संख्या में 13 पुरुषों में से एक और 11 महिलाओं में से एक महिला इस समस्या से जूझ रही थी।
कैंसर के व्याप्त रूप बाकी राज्यों में भी समान ही थे, फेफड़ों और जीभ के बाद पेट को प्रभावित करने वाला कैंसर और महिलाओं के बीच स्तन, गर्भाशय और अंडाशय का कैंसर।
इस बीच, स्टरलाइट ने आरोपों का मुकाबला करने के लिए, तमिलनाडु स्वास्थ्य विभाग के 2014 के आँकड़ों का प्रयोग किया है। कैंसर की अशोधित घटना दर के लिए राज्य के 32 जिलों के आँकड़ों के अनुसार, तूतूकुड़ी पुरुषों के मामले में 14 वें स्थान पर है और महिलाओं में यह 25 वें स्थान पर है।
कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि “इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (डब्ल्यूएचओ) द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड को मानव में कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ के रूप में वर्णित नही किया गया है”।
कॉपर स्मेल्टर, सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में करते हैं।
पानी पानी
कुमारेड्डियपुरम में, 60 वर्षीय नीला ने एक बोरवेल चालू किया जिसमें पीले रंग का पानी निकला।
उन्होंने बताया, “यही कारण है कि हम यह पानी नहीं पीते हैं। पीने का ताजा पानी हर समय हमारे नलों में उपलब्ध नहीं है। हम बाहर जाते हैं और पीने के लिए पानी की बोतलें खरीदते हैं।”
जिला कलेक्टर नंदुरी ने स्पष्ट किया कि भूजल प्रदूषण के आरोप सच थे, लेकिन इस पर उन्होंने बताया, “इससे ग्रामीणों का स्वास्थ्य प्रभावित नहीं होना चाहिए क्योंकि वह इसका केवल कपड़े धोने और सफाई के उद्देश्यों के लिए उपयोग करते हैं।”
उन्होंने बताया, “पीने के लिए हम नदी के पानी की आपूर्ति करते हैं।”
सरकार की एकमात्र रिपोर्ट जो स्मेलटर (की वेबसाइट) पर उपलब्ध है 2006-07 की है, जो तिरूनेलवेली मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक औषधि विभाग द्वारा की गई थी, इस रिपोर्ट में 5 किलो मीटर की रेडियस के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त की गई थी।
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार, इस जाँच में श्वसन तंत्र में 9 प्रतिशत संक्रमण बढ़ने की संभावना पता चली, जिसका जिम्मेदार वायु प्रदूषण ठहराया गया, और जाँच क्षेत्र में गैसों और कणों की उपस्थिति भी मिली। हालांकि स्टरलाइट की तरफ़ कठोरतापूर्वक इशारा नहीं किया गया है।
शोधकर्ताओं को भूजल में आर्सेनिक के कोई भी सुराग नहीं मिले, और जाँच के दौरान पता चला कि त्वचा से संबंधित बीमारियों में से कोई भी आर्सेनिक विषाक्तता से नहीं हुई थी, जो आर्सेनिक-दूषित पानी पीने से होती है और त्वचा की बीमारियों, फेफड़ों और त्वचा के कैंसर का कारण बनती हैं।
उत्सर्जन पर चुप्पी
9 अप्रैल को टीएनपीसीबी ने स्टरलाइट के मौजूदा संयंत्र को संचालित करने की सहमति को नवीनीकृत करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। आदेश ने पाँच कारणों का हवाला दिया, जिनमें से किसी में भी उत्सर्जन उल्लंघन का उल्लेख नहीं किया गया हैः
* कंपनी ने आस-पास के क्षेत्रों में बोरवेल से भूजल का विश्लेषण करने वाली एक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की थी।
* इसने नदी अपर (River Uppar) में बहाए गए कॉपर धातुमल को नहीं हटाया या नदी में इसके प्रवेश को रोकने के लिए कोई भौतिक बाधा स्थापित नहीं की।
* यह बोर्ड का आदेश होते हुए भी एक जिप्सम तालाब बनाने में विफल रही थी। (जिप्सम पानी को साफ करने में मदद करता है)
* इकाई को खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न करने और व्यवस्थापन के लिए दिया गया अधिकार 9 जुलाई 2013 को समाप्त हो गया था। नवीनीकरण के लिए फर्म का आवेदन अतरिक्त जानकारी माँगते हुए वापस कर दिया गया था, लेकिन इसे पुनः प्रस्तुत नहीं किया गया था।
* कंपनी ने आसपास की हवा में आर्सेनिक जैसी भारी सामग्रियों के मानकों का विश्लेषण नहीं किया था, और इस तरह आसपास की हवा में आर्सेनिक की उपस्थिति पर कोई प्रमाणित रिपोर्ट नहीं थी।
स्टरलाइट ने बोर्ड के फैसले को चुनौती दी है और अपील प्राधिकारी द्वारा मामले की सुनवाई चल रही है। कंपनी ने अपनी इकाई चलाने के लिए और राज्य सरकार की कार्रवाई को ग़ैरकानूनी और अवैध घोषित करने का नेतृत्व करने के लिए राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल से अनुमति माँगने के लिए भी संपर्क किया है।
कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर कहती है, “सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) मानदंडों के अनुसार हवा की गुणवत्ता की जाँच चार स्थानों पर की जाती है और इसका स्तर सीमा के भीतर ही होता है।”
“इसके अलावा, हमने तीन निरंतर चलने वाले परिवेशीय वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित किए हैं और केयर एयर सेंटर, टीएनपीसीबी को जाँच का डेटा प्रेषित किया जाता है। हम एमओईएफ ऐन्ड सीसी (पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) के क्षेत्रीय कार्यालय में नियमित रूप से छह-मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं।”
एक स्थानीय पर्यावरणीय कार्यकर्ता फातिमा बाबू, जो स्टरलाइट विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं, ने सरकार के मंसूबों पर सवाल उठाया।
उन्होंने बताया, “उनके पास स्टरलाइट को स्थायी रूप से बंद करने के लिए आवश्यक पूरी जानकारी है। हमें वह भी जानकारी प्राप्त हुई है जिसकी हमें टीएनजीसीबी के विरुद्ध अपनी आपत्तियों को वापस लेने की आवश्यकता थी।”
हमेशा विवादास्पद
शुरूआत में इकाई को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थापित करने का सोचा गया था, लेकिन बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार ने इस योजना को बंद करने फैसला लिया था। 1996 में कारखाने को तमिलनाडु में स्थापित करने का लाइसेंस दिया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कारखाने का संचालन शुरू होने के शुरूआती महीनों में ही “प्रतिकूल घटनाएं” घटना शुरू हो गईं थी। पड़ोस के ही, फ्लावर यूनिट में काम करने वाले, रमेश बीमार पड़ गए और पास के ही विद्युत उप-स्टेशन के कर्मचारियों ने सांस लेने में समस्या की शिकायत की दर्ज कराई।
1998 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) की एक रिपोर्ट के आधार पर संयंत्र के तत्काल बंद करने का आदेश भी दिया था। यह कहा गया थी कि यह संयंत्र मन्नार की खाड़ी, जो एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है, से 14 किलोमीटर की दूरी के भीतर स्थित है, एक सरकारी नियम 25 किलोमीटर की न्यूनतम दूरी का प्रावधान देता है, और साथ ही भूजल प्रदूषण पर प्रकाश भी डालता है। हालांकि आदेश पर रोंक लगा दी गई और मामला खींचता चला गया।
2010 में, मद्रास हाईकोर्ट ने यह कहते हुए, कि संयंत्र पर्यावरणीय मानदंडों का पालन करने में असफल रहा है, एक बार फिर संयंत्र को बंद करने का आदेश दिया, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी।
2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने 1997 से 2012 तक पर्यावरण प्रदूषण के लिए और एक निश्चित अवधि के लिए वैध टीएनपीसीबी अनुमतियों के बिना संयंत्र संचालित करने के लिए स्टरलाइट पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया लेकिन संयंत्र का संचालन जारी रखने की अनुमति दी। अदालत ने 1998, 1999, 2003 और 2005 की एनईईआरआई रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताया की कारख़ाना प्रदूषण फैलता था जो टीएनपीसीबी मानदंडों के अनुरूप नहीं था।
उसी वर्ष, टीएनपीसीबी ने गैस रिसाव के आरोपों के बाद संयंत्र को बंद करने के आदेश जारी किए। हालांकि, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश को ख़ारिज कर दिया। टीएनपीसीबी ने तर्क दिया था कि सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन निर्धारित सीमा से अधिक था, लेकिन स्टरलाइट ने यह कहकर इसे अमान्य सिद्ध करने का प्रयत्न करना किया, कि ऐसा इसलिए था क्योंकि संयंत्र अपने उत्सर्जन निगरानी उपकरणों को पुन: परिचालित कर रहा था।
8 अगस्त, 2013 को अपने आदेश में एनजीटी बताया कि “वर्तमान मामले में तथ्यों के संचयी दृष्टिकोण और परिस्थितियों से पता चलता है कि यह मामला पर्यावरण की लागत पर विकास को बढ़ावा देने का मामला नहीं है।””यह सिद्ध नहीं किया गया है कि अपीलकर्ता-कंपनी द्वारा की गई औद्योगिक गतिविधियां प्रतिकूल और किसी भी तरह से भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के हितों के पर्यावरण से समझौता करती है।”
यह भी कहा गया, “23 मार्च, 2013 को कथित गैस रिसाव के लिए कंपनी जिम्मेदार नहीं थी और अपीलकर्ता-कंपनी के प्लांट को निर्धारित पैरामीटर से अधिक सल्फर डाइऑक्साइड का रिसाव होने का कोई विश्वसनीय सबूत या उचित वैज्ञानिक डेटा नहीं है।“
स्टरलाइट ने 2016 में हालिया विरोधों का मुख्य कारण, दूसरी इकाई स्थापित करने के लिए टीएनपीसीबी की सहमति मिलना था। मद्रास उच्च न्यायालय ने हालांकि याचिका के बाद पिछले महीने दूसरी इकाई के निर्माण को रोक दिया था, एक याचिका के दायर किए जाने के बाद आरोप लगाया गया था कि कंपनी को अधिसूचित औद्योगिक संपत्ति में स्थान को गलत तरीके से प्रस्तुत करके मंजूरी ली है।
इसने इंगित किया कि तमिलनाडु के राज्य उद्योग संवर्धन निगम का दूसरा चरण, जहां दूसरी इकाई स्थित थी, को अभी तक पर्यावरण मंजूरी प्राप्त नहीं हुई है।
Read in English : Sterlite copper unit in Tamil Nadu was shut down without evidence of ‘toxicity’ or cancer