मोदी सरकार मानती है कि वह सच को झूठ बनाकर पेश करेगी और लोग उसे मान लेंगे।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने (लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ) इस इलज़ाम का ज़ोरदार विरोध किया कि भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान भीड़ द्वारा लोगों को पीटकर मार देने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। उनका यह बयान अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के उस बयान के ठीक बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों से भारत में कोई “बड़े सांप्रदायिक दंगे” नहीं हुए। दोनों ही बातें सरासर गलत हैं पर वे किस हद तक गलत हैं, इसके विश्लेषण से कई नयी बातों के सामने आने की सम्भावना है।
भाजपा के सत्ता में आने के बाद हिंदुत्ववादी शक्तियों ने अपना प्रभुत्व स्थापित करने की मंशा से कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया है। एक दुखद आंकड़े के मुताबिक़ वर्ष 2014 के मध्य से लेकर अबतक कुल 389 व्यक्तियों की हत्या अल्पसंख्यकों के विरुद्ध सांप्रदायिक हिंसा में हुई है। इसके अलावा सैंकड़ों ऐसे भी हैं जिन्हें मारा पीटा और प्रताड़ित किया गया है।इन मामलों के बीच पंद्रह वर्षीय जुनैद खान की कहानी दुखद रूप से उल्लेखनीय है। जुनैद ईद के लिए कपड़े खरीदकर एक भीड़भरी ट्रेन से घर आ रहा था जब उसे चाकुओं से गोदकर रेलवे ट्रैक पर मरने के लिए फेंक दिया गया। उसका जुर्म केवल इतना भर था की वह मुस्लिम था। अख़बारों की सुर्खियां दंगों एवं हत्याओं की ख़बरों से भरी पड़ी हैं, हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य अपने चरम पर है – कहीं किसी को माथे के तिलक की वजह से मार दिया जा रहा है तो किसी को खतने की वजह से।
2014 में हुई भाजपा की जीत के बाद हिन्दू विजयवाद की एक लहर ने पूरे देश को अपनी चपेट में लिया है। इसके नतीज़तन गोरक्षा से सम्बंधित नए नियम बनाये जाने और उनका सख़्ती से पालन किये जाने की मांग लगातार उठी है। कई गोरक्षक संस्थाओं का अचानक से पुनर्जन्म हुआ है और उन्होंने इन नियमों का पालन कराने का बीड़ा भी खुद ही उठा लिया है। इस प्रक्रिया में उन्होंने न केवल क़ानून अपने हाथ में लिया है बल्कि गोरक्षा की धुन में हत्या जैसे संगीन जुर्म भी किये हैं। पिछले आठ वर्षों में गायों से सम्बंधित हिंसा की 70 घटनाएं सामने आयी हैं जिनमें से 97 प्रतिशत (70 में से 68 ) मामले पिछले चार वर्षों में, भाजपा शासन के दौरान हुए हैं। हिंसा की यह घटनाएं मुख्यतः भाजपा शासित प्रदेशों में ही सामने आयी हैं। इन हमलों में 136 लोग घायल हुए हैं और 28 जानें गयी हैं। यह बताने की ज़रुरत नहीं कि 86 प्रतिशत मामलों में पीड़ित मुस्लिम थे।
इनमें से कई घटनाएं जानी मानी हैं : दुग्ध उत्पादक किसान पहलू खान की हत्या 1 अप्रैल 2017 को पीट पीटकर तब कर दी गयी जब वे पूर्णतया कानूनी रूप से मवेशी ढो रहे थे। पहलू भीख की रहम मांगते रह गए लेकिन उनके हत्यारे मोबाईल पर उनकी विडिओ बनाने में लगे थे। हरियाणा निवासी मुश्तैन अब्बास, जोकि पेशे से एक चरवाहा था, की गोरक्षकों ने साल भर पहले केवल हत्या ही नहीं की, उसके मृत शरीर को विकृत भी कर दिया। उसका जुर्म केवल यह था की वह अपना काम कर रहा था – मवेशी चराना। ट्रकचालक, पशु व्यवसायी एवं कथित रूप से गौ तस्करों की हत्या भी इन “गोरक्षक” समूहों ने की है। एक 16 वर्षीय कश्मीरी मुस्लिम लड़के की हत्या केवल इसलिए कर दी गयी क्योंकि उसने जानवर ढोनेवाले एक ट्रक से लिफ्ट ली थी। आजकल कई जगहों पर गायें मुस्लिमों से ज़्यादा सुरक्षित हैं।
2015 में एक अन्य मुस्लिम, मोहम्मद अख़लाक़ की एक भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी। अख़लाक़, जिनका बेटा भारतीय वायुसेना में बतौर हवालदार कार्यरत है , पर गोकशी का शक था। प्रशासन द्वारा गठित फोरंसिक टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उनके फ्रिज में पाया गया मांस गाय का नहीं था। दुःख की बात है कि एक आदमी की हत्या कर दी गयी और उसके बेटे को पीट – पीटकर अधमरा कर दिया गया , केवल इस संदेह में कि उन्होंने गोमांस खाया था। यही नहीं, इस हत्यारी भीड़ का भाग रहे एक व्यक्ति की एक हफ्ते बाद प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गयी। उसके ताबूत को न केवल तिरंगे में ढंका गया बल्कि एक केंद्रीय मंत्री ने उसकी शान में कसीदे भी काढ़े। यह एक अकथनीय घटना है जिसके लिए भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
इन गोरक्षकों का शिकार केवल मुस्लिम ही नहीं बने हैं। कई दलितों को भी हिंसा झेलनी पड़ी है। लेकिन इस सारी घटनाओं पर चढ़े सांप्रदायिक रंग ने नक़वी की दलीलों को झुठला दिया है। शायद वे इस दलील के पीछे छुपना चाहते हैं कि यह व्यापक सांप्रदायिक हिंसा न होकर इक्की- दुक्की घटनाएं हैं। इसके बावजूद एक व्यापक नक्शा उभरकर सामने आया है जिसने पूरे देश को काफी गहराई से प्रभावित किया है। यह समाज के लिए निश्चय ही शर्म की बात है कि एक मंत्री ने इस भीड़ के सदस्यों को मालाएं पहनकर उनका सम्मान किया। मंत्री का कहना है कि इन लोगों को फंसाया जा रहा है और वे बेल पर बाहर हैं लेकिन साथ ही उन्होंने माल्यार्पण की घटना के लिए खेद भी प्रकट किया है। हालाँकि जो होना था वो हो चुका है।
हमारे देश में सांप्रदायिक हिंसा के विश्लेषण के लिए प्रयोग की जानेवाली शब्दावली दुखद है। किसी भी सांप्रदायिक घटना को “बड़ा ” तभी माना जाता है जब पांच से ज़्यादा लोगों की जानें जाएँ या या कम से कम 10 लोगों को चोटें आएं। ऐसी घटना जिसमें एक जान गयी हो या दस से कम लोगों को चोटें पहुंची हों, उसे “महत्वपूर्ण” माना जाता है। नकवी ने “बड़ी” सांप्रदायिक घटनाओं का ज़िक्र किया है लेकिन इस शब्द की हमारी राष्ट्रीय शब्दावली में कोई जगह नहीं है और न ही इसे परिभाषित किया जा सकता है। हालाँकि इस परिभाषा के अनुसार भी भारत में भाजपा शासन के दौरान “बड़ी सांप्रदायिक घटनाएं’ (सहारनपुर ,उत्तर प्रदेश, 2014 ; हाजीनगर , पश्चिम बंगाल , 2016 एवं बदुरिया – बशीरहाट , पश्चिम बंगाल , 2017 ) घटी हैं।
हालाँकि जब हम “बड़ी” घटनाओं से “महत्वपूर्ण” घटनाओं की और बढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि पिछले चार वर्षों में “सांप्रदायिक घटनाओं ” की संख्या बढ़कर 2920 तक पहुंच गयी है। इन घटनाओं में 389 लोग मरे हैं और 8,890 व्यक्तियों को चोटें आयीं हैं। मेरी जानकारी का स्रोत स्वयं राजनाथजी की ही सरकार है : ये आंकड़े स्वयं गृह मंत्रालय ने लोक सभा में पूछे गए एक प्रश्न के उतार में दिए थे। सरकार के मुताबिक़ पिछले चार वर्षों में इस तरह की सर्वाधिक 645 घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटी हैं और इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। 2014 से 2017 के बीच सांप्रदायिक घटनाओं में हुई मौतों (121 ) के मामले में भी उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा है। 36 मौतों के साथ राजस्थान दूसरे स्थान पर है जबकि कर्नाटक (35) तीसरे स्थान पर। ऐसी सांप्रदायिक घटनाएं हरियाणा के बल्लभगढ़ (2015 ) से लेकर महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगाँव (2018 ) में भी घटी हैं।
गृह मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाली नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो का काम देशभर में होनेवाले अपराधों से सम्बंधित आंकड़े इकट्ठे करना एवं उनसे जुड़े दस्तावेजों का रख -रखाव करना है और दंगे स्वाभाविक रूप से इसके अंदर आते हैं। एनसीआरबी के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि 2014 से 2016 के बीच 2,885 से अधिक सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। यह भी संभव है कि इनमें से कई और दंगों को सांप्रदायिक न माना गया हो। अकेले 2016 में भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं (147 से लेकर 151 एवं 153A ) के अंतर्गत 61,974 मामले दर्ज हुए हैं। 153 A “धर्म, जाति और जन्म के स्थान के नाम पर शत्रुता को बढ़ावा देने” से सबंधित मामलों को एकत्रित करती है। यही नहीं , वर्ष 2016 में 869 सांप्रदायिक दंगों के आंकड़े हैं जिनमें से अधिकतम 250 हरियाणा में हुए हैं। २०१७ के आंकड़े अबतक आये नहीं हैं लेकिन मुझे आशंका है कि वे दुखद ही होंगे।
हमारी तत्कालीन सरकार सोचती है कि वह सच्चाई की अनदेखी करते हुए मनमाने बयान देती जायेगी और लोग उसका भरोसा कर लेंगे। इन दोनों मंत्रियों के अजीबोगरीब बयानों के पीछे यही मानसिकता काम करती हुई नज़र आती है। हमारे प्रधानमंत्री के भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर दिए बयान कुछ ऐसे ही हैं। इसके साथ ही विद्युतीकरण से लेकर महिला सशक्तिकरण तक पर सरकार की तरफ से झूठे बयान आये हैं। लेकिन तथ्य एवं आंकड़े महत्वपूर्ण हैं और तथ्य सरकार द्वारा पेश की जा रही इस सुहानी तस्वीर की पोल खोल देते हैं।
डॉ शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से संसद सदस्य हैं और विदेश मामलों एवं मानव संसाधन मंत्रालय के लिए राज्यमंत्री की भूमिका निभा चुके हैं। उन्होंने तीन दशकों तक एक प्रशासक और एक शांतिदूत के रूप में संयुक्त राष्ट्र के लिए काम भी किया है । उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज में इतिहास और टफट्स यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन किया। थरूर ने फिक्शन एवं नॉन फिक्शन मिलाकर कुल सत्रह लिताबें लिखीं हैं और उनकी सबसे हालिया किताब ‘व्हाय आय एम अ हिन्दू’ है । आप उनके ट्विट्टर हैंडल, @ShashiTharoor पर उन्हें फॉलो भी कर सकते हैं।
Read in English : Shashi Tharoor: It seems safer in many places to be a cow than a Muslim