नई दिल्ली: कनेक्टिविटी की भारी योजनाओं और ढांचागत विकास के बावजूद दक्षिण एशिया दुनिया में सबसे कम एकीकृत क्षेत्र है- इसके कुल व्यापार का केवल 5% क्षेत्र के अंदर होता है. विश्व बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र (एसएआर) में रीजनल इंटीग्रेशन एंड एंगेजमेंट डायरेक्टर सेसिल फ्रूमन का कहना है कि ज्यादा एकीकरण और निर्बाध कनेक्टिविटी से व्यापार में 44 बिलियन डॉलर का इज़ाफा हो सकता है.
भारत के दौरे पर आईं फ्रूमन ने दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में कहा, ‘ये एक ऐसा क्षेत्र है जो कनेक्टिविटी के मामले में अच्छे से जुड़ा हुआ नहीं है. एक ट्रक को भारत से सीमा पार करके बांग्लादेश भेजने में 138 घंटे लगते हैं और उसके लिए 22 कागज़ात चाहिए होते हैं जिनपर 55 दस्तखत होते हैं. इसलिए बहुत से मामलों में दक्षिण एशिया बहुत अच्छे से जुड़ा हुआ नहीं है’.
उन्होंने कहा, ‘अंतर-क्षेत्रीय दक्षिण एशियाई व्यापार कुल व्यापार का केवल 5 प्रतिशत है और हमारे अनुमानों के मुताबिक ये उसका केवल 20 प्रतिशत है जितना ये हो सकता है. इसलिए, अगर ये व्यापार के स्तर पर एकीकृत हो जाए, तो हम 44 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त व्यापार देख सकते हैं’.
उन्होंने कहा कि इसकी तुलना में 10 सदस्यीय दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के कुल व्यापार में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार का हिस्सा 22 प्रतिशत है और 27-सदस्यीय यूरोपीय संघ में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है.
फ्रूमन ने कहा, ‘अधिक एकीकरण विकास का एक स्रोत है और ये समृद्धि और समावेशन का भी स्रोत है. हमें बहुत से क्षेत्रों में फायदे नज़र आते हैं. अगर हम और अधिक मुक्त व्यापार समझौते करें और हमारे पास निर्बाध कनेक्टिविटी हो, तो इनमें से कुछ फायदे हमें मिल सकते हैं.’
उनके अनुसार भारत इससे तभी फायदा उठा सकता है जब वो पूर्वी एशिया, आसियान और अन्य देशों के साथ अधिक व्यापार करेगा, जिससे वैल्यू चेन और ‘अधिक लचीली’ बनेगी.
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके लिए कई भागीदार एक साथ आकर अपनी भूमिका निभा सकते हैं. निवेश और इनफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में जरूरतें बड़ी हैं. इसके लिए विश्व बैंक जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं और द्विपक्षीय संस्थाओं की भी एक भूमिका है’.
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बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल मोटर वाहन समझौता
दक्षिण एशिया में उठाए जा रहे कुछ सकारात्मक कदमों पर रोशनी डालते हुए फ्रूमन ने कहा कि बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (बीबीआईएन) फ्रेमवर्क के अंतर्गत मोटर वाहन समझौते पर दस्तखत करना, क्षेत्र में निर्बाध कनेक्टिविटी हासिल करने के लिए बहुत जरूरी है.
जून 2015 में, इन चार दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच यात्रियों, कर्मियों और मालवाहक वाहनों के निर्बाध आवागमन के लिए बीबीआईएन एमवीए पर दस्तखत किए गए थे.
पिछले महीने इन देशों ने एमवीए को परिचालित करने के तरीके खोजने के लिए खासकर यात्री और माल परिवहन के लिए फिर से मुलाकात की.
उन्होंने कहा, ‘परिवहन और कनेक्टिविटी के लिए बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल के बीच एमवीए है, जिसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया है. हमने कुछ अध्ययन किए और कुछ अनुमान लगाए और हमारा मानना है कि एमवीए को लागू करने से भारत और बांग्लादेश को काफी फायदे पहुंच सकते हैं’.
‘भारत के लिए हमारा अनुमान है कि उसकी राष्ट्रीय आय में 7.6 प्रतिशत का इज़ाफा हो सकता है और बांग्लादेश के लिए ये इज़ाफा 16.6 प्रतिशत होगा.’
फ्रूमन ने कहा, ‘एक और क्षेत्र है बिजली व्यापार. ये ऐसा क्षेत्र है जहां बिजली की मांग बढ़ने जा रही है. सीमा पार बिजली व्यापार 2015 के बाद से तीन गुना बढ़ गया है’. उन्होंने आगे कहा, ‘नेपाल और भारत के बीच बिजली प्रवाहित हो रही है, क्योंकि 2018 में प्रोटोकॉल्स पर दस्तखत हो गए थे. अगला कदम है बांग्लादेश की ओर बढ़ना और उसे भी इसमें शामिल करना’.
लेकिन फ्रूमन ने कहा कि क्षेत्रीय एकीकरण ‘कठिन’ है और इसे तभी आसान किया जा सकता है जब इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए फायदे की स्थिति हो.
उन्होंने कहा, ‘देश के स्तर पर भी विकास मुश्किल होता है. इसमें हम एक जटिलता के स्तर को जोड़ रहे हैं. लेकिन जब देश किसी क्षेत्र की पहचान कर लेते हैं- चाहे वो आर्थिक लाभ हो या चाहे सस्ती ऊर्जा कीमतों और नौकरियों तक पहुंच के रूप में सामाजिक लाभ हो- तो उनमें एक साथ आने की इच्छा पैदा हो जाती है’.
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‘भू-राजनीतिक कारकों की भी भूमिका होती है’
फ्रूमन का मानना है कि कनेक्टिविटी योजनाओं को सफल बनाने के लिए ‘समन्वय बहुत जरूरी’ है, चाहे वो बीबीआईएन एमवीए हो या बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) हो, ऐसे फ्रेमवर्क्स को सफल बनाने के लिए भू-राजनीतिक कारकों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.
बंगाल की खाड़ी के सात देशों के बीच बिम्सटेक एक प्रमुख कनेक्टिविटी योजना है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे आसपास दुनिया बदल रही है…हमें कभी पता नहीं चल सकता है कि आगे क्या आने वाला है. हमने कोविड संकट देखा है, देश फिर से उभर रहे हैं, दुर्भाग्यवश हमने अफगानिस्तान जैसे देशों में संघर्ष देखे और श्रीलंका में मैक्रो-अस्थिरता देखी, इसलिए जाहिर है कि बातचीत में ये कारक महत्वपूर्ण होते हैं…इसमें आपको अपनी अनिवार्यताओं का अपने पड़ोसियों की अनिवार्यताओं से मिलान करना होता है’.
फ्रूमन ने आगे कहा, ‘यूक्रेन युद्ध के प्रभावों का ध्यान रखते हुए भी हमें उम्मीद है कि ये एक ऐसा क्षेत्र है जो मजबूत होकर निकलेगा, विकास का प्रक्षेप पथ ग्रीन होगा, टिकाऊ होगा और इसमें एक बेहतर जुड़ाव होगा’.
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