नयी दिल्ली, 27 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि एक वैधानिक निगम होने के नाते भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 द्वारा आबद्ध है। साथ ही, चार दशक पुराने एक विवाद में अस्थायी कर्मचारियों का समावेश करने के दावे के नये सिरे से सत्यापन का निर्देश दिया।
न्यायालय ने कहा कि एक सार्वजनिक नियोक्ता होने के नाते निगम की भर्ती प्रक्रिया एक निष्पक्ष और खुली प्रक्रिया के संवैधानिक मानदंड को पूरा करे तथा सेवा (नौकरी) में पिछले दरवाजे से प्रवेश देना लोक सेवा के लिए अभिशाप है।
शीर्ष न्यायालय ने उन कर्मचारियों के दावों के नये सिरे से सत्यापन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी.के.एस. बघेल और उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवाओं के पूर्व जिला न्यायाधीश राजीव शर्मा की सदस्यता वाली एक समिति नियुक्त की थी, जो तीन साल की अवधि में चतुर्थ वर्गीय पदों पर कम से कम 70 दिनों व तृतीय वर्ग के पद में दो साल में 85 दिनों तक नियुक्त हों।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने उन अस्थायी/बदली/ अशंकालिक कर्मचारियों के चार दशक पुराने एक विवाद पर यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, ‘‘एलआईएसी संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के द्वारा आबद्ध है।’’
न्यायालय ने कहा कि एलआईसी जैसे एक सार्वजनिक नियोक्ता को 11,000 कर्मचारियों की बड़ी संख्या को समावेशित करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। पीठ ने कहा कि इस तरह का कार्य पिछले दरवाजे से प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करेगा, जो सार्वजनिक नियोजन में समान अवसर एवं निष्पक्षता के सिद्धांत को कमजोर करेगा।
भाषा
सुभाष पवनेश
पवनेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.