नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक संपादकीय में दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान जयंती पर शोभायात्रा हिंसा की घटना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि अपराधियों को संरक्षण की मानसिकता की वजह से भारत का विचार ही खतरे में है,
इसमें कहा गया है, ‘अपराधियों को बचाने, अवैध प्रवासियों को बढ़ावा देने और आरोप-प्रत्यारोप के जरिये दंगाइयों को निर्दोष साबित करने की मानसिकता से भारत का विचार खतरे में है. भारत का विचार बचाने के लिए हमें इस मानसिकता को ध्वस्त करने की जरूरत है.’
ऑर्गनाइजर के संपादकीय के मुताबिक, ‘पाकिस्तान बनाने से पहले कांग्रेस को लगता था कि उपनिवेशवादियों के खिलाफ जंग में मुसलमानों को साथ लेकर ही हम आजादी हासिल कर सकते हैं. आजादी के बाद भी वही इस्लामी तुष्टीकरण जारी रहा, जैसा जहांगीरपुरी मामले में भी हुआ.’
इसमें यह भी कहा गया कि ‘हिंदू पक्ष की ओर से उकसाने के फर्जी दावों का इस्तेमाल आपराधिक कृत्यों, अवैध प्रवासन, अतिक्रमण आदि को जायज ठहराने के लिए किया गया था. पत्थरबाजों और दंगाइयों का हमेशा बुद्धिजीवियों और मीडिया के एक वर्ग की तरफ से ऐसे ही बचाव किया जाता रहा है.’
हालांकि, इसमें यह स्वीकारा गया कि ‘लोकतंत्र में कानून-व्यवस्था के तहत ‘बुलडोजर अपराधियों से निपटने का कोई आदर्श तरीका नहीं हो सकता है.’ लेकिन ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर यह भी लिखते हैं कि ‘उत्तर प्रदेश में एक सफल प्रयोग’ साबित हुआ बुलडोजर दंगाइयों के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई का प्रतीक’ बनकर उभरा है.
‘स्ट्रेट फ्रॉम द स्टोन एज’ शीर्षक वाली अपनी कवर स्टोरी में ऑर्गनाइज़र ने लिखा है कि ‘संस्कृति और सभ्यता के साथ गहराई से जुड़े कई मुद्दे हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.’
इसमें जहांगीरपुर हिंसा में रोहिंग्या शरणार्थियों की भूमिका की पुलिस जांच की मांग करते हुए ‘पूर्व में दिल्ली में कई आतंकवादी घटनाओं और दंगों’ में उनकी कथित संलिप्तता का हवाला दिया गया है.
इस हफ्ते हिंदुत्व समर्थक प्रेस की सुर्खियों में रहीं अन्य प्रमुख घटनाओं में केरल में एक आरएसएस कार्यकर्ता की मौत, आईपीएल सट्टेबाजी, दिल्ली के सरकारी स्कूलों पर एक ‘खुलासा’ और हंसखाली रेप-मर्डर केस पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टिप्पणी शामिल हैं.
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केरल में आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या
दक्षिणपंथी प्रकाशन इस हफ्ते केरल में आरएसएस कार्यकर्ता श्रीनिवासन की मौत को लेकर हंगामे की घटनाओं से भरे रहे, जिसकी कथित तौर पर इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कार्यकर्ताओं ने हत्या कर दी थी. यह घटना ऐसे समय पर हुई जबकि एक दिन पहले ही कथित तौर पर आरएसएस कार्यकर्ताओं ने एक पीएफआई कार्यकर्ता की हत्या कर दी थी.
संघ के हिंदी मुखपत्र, पांचजन्य ने श्रीनिवासन की मौत पर एक लेख छापा.
पांचजन्य के लेख में बताया गया, ‘पलक्कड़-मेलमुरी को केरल में भाजपा का गढ़ माना जाता है. भाजपा के गढ़ में घुसकर श्रीनिवासन की हत्या के पीछे का संदेश बहुत स्पष्ट है. वे ताकतवर हैं, हथियारों से लैस हैं और किसी को भी आराम से उसके गढ़ में घुसकर मारने के लिए तैयार हैं. हमलावर, जो कभी ‘प्रतिहिंसक’ और कभी ‘गुमराह युवा’ बताए जाते हैं, संघ कार्यकर्ताओं को अपना निशाना बनाते हैं. इन क्रूर हत्यारों को भारतीय समाज और जीवन दर्शन पर कलंक ही कहा जा सकता है.’
इसमें कहा गया है, ‘संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की एक के बाद एक हत्या निश्चित रूप से इसकी पुष्टि करती है कि धार्मिक जिहादी हत्यारों की न केवल सरकार तक पहुंच है, बल्कि उनकी साठगांठ अभेद्य है. नतीजतन, संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं को चुनकर निशाना बनाया जा रहा है और मारा जा रहा है.’
पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा—पीएफआई, एसडीपीआई, सीएफआई पर प्रतिबंध लगाएं
ऑर्गनाइजर के लिए ही एक ओपिनियन में ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) जी.बी. रेड्डी ने लिखा है कि ‘तुष्टीकरण की कमजोर राजनीति’ व्यर्थ है, साथ ही जोड़ा कि बुलडोजर पॉलिसी सांप्रदायिक टकराव और संघर्ष को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है.
उन्होंने लिखा, ‘सबसे पहले तो सरकार को आधुनिक भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करके एक स्पष्ट संकेत देना चाहिए. इसके बाद, उन्हें किसी भय और पक्षपात के बिना पीएफआई, एसडीपीआई, सीएफआई और अन्य तमाम कट्टरपंथी संगठनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. विदेश दौरे के बजाये प्रधानमंत्री को सबसे पहले कट्टरपंथी आतंकी संगठनों के कारण आंतरिक स्तर पर पनपने वाले खतरों को संबोधित करना चाहिए जो किसी हमले के लिए अपने विदेशी आकाओं के निर्देशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं.’
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) पीएफआई की राजनीतिक और छात्र इकाई हैं.
ऑर्गनाइजर के एक अन्य लेख में दावा किया गया कि पथराव करना रामी अल-जमरात या ‘स्टोनिंग द डेविल’ नामक इस्लामी प्रथा से ‘प्रेरित’ है. यह प्रथा ‘मक्का में हज यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है’, जिसके दौरान तीर्थयात्री तीन दीवारों पर कंकड़ फेंकते हैं जिन्हें जमरात कहा जाता है.
‘एबीवीपी ने कैसे नक्सली समूहों को घुटने टेकने पर बाध्य किया’
आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अपनी पत्रिका ‘छात्रशक्ति’ के अप्रैल के अंक में अपनी नई किताब ‘ध्येय यात्रा’ की समीक्षा प्रकाशित की है.
एबीवीपी की अब तक की यात्रा के बारे में जानकारी देने वाली इस पुस्तक का विमोचन आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने किया.
छात्रशक्ति में पुस्तक समीक्षा में लिखा गया है, ‘इसे पढ़कर पता चलता है कि कैसे एक छात्र संगठन ने अपने निरंतर लोकतांत्रिक प्रयासों और आत्म-बलिदान के बलबूत पर जबर्दस्त अलोकतांत्रिक और हिंसक नक्सली समूहों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे राष्ट्रीय संकट के समाधान की प्रतिबद्धता के साथ एक छात्र संगठन ने अपने प्रयासों के जरिये दशकों तक इस मुद्दे को सुर्खियों में बनाए रखा और सरकारों को समस्या हल करने के बारे में सोचना पड़ा.’
‘सावरकर के राजनीतिक दर्शन का बुलडोजर मॉडल’
पूर्व मोदी समर्थक और दक्षिणपंथी पत्रकार हरिशंकर व्यास ने नया इंडिया के लिए अपना एक लेख दंगे या अन्य अपराधों के आरोपियों को दंडित करने के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल पर लिखा.
उन्होंने लिखा, ‘संघ परिवार (आरएसएस) को सावरकर के हिंदू राजनीतिक दर्शन के परिष्कृत, आधुनिक बुलडोजर मॉडल के लिए वैश्विक पेटेंट करा लेना चाहिए. सवाल यह है कि इसे संघ परिवार का सर्वशक्तिमान मॉडल माना जाए या नरेंद्र मोदी का? जाहिर है, नरेंद्र मोदी के हिंदू अवतार के उत्थान की नींव उनका स्वनिर्मित ‘बुलडोजर दर्शन’ है.’
व्यास ने लिखा, ‘सावरकर ने आधुनिक सभ्यता की हिंदू राजनीति का परिचय दिया. लेकिन वास्तव में इस्तेमाल किए जाने वाले बुलडोजर मॉडल का श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है. इससे न केवल पिछले आठ सालों में भक्ति की शक्ति बढ़ी है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था, समाज, राजनीति, विज्ञान, नौकरशाही और संस्थान भी बुलडोजर के सामने आ गए हैं…यही कारण है कि सोचा जा रहा है कि क्यों न पूरी दुनिया बुलडोजर मॉडल पर चले. इससे मानवता एक नए युग में प्रवेश करेगी.’
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आईपीएल सट्टेबाजी से तबाह हो रहे ‘सैकड़ों परिवार’
इस हफ्ते पांचजन्य की कवर स्टोरी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) और सट्टेबाजी के इर्द-गिर्द घूमती रही.
इसमें लिखा गया, ‘आईपीएल मैच की आड़ में देशभर में ऑनलाइन-ऑफलाइन सट्टेबाजी लगातार बढ़ रही है. जुआ उद्योग वेबसाइट, ऐप और मोबाइल के माध्यम से चल रहा है. लोगों से पूरी रकम लेने से पहले उन्हें ऐप या वेबसाइट का पासवर्ड दिया जाता है. लेकिन कुछ गेंदें फेंके जाने के बाद, उन्हें एक लाइव मैच दिखाया जाता है.
कवर स्टोरी में कहा गया, ‘सट्टेबाज अपने हिसाब से कीमतें गिराते हैं और सट्टा लगाने वालों को धोखा देते हैं. इसकी वजह से सैकड़ों परिवार तबाह हो रहे हैं, फिर भी सरकार इसे रोक नहीं रही है.’
एक अन्य लेख में आरएसएस के मुखपत्र ने आम आदमी पार्टी (आप) के दिल्ली स्कूल मॉडल को ‘उजागर’ करने का दावा किया.
लेखक ने टिप्पणी की, ‘दिल्ली में राज्य सरकार द्वारा संचालित कुल 1.027 सरकारी स्कूलों में से केवल 203 में ही प्रधानाध्यापक हैं. यानी सिर्फ 19.76 फीसदी स्कूलों में प्रिंसिपल हैं और 80.24 फीसदी स्कूलों में नहीं है. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शिक्षा को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली के शिक्षा मंत्री में कितनी जागरूकता है. क्या यह शिक्षा क्रांति है या दिल्ली का स्कूल मॉडल जिसमें बिना प्रिंसिपल के स्कूल चलाए जा रहे हैं.’
‘कई गंभीर मानसिक बीमारियां’ दे रही अजान की आवाज
अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगाने की हिन्दुत्व समूहों की मांग के बीच विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने अपनी पत्रिका हिंदू विश्व की कवर स्टोरी में सवाल उठाया कि जो लोग अजान नहीं सुनना चाहते हैं उन्हें लाउडस्पीकर पर इसे क्यों सुनना चाहिए.
संपादकीय में कहा गया है, ‘पूरे देश की मस्जिदों से अजान की आवाज सुनाई देती है, जो न केवल लोगों की नींद या शांति भंग कर रही है, बल्कि कई गंभीर मानसिक बीमारियां भी पैदा कर रही है.’
संपादक विजय शंकर तिवारी ने लिखा, ‘इससे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि जो नमाज नहीं सुनना चाहते, उन्हें सुनाने की जिद है. 19 जनवरी 1990 को मस्जिदों के लाउडस्पीकर कश्मीरी पंडितों के लिए घातक बन गए थे, जब लाखों परिवारों ने पलायन किया, बलात्कार, हत्या, लूटपाट जैसी घटनाएं झेली, तो इन लाउडस्पीकरों के उपयोग की मानसिकता संदेह के घेरे में आ जाती है. कश्मीर के बाहर पूरे देश में ही इस पर ध्यान देने की जरूरत है.’
‘दीदी के पश्चिम बंगाल में टीएमसी जो कहे वही सही’
दक्षिणपंथी स्तंभकार और शोधकर्ता सलिल गवली ने हंसखाली में 14 वर्षीय एक लड़की के रेप और मर्डर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टिप्पणी पर एक लेख लिखा. मुख्यमंत्री ने अपराध और प्रेम प्रसंग या गर्भावस्था के बीच कुछ संबंध होने की बात कही थी.
ऑर्गनाइजर के एक लेख में, गवली ने लिखा कि ममता बनर्जी की ‘असंवेदनशील टिप्पणी यह दिखाती है कि वह अपनी पार्टी के लोगों को बचाने के लिए किस स्तर तक गिर सकती हैं.’
उन्होंने लिखा, ‘क्या मुख्यमंत्री की टिप्पणी ने लाखों माताओं और बच्चियों के घावों पर नमक छिड़कने जैसी नहीं है? कई लोग आरोप लगा रहे हैं क्योंकि मामले में आरोपी टीएमसी नेताओं में से एक का बेटा है. दीदी के पश्चिम बंगाल में तो जो टीएमसी कहे वही हमेशा सही होता है.’
गवली ने लिखा, ‘इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बंगाल में बहुसंख्यक हिंदुओं की पीड़ा का अब कोई अंत नहीं है. पुलिस विभाग अपराधियों के खिलाफ शायद ही कोई प्रभावी कार्रवाई कर सकता हो.’
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