नयी दिल्ली, 26 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने खेलकूद को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने के सुझाव पर केंद्र और राज्य सरकारों से राय देने को कहा है।
इसके साथ ही यह सुझाव भी दिया गया है कि सभी शिक्षा बोर्डों को यह सुनिश्चित करने को कहा जाए कि प्रत्येक दिन स्कूल में कम से कम 90 मिनट खेल के लिए हों।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा कि राज्यों के विचार जरूरी हैं, क्योंकि सिर्फ फैसला सुनाने से काम नहीं चलेगा।
शारीरिक गतिविधियों के महत्व पर जोर देते हुए पीठ ने सोमवार को कहा कि बच्चों को खेलों से जोड़ना उपयोगी होगा, अन्यथा वे अधिक समय तक स्क्रीन के सामने रहेंगे।
पीठ ने कहा कि छात्रों द्वारा खेल को करियर के विकल्प के तौर पर नहीं देखा जाता है। न्यायमूर्ति राव ने कहा, ‘कई छात्र 12वीं कक्षा तक खेलकूद में अच्छा करते हैं और उसके बाद वे इस बारे में भूल जाते हैं।’ उन्होंने कहा कि वीवीएस लक्ष्मण के माता-पिता डॉक्टर थे लेकिन उन्होंने क्रिकेट को अपना करियर चुना और शायद ही कभी ऐसा होता है।
पीठ ने कहा, ‘बहुत कम लोग ऐसा चयन करेंगे। हमें अधिक से अधिक ऐसे लोगों के सामने आने की जरूरत है।’
खेल शोधकर्ता कनिष्क पांडे द्वारा दायर एक जनहित याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया गया था और उन्होंने मार्च में एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि खेलकूद को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
भाषा अविनाश दिलीप
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