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Wednesday, 20 November, 2024
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UP में ‘CBI’ जैसी’ एंटी-करप्शन एजेंसी चाहते हैं योगी आदित्यनाथ, नए कानून की तैयारी

यूपी के मुख्यमंत्री ने गुरुवार को एक बैठक में अपने गृह विभाग को नए कानून का मसौदा तैयार करने को कहा. इस कानून का उद्देश्य राज्य में ‘विशेष जांच दल’ को मजबूत करना है.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार एक नए कानून की योजना बना रही है जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि इससे राज्य को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसे अधिकारों वाली एक आपराधिक जांच इकाई मिल जाएगी.

यूपी सरकार के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को राज्य के गृह मंत्रालय को दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट—जिसके तहत ही सीबीआई नियंत्रित होती है—की तर्ज पर एक विशेष कानून यूपी स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट का मसौदा तैयार करने का आदेश दिया है.

अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने दिप्रिंट को बताया कि इस नए कानून का उद्देश्य राज्य में विशेष जांच दल (एसआईटी) को मजबूती प्रदान करना है, जिसका नेतृत्व अभी पुलिस महानिदेशक स्तर के एक अधिकारी करते हैं. हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि आखिर नए कानून का क्या मतलब है और इसका स्वरूप कैसा होगा, यह तो एक बार उसके अंतिम रूप देने के बाद ही पता चलेगा. फिलहाल तो यह प्रारंभिक चरण में ही है.

एजेंसी की वेबसाइट के मुताबिक, यूपी में एसआईटी तमाम तरह के मामले देखने वाली एजेंसी है जिसे वर्तमान में ‘अपने उच्च पदों या संपर्कों का दुरुपयोग करने वाले और गंभीर प्रकृति की अनियमितताओं और आर्थिक अपराधों में लिप्त प्रभावशाली लोगों और लोकसेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का अधिकार मिला हुआ है.’

सीबीआई देश की प्रमुख जांच एजेंसी है और केंद्रीय कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली एकमात्र संघीय एजेंसी यही है. औपनिवेशिक काल में अपने पूर्व अवतार में इसे स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट कहा जाता था और इसे पहली बार 1941 में युद्धक सामग्री से जुड़ी खरीद-फरोख्त में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए गठित किया गया था. 1946 में यह दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट के अंतर्गत आई.

सीबीआई अपने मौजूदा स्वरूप में 1963 में देशव्यापी और अंतर-राज्यीय प्रभाव वाले भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, गबन और सामाजिक अपराधों से जुड़े गंभीर मामलों की जांच के लिए स्थापित की गई थी.

विशेषज्ञों का दावा है कि यूपी की यह पहल देश में अपनी तरह का पहला कदम है: हालांकि कई राज्यों में कानून-समर्थित पुलिस यूनिट है, पर ये मुख्य तौर पर सुरक्षा या संरक्षा बल हैं जो विशेष भवनों को सुरक्षा और संरक्षा प्रदान करते हैं. उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र राज्य सुरक्षा निगम (एमएससीसी), ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल (ओआईएसएफ), और यूपी विशेष सुरक्षा बल (यूपीएसएसएफ).

कुछ राज्यों में विशेष कानून हैं, जैसे महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका)—एक कानून जिसे 2002 में दिल्ली में भी लागू किया गया था, गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, और कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम आदि. लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक इन कानूनों पर अमल करने वाला जांच दल नियमित पुलिस बल ही होता है.

यूपी का अपना सुरक्षा बल है, जिसे उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम, 2020 द्वारा शासित विशेष सुरक्षा बल या एसएसएफ कहा जाता है. बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार रखने वाले एसएसएफ के पास केंद्रीय औद्योगिक विशेष बल (सीआईएसएफ) के समान ही शक्तियां हैं और यह अदालतों, मेट्रो, औद्योगिक इकाइयों, हवाईअड्डों, बैंकों, पूजा स्थलों के साथ-साथ निजी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी संभालता है.


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एसआईटी को मजबूती प्रदान करना

अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने गुरुवार को गृह, जेल, होमगार्ड, सचिवालय प्रशासन, भर्ती और कार्मिक विभागों के अधिकारियों के साथ एक बैठक की.

अधिकारियों ने कहा कि गृह विभाग के पास नए कानून पर काम शुरू करने के लिए 100 दिन—यानी सिर्फ तीन महीने—का समय है.

अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास एक एसआईटी है, जो डीजी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में काम करने वाली एजेंसी है. हालांकि, अभी, इसे पूरी तरह कानूनी दर्जा हासिल नहीं है. नए कानून का उद्देश्य इसे और ज्यादा अधिकार देना और ये सुनिश्चित करना है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके.’

हालांकि, न तो वह और न ही नए कानून पर चर्चा से जुड़े अन्य वरिष्ठ नौकरशाह यह बताने की स्थिति में हैं कि अंतिम मसौदा कैसा दिखेगा. नौकरशाह ने कहा, ‘योजना फिलहाल शुरुआती चरण में है. यह अभी शुरू ही हुआ है.’

‘आखिर जरूरत क्या है?’

डिफेंस लॉयर और क्रिमिनल लॉ एक्सपर्ट तनवीर अहमद मीर पूछते हैं, ‘यह कानून क्यों जरूरी है.’ बहुचर्चित आरुषि हत्याकांड में वकील रहे मीर ने कहा कि राज्यों को नए कानून बनाने का अधिकार है, जब तक कि वे केंद्रीय कानून के आड़े न आते हों, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस नए कानून को लेकर राज्य सरकार की मंशा क्या है.

मीर ने कहा, ‘यूपी तो पहले ही सीबीआई को राज्य में अपराधों की जांच के लिए अपनी सहमति दे चुका है. इसका मतलब है कि सीबीआई यूपी में किसी भी मामले की जांच कर सकती है. तो, सवाल यह है कि राज्य जो नया कानून बनाना चाहता है, वह वास्तव में क्या करेगा? क्या यूपी पुलिस मौजूदा सीआरपीसी 1973 और आईपीसी के तहत राज्य की कानून व्यवस्था से निपटने में असमर्थ है?’

डीएसपीई के तहत सीबीआई को किसी राज्य में किसी मामले की जांच के लिए संबंधित राज्य सरकार की सहमति लेने की जरूरत पड़ती है. यह सहमति या तो केस-विशिष्ट हो सकती है या फिर सामान्य. नौ राज्यों मेघालय, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम—ने सीबीआई जांच के लिए सामान्य सहमति वापस ले ली है. इनमें से मिजोरम और मेघालय को छोड़कर बाकी राज्यों में भाजपा के विरोधी दलों की सरकार है.

सामान्य सहमति न होने का मतलब है कि सीबीआई उस राज्य की अनुमति के बाद ही केंद्र सरकार के किसी अधिकारी या किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ कोई नया मामला दर्ज करने में सक्षम होगी.

विशेष जांच दल (एसआईटी) के एक पूर्व प्रमुख ने दिप्रिंट को बताया कि एजेंसी की मौजूदा शक्तियां पहले से ही मजबूत है. उन्होंने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए एसआईटी का नाम बदलने का भी प्रस्ताव था ताकि इसे और उन विशेष जांच दलों को लेकर कोई भ्रम न रहे जो विशिष्ट मामलों की जांच के लिए स्थानीय स्तर पर गठित किए जाते हैं.

कई हाई-प्रोफाइल घोटालों की जांच कर चुके यूपी के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि एसआईटी को अपने मौजूदा स्वरूप में गिरफ्तारी के लिए अनुमति की जरूरत पड़ती है.

उन्होंने कहा, ‘एसआईटी को कौन-सी नई शक्तियां मिल सकती हैं, यह मसौदा प्रस्ताव के आने के बाद ही स्पष्ट हो सकता है.’

उत्तर प्रदेश के एक पूर्व डीजीपी ने कहा कि राज्य ने एसएसएफ का गठन किया था क्योंकि उसे एक औद्योगिक सुरक्षा बल की जरूरत महसूस हुई थी.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन एक आपराधिक जांच इकाई के लिए एक अलग कानून लाना कुछ नया है.’

मीर ने प्रस्तावित कानून के संभावित दुरुपयोग—झूठे मामले, पुलिस उत्पीड़न, पत्रकारों का उत्पीड़न और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन—को लेकर भी चिंता जताई.

मीर ने कहा, ‘टाडा और पोटा जैसे कानूनों को न्यायपालिका ने इसलिए खारिज किया क्योंकि स्पष्ट पता चल रहा था कि उनका दुरुपयोग किया जा रहा है और मुंबई में आठ साल के बच्चे पर भी टाडा के तहत मामला दर्ज किया गया था. यूपी संविधान के भाग-3 और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को जिस तरह का असम्मान दिखा रहा है, उससे तो यही लगता कि आम नागरिकों के खिलाफ एक और बुलडोजर थ्योरी की शुरुआत होने जा रही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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