(पुत्री विधि सरस्वती. यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी, नीदलैंड्स)
एम्सटर्डम, 22 अप्रैल (360इन्फो) संयुक्त राष्ट्र के विश्वव्यापी कोरोना टीकाकरण कार्यक्रम ‘कोवैक्स’ के जरिये टीकों की आपूर्ति में असमानता खत्म होने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि इससे दुनिया को कुछ सबक जरूर मिले, जो आने वाले समय में मददगार साबित हो सकते हैं।
महामारी के वैश्विक प्रसार ने दो बातें स्पष्ट कर दीं। एक यह कि अधिकांश टीके कहां वितरित किये जाने चाहिये और इन टीकों तक पहुंच न होने के कारण किसको अनुपातहीन स्वास्थ्य बोझ उठाना पड़ रहा है। निम्न अर्थव्यवस्था वाले देशों की कोविड-19 टीकों तक पहुंच स्पष्ट रूप से कम रही।
टीका निर्माताओं की इस बात को लेकर खूब आचोलना हुई कि वे ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में टीकाकरण समानता कायम करने के बजाय लाभ हासिल करने को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। साथ ही उनपर यह आरोप भी लगा कि वे बौद्धिक संपदा अधिकार और उत्पादन अधिकारों पर कब्जा जमाए बैठे हैं और टीकों की आपूर्ति के मामले में उन देशों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो ज्यादा धनराशि का भुगतान कर सकते हैं।
‘महामारी से लाभ’ कमाने के लिये उन टीका निर्माताओं की सबसे ज्यादा आलोचना हुई जो एमआरएनए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हैं, जो तुलनात्मक रूप से नयी और भरोसेमंद टीका उत्पादन प्रौद्योगिकी है।
इस बीच, ‘टीका राष्ट्रवाद’ शब्द भी उछला, जिसके जरिये विशेष रूप से विकसित देशों ने बड़ी मात्रा में टीकों को अपनी आबादी के लिये रख लिया और कम आय वाली अर्थव्यवस्था वाले देशों को टीकों की आपूर्ति सीमित कर दी।
टीकों की आपूर्ति में असमानता को कम करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सह नेतृत्व में कोविड-19 टीका वैश्विक आपूर्ति कार्यक्रम (कोवैक्स) की शुरुआत की गई। इस कार्यक्रम का मकसद कमजोर देशों को टीकों की आपूर्ति करना था, जिसे दानकर्ताओं और अमीर देशों का समर्थन मिला।
वास्तव में, कोवैक्स जरूरतमंद देशों, विकसित अर्थव्यवस्थाओं और निजी क्षेत्र के बीच जटिल असंतुलन का शिकार है।
उदाहरण के लिए, जिन अमीर देशों ने कोवैक्स कार्यक्रम को वित्तपोषित करने में मदद की थी, कई बार वे टीका निर्माताओं के साथ अपने लिये टीकों की सौदेबाजी करते देखे गए। इसका परिणाम यह हुआ कि विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों को कोवैक्स के जरिये टीकों की समयबद्ध आपूर्ति नहीं हो सकी। इसके अलावा दानकर्ताओं ने भी अपना वादा सही ढंग से नहीं निभाया, जिसका खामियाजा जरूरतमंद लोगों को चुकाना पड़ा।
इस बीच, निर्माताओं ने भी कोवैक्स कार्यक्रम को टीकों की खुराकें नहीं दीं और इसके बजाय उन्हें अच्छे दामों पर बाजार में बेच दिया।
इन सबसे निराश होकर विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश अब टीके बनाने की घरेलू क्षमता विकसित करने में जुटे हैं, जिससे अमीर देशों पर उनकी निर्भरता कम होगी।
कोवैक्स की नाकामी से सबक लेते हुए जून 2021 में, डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 और अन्य बीमारियों के टीकों के लिए एक बहुपक्षीय प्रौद्योगिकी हस्तांतरण केंद्र स्थापित करने के लिए एक दक्षिण अफ्रीकी कंसोर्टियम के साथ साझेदारी की घोषणा की।
यह कंसोर्टियम ‘एफ्रीजेन बायोलॉजिक्स एंड वैक्सीन’ समूह, एमआरएनए टीकों का निर्माण स्वयं करेगा और दूसरे निर्माताओं को प्रशिक्षित करेगा।
इसके अलावा दस देश इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान, सर्बिया, वियतनाम, ट्यूनीशिया, केन्या, मिस्र, नाइजीरिया और सेनेगल डब्लूएचओ से एमआरएनए टीकों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्राप्त करेंगे।
कुल मिलाकर विकासशील और गरीब देशों ने कोवैक्स कार्यक्रम की नाकामी से सबक लेते हुए अपना खुद का टीका विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। ऐसे में आने वाले समय में यह देखना होगा कि उनका यह प्रयास कितना सफल हो पाता है।
360इन्फो जोहेब दिलीप
दिलीप
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