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Thursday, 21 November, 2024
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अमित शाह के करीबी और विवादित बयान देने वाले महाराष्ट्र BJP चीफ के लिए उपचुनाव में मिली हार का क्या मतलब है

चंद्रकांत पाटिल ने इस महीने कोल्हापुर नॉर्थ उपचुनाव से पहले घोषणा की थी कि अगर पार्टी नहीं जीती तो वह राजनीति छोड़ देंगे और हिमालय पर चले जाएंगे. भाजपा चुनाव हार गई.

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मुंबई: महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख और कोथरुड के विधायक चंद्रकांत पाटिल ने इस महीने की शुरुआत में कोल्हापुर नॉर्थ उपचुनाव से पहले घोषणा की थी कि अगर पार्टी नहीं जीती तो वह राजनीति छोड़कर हिमालय पर चले जाएंगे.

लेकिन अब पाटिल का ये बयान उनके लिए परेशानी का सबब बन गया है और वह लीपापोती करने में लगे हैं.

भाजपा को शनिवार को इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा. महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार के सभी सहयोगियों शिवसेना और राकांपा ने कांग्रेस का समर्थन किया और एकजुट होकर चुनाव लड़ा था.

हार के बाद पाटिल ने इसका साहस के साथ मुकाबला किया. राज्य के सबसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं में से एक पाटिल कोल्हापुर के रहने वाले हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमारे सत्यजीत कदम लड़े और हारे. अगर उनकी जगह मैंने चुनाव लड़ा होता, तो एमवीए के पसीने छूट गए होते. वो चेहरा दिखाने के लायक नहीं रह पाते.’

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अपने लगातार विवादित बयानों के लिए जाने जाने वाले पाटिल के लिए यह हार एक झटका है.

राजनीतिक विशेषज्ञ हेमंत देसाई ने कहा, ‘यह निश्चित रूप से उनके लिए एक झटका है. फिलहाल तो अटकलें इस बात की लगाई जा रही हैं कि उन्हें उनके पद से हटाया जाएगा या नहीं.‘ वह आगे कहते हैं, ‘उनकी स्थिति कमजोर हुई है. उनका कहना है कि वह कोल्हापुर से हैं. लेकिन चुनाव परिणामों में उसका कहीं कोई प्रभाव नजर नहीं आया.’

भाजपा नेताओं ने अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि पार्टी को उन पर पूरा भरोसा है. पार्टी के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार बताते हैं, ‘हम कोल्हापुर हार गए और इसलिए चंद्रकांत पाटिल को इस्तीफा दे देना चाहिए? ऐसा कभी नहीं होगा.’ वह आगे कहते हैं, ‘दूसरी बात, बीजेपी को जानने वाले लोगों को पता है कि अगर कोई चुनाव हार जाता है तो पार्टी उस व्यक्ति से कभी नाराज नहीं होती है. हम सब मिलकर काम करते हैं.’


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‘पाटिल बनाम पाटिल’

पाटिल ने कोल्हापुर नॉर्थ विधानसभा उपचुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और पूरे अभियान का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया हुआ था. फिर भी कदम को लगभग 78,000 वोट ही मिल पाए. जबकि एमवीए उम्मीदवार जयश्री जाधव को लगभग 97,000 वोट मिले थे. कांग्रेस विधायक चंद्रकांत जाधव के निधन से यह सीट खाली हुई थी. वहां से उनकी पत्नी जयश्री जाधव ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

2014 में इस सीट पर बीजेपी को 40,000 वोट मिले थे. इसलिए हार के बावजूद भाजपा विधायक आशीष शेलार ने पाटिल की तारीफ की और कहा, ‘हमारा वोट बैंक बढ़ा है और इसका सारा श्रेय चंद्रकांत पाटिल को जाता है.’

उपचुनाव हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा गया था. ‘मस्जिदों पर लाउडस्पीकर’ बनाम ‘हनुमान चालीसा का पाठ’ एक बड़ा मुद्दा था. पाटिल अपने भतीजे कदम को भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनकर स्थानीय ताकतवर और पूर्व विधायक महादेवराव महादिक का समर्थन हासिल करने में भी सफल रहे.

विश्लेषक देसाई ने कहा कि उपचुनाव चंद्रकांत पाटिल और कोल्हापुर के संरक्षक मंत्री सतेज पाटिल के बीच ‘प्रतिष्ठा की लड़ाई’ थी. सतेज को पार्टी की तरफ से कोल्हापुर उपचुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

उन्होंने कहा, ‘इस चुनाव को पाटिल बनाम पाटिल के रूप में देखा गया’ ‘यहां शिवसेना की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी. चंद्रकांत पाटिल के दबदबे के चलते तीनों एमवीए दलों ने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी.’

‘एमवीए के पतन की भविष्यवाणी’

पाटिल विवादित बयान देने के लिए जाने जाते हैं. अभी कुछ दिन पहले कोल्हापुर चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जांच करेगा कि क्या एमवीए ने मतदाताओं के खातों में कोई पैसा जमा किया है.

एमवीए के गठन के बाद से ही पाटिल ‘भविष्यवाणी’ करते आ रहे हैं कि सरकार गिर जाएगी. 2021 में उन्होंने कहा था, एमवीए ने स्पीकर के चुनाव के मुद्दे पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का अपमान किया है और इससे ‘राज्य में राष्ट्रपति शासन’ लगाया जा सकता है.

पाटिल ने 10 मार्च के बाद महाराष्ट्र में सरकार में बदलाव होने की बात कही थी. इस दिन पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित किए गए थे.

एक भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘पाटिल बहुत मुखर हैं और कई बार राजनीतिक रूप से गलत साबित हो जाते हैं’ देसाई के अनुसार, उनके इस तरह के बयानों के कारण ही उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता है.

वह आगे कहते हैं, ‘बहुत बार उनका मजाक उड़ाया जाता है. उनकी महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस जितनी साख नहीं है. मैंने कई भाजपा नेताओं से व्यक्तिगत रूप से बात की है, वो पाटिल पर ज्यादा भरोसा नहीं करते हैं.’

मुनगंटीवार ने भी स्वीकार किया कि ‘यह सच है कि पाटिल कई बार इस तरह के बयान दे देते हैं. वह जानते हैं कि वह क्या कह रहे है. लेकिन किसी दुर्भावना के चलते ये सब किया जाता है, ऐसा नहीं है.’

कोल्हापुर के नतीजों के बाद से पाटिल को काफी ट्रोल किया जा रहा है. इस पर ऊपर उद्धृत नाम न जाहिर करने वाले भाजपा नेता ने कहा: ‘मैं इसे गंभीरता से नहीं लेता. यह किसी की सफलता या असफलता का पैमाना नहीं है. लेकिन हां, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता इस वजह से दादा की छवि को लेकर चिंतित हैं.’


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ABVP से लेकर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष तक

पाटिल 2004 में भाजपा में शामिल हुए और 2008-2019 तक विधान परिषद के सदस्य रहे. वह महाराष्ट्र में भाजपा का मराठा चेहरा हैं और 2019 से राज्य के अध्यक्ष पद पर काबिज हैं. तकनीकी रूप से वह राज्य के मामलों में नंबर वन हैं. वह अभी भी राज्य के विपक्षी नेता फडणवीस के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं. पूर्ववर्ती भाजपा-शिवसेना सरकार (2014-2019) में जब फडणवीस सीएम थे, तब पाटिल कैबिनेट मंत्री थे.

अमित शाह के भरोसेमंद पाटिल पश्चिमी महाराष्ट्र में भी एक प्रमुख भाजपा नेता हैं. वैसे ये शुगर बेल्ट मुख्य रूप से राकांपा और कांग्रेस के पास है.

मुंबई में पले-बढ़े पाटिल एक साधारण परिवार से हैं और भाजपा में रहते हुए आगे और आगे बढ़ते चले गए. जिनका जिक्र ऊपर किया गया है, उन भाजपा नेता ने बताया, ‘पाटिल का संघ से जुड़ा कोई खास बैकग्राउंड नहीं है. उनके पिता एक मिल मजदूर थे और वे मुंबई चले आए. अपने कॉलेज के दिनों में दादा (पाटिल) आरएसएस छात्र संगठन एबीवीपी में शामिल हो गए. संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते वह लोगों के मुद्दों से सहज रूप से जुड़ जाते थे.’

मुनगंटीवार कहते हैं, ‘वह एक सभ्य और काफी अनुभवी व्यक्ति हैं.’

उनके अनुसार, ‘उनका स्वभाव बहुत संवेदनशील है और वह पार्टी में सभी के साथ संवाद करते हैं और सभी को साथ लेकर चलते हैं. वह अपने सहयोगियों को महत्व देते हैं और इसलिए उन्हें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका भी दी गई.’

फडणवीस सरकार के दौरान पाटिल ने राजस्व, पीडब्ल्यूडी, राहत और पुनर्वास जैसे विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला और साथ ही कोल्हापुर, सांगली और पुणे के संरक्षक मंत्री भी रहे. पूर्व भाजपा नेता एकनाथ खडसे के 2020 में पार्टी छोड़ने के बाद पार्टी में उनकी साख बढ़ी. वह और अधिक प्रभावशाली हो गए.

देसाई ने बताया, ‘जब उन्होंने 2019 का विधानसभा चुनाव कोल्हापुर के बजाय पुणे (कोथरुड) से लड़ने का फैसला किया तो उनकी काफी आलोचना की गई. लोगों ने कहा कि वह कोल्हापुर से भाग गए.’

मुनगंटीवार ने इससे असहमत होते हुए कहा, ‘लोगों की यह एक बड़ी गलतफहमी थी कि दादा पुणे से भाग गए. उस समय जो हुआ उसका मैं गवाह हूं. दरअसल वह 2019 का चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे.’

वह आगे बताते हैं, ‘वह राज्य अध्यक्ष के रूप में चुनाव की तैयारियों का जायजा लेने के लिए पूरे महाराष्ट्र का दौरा करना चाहते थे. लेकिन अमित शाह के कहने पर उन्हें चुनाव लड़ना पड़ा. दादा ने कभी नहीं कहा कि वह कोल्हापुर के बाहर लड़ना चाहते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘अगर उन्हें लड़ना होता तो वह कोल्हापुर की सीट को ही चुनते. लेकिन परंपरागत रूप से कोल्हापुर सीट पर हमेशा से शिवसेना का दबदबा रहा था और इसलिए शिवसेना-भाजपा गठबंधन में यह सीट शिवसेना के खाते में चली गई.’

उन्होंने बताया कि शाह ने पाटिल को दो विकल्प दिए थे, या तो वह मुंबई की मुलुंड सीट से लड़ें या पुणे से कोथरुड से. उन्होंने कहा, ‘इसलिए, दादा ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र को चुना.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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