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Monday, 30 September, 2024
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शीर्ष अदालत ने जहांगीरपुरी में अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए

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(आमुख में बदलाव के साथ)

नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी के हिंसा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में इमारतों को ध्वस्त करने के मुद्दे पर अगले आदेश तक यथास्थिति कायम रखने के बृहस्पतिवार को निर्देश देते हुए कहा कि वह उत्तर दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) के महापौर को उसके आदेश से अवगत कराए जाने के बाद भी ‘ध्वस्त अभियान’ जारी रखने के मामले पर गंभीरता से विचार करेगा।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किए। याचिका में दावा किया गया है कि दंगों के मुस्लिम आरोपियों की इमारतों को तोड़ा गया है।

अदालत ने कहा, “अगले आदेश तक यथास्थिति बना कर रखी जाए…. मामले को दो हफ्ते के बाद सूचीबद्ध किया जाए और तब तक दलीलों को पूरा किया जाए।”

पीठ ने कहा, “हम उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी, यहां तक के एनडीएमसी महापौर को (आदेश के बारे में) सूचित किए जाने के बाद भी किए गए विध्वंस पर गंभीरता से विचार करेंगे।”

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि यह मामला संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के दूरगामी प्रश्न उठाता है।

पीठ ने पूछा, ‘इस मामले में राष्ट्रीय महत्व क्या है? यह सिर्फ एक क्षेत्र से संबंधित है।’

दवे ने जवाब दिया कि जहां कहीं भी दंगे हो रहे हैं, वहां यही हो रहा है। उन्होंने पूछा कि फर्जी मुठभेड़ें और अब बुलडोजर क्या राज्य की नीति का एक साधन है?

दवे ने कहा, “1984 और 2002 में उन्होंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया तो अब क्यों। दिल्ली में 2011 का एक अधिनियम है जो दिसंबर 2023 तक हर अवैध अतिक्रमण को संरक्षित करता है। समाज के एक विशेष वर्ग को लक्षित किया जा रहा है। हमें संविधान निर्माताओं ने यह चेतावनी दी है। मैं इस पर सरदार पटेल और डॉ बी आर आंबेडकर को पढ़ूंगा। उन्होंने इस घटना के बारे में बात की है।”

उन्होंने कहा, “दिल्ली पुलिस ने विहिप के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है कि आपने हमारी आपत्ति के बावजूद जुलूस निकाला और कहा कि हमने आपको बताया कि यह एक संवेदनशील क्षेत्र है, वहां मत जाओ।”

दवे ने कहा, “वहां क्या हुआ है, वह एक उचित न्यायिक प्रक्रिया द्वारा जांच का विषय है लेकिन आप जो करते हैं, वह सिर्फ एक समुदाय के लोगों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हैं और बुलडोजर चलाना शुरू कर दिया है।”

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद तोड़फोड़ जारी रही।

दवे ने कहा, “यह जहांगीरपुरी तक सीमित नहीं है और देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता है। अगर हम इसकी अनुमति देते हैं, तो कोई कानून का शासन या लोकतंत्र नहीं बचेगा।”

दवे ने कहा, “भाजपा का कोई नेता ऐसा पत्र कैसे लिख सकता है कि आप ध्वस्त करें और एनडीएमसी उसे गिरा दे? दिल्ली नगर निगम अधिनियम में नोटिस का प्रावधान है और अपील का भी प्रावधान है।”

उन्होंने कहा कि दिल्ली में 731 अनधिकृत कॉलोनियां हैं जिनमें 50 लाख लोग रहते हैं।

दवे ने कहा, “ अगर आप अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं, तो आप सैनिक फार्म में जाएं। गोल्फ लिंक्स आएं, जहां मैं रहता हूं और जहां हर दूसरे घर में अतिक्रमण है। आप उन्हें छूना नहीं चाहते, बल्कि गरीब लोगों को निशाना बनाना चाहते हैं।”

मुस्लिम संगठन की ओर पेश हुए अन्य वकील कपिल सब्बिल ने कहा कि अतिक्रमण पूरे भारत में एक गंभीर समस्या है और इसे तेजी से मुसलमानों के साथ जोड़ा जा रहा है।

सिब्बल ने कहा, “मेरी दलील है कि ऐसे मामले दूसरे राज्यों में भी हो रहे हैं। जब जुलूस निकाले जाते हैं और झगड़े होते हैं, तो सिर्फ एक समुदाय के घरों पर बुलडोजर चलाया जाता है और सत्ता में बैठे लोग फैसला करते हैं कि क्या हुआ है और क्या नहीं।”

उन्होंने कहा, “मध्य प्रदेश को देखिए जहां मंत्री कहते हैं कि अगर मुसलमान ऐसा करते हैं तो वे न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते। यह कौन तय करेगा? उन्हें यह शक्ति किसने दी? कोई जेल में है और उसका घर गिरा दिया गया।”

सिब्बल ने बुलडोज़र से ध्वस्त करने पर रोक लगाने का आग्रह किया।

पीठ ने कहा, “हम इस देश में विध्वंस पर रोक नहीं लगा रहे हैं। विध्वंस हमेशा बुलडोजर से होता है।”

माकपा नेता वृंदा करात की ओर से पेश हुए वकील पीवी सुरेंद्रनाथ ने कहा कि बुधवार को अदालत के यथास्थिति के आदेश के बावजूद विध्वस्त अभियान नहीं रोका गया।

उन्होंने कहा, “ मैंने अपने मुवक्किल को सूचित किया और उन्होंने (करात ने) अधिकारियों को जानकारी दी। वे नहीं रुके और ये दोपहर 12:45 बजे तक जारी रहा। प्रक्रिया को रोकने के लिए उन्हें खुद जाकर खड़ा होना पड़ा।”

सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया इस साल जनवरी में शुरू हुई थी।

मेहता ने कहा, “ऐसा तब होता है जब कोई संगठन अचानक यहां आ जाता है। मैं आपको ऐसे उदाहरण दिखाऊंगा जब नोटिस की आवश्यकता नहीं थी और अवैध ढांचों को नोटिस दिया गया था। व्यापारियों ने पिछले साल उच्च न्यायालय का रुख किया था और उच्च न्यायालय ने खुद ही विध्वंस का आदेश दिया था।”

एसजी ने कहा कि पिछले साल मध्य प्रदेश के खरगोन में चलाए गए विध्वंस अभियान के दौरान, 88 प्रभावित पक्ष हिंदू थे और 26 मुस्लिम थे।

पक्षों को सुनने के बाद, पीठ ने आदेश दिया, ‘हम याचिकाकर्ता से नोटिस पर हलफनामा चाहते हैं, अगर वे दिए गए हैं तो और जवाबी हलफनामे चाहते हैं, और तब तक यथास्थिति का आदेश जारी रहेगा।’

करात ने शीर्ष अदालत का रुख करते हुए कहा था कि उच्चतम न्यायालय के यथास्थिति के आदेश के एक घंटे बाद भी विध्वंस अभियान नहीं रोका गया।

शीर्ष अदालत ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर संज्ञान लेने के बाद अधिकारियो को बुधवार को अतिक्रमण रोधी अभियान रोकने का निर्देश दिया था।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्वाह्न में इमारतों के विध्वंस के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, लेकिन बाद में उन्हें बताया गया कि जमीन पर मौजूद अधिकारी अभियान को इसलिए नहीं रोक रहे हैं, क्योंकि उन्हें आदेश नहीं मिला है, जिसके बाद उन्होंने फिर से हस्तक्षेप किया।

उत्तर पश्चिम दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में भाजपा शासित (एनडीएमसी) ने अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत बुधवार को इलाके में एक मस्जिद के पास कई पक्के और अस्थायी ढांचों को बुलडोजर से तोड़ दिया गया था।

भाषा

नोमान नरेश

नरेश पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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