पुलिस पीड़ित के लिए कोर्ट में लड़ती ही है, पर उसके बावजूद मुलज़िम को सारा समर्थन मिल जाता है। पीड़ित अपनी लड़ाई अकेले ही लड़ता है.
काफी सालों की लड़ाई और धैर्य के बाद यह फैसला सुनने को आया है। पर निर्भया के इंसाफ की लड़ाई अभी तक ख़त्म नहीं हुई है। काफी कुछ तो इसी बात पर निर्भर करता है कि सरकार कितनी जल्दी इस मृत्यु दंड के फैसले को राष्ट्रपति को भेजेगी, और कब वे कागज़ों पर हस्ताक्षर करेंगे ।
उम्मीद करती हूँ फांसी की फाइलें जल्द से जल्द आगे बढ़ें । मैं चाहती हूँ कि ये बलात्कारी उन लोगों की लम्बी कतारों में न पड़े रहें जिनको अभी फांसी होनी है। यह बात महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत में केवल चार बलात्कारी नहीं हैं। ऐसे हज़ारों बलात्कारी हैं जो या तो जेल से बाहर हैं या देश में न्याय प्रक्रिया की धीमी गति का फायदा उठा रहे हैं। अब सरकार और राष्ट्रपति की फैसला करने की गति देश के जन-जन तक एक सन्देश पहुंचाएगी । यह एक महत्त्वपूर्ण सबक होगा उनके लिए जो बलात्कार करते हैं या एक बलात्कारी की विचारधारा रखते हैं ।
मेरे परिवार और मैंने पूरे देश के साथ मिलकर मेरी बेटी ज्योति के लिए लड़ाई लड़ी पर गलियों में लड़ी गयी लड़ाई कोर्ट रूम की लड़ाई से काफी भिन्न है। हमारी न्याय प्रक्रिया हमेशा की तरह धीरे ही चलती है, जुर्म कितना भी बड़ा, भयानक या गंभीर क्यों न हो । पीड़ितों को सारे नियम, कायदे और प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। हम सिर्फ इंतज़ार करते रह जाते हैं जबकि बलात्कारियों के पास कितनी बार अपील करने की सुविधा मौजूद होती है । अपनी उम्मीद को बचाये रखने का अलावा मेरे पास विकल्प ही क्या था?
पर न्यायपालिका की धीमी गति, यहाँ तक की मेरी बेटी ज्योति जैसे केस में भी, ने कितनी सारी महिलाओं के लिए लड़ना और भी कठिन बना दिया है । क्योंकि इस बहुप्रतीक्षित केस में भी कई समझ में न आने वाले विलम्बों का सामना करना पड़ा था। बलात्कारियों के पास अपराध साबित होने से बचने के लिए कितने सारे रास्ते थे।
पीड़ितों और उनके परिवारों के पास कोई अधिकार नहीं हैं । हम बस चुपचाप कोर्ट में बैठे रहते हैं और कुछ कह नहीं सकते । यहाँ तक की मैं दलीलों को सुनने के लिए कोर्ट रूम के अंदर भी न जा पायी । बस मुझे इतना पता था की पुलिस हमारे लिए लड़ रही थी पर कैसे लड़ रही थी, यह मैं नहीं जानती। मैं बाहर पार्क में बैठ जाया करती थी और वकील के आने का इंतज़ार करती थी जो आकर मुझे सब समझाता । 2016 में मैं इस केस की एक पार्टी बन गयी और तब कोर्ट से मैंने सुनवाई देखने के लिए आज्ञा मांगी।
और अब में अंदर पहुंच भी गयी, तब भी मैं बस बैठ जाती थी, कुछ कहती नहीं थी । घंटों तक सब सुना करती थी । कुछ चीज़ें समझ में आती थीं और कुछ नहीं।
पर मैंने इस कोर्ट प्रक्रिया से बहुत कुछ सीखा। अब मैं कई पीड़ितों की मदद करती हूँ और उनको कानूनी राय भी देती हूँ, जब भी वे मुझसे मांगते हैं। मेरी सबसे बढ़ी सलाह तो यही है की यदि आप पीड़ित, जिसका बलात्कार हुआ है, के परिवार का हिस्सा हैं, कृपया करके उस महिला को अपना साथ दें। उनसे कोई सवाल ना पूछें और उन्हें पुलिस में केस रजिस्टर करने के लिए प्रोत्साहित करें। कई परिवार अक्सर केस को दबा देते हैं और शर्म के नाम पर चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते हैं, पर ध्यान रहे की ऐसा करने से ही बलात्कारी और उसके जैसी विचारधारा रखने वालों का हौंसला बुलंद होता है। जब भी कभी कोई परिवार एक रेप के केस से पीछे हटता है, बाकी महिलाऐं अप्रत्यक्ष रूप से और भी कमज़ोर बन जाती हैं।
पुलिस पीड़ित के लिए कोर्ट में लड़ती ही है, पर उसके बावजूद मुलज़िम को सारा समर्थन मिल जाता है। पीड़ित अपनी लड़ाई अकेले ही लड़ता है । मुलज़िम को जेल होती है, जहाँ उन्हें सरकार के पैसों का खाना और दवाइयां मिलती हैं, उनके लिए जेल से कोर्ट तक आने और वापिस जाने के लिए भी सुरक्षा के इंतज़ाम कराए जाते हैं। पर कोई भी कभी यह नहीं बताएगा कि किसी पीड़ित के परिवार को कोर्ट तक पहुँचने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है।
इस फैसले के बाद भी मैं अपने आप को खतरे में महसूस करती हूँ। मुझे उस नाबालिग बलात्कारी कि शक्ल तक याद नहीं, लेकिन अब वह बाहर आज़ाद घूम रहा है। वो हम सब के बीच में है । डर अभी भी कायम है । मुझे इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं कि सुधार गृह में वक़्त बिताने के बाद वह बदला है या नहीं। पर मुझे मालूम है कि उसकी एक बच्चे के जैसे देखभाल हुई थी। पर मुझे अब भी शक है अगर वह आज बदल गया होगा, अब तो वह 20 साल से लगभग ऊपर ही होगा।
कई लोग हैं जो मृत्यु दंड पर हामी नहीं भरते। वे कहते हैं कि इन बलात्कारियों को एक और मौका दिया जाना चाहिए। यह सिर्फ राजनीति है ।
मैं उन लोगों से जो मृत्यु दंड को गलत ठहराते हैं, सिर्फ एक सवाल पूछना चाहूंगी: क्या एक मर्दों के झुण्ड द्वारा एक युवा महिला का बहुत दर्दनाक तरीके से बलात्कार करना, उसके अंगों को निकल देना और जान से मर देना सही है? ऐसा कहने से कि उन आदमियों को ज़िंदा रहने देना चाहिए, क्या आप यह सिद्ध करना चाहते हैं कि हमारा समाज सुधर गया है ?
मृत्यु दंड कि बजाय, ये लोग कहते हैं कि निर्भया बलात्कारियों को ज़िन्दगी भर जेल में पड़े रहना चाहिए। हम सबको पता है कि यह कैसे काम करता है। कुछ न कुछ बहाना करके वे जेल से कुछ समय के लिए बाहर जाते रहते हैं — अपने परिवारों का ध्यान रखने, परिवार में किसी की शादी में शामिल होने और मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए। क्या यह एक सजा है?
कई लोग तो आंकड़े भी ले आते हैं यह सिद्ध करने के लिए कि फांसी से बलात्कार कम नहीं होते। हम सिर्फ ‘सबसे दुर्लभ’ केस में ही फांसी की सजा सुनाते हैं, जिसमें हमें उनके द्वारा दी गयी चोटें दिखती हैं — जैसे हत्या या आतंकवाद। पर उनका क्या जिन्होंने चोटें तो पहुंचाई हैं पर दिखती नहीं?
जब मैं सोचती हूँ की उन्होंने मेरी बेटी के साथ क्या किया, मैं चाहती हूँ की काश मृत्यु दंड से भी ज़्यादा भयानक सजा होती। शायद सब लोगों के सामने ज़िंदा जलाना।
जैसा की उन्होंने दिप्रिंट को बताया