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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतहर मॉनसून डूबती है मुंबई: क्यों बीमारी और थकावट से ग्रस्त है यह शहर

हर मॉनसून डूबती है मुंबई: क्यों बीमारी और थकावट से ग्रस्त है यह शहर

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जैसे ही एक और पुल गिरता है और मुंबईवासी दोषारोपण हैं। खुद को दोबारा याद दिलाने के लिए इन इबारतों को साझा करते हैं कि कैसे उन्होंने अपने खुद के शहर को सड़ने-गलने के लिए छोड़ दिया है वह भी कैसे- मतदान के लिए घर से बाहर न निकलकर या उसी माफिया को बारम्बार चुनकर।

ह लेख पहली बार 2014 के चुनाव अभियान के दौरान लिखा गया था।

वासेपुर, जोकि अनुराग कश्यप की दो उग्र फिल्मों में अमर हो गया है, अब विस्तारशील कोयले के शहर धनबाद द्वारा लगभग सम्मिलित कर लिया गया है और झारखण्ड में स्थित है। इन पूर्वी-केन्द्रीय कोयले के मैदानों का सबसे पुराना स्टीरियोटाइप है आग जो धरती के अन्दर जलती है क्योंकि गर्मियों में कोयला गर्म हो जाता है और स्वयं ही आग पकड़ लेता है। काली और कोयले से भरी मिट्टी से निकलते हुए धुंए के सैकड़ों गुबार इसका स्पष्ट दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

लेकिन यदि आप एक मुंबईवासी हैं तो आपको यह कौतुक देखने के लिए झारखण्ड तक जाने की जरूरत नहीं है। तो क्या हुआ अगर आप धनबाद नहीं पहुँच सकते आप मुंबई के सबसे आकर्षक हिस्सों, जहाँ आप रहते हैं, से दो कदम चलकर इसे पर्याप्त बड़े पैमाने पर देख सकते हैं। यह एक और हालिया रहस्य से भी पर्दा उठाएगा: सुर्ख काली राख के आपकी नाक, गले और अप्रथक्करणीय तरीके से फेंफडों में घुसने के साथ, मुंबई की हवा की गुणवत्ता इतनी तेज़ी से क्यों खराब हो रही है?

यह द्वीप की पतली पट्टी, जो मशूहर साउथ बॉम्बे का निर्माण करती है, के पूर्वी किनारे पर शहर के बीचोबीच से महज एक मील की दूरी पर है। अपने शाश्वत ज्ञान में या सारी जटिलताओं को अनदेखा करके अविश्वसनीय मूर्खता दिखाते हुए मुंबई पोर्ट ट्रस्ट(एमपीटी) ने लगभग जर्जर बंदरगाहों को, इंडोनेशिया से पिसे हुए कोयले के आयात को, इसे एक खुले हुए 50000 टन के पहाड़ पर उड़ेल कर और खुले डिब्बों में भरकर, फिर नाव से इसे नासिक में सरकारी बिजली संयंत्र में ले जाने को न्यायसंगत ठहराने का निर्णय लिया है।

हवाएं इस नुकसानदेह पाउडर को उठाती हैं व अपने साथ मथ लेती हैं और इसे सीधे आपके घरों और फेंफडों में ले आती हैं। पल्मोनोलॉजिस्ट आपको मुंबई में फेफड़ों की बीमारी में उछाल के बारे में बताते हैं। प्रसिद्ध भूतपूर्व बैंकर और दक्षिण मुंबई से आम आदमी पार्टी की सदस्य मीरा सान्याल कहती हैं, “मेरी बेटी एक युवा डॉक्टर है और वह भी आपको फेफड़ों की बीमारी में इस भयानक वृद्धि के बारे में बताती है।” वह मुझे कोयले का पहाड़ दिखाने के लिए भी ले जाती हैं, बिना यह सोचे की कीचड़ उनके चप्पल और पैरों की क्या दुर्दशा करेगा, वह उस आग की तरफ़  इशारा करती हैं जो कि इंडोनिशिया के बेहतरीन कोयले से निकल रही थी। वह कहती हैं, “इसके ठीक बगल में राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फ़र्टिलाइज़र्स लिमिटेड द्वारा हजारों टन अमोनियाई उर्वरक स्टोर किया गया है। और फिर वह असंतोष और इश्वरेच्छाधीनता के मिश्रित स्वर में कहती हैं: “यदि इस कोयले में आग लग जाती है तो हम सब टोस्ट हो जायेंगे।”

मीरा, जिनके पिता जी.एम. हीरानंदानी एक सम्मानित वाइस-एडमिरल थे, अपने साथ एक अन्य सेवानिवृत्त वाइस-एडमिरल आई.सी राव को साथ लेकर आयीं। मीरा कहती हैं कि राव एक अभियान में बंदरगाहों की समस्याओं को हल करने के लिए उनके साथ काम कर रहे हैं। यह अभियान राजनीति में उनके पदार्पण का संकेत देता है। हालाँकि, मैं सचेत हूँ कि उन्होंने जल्दी-जल्दी राजनीति सीखी है। बंदरगाहों के क्षेत्रों पर ध्यान देने के राजनीतिक पहलू को समझना आसान है क्योंकि प्रतिद्वंदी मिलिंद देओरा नौवहन राज्य मंत्री हैं। लेकिन यह तथ्यों को नहीं बदलता है।

मुंबई के पुराने बंदरगाह, एमपीटी की समस्त संपत्ति, वास्तव में लगभग 750 एकड़ की खाली और छोड़ी हुई ज़मीन है जो अत्रिक्रमण करने वालों, जिसमें बांग्लादेशी भी शामिल हैं, के लिए खुली हुई है और या तो कोयले के आयात और भण्डारण के लिए दुरूपयोग होती है या फिर क्रोधित राव के अनुसार अवैध रूप से जहाज़ों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल की जाती है। मुम्बई के केंद्र में बंदरगाह होने का कोई औचित्य नहीं है। यह अपने इस्तेमाल की समयसीमा बहुत पहले ही पार कर चुका है। वह कहते हैं कि इसका ड्राफ्ट सिर्फ 5.6 मीटर है और कंटेनर वाले जहाज़ों को कम से कम 20 मीटर की आवश्यकता होती है। यहाँ अभी भी ढोए जाने वाले माल को नाव द्वारा ले जाना पड़ता है और इसलिए कोयला खुली हुई नावों में पहुँचाया जाता है। मीरा और राव नौवहन मंत्रालय के 1200 करोड़ रूपये के कंटेनर टर्मिनल के निर्माण के फैसले के खिलाफ मुहिम चलाते रहे हैं। राव कहते हैं, जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट सिर्फ 10 समुद्री मील दूर है। यह 70 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है और अभी भी इसका विस्तार किया जा सकता है। तो हमें यहां इस राक्षस की आवश्यकता क्यों है? राव का अनुमान है कि टर्मिनल इस गलाघोंटू शहर में कम से कम 11000 कंटेनर ट्रकों के आवागमन के लिए जिम्मेदार होगा।

वास्तव में, यह सब एक आपदा क्षेत्र है। जमीन के लिए भूखे एक शहर में सैकड़ों एकड़ जमीन अमेरिका से आयातित पीएल-80 अनाज को स्टोर करने के लिए 60 के दशक में बने अस्थायी गोदामों के मलबे के नीचे दबी पड़ी है। मुंबई की नवीनतम झुग्गी बस्तियां यहाँ पहुँच रही हैं। इससे पहले हमने विखरोली में जो देखा, ये उससे कहीं ज्यादा गरीब हैं। फिर भी, आप इस तथ्य की कमी महसूस नहीं करेंगे कि टिन, एस्बेस्टोस और नीली प्लास्टिक शीट्स के साथ घिरी हुई हर एक छत के ऊपर एक डिश एंटीना है। इसलिए जमीन से 10 फीट ऊपर एक नयी झाड़ियों का जंगल उग रहा है, सैटेलाइट टीवी डिशों का जंगल।

सैकड़ों एकड़ जमीन चार दशक पहले बंद हो चुके कारखानों के तले दबी है जैसे – यूनिलीवर सोप फैक्ट्री। यह एक भूत-प्रेत वाली फिल्म के लिए अच्छी सेटिंग तैयार करेगी। और फिर शहर के सबसे नाजुक हिस्से में तीन सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियां हैं। अब आपको पता चलता है मीरा टोस्ट की तरह भुनने को लेकर चिंतित क्यों हैं।

यह सब अपशिष्ट और विनाश का एक भयानक तमाशा है, लेकिन निष्पक्षता से, आपको इस तथ्य को दर्ज करना होगा कि मिलिंद देओरा इसके खिलाफ अभियान करने वाले पहले व्यक्ति थे। मुंबई के सबसे सम्मानित नागरिकों में से एक और कॉर्पोरेट भारत के पसंदीदा समस्या-हलकर्ता, एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख मुझे बताते हैं कि वह और मिलिंद एक दशक पहले प्रधानमंत्री के पास एक प्रतिनिधि मंडल भी लेकर गये थे जिनकी मांग थी कि नया टर्मिनल न बनाया जाय और बंदरगाह की भूमि को शहर के सुपुर्द कर दिया जाय। उन्होंने कहा, किसी ने भी नहीं सुना और अब उन्होंने इस टर्मिनल का निर्माण शुरू कर दिया है।

यह आमतौर पर सबसे शांत लोगों में से एक दीपक के लिए सबसे ज्यादा उकसावे वाली बात होगी। जगह के लिए भूखे उनके इस शहर का अविराम विनाश उन्हें कोपाकुल करता है। वह कहते हैं कि बन्दरगाह के क्षेत्र की पूरी की पूरी 750 एकड़ भूमि शहर को सौंप दी जानी चाहिए क्योंकि यहाँ किसी बंदरगाह की आवश्यकता नहीं है और न ही कोई बंदरगाह यहाँ कार्यरत है। वह कहते हैं कि दुनिया के हर एक प्रमुख शहर ने अपने बंदरगाहों को एक संग्रहालय, मरीना, सार्वजनिक स्थान में तब्दील कर दिया है और मुंबई में हम इसका रीगल (सिनेमा की एक पुरानी ईमारत, एक लैंडमार्क) के ठीक बगल में एक वाणिज्यिक बंदरगाह के रूप में पुनर्निर्माण करने जा रहे हैं। इस भूमि को मुक्त होना चाहिए। यह हजारों घरों का निर्माण करेगी और एक क्रूज शिप टर्मिनल एवं पूरे शहर के लिए एक बोट मरीना के साथ एक खुले मैदान के सांस्कृतिक और फूड पॉइंट केंद्र का निर्माण भी करेगी। लेकिन सुनेगा कौन?

सचमुच, कौन? उत्तरदिशा में और आगे विखरोली के पूर्व में एक और सैकड़ों एकड़ जमीन और अधिक अतिक्रमण के लिए खुली और बेकार पड़ी है। यह लोगों को अंग्रेजों के समय में नमक बनाने के लिए दी गयी थी। वह गतिविधि 50 साल पहले रुक गयी थी लेकिन लवण युक्त जमीनें वैसी ही हैं जैसी वे पहले थीं सिवाय झुग्गी बस्तियों वाली जमीन के।आप यहाँ एक पूरी तरह नया उपनगर बना सकते हैं, जो पश्चिमी तट पर एकमात्र लिंक को बाईपास करने के लिए पूर्वी समुद्रतट के साथ उत्तर से दक्षिण तक मुंबई को मुक्त करने के लिए एक मुख्य मार्ग का कार्य करेगा। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? पारेख ने स्वीकार किया कि यह जगह वह मुद्रा है जो मुंबई को चलाती है, सफ़ेद, काले हर रूप से इसकी अर्थव्यवस्था को ऊर्जा देती है और कोई भी व्यक्ति इस पर चर्चा नहीं करना चाहता। “इस शहर में कोई सत्यनिष्ठा, अन्तश्चेतना और ह्रदय नहीं है, सिर्फ तृष्णा है।”

एक बार पारेख जब इस पर शुरू हो जाते हैं फिर आप उन्हें रोक नहीं सकते भले ही वह सिंगापुर के चंगी एअरपोर्ट पर प्रस्थान कॉल का इंतजार करते हुए लाउंज से आपसे बात कर रहे हों। वह कहते हैं, शहर के पास कोई योजना नहीं है और अच्छे जीवन के मानकों में इतनी कमी है कि अच्छे पेशेवर लोग यहाँ रहना नहीं चाहते, जैसा कि अच्छा पैसा कमाने वाले लोग भी जगह और बुनियादी ढांचे के सीमित होने के कारण यहाँ रहने को सिरे से ख़ारिज करते हैं। यहाँ घर, सड़कें, स्कूल नहीं हैं। वह विशेषतयः अच्छी तरह से जानते होंगे।

उनकी बहुत सारी निःस्वार्थ जिम्मेदारियों के बीच सबसे चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल के चेयरमैन का पद। इस विद्यालय की इतनी मांग है कि वह प्रवेश सत्र में दोस्तों और परिचितों को न कहते-कहते तंग आ जाते हैं। एक तरह से मुंबई देश के बाकी हिस्सों से अलग नहीं है। मंदी में भी सबसे ज्यादा सुरक्षित रहने वाले इसके व्यापार हैं शिक्षा, फिटनेस और चिकित्सा देखभाल, जैसा कि घाटकोपर के मध्यम वर्गीय गुजराती पड़ोस में एक तीन मंजिला होर्डिंग से पता चलता है।

दीपक भाई के पास हमेशा एक समाधान होता है। बहुत सारी मिल वाली जमीनें, विशेष रूप से राज्य द्वारा संचालित राष्ट्रीय वस्त्र निगम के स्वामित्व वाली जमीनें, अभी भी बची हुई हैं। इन्हें सरकार द्वारा खरीदा जाना चाहिए और फिर डेवलपर्स को इस शर्त पर बेचा जाना चाहिए कि वे सिर्फ 400-500 वर्गफीट के घरों का ही निर्माण करेंगे। तब लाखों लोग विखरोली जैसी झोपड़ियों से बाहर निकल सकते हैं, पूरी तरह वैध हो सकते हैं और स्वयं को एक शुद्ध प्रतिष्ठा युक्त जिंदगी दे सकते हैं। वह कहते हैं, “लेकिन कोई भी ऐसा नहीं करेगा। वे केवल बिल्डरों को जमीन नीलाम करेंगे जो लक्ज़री आवास विकसित करेंगे।” वह उदाहरण भी देते हैं जहाँ बिल्डरों को केवल 400 वर्ग फुट प्रति फ्लैट की अनुमति थी, लेकिन उन्होंने दो या तीन फ्लैट्स के बीच अस्थायी दीवारें बनायीं और बाद में उन्हें हटा दिया। “इस शहर में विनियमन कहाँ है?”

वह कहते हैं, यदि आप मुंबई को दुरुस्त करना चाहते हैं, आप कर सकते हैं। “भूमि को मुक्त कराओ, ऊपर उठो। यदि हांगकांग, सिंगापुर और ताइवान या अन्यत्र कहीं कम-लागत- उच्च-उत्पादकता काम कर सकती है तो यहाँ क्यों नहीं?” वो तीन शब्द, “यहां क्यों नहीं?”, दरअसल उनके विलाप के पसंदीदा शब्द हैं। “ओबेरॉय होटल, एयर इंडिया और एक्सप्रेस बिल्डिंग, नरीमन प्वाइंट, एनसीपीए कॉम्प्लेक्स सभी समुद्र से पुनः प्राप्त भूमि पर बनाए गए थे तो आप और अधिक जमीन पुनः प्राप्त क्यों नहीं कर सकते? यदि यह भूमि-प्राप्ति 1964 में हो सकती थी तो अब क्यों नहीं? यदि आप अच्छी देखभाल करते हैं तो समुद्र से जमीन प्राप्त करना पर्यावरण-विरोधी नहीं है। सिंगापुर, हांगकांग, दुबई, बहुत सारी जगहों में ऐसा हो रहा है। और फिर उनका वही सवाल हमला करने के लिए पलटता है: “यहाँ क्यों नहीं?”

नतीजा यह है कि यह शहर जर्जर हो रहा है और थक रहा है। सच कहें तो बदतर हो गया है। अब यह एक ऐसा मामला है कि डॉक्टर इसे क्रोनिक फेटीग सिंड्रोम कहेंगे। सब कुछ जड़ है। 11 किलोमीटर की एक मेट्रो लाइन बनाने में 10 साल लग गए हैं और अभी तक संचालित नहीं है। नवी मुंबई के साथ पूर्वी समुद्र तट को जोड़ने वाले 22 किलोमीटर के ट्रांस-हार्बर लिंक की योजना 15 साल पहले बनाई गई थी। यह योजना अभी भी बनाई ही जा रही है। इस बीच, चीन ने पाँच साल पहले हांगकांग और मकाऊ के बीच 50 किलोमीटर के लिंक के हिस्से के रूप में एक 6 किमी लंबी भूमिगत सुरंग पूरी कर ली थी। लिंक को रोकने वाला मुद्दा यह था कि बंदरगाह के बगल में हवासील और अन्य पक्षियों को यह कैसे प्रभावित कर सकता था। समय गुजरने के साथ यह समस्या खत्म हो जाएगी। लेकिन दुख की बात है कि उस तरह नहीं, जिस तरह से आप चाहते थे।

दूषित हवा और पानी पक्षियों को विषाक्त करके समाप्त न भी करे तो यह उन्हें कहीं और खदेड़ देगा। मुंबई की त्रासदी यह है कि किसी भी चुनाव में कोई भी इसे ठीक करने का वादा तक नहीं करता है। यहां कभी भी कोई ब्लूमबर्ग, कोई गिलियानी या कोई क्यूमो प्रतियोगिता में नहीं रहे हैं। मैं शरद पवार का ध्यान यह याद दिलाते हुए आकर्षित करता हूँ कि वह इस शहर में हर वर्ग इंच भूमि के बारे में जानते हैं, तो उनकी नज़र में इसका क्या समाधान है? वह कहते हैं कि बंदरगाह, नमक बनाने के स्थान, सभी भूमियों को शहर द्वारा अपने कब्जे में लिया जाना चाहिए और आवास एवं सार्वजनिक स्थानों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए, लेकिन आज कल ऐसा चाहता कौन है? मैंने जितने भी मुख्यमंत्रियों से बात की है वह समान रूप से असहाय लगते हैं। हम मध्यरात्रि के बाद एक पारंपरिक बातचीत के लिए मिले थे, वह कहते हैं, “पोर्ट ट्रस्ट कभी भी हमारी भूमि हमें वापस नहीं देगा।”

सेंट्रल बॉम्बे मिल की जमीनों ने एक अवसर प्रदान किया था। अदालत ने कहा था, कि भूमि को तीन बराबर भागों में विभाजित करें और विकास के लिए मालिकों को, सार्वजनिक स्थानों के लिए शहर को और बेरोजगार मिल श्रमिकों हेतु आवास बनाने के लिए सरकार को दे दें। लेकिन मालिकों ने अदालतों को उस आदेश को संशोधित करने के लिए राजी कर लिया ताकि वह तीन-तरफा विभाजन केवल उस भूमि तक सीमित हो जो मौजूदा फैक्ट्री शेड के अंतर्गत नहीं थी। इसने मिल की जमीन प्राप्त करने के अवसर को समाप्त कर दिया।

असहाय नेताओं द्वारा शासित इस विशाल शहर में केवल एक ही ऐसे व्यक्ति हैं जो पूरी तरह से अडिग होकर कार्य कर सकते हैं। उनका स्वभाव जितना अशांत करने वाला है उतना ही तरोताजा करने वाला है, और आप देख सकते हैं कि उनके पास निष्ठावान लोगों का तांता क्यों लगता है। विस्तारित ठाकरे परिवार छोड़ने के आठ वर्षों में बालासाहब के पसंदीदा भतीजे, 50 वर्षीय राज ठाकरे, महाराष्ट्र की राजनीति में बर्बादी के सबसे बड़े कारक बन गए हैं और सुर्ख़ियों में रहते हैं। वह कुछ सीटों से चुनाव लड़ते हैं, आमतौर पर एक से अधिक सीट जीतने के लिए नहीं, और बस यही इनकी ताकत है। वह भले ही जीत नहीं पाते हैं, लेकिन आम तौर पर भाजपा/शिवसेना को हराने के लिए पर्याप्त मराठी वोट ले जाते हैं।

मैं उनके चाचा बालासाहेब को अच्छी तरह से जानता था और उन्होंने मुझे प्रसन्न किया था। उन्होंने दूसरों से मेरा परिचय हमेशा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में कराया जो “उन्हें गालियां देने वाले सभी लोगों के बीच सबसे अधिक प्रसन्नतापूर्वक लिखता है।” एनडीटीवी 24×7 के ‘वाक द टॉक’ के लिए एक साक्षात्कार में, वह राज के साथ अपने विभाजन की बात करते हुए बहुत अधिक भावुक हो गये थे: “वह भी मेरा बच्चा था, बचपन में हमेशा मेरे कंधे पर पेशाब कर देता था।”

जब हम वहाँ बैठे जिसे आप उनका कार्यालय-सह-अध्ययन (हालांकि दीवारों पर बनी आलमारियों में किताबें या फाइलें नहीं थीं, बल्कि फिल्म डीवीडी थीं, भारतीय और विदेशी, जेएफके, टाइटैनिक, चार्ली चैपलिन की सर्वश्रेष्ठ फिल्में वगैरह-वगैरह) कह सकते हैं तो राज ने बताया कि, “तो ठीक तो कह रहे थे वो, मैं उनके बेटे जैसा ही था।” दादर की गली में उनका घर कृष्णा कुंज, उतना ही सामान्य दिखता है जितना कि नई दिल्ली के जंगपुरा में 300 वर्ग यार्ड का एक मकान, या शायद चित्तरंजन पार्क के मध्यम वर्ग के बंगाली एन्क्लेव तरह। राज नीले और लाल रंग का ट्रैकसूट पहने हुए थे और मैंने उनसे फिल्मों के लिए उनके जुनून के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि वह सभी फ़िल्में देखते हैं। उनके काम करने की मेज पर, जहाँ वह बैठते हैं, से दायीं तरफ एक बड़ा एलसीडी टीवी है और वह कहते हैं कि उनके पास इसके नीचे अलमारी में 3,000 फिल्में हैं। वह सिर्फ फिल्मों को ही नहीं इकट्ठा करते हैं। मैं उनके बाथरूम के बड़े शेल्फ पर प्रदर्शित इत्र (परफ्यूम) की बोतलों की संख्या से आश्चर्यचकित हूँ, जिसमें कई अच्छे अच्छे ब्रांड शामिल हैं, जो एक छोटी ड्यूटी-फ्री शॉप के इत्र विभाग को भरने के लिए पर्याप्त हैं।

मैंने कहा, “लगता है आप वास्तव में इत्र बहुत पसंद करते हैं।”

उन्होंने ईमानदारी से बताया, “लेकिन मैं केवल एक ब्रांड, एबरक्रॉम्बी एवं फिच का उपयोग करता हूँ, बाकी, लोगों द्वारा भेंट स्वरूप लाई हुई हैं, तो मैं उनका क्या करूँ? इसलिए मैं उन्हें डिस्प्ले में लगा देता हूँ।”

मैं मुंबई में रहने की जगह की समस्या उठाता हूँ। वह कहते हैं, यदि बिहार और उत्तर प्रदेश से हर दिन 48 ट्रेनें नये प्रवासी के साथ आती हैं तो कोई क्या कर सकता है? आपको पहले उन राज्यों को ठीक करने की जरूरत है। लेकिन मुंबई में रहने वाले सभी राजनेताओं में वह भी अपनी सोच में सबसे शहरीकृत और मेयर जैसी सोच वाले हैं। “आप जानते हैं, जब मेरी पत्नी और मैं स्विट्जरलैंड गये, तो मैंने उनसे पूछा, विपक्ष इस देश में क्या करता है? यहाँ सबकुछ चकाचक है। “लेकिन निश्चित रूप से, वहाँ समस्याएं थीं जो एक समस्याग्रस्त भारतीय शहर से गया हुआ व्यक्ति नहीं देख सकता था। वह कहते हैं, इसी तरह दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के राजनेता मुंबई आते हैं और कहते हैं, वाह, मेरे गाँव में जो नहीं है वह यहाँ शानदार है: बिजली, सड़कें, स्कूल, अस्पताल, समस्या कहाँ है? एक शहर को शहर के लोगों द्वारा शासित किया जाना चाहिए, जैसे स्विट्जरलैंड केवल स्विस (स्विट्जरलैंड के निवासियों) द्वारा शासित हो सकता है। यहां तक कि मुंबई पुलिस भी अद्भुत है, लेकिन आप क्या उम्मीद करते हैं जब आर.आर. पाटिल जैसे देहाती लोग गृह मंत्री बन जाते हैं।

मैंने दिल खोलकर पूछा, “आप महाराष्ट्र के आदर्श गृह मंत्री के रूप में किसे सोचते हैं?”

वह उतनी ही ईमानदारी से जवाब देते हैं, “मैं, और कौन, और फिर योग्यता जोड़ते हैं, “लेकिन केवल तभी जब मैं मुख्यमंत्री भी हूँ। नहीं तो कोई मतलब नहीं बनता।”

अपने चाचा की तरह, उन्होंने एक बुरी प्रतिष्ठा बनाई है जो उनके बहुस्तरीय व्यक्तित्व को ढक देती है और एक बार जब आप उनके स्तर पर पहुंच जाते हैं और उनके साथ बिताया गया समय उतना ही मजेदार हो सकता है जितना उनके स्वर्गीय चाचा के साथ होता था। हमारी चर्चा देर दोपहर तक पहुँच जाती है। उनके घर में दो कटोरों में साबूदाना खिचड़ी और भीगा हुआ चिवड़ा (चूरा), जो महाराष्ट्रीयन नाश्ता है, मेरे जैसे मिर्च खाने वाले के लिए भी वास्तव में एक तीखा खाना था और फिर हम जानवरों पर चर्चा की भूल भुलैया में चले जाते हैं। राज खुश होते हैं।

“एक दिन, मैं पुणे के पास एक सड़क पर था और मैंने देखा कि एक आदमी पिंजरे में सुंदर मुर्गें ले जा रहा था। वे खूबसूरत थे, मैंने रोका, उनको काटकर बेचने के बाद खाए जाने के लिए ले जाया जा रहा था। इसलिए मैंने अपने ड्राइवर से रुककर और उन सभी को खरीदने के लिए कहा। उनमें से सभी 80 मुर्गों को।

“और अब वे कहाँ हैं? आपने उनके साथ क्या किया” मैंने डरते हुए पूछा कि जाहिर है जवाब होगा: मेरी डाइनिंग टेबल पर।

“आमतौर पर मुंबई को डराने वाला व्यक्ति कहता है “उनमें से बहुत से कर्जात में मेरे फार्म पर, बाकी मेरे दोस्तों के फार्म पर, वे सभी ठीक हैं। उनके इस छोटे से घर में 10 कुत्ते भी हैं जिनमें तीन पग, चार ग्रेट डेन और तीन प्यारे मोन्गर्ल्स हैं। वह मुझे विदा करते हुए एक कुत्ते के बालों को सहलाते हैं और अपनी चुनावी हार लेकिन रणनीतिक जीत से आत्मसंतुष्ट हैं। वह मोदीजी को महाराष्ट्र और यहाँ तक कि मुंबई भी सौंप रहे हैं।

58 वर्षीय उदय कोटक एक अलग ही तरीके के मुम्बई निवासी हैं। जन्म से गुजराती, लेकिन वे ठाकरे की ही तरह उस धरती के निवासी हैं। इसके साथ ही वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो शहर को “जादुई नगरी” के शीर्षक के रूप में पूरी तरह सही ठहराते हैं। उन्होंने कहा कि राज कपूर की एक फिल्म में बाम्बे का ऐसा वर्णन किया गया है। उनका जन्म बाबुलनाथ मंदिर (मरीन ड्राइव से दायीं और मुड़ते हुए बाएं हाथ पर) के पास 60 सदस्यों के संयुक्त परिवार में हुआ था और उन्होंने जमनाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए की डिग्री प्राप्त की थी। उनका पारिवारिक कपास का व्यापार समाप्त होने की कगार पर था। लेकिन जदुई नागरी में उदय एक जन्मजात उद्यमी और वित्तीय जादूगर थे। उनके एक मित्र थे जो नेल्को, टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी जो आमतौर पर नगदी की कमी से जूझ रही थीं, में काम करते थे।

इसलिए ये बैंकों मे 90 दिनों के लिए अपने बिलों को डिस्काउंट (बैंक द्वारा बिल का अग्रिम भुगतान) करवातीं और बैंक 17 प्रतिशत ब्याज लेते। उदय ने गौर किया कि बैंकों ने अपने जमाकर्ताओं को केवल 6 प्रतिशत का भुगतान किया और 11 प्रतिशत अंतरपणन का लाभ उठाया। इसलिए उन्होंने कुछ दोस्तों और परिवारियों से संपर्क किया और उनसे 12 प्रतिशत (बैंक दर से दोगुना) पर उधार लेने की पेशकश की और इसे नेल्को को 16 प्रतिशत पर दे दिया। बीच का 4 प्रतिशत उनका था। और “हर कोई जानता था कि यह टाटा कंपनी है, यह वापस भुगतान करेगी।” यह भारत की सबसे उल्लेखनीय बैंकिंग सफलता की कहानियों में से एक की शुरुआत थी।

वह आनंद महिंद्रा से एक ग्राहक के रूप में मिले, उस समय वह महिंद्रा यूगिन में काम करने के लिए हार्वर्ड से वापस आए थे, वे आपस में अच्छी तरह घुल मिल गए और उदय ने एक व्यवसाय शुरू किया जिसमें उन्होंने उनको निवेश करने के लिए कहा। इस प्रकार, कोटक महिंद्रा का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने दो (अब समृद्ध और मशहूर) सहपाठी वकीलों, सिरिल श्रॉफ (अमरचंद एंड मंगलदास एंड सुरेश ए. श्रॉफ एंड कंपनी) और अमित देसाई, भारत में आपराधिक मामलों के बेहतरीन वकीलों में से एक, को लुभाया। उदय ने कहा, “आप जानते हैं यदि वे उस समय 1 लाख रुपये का निवेश करते तो आज उस पैसे की क्या कीमत होगी? उसकी कीमत होगी 640 करोड़ रुपये।” उनका मार्केट कैप अब 62,000 करोड़ रुपये है। तो कुछ ऐसी ही जगह है मुंबई। बल्कि थी।

“थी” इसलिए क्योंकि जैसा कि उदय भी कहते हैं कि यह शहर अब थकाऊ है। अच्छे प्रोफेशनल यहां काम नहीं करना चाहते हैं।  यहाँ उन्हें ठीक नहीं लगता । मुम्बई का एक प्रकार से कलकत्ताकरण शुरू हो गया है, और इसे पलटा जाना चाहिए।

जब यह सवाल उठता है कि क्या मुंबई के लिए कोई आशा है? तो मिलते हैं केवी कामथ से, जो भारतीय बैंकिंग के एक और स्वयं निर्मित पेशेवर अगुआकार हैं और जिन्होंने आईसीआईसीआई को अब तक का सबसे बड़ा निजी बैंक बनाया है। दीपक पारेख और उदय कोटक के साथ, वह भारत के सबसे प्रतिभाशाली स्वदेशी बैंकरों की तिकड़ी पूरी करते हैं। ये सभी वफादार, गर्वित मुम्बई निवासी हैं, भले ही मराठी मानुस न हों। आप कहते हैं कि बैंक बुरे ऋण से संकट में हैं। वह कहते हैं, वृद्धि को वापस आने दो। 9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, उनमें से अधिकतर ऋण अच्छे होंगे। वह कुछ इतने आशावादी हैं। चीजें की जा सकती हैं, चमत्कार संभव हैं, मुंबई में बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में शानदार नए बैंकिंग इलाके पर वह अपने ऑफिस की खिड़की से नजर दौड़ाते हुए कहते हैं, इसे देखो। एमएमआरडीए का नेतृत्व करने वाले सिर्फ एक महान अधिकारी और कुछ अच्छे विचारों ने यह चमत्कार किया है और आगे भी ऐसा किया जा सकता है।

कामथ सबसे आशावादी और सफल लोगों में से एक है, इसलिए जब भी आप निराशा महसूस करें तो उनसे संपर्क करें। वह आपको इस उलझे हुए महानगर में कैसे काम करें इसके बारे में अच्छी धारणाएं और विचार बताएंगे और यह भी बताएँगे कि ओवरसिटी और अंडरसिटी इतनी खूबसूरती से एकसाथ मौजूद कैसे रह सकती है। वह आपको प्रभादेवी में अपनी गली (एस.के. अहिर मार्ग) में कल्पतरु टावर्स तक लेकर जायेंगे जहाँ कई अन्य संपन्न मुंबईवासी रहते हैं। वह गली के बारे में बताएँगे कि इसे लोकप्रिय रूप से अभ्यास गली या पढ़ाई गली के नाम से जाना जाता है। क्योंकि, 1920 में यहाँ के पास की झोपड़ियों और चॉलों के बच्चे सड़क की लाइटों में बैठकर पढ़ाई करते थे। जब क्षेत्र को विकसित किया गया और नए टावर बनाए गए, तो उन्होंने इस परंपरा को संरक्षित करने का फैसला किया। इसलिए बड़े हलोजन लैंप फिट किए गए और साफ टाइल्स के साथ पक्का फुटपाथ बनाया गया। और आप हर शाम वहां जाकर युवा छात्रों से मिल सकते हैं। परीक्षा के समय में, यह एक मेले की तरह लगता है।

मैं एक लाइट के नीचे उनमें से चार छात्रों से मिलता हूँ। निकेत कोडे, सुरेश और अमित सिंह बी.कॉम में सहपाठी हैं और बद्दा प्रसाद रमेश कंप्यूटर इंजीनियरिंग का अध्ययन कर रहे हैं। चारों पास ही के बीबीडी चॉल, जो अमानुषिक भीड़ और सार्वजनिक शौचालयों के लिए कुख्यात है, के रहने वाले हैं। उनके पिता, क्रमशः, एक समाचार पत्र विक्रेता, एक पुलिस कांस्टेबल, एक सिक्यूरिटी सुपरवाइजर और प्रति इकाई की दर पर काम करने वाले एक दर्जी हैं। वे हर शाम यहाँ आते हैं और यहाँ के निवासी उन्हें प्यार करते हैं। अक्सर, देर शाम को, राजनेता सचिन भाऊ अहिर (जिनके पिता के नाम पर सड़क का नाम रखा गया था) और अन्य निवासी इन छात्रों के लिए चाय और बिस्कुट की व्यवस्था करते हैं।

उन सबके अपने-अपने सपने हैं। निकेत ऑटोमोबाइल डिजाइन करना चाहता है – उसके एक चाचा हैं जो जापान में बीएमडब्लू की डिजाइन टीम में काम करते हैं। सुरेश एमबीए करके एक एग्जीक्यूटिव बनना चाहता है। अमित (प्रतापगढ़ का एक “राजपूत”), पहले से ही एक एनसीसी ‘सी’ प्रमाणपत्र धारक और एक पक्का निशानेबाज है जो सेना में अधिकारी बनने की तैयारी कर रहा है। रमेश एक तेलुगू लड़का है जो कंप्यूटर इंजीनियरिंग में आगे के अध्ययन को जारी रखना चाहता है। मुंबई की एक गली और एक हाइलोजन लाइट जो उनकी नहीं है, बैठने के लिए एक बोरा, उनके पास जो कुछ यही है। लेकिन याद रखें, यह मुंबई की एक गली है। यह अभी भी सुनहरे सपनों से भरी हुई है।

Read in English : Mumbai collapses & cries every monsoon. Why it’s a tired city with chronic fatigue syndrome

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