scorecardresearch
Monday, 18 November, 2024
होमदेशअर्थजगतदिवाला मामलों में सिर्फ 31 फीसदी कर्ज की वसूली, आधे मामलों में परिसमापन: रिपोर्ट

दिवाला मामलों में सिर्फ 31 फीसदी कर्ज की वसूली, आधे मामलों में परिसमापन: रिपोर्ट

Text Size:

मुंबई, 15 अप्रैल (भाषा) दिवालिया प्रक्रिया का हिस्सा बने 3,247 मामलों में से लगभग आधे मामलों का निपटान परिसमापन के जरिये हुआ है और सिर्फ 14 फीसदी मामले ही परिसंपत्ति बिक्री के जरिये निपटाए जा सके हैं।

भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) से मिले आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। शुक्रवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, विभिन्न समाधान प्रक्रियाओं में औसतन सिर्फ 31 फीसदी कर्ज की ही वसूली हो पाई है।

साख निर्धारण करने वाली एजेंसी इक्रा रेटिंग्स के एक विश्लेषण के अनुसार, ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) लागू होने के बाद दिसंबर 2021 तक के पांच वर्षों में दर्ज सभी मामलों के अध्ययन से यही पता चलता है कि दिवाला प्रक्रिया की रफ्तार बहुत सुस्त है।

किसी कंपनी का परिसमापन होने पर ऋणदाताओं या वित्तीय फर्मों को अपने बहीखातों में अधिकतम नुकसान उठाना पड़ता है।

इक्रा रेटिंग्स ने अपने विश्लेषण में कहा कि ऋणदाताओं की तरफ से अपने कर्जदारों पर किए गए 7.52 लाख करोड़ रुपये के दावों में से, केवल 2.5 लाख करोड़ रुपये ही वापस मिल पाए। कर्जदाताओं को परिसमापन की यह पीड़ा झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की विभिन्न पीठों ने दिसंबर 2021 तक ऋणशोधन अक्षमता के 4,946 मामलों को मंजूरी दी थी जबकि 10,000 से अधिक आवेदन अभी भी उसकी स्वीकृति का इंतजार कर रहे हैं।

इक्रा के मुताबिक, एनसीएलटी ने अब तक 3,247 आवेदनों का निपटारा कर दिया है जबकि 1,699 अभी भी जारी हैं। कुल मामलों में से 1,514 यानी 47 प्रतिशत मामलों को परिसमापन के जरिये निपटाया गया और सिर्फ 457 मामले यानी 14 प्रतिशत ही कर्जदाताओं द्वारा अनुमोदित समाधान योजनाओं के तहत निपटाए गए।

विश्लेषण के अनुसार, कुल प्रस्तावों का 22 प्रतिशत हिस्सा अब भी समीक्षा या अपील के रूप में लंबित है जबकि कुल स्वीकृत मामलों में से 17 प्रतिशत को वापस ले लिया गया है।

रिपोर्ट कहती है कि दिवाला प्रक्रिया में बकाया कर्ज की कम वसूली होने के मुख्य कारणों में से एक यह है कि 77 प्रतिशत मामले या तो औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) के अधीन हैं या उन फर्मों का परिचालन ही बंद हो चुका था। इससे पांच साल पहले कानून लागू होने के बाद भी आईबीसी की कमजोर स्थिति पता चलती है। सरकार ने बीआईएफआर और डीआरटी को खत्म नहीं किया है।

भाषा

प्रेम रमण

रमण

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments